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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

धारा 228A IPC क्या होता है परिभाषित करो ?Define what is Section 228A IPC?

निपुण शर्मा बनाम भारत संघ(2018) के मामले में भारत की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक ऐतिहासिक निर्णय दिया गमा । जिसमे यह बोला गया कि बलात्कार और यौन शोषण के पीड़ितों की पहचान को सार्वजनिक करने से उ‌नके प्रति समाज में उनके उत्पीडन को रोकने में सहायता करता है। खासकर ऐसे मामलों में जिनमें वयस्क बलात्कार पीड़ितों और यौन शोषण का अनुभव करने वाले बच्चे शामिल हो। क्योंकि समाज में कुछ  वर्षों में ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिनमें यह देखा गया है कि यौन अपराधों विशेष रुप से बलात्कार कि पीडितों की अक्सर सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यदि न्यायालय के अन्दर की बात की जाये तो उनको कठोर जिरह और आपराधिक न्याय  प्रणाली के भीतर उनके चरित्र पर हमलों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।


      जबकि IPC का section 228 A बलात्कार के पीड़ितों की पहचान का खुलासा करने पर रोक लगाती है। यदि किसी भी परिस्थिति में पीड़ितों की पहचान को सार्वजनिक किया जाता है तो ऐसी स्थिति में दण्ड का प्रावधान भी है। 

          धारा 228A कुछ अपराधों के पीड़ितों की पहचान का खुलासा करने की गैरकानूनी बनाती है। इसका उद्देश्य पीडितों की गोपनीयता की रक्षा करना और उनके प्रति भविष्य में होन वाली किसी भी अकस्मित क्षति से बचाना है।

      यह धारा निम्नलिखित अपराधों से संबन्धित पीडितों की पहचान का खुलासा करने पर प्रतिबन्ध लगाती है:-

  •  बलात्कार [ Section 376] 

  • असामान्य यौन उत्पीड़न [Section 376A] 

  •  अप्राकृतिक अपराध [Section 377]

  •  नाबालिक के साथ यौन सम्बन्ध [Section 376B] 

  • अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य के साथ बलात्कार [Section 376 C

  •   स्त्री अंगो से सम्बन्धित अपराध [Section 376D

  •   एसिड हमला section 326 A

  •  मानव तस्करी [section 370]


 उदाहरण : मान लीजिये कि एक महिला पर बलात्कार का आरोप है। यदि कोई समाचार पत्र या सोशल मीडिया पर उस महिला का नाम या अन्य कोई जानकारी प्रकाशित की जाती है। जिससे उसकी पहचान उजागर हो सकती है तो वह section 228A के तहत अपराध के लिये दडित हो सकता है।

// Note → धारा 228A के कुछ अपवाद भी है। उदाहरण के लिये यदि पीडित-स्वयं अपनी पहचान का खुलासा करने के लिये सहमति देता है या पुलिस जांच के उद्‌देश्यों के लिए पहचान का खुलासा करना आवश्यक है तो यह अपराध नहीं होगा।


      यह धारा केवल उन लोगों पर लागू होती है, जो जानबूझकर पीडित की पहचान का खुलासा करते है। यदि कोई व्यक्ति अनजाने से पीडित की पहचान का खुलासा कर देते है तो उसे इस धारा के तहत दंडित नहीं किया जायेगा। 

     section 228A पीडितों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें न्याय तक पहुंचने के लिये प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह यौन अपराधों एवं अन्य अपराधों और अन्य अपराधों के पीडितों को डरने और शर्मिन्दा होने से बचाने में मदद करता है। 


अपवाद और प्राधिकरण: वयस्क पीडित अपनी पहचान का खुलासा करने का अधिकार दे सकते हैं। जबकि नाबालिगों की POCSO अधिनियम के तहत सुरक्षा प्रदान की जाती है। पीडित के सर्वोत्तम हितों और आघात संवेदनशीलता को प्राथमिकता  देते हुए निकटतम रिश्तेदार द्वारा प्राधिकरण सावधानी से दिया जाना। 

     पीडितों की पहचान का खुलासा करने के लिये अधिकृत मान्यता प्राप्त संस्थानों या संगठनों की स्थापना करना आवश्यक है। प्रभावी पीडित पहचान सुरक्षा के लिये ऐसी संस्थाओं और प्रतिनिधियों के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश और योग्यतायें आवश्यक है। IPC और POCSO के तहत विशिष्ट अपराधों से संबन्धित FIR को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिये। पीड़ित की पहचान की सुरक्षा  से संबन्धित दस्तावेजों को सीलबंद रखना चाहिये और सार्वजनिक डोमेन दस्तावेजों से पीडित की पहचान हटा देनी चाहिये। पीडित की जानकारी प्राप्त करने वाले अधिकारियों को गोपनीयता बनाये रखनी चाहिये, जांच एजेसी या अदालत को केवल सीलबन्द रिपोर्ट में ही पहचान का खुलासा करना चाहिये ।


 राज्यों को जारी दिशा निर्देश: 

[i] यौन अपराधों के पीड़ितों को व्यापक  सहायता प्रदान  करना । 


[2] चिकित्सा और परामर्श सहायता प्रदान करना ।

 [3] प्रत्येक जिले में कम से कम एक वन स्टॉप सेंटर स्थापित करना।



A landmark judgement was given by the Supreme Court of India in the case of Nipun Sharma vs Union of India(2018). In which it was said that making the identity of the victims of rape and sexual abuse public helps in preventing their harassment in the society. Especially in cases involving adult rape victims and children experiencing sexual abuse. Because in the society, such cases have been seen in the past few years in which it has been seen that the victims of sexual crimes, especially rape, often face social exclusion and discrimination. If we talk about inside the court, they have to face challenges like harsh cross-examination and attacks on their character within the criminal justice system.

     While section 228 A of the IPC prohibits the disclosure of the identity of rape victims. If the identity of the victims is made public under any circumstances, then there is also a provision for punishment in such a situation.

        Section 228A makes it illegal to disclose the identity of the victims of certain crimes. Its purpose is to protect the privacy of the victims and to avoid any accidental harm to them in the future.


This section prohibits disclosure of identity of victims of the following crimes:-

  • Rape [Section 376]

  • Abnormal sexual harassment [Section 376A]

  • Unnatural offence [Section 377]

  • Sexual intercourse with a minor [Section 376B]

  • Rape of a member of minority community [Section 376 C]

  • Crimes related to female organs [Section 376D

  •  Acid attack section 326 A

  • Human trafficking [section 370]

Example: Suppose a woman is accused of rape. If the name or any other information of that woman is published in a newspaper or on social media, which may reveal her identity, then he can be punished for the crime under section 228A.


// Note → There are some exceptions to section 228A. For example, if the victim himself consents to the disclosure of his identity or the disclosure of identity is necessary for the purposes of police investigation, then it will not be a crime.

This section applies only to those who intentionally disclose the identity of the victim. If a person inadvertently discloses the identity of the victim, then he will not be punished under this section.

section 228A plays an important role in protecting the rights of victims and encouraging them to access justice. It helps to protect victims of sexual crimes and other crimes from fear and shame.


Exceptions and Authorizations: Adult victims can authorize disclosure of their identity. While minors are protected under the POCSO Act. Authorization to be carefully given by the next of kin, prioritizing the best interests of the victim and trauma sensitivity.

Establishing recognized institutions or organizations authorized to disclose the identity of victims is essential. Clear guidelines and qualifications for such institutions and representatives are necessary for effective victim identity protection. FIRs related to specific crimes under IPC and POCSO should not be made public. Documents related to protection of victim identity should be kept sealed and the identity of the victim should be removed from public domain documents. Officials obtaining victim information should maintain confidentiality, disclosure of identity to the investigating agency or court should be done only in a sealed report.

Guidelines issued to States:

[i] Provide comprehensive assistance to victims of sexual crimes.

[2] Provide medical and counseling assistance.

[3] Establish at least one One Stop Center in each district.

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