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SC/ST Act संसद द्वारा 1989 पारित किया गया। इसके बाद राष्ट्रपति ने 30 जनवरी 1990 को इस पर मुहर लगाई और ये कानून लागू किया गया।
हिन्दी में बात की जाये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण कानून) कहा जाता है। इस कानून के अन्तर्गत कुल 5 अध्याय एवं 23 धारायें हैं। इसमें 2018 में संशोधन हो चुका है।
SC/ST Act अध्याय-1 में [ खख] आश्रितं से पीडित का ऐसा पति या पत्नी बालक माता -पिता भाई और बहिन जो ऐसे पीडित पर अपनी सहायता और भरण-पोषण के लिये पूर्णतः या मुख्यता आश्रित है:
[ख ग] "आर्थिक बहिष्कार से निम्नलिखित अभिप्रेत है -
[[i] अन्य व्यक्ति से भांडे पर कार्य से सम्बन्धित किसी अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को उसके कार्य का मेहनताना न दिया जाना।
[ खड़] वन अधिकार का वह अर्थ होगा जो अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006 (2007 का 2) की धारा 3 की उपधारा (2) में है।
[([खच] हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी का वह अर्थ होगा जो हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम (2013 (2013 का 25 ) की धारा 2 की उपधारा ((2) के खंड (छ) में उसका है।
इस अधिनियम को लाने का मुख्य उद्देश्य आजादी के बाद भी हो रहे अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के प्रति हो रहे प्रताड़ना को रोकने के महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा था
समाज में होने वाले अनुसूचित जाति / जनजाति के प्रति होने वाले प्रताड़नापूर्ण कुछ कृत्य जो देखे जाते है. जो आज भी हमारे समाज में कुछ व लोगों की मानसिकता "में बसे हुये हैं जिनको करने के बाद वो लोग ऐसा प्रतीत कराते हैं जैसा कि उनके द्वारा किसी दलित वर्ग का किया गया अपमान को एक 'सामाजिक प्रतिष्ठा के रूप में देखते हैं। कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो निम्नलिखित है-
कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही है -
[17 अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिये मजबूर करेगा।
[2] अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी व्यक्ति के परिसर या पडोस में मल-मूल कूडा, पशु शव या कोई अन्य घृणाजनक पदार्थ इकठठा करके उसे क्षति पहुंचाने, अपमानित करने या क्षुब्ध करने के आशय से काम करेगा।
[3] अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को जूतों की माला पहनायेगा या अर्ध नग्न घुममिया |
[4.अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य पर बलपूर्वक ऐसा कोई कार्य करेगा जैसे व्यक्ति के कपडे उतारना, बलपूर्वक सिर का मुण्डन करना मूंछें हटाना,चेहरे या शरीर की पोतना या कोई ऐसा अन्य कार्य करेगा, जो मानव गरिमा के विरुद्ध है ।
[5] अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य को उसकी भूमि या परिसरों पर कब्जा करना या किसी जल या सिंचाई सुविधाओं पर वन अधिकारों सहित उसके अधिकारों के उपयोग उपभोग पर हस्तक्षेप करेगा या उसकी फसल को नष्ट करेगा या उसके उत्पाद को ले जायेगा।
ये कुछ ऐसे समाज में होने वाले कृत्य हैं जोकि ऐसे मामले हमको अक्सर सुनने को मिलते हैं।
एक लोक सेवक के कर्तव्य उपेक्षा के लिये दण्ड का प्रावधान भी इस कानून में 'सम्मिलित किया गया है। ऐसे कुछ नियमों को निम्नलिखित रूप में वर्णित किया गया है।
[A] पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी द्वारा सूचनाकर्ता के हस्ताक्षर लेने से पहले मौखिक रूप से दी गयी सूचना को सूचना कर्ता को पढ़कर सुनाना और उसको लेखबद्ध करना ।
[B] इस अधिनियम और अन्य सुसंगत उपबन्धों के अधीन शिकायत या प्रथम सूचना रिपोर्ट को रजिस्टर करना और अधिनियम की उपयुक्त धाराओं के अधीन - उसको रजिस्टर करना।
[C] इस प्रकार अभिलिखित की गयी सूचना' की एक प्रति सूचनाकर्ता को तुरन्त प्रदान करें
[D] पीडिती या साक्षियों के कथन को अभिलिखित करना
[E] जाँच करना और विशेष न्यायालय या अन्य विशेष न्यायालय में 60 दिन की अवधि के भीतर आरोपपत्र फाइल करना तथा विलंब यदि कोई हो लिखित में स्पष्ट करना
15A. पीडित और साक्षी के अधिकार
[i] राज्य का किसी प्रकार के अभिश्रास प्रपीड़न या उत्प्रेरणा या हिंसा या हिंसा की धमकियों के विरुद्ध पीडितों, उसके आश्रितों और साक्षियों के संरक्षण के लिये व्यवस्था करना कर्तव्य और उत्तरदायित्व होगा।
SC/ST Act के अन्तर्गत सजा:→ इस Act के अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का किसी भी प्रकार से उत्पीड़न करता है तो वह कम से कम 6 महीने और ज्यादा से ज्यादा 7 साल तक के कारावास से दण्डित किया जा सकता है।
SC/ST Act के तहत मुआवजा राशि : → किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को उत्पीडन जाति के आधार पर किया गया है तो FIR दर्ज होने के बाद ही आर्थिक सहायता पहुंचाने का प्रावधान है। अगर दोष सिद्ध हो जाता है, तो पीडित, की हरजा के हिसाब 40000 ₹ से लेकर 5 लाख रुपये देने पड़ सकते हैं।
SC/ST Act को लेकर सुप्रीम कोर्ट का कथन:-
सिर्फ गाली देने पर SC/ST ऐक्ट नहीं लगा सकते हैं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम 1989 के एक प्रावधान के तहत आरोपी पर मुकदमा चलाने से पहले उसके द्वारा सार्वजानिक रूप से की गयी टिप्पणी को आरोप पत्र में रेखांकित किया जाये।
कानून के जानकारों के कुछ कथन
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निवारण) कानून बहुत लचीला है।
[2] इसका प्रयोग SC/ST समुदाय के लोग एक हथियार के रूप में करते हैं।
[3] इसका प्रयोग: SC/ST समुदाय के लोग किसी भी दूसरे वर्ग / जाति के व्यक्ति पर प्रताड़ना का आरोप लगाकर उसको मुश्किलों में डाल देते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की राय : → इस तरह के मामलों में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मामलों में तुरन्त गिरफ्तारी की जगह सुरुआती जांच होनी चाहिये । जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच का कहना था कि सात दिनों के भीतर शुरुआती जांच पूरी हो जानी चाहिये।
सुप्रीम कोर्ट का अपना मत और राय है लेकिन आज भी भारतीय समाज में हुआ-छूत, ऊँच-नीच जैसे मानसिकता धारी समाज में व्याप्त है। जैसे अभी हाल ही में हमने एक पेशाब काण्ड देखा जिसमें एक उची जाति का व्यक्ति एक दलित पर पेशाब करते हुये देखा गया। इसी तरह कि घटना एक दलित युवक की बारात घोड़ी पर नही जायेगी । ऐसे विवाद हम आज भी इस भारतीय समाज में अक्सर देखते हैं।
SC/ST Act के तहत सजा: SC/ST Act के मुताबिक अगर कोई किसी अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के अधिकारों का हेजन करता है तो वह 6 माह और अधिकतम 7 साल के कारावास से दण्डित किया जा सकता है।
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