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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

चार्जशीट क्या होती है? यह कब और कहां दाखिल की जाती है ?

Crpc की धारा 173 में चार्जशीट की के बारे में उल्लेख किया गया है। जिसमें बताया गया है कि पुलिस द्वारा किसी केस की जांच की अंतिम रिपोर्ट Crpc की धारा 173(2) के अन्तर्गत चार्जशीट कहलाती है। चार्जशीट को किसी आरोपी के खिलाफ 60 से 90 दिनों के अंदर जांच अधिकारी द्वारा  कोर्ट के समक्ष पेश किया जाता है। अगर पुलिस द्वारा चार्जशीट कोर्ट में नही पेश की जाती है तो गिरफ्तारी को अवैध माना जाता है और आरोपी जमानत पाने का हकदार बन जाता है।


 के .वीरास्वामी बनाम भारत सरकार और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि CrPC की धारा 173(2) के तहत चार्जशीट अतिम रिपोर्ट है। 

Section 173 of CrPC mentions about charge sheet.  In which it is said that the final report of investigation of a case by the police is called charge sheet under section 173(2) of CrPC.  The charge sheet against an accused is presented before the court by the investigating officer within 60 to 90 days.  If the charge sheet is not presented in the court by the police then the arrest is considered illegal and the accused becomes entitled to get bail.



 In the case of K. Veeraswamy vs. Union of India and others, the Supreme Court had said that the charge sheet is the final report under Section 173(2) of CrPC.


एक चार्जशीट में किन बातों का होना आवश्यक है ?

 (i) आरोपी और पीडित का नाम सही और साफ

 (2) अपराध और उसकी प्रकृति

 (3) आरोपी हिरासत में है या बाहर

 (4) उसके खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी है


     चार्जशीट को हिन्दी में आरोप-पत्र कहा जाता है। किसी भी मामले में ९० दिनों तक पुलिस द्वारा कोर्ट में चार्जशीट पेश की जा सकती है। इसी के आधार पर अदालत आरोपी के खिलाफ आरोप तय करती है या फिर आरोपी के खिलाफ लगाये गये आरोप को निरस्त करती है। 


क्यों चार्जशीट इतनी महत्वपूर्ण होती है?


 किसी भी मामले में FIR दर्ज होने के बाद पुलिस द्वारा 90 दिनों अन्दर कोर्ट में केस से संबन्धित चार्जशीट (आरोप पत्र) दाखिल करनी होती है। यदि जांच कार्यवाही में अगर किसी प्रकार की विलम्भ होता है तो पुलिस 90 दिनों के बाद भी चार्जशीट दाखिल कर सकती है। ऐसी परिस्थिति में आरोपी को बेल मिलने की याचिका दायर करके बेल का हकदार हो जाता है। लेकिन पुलिस की कोशिश होती है कि वो १० दिनों के भीतर चार्जशीट कोर्ट में दाखिल करे।


What are the things required in a charge sheet?


 (i) The names of the accused and the victim are correct and clear


 (2) Crime and its nature


 (3) Whether the accused is in custody or outside


 (4) What action has been taken against him



 Chargesheet is called chargesheet in Hindi.  In any case, the charge sheet can be presented in the court by the police for 90 days.  On the basis of this, the court frames charges against the accused or quashes the charges against the accused.



 Why is charge sheet so important?



 In any case, after the FIR is registered, the police has to file the charge sheet related to the case in the court within 90 days.  If there is any delay in the investigation proceedings, the police can file a charge sheet even after 90 days.  In such a situation, the accused becomes entitled to bail by filing a petition for bail.  But the police tries to file the charge sheet in the court within 10 days.


     " चार्जशीट को किसी आरोपी के खिलाफ 60 से 90 दिनों के अंदर जांच अधिकारी द्वारा अदालत में पेश किया जाता है। अगर ऐसा नही होता है तो आरोपी की गिरफ्तारी को अवैध माना जाता है और आरोपी जमानत पाने का हकदार बन जाता है।


        'चार्जशीट में पूरे साक्ष्यों का जिक्र होता है और ट्रायल के दौरान आरोपी को सजा दिलाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। CrPC की धारा 169 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने किसी केस को तब भेजा जाता है जब आरोपी के खिलाफ पूरे साक्ष्य हो नहीं तो आरोपी की रिहाई हो जाती है। चार्जशीट को कानूनी भाषा में चालान भी कहते हैं। 


चार्जशीट विवाद क्या है? 


सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक निर्णय दिया गया कि चार्जशीट सार्वजनिक, दस्तावेज नही हैं और चार्जशीट की स्वतंत्र सार्वजनिक पहुँच को सक्षम करना आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का उल्लधन करता है क्योंकि यह आरोपी, पीडित' और जाँच एजेसियों के अधिकारों से समझौता करता है।


The charge sheet against an accused is presented in the court by the investigating officer within 60 to 90 days.  If this does not happen then the arrest of the accused is considered illegal and the accused becomes entitled to get bail.



 'The charge sheet contains the entire evidence and is used to convict the accused during the trial.  Under Section 169 of CrPC, a case is sent before the Magistrate only when there is complete evidence against the accused, otherwise the accused is acquitted.  Chargesheet is also called challan in legal language.



 What is chargesheet dispute?



 A judgment was given by the Supreme Court that chargesheets are not public documents and enabling free public access to chargesheets violates the provisions of the Code of Criminal Procedure as it compromises the rights of the accused, the victims' and the investigating agencies.


 चार्जशीट कब दाखिल की जाती है? 


जब पीडित द्वारा या उसके रिश्तेदार द्वारा आरोपी के खिलाफ थाने में FIR दर्ज करवाता है। उसके बाद पुलिस द्वारा उस मामले की जांच के लिये जांच अधिकारी [IO) नियुक्त किया जाता है। अपनी जांच कार्यवाही द्वारा इकट्ठे किये गये साक्ष्यों को वो अपनी चार्जशीट में पेश करता है।






चार्जशीट और प्राथमिक सूचना रिपोर्ट दोनों एक दूसरे से किस प्रकार से भिन्न हैं?


 चार्जशीट को CrPC की धारा 178 के तहत परिभाषित किया गया है लेकिन FIR की न तो IPC और न ही crpc में परिभाषित किया गया है। चार्जशीट किसी जाँच की समाप्ति पर दाखिल की गई अतिम रिपोर्ट है। लेकिन FIR किसी भी घटना की प्रथम सूचना के तौर पर दर्ज की जाती है जब पुलिस को एक संज्ञेय अपराध (ऐसा अपराध जिसके लिये किसी को वारंट के बिना गिरफ्तार किया. 'जा सकता है, जैसे कि बलात्कार, हत्या अपहरण ) आदि संज्ञेय अपराध की श्रेणी में जाते हैं। 



प्रथम सूचना रिपोर्ट को अगर साधारण भाषा में समझे तो किसी भी सूचना की वह रिपोर्ट है जो पुलिस तक सबसे पहले दी जाती है। यह लिखित और मौखिक हो सकती है। 

साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74 और 76 के तहत चार्जशीट एक सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है।


 चार्जशीट में मौजूद साक्ष्य :-

 (i) आरोपियों के नाम 

(2) उनके द्वारा किये गये अपराध 

(3) गवाहों के बयान

 (4) अपराध से सम्बन्धित दस्तावेज साक्ष्य

 (5) शिकायतकर्ता के बयान

 (6) आरोपी के खिलाफ बनाई गयी डाक्टरी रिपोर्ट



When is the charge sheet filed?



 When an FIR is lodged in the police station by the victim or his relative against the accused.  After that, an Investigation Officer [IO] is appointed by the police to investigate the case.  He presents the evidence collected through his investigation proceedings in his charge sheet.







 How are charge sheet and primary information report different from each other?



 Chargesheet is defined under section 178 of CrPC but FIR is neither defined in IPC nor crpc.  Chargesheet is the final report filed at the conclusion of an investigation.  But FIR is filed as the first information of any incident when the police comes to know about a cognizable offense (an offense for which someone can be arrested without a warrant, such as rape, murder, kidnapping etc.)  Go to category.




 If first information report is understood in simple language, it is the report of any information which is first given to the police.  It can be written and oral.


 The chargesheet is not a public document under Sections 74 and 76 of the Evidence Act 1872.



 Evidence present in the charge sheet:-


 (i) Names of the accused


 (2) Crimes committed by them


 (3) Statements of witnesses


 (4) Document evidence related to crime


 (5) Statement of the complainant


 (6) Medical report made against the accused


Note: पुलिस द्वारा धारा 154 CrPC है, के अन्तर्गत FIR दर्ज कर लिया जाता है। यदि पुलिस को यह प्रतीत होता है कि मामला गंभीर प्रवृत्ति का नहीं है तो धारा 155 CrPC के अन्तर्गत NCR दर्ज कर लिया गया है और सम्बंधित न्यायालय के अन्तर्गत FIR की काफी  24 घन्टे के अन्दर पेश कर  दी जाती है। 


फाइनल रिपोर्ट और चार्ज शीट में अन्तर


 पुलिस अधिकारी द्वारा किसी भी मामले में जांच पूरी होने के बाद पेश किये के माध्य के संग्रह को फाइनल रिपोर्ट कहते है और इसे ही चार्जशीट कहते है।

 इसको 60 से ९0 दिनों' 'के भीतर पेश किया जाना होता है। अन्यथा आरोपी की गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुये उसकी जमानत होने का आदेश या उसको बेल लेने हक होता है।

 चार्जशीट की कॉपी कैसे प्राप्त करें ? 


वकील की मदद से चार्जशीट की काफी को कोर्ट से प्राप्त किया जा सकता है।
    
Note: FIR is registered by the police under Section 154 CrPC.  If the police feels that the case is not of serious nature, then NCR is registered under Section 155 CrPC and the FIR is filed within 24 hours in the concerned court.



 Difference between final report and charge sheet



 The collection of evidence presented by the police officer after completion of investigation in any case is called the final report and it is called charge sheet.


 It has to be presented within 60 to 90 days.  Otherwise, the arrest of the accused is declared illegal and an order for his bail is made or he has the right to get bail.


 How to get a copy of the charge sheet?



 With the help of a lawyer, a copy of the charge sheet can be obtained from the court.


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