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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

उसी जब इसी रेमिडियम का सूत्र जहां अधिकार है वहां उपचार भी है का क्या अर्थ है?What is the meaning of this Remidium formula, where there is authority, there is also a remedy?

जहाँ अधिकार है, वहाँ उपचार भी है (Ubi Jus Ibi Remidium)

यह अपकृत्य विधि का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के माध्यम से "विधिक क्षति" का अभिप्राय और अधिक स्पष्ट हो जाता है। विधिशास्त्रियों के अनुसार जहाँ कानूनी उपचार नहीं उपलब्ध है, वहाँ यह समझना चाहिए कि कानूनी, क्षति नहीं हुई है।" यदि किसी व्यक्ति को कोई अधिकार प्राप्त है तो उसे अधिकार की सुरक्षा के साधन भी प्राप्त होने चाहिए और अगर उस अधिकार के उपयोग में किसी तरह का अवरोध उत्पन्न किया जाता है तो उसके खिलाफ उपचार भी होना चाहिए। बिना उपचार के किसी अधिकार की कल्पना व्यर्थ होती है। अधिकार का अभाव तथा उपचार का अभाव परस्पर अभिन्न है। इस सूत्र से यह नहीं समझना चाहिए कि प्रत्येक नैतिक अथवा राजनैतिक दोष के लिए कानूनी उपचार प्राप्त हैं। इसके अंतर्गत तो सिर्फ कानूनी दोष तथा कानूनी उपचार का ही संबंध स्थापित होता है। ब्रेडले बनाम गॉसेट में न्यायमूर्ति स्टीफेन ने कहा था कि जहाँ कानूनी उपचार नहीं होता, वहाँ कानूनी दोष भी नहीं होता।


Where there is a right, there is also a remedy (Ubi Jus Ibi Remidium)


 This is an important principle of tort law.  Through this theory, the meaning of "legal damage" becomes more clear.  According to jurists, where legal remedy is not available, it should be understood that there is no legal damage."  If any type of obstruction is created, then there should be a remedy against it. Without remedy, the concept of any right is futile. Lack of right and lack of remedy are mutually inseparable. It should not be understood from this formula that every moral or political fault  There are legal remedies available for it. Under this, only legal fault and legal remedy are established. In Bradley v. Gossett, Justice Stephen said that where there is no legal remedy, there is no legal fault.



             जहाँ अधिकार है वहाँ उपचार भी है, यह सिद्धान्त सभी प्रकार के सदोष कृत्यों पर लागू नहीं होता। यथा, प्रत्येक करार के नैतिक तथा राजनैतिक अपकृत्यों में यह सिद्धान्त लागू नहीं होता। किसी दंड संबंधी परिनियम या किसी प्रतिज्ञा के विरुद्ध इस सिद्धान्त का आश्रय नहीं लिया जा सकता। साम्प्रदायिक दंगों के शिकार व्यक्तियों को कारित नुकसानों एवं हानियों के बारे में अन्य व्यक्तियों के द्वारा कार्यवाही किए जाने की अनुज्ञा राज्य उच्च न्यायायल ने नहीं दी। कार्यवाही के शिकार व्यक्तियों के फायदे के लिए सरकार के विरुद्ध थी (नाथूलाल जैन बनाम स्टेट ऑफ राज्य ए.आई.आर. (1993) राजस्थान 149] । जहाँ विवाह कार्य पूर्ण हो गया था किंतु लड़के की ओर के लोग दुल्हन का परित्याग करके विवाह के हॉल से सिर्फ इसलिए चले गए थे कि दुल्हन के माँ-बाप ने लड़के की ओर से एक नर्तकी बालिका की व्यवस्था में हुए खर्चे का भुगतान नहीं किया था। कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि दुल्हन और उसके माँ-बाप दुल्हन के भरण-पोषण तथा विफल विवाह के खर्चे की वसूली के लिए दूल्हे के खिलाफ कार्यवाही बनाए रख सकते थे। (नूर मोहम्मद बनाम मोहम्मद जियाददया AIR 1992 mp 244]

Where there is a right, there is also a remedy, this principle does not apply to all types of wrongful acts.  As such, this principle does not apply in moral and political wrongs of every agreement.  This principle cannot be invoked against any penal statute or any pledge.  The State High Court did not give permission to take action by other persons in respect of damages and losses caused to the victims of communal riots.  The proceedings were against the Government for the benefit of the victims (Nathulal Jain v. State of the State AIR (1993) Rajasthan 149]. Where the marriage was solemnized but the bridegroom's side abandoned the marriage and  had left the hall only because the bride's parents had not paid for the expenses incurred in arranging a dancing girl on behalf of the boy. The court held that the bride and her parents were responsible for the bride's maintenance and  could maintain proceedings against the groom to recover the expenses of the failed marriage (Noor Mohd. v. Mohd. Ziaddaya AIR 1992 mp 244]


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