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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

अपकृत्य तथा अपराध में क्या अन्तर है ?What is the difference between misdemeanor and crime?



अपकृत्य विधि की विशेषताएँ (Characteristics of the Tort-concept)

(1) अपकृत्य विधि किसी व्यक्ति के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित विधि है। विशेष परिस्थितियों में व्यक्तियों के मध्य, साधारण कानून के अनुसार अधिकार व कर्तव्य उत्पन्न होते हैं। इन कर्त्तव्यों व अधिकारों का उल्लंघन ही अपकृत्य कहलाता है।


(2) अपकृत्य उन अनुचित कृत्यों से भिन्न होता है जो पूर्णरूपेण संविदा भंग के अन्तर्गत आते हैं।

(3) अपकृत्य का उपचार दीवानी न्यायालय (civil court) में क्षतिपूर्ति के लिए दायर करके प्राप्त किया जा सकता है।

(4) अपकृत्य एवं अपराध दोनों भिन्न हैं।

(5) अपकृत्यपूर्ण दायित्व समाज के सभी व्यक्तियों के विरुद्ध होता है अतः समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपकृत्य न करने के लिए बाध्य है। यह एक लोकलक्षी (Right in Rem) अधिकार है।


 (6) अपकृत्य विधि का मुख्य उद्देश्य क्षतिपूर्ति हैं, अर्थात् पीड़ित व्यक्ति को यथासम्भव उस अवस्था में ला देना जिसमें कि वह अपकृत्य से पूर्व था ।

Characteristics of the Tort-concept


 (1) Tort law is the law relating to the violation of the rights of a person.  In special circumstances, rights and duties arise between persons according to ordinary law.  Violation of these duties and rights is called wrongdoing.



 (2) Tort is distinguished from wrongful acts which fall wholly within breach of contract.


 (3) Remedy for tort can be obtained by filing for damages in the civil court.

 (4) Both misdemeanor and crime are different.


 (5) The tortious liability is against all the persons of the society, therefore every person of the society is bound not to do any wrongdoing.  It is a Right in Rem.



 (6) The main objective of tort law is compensation, that is, to bring the victim as far as possible to the condition in which he was before the tort.



अपकृत्य तथा अपराध में अन्तर (Difference Tort and Crime )

अपकृत्य अपराध से बहुत भिन्न है। प्रोफेसर सी.एस. केनी ने इस बात की विस्तार से व्याख्या की है कि अपराध अपकृत्य से तथा कानून की अन्य शाखाओं से कितना भिन्न है। अपकृत्य अपराध से निम्नलिखित बातों में भिन्न है-

(1) अपकृत्य सर्वसाधारण के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है, जबकि अपराध जनता के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को भंग करने पर उत्पन्न होता है जिससे समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

(2) अपकृत्य व्यक्ति-विशेष के विधिक अधिकार को भंग करता है, परन्तु अपराध समस्त समाज के प्रति अवैध कृत्य है।

(3) अपकृत्य के मामले में क्षतिग्रस्त पक्ष के द्वारा दीवानी का वाद संस्थित किया जाता है, अन्य किसी के द्वारा नहीं। परन्तु अपराध के मामले में अपराध जनता के प्रति होता है; अतः अपराध में अपराधी के विरुद्ध कार्यवाही राज्य द्वारा की जाती है।

(4) अपकृत्य के मामले में क्षतिग्रस्त पक्षकार को क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है। जबकि अपराध के मामले में अपराधी को दण्ड दिया जाता है। 

Difference between tort and crime


 Misdemeanor is very different from crime.  Professor C.S.  Kenny has explained in detail how crime differs from tort and from other branches of law.  Misdemeanor differs from crime in the following respects-


 (1) Misdemeanor is the violation of the personal rights of the general public, while crime arises due to violation of the rights and duties of the public, which has an adverse effect on the society.


 (2) Wrongdoing violates the legal rights of a particular person, but crime is an illegal act towards the whole society.


 (3) A civil suit in a tort is instituted by the injured party and by no one else.  But in the case of an offense the offense is committed against the public;  Therefore, the action against the culprit in the crime is done by the state.


 (4) In case of tort, compensation is awarded to the injured party.  Whereas in case of crime, the criminal is punished.



(5) अपकृत्य के मामले में क्षतिपूर्ति या प्रतिकर के रूप में प्राप्त धनराशि क्षतिग्रस्त व्यक्ति को मिल जाती है, परन्तु अपराधी को दण्ड दिया जाता है।


 (6) अपकृत्य के मामले में क्षतिग्रस्त व्यक्ति की क्षतिपूर्ति करना न्यायालय का मुख्य उद्देश्य होता है, परन्तु अपराध के मामले में अपराधी की अपराध करने की प्रवृत्ति को रोकने तथा अपराधी को सुधारने के लिए दण्ड दिया जाता है।

(7) अपराध तथा अपकृत्य में ऐतिहासिक आधार पर अन्तर है। अपकृत्य की तुलना में अपराध के कानून का उदय बाद में हुआ। सर हेनरी मेन ने अपनी पुस्तक 'ऐन्शियन्ट लॉ' (Ancient Law) में लिखा है कि प्रारम्भिक जातियों में अपराध का कानून दण्ड विधि के रूप में न होकर अपकृत्य विधि के रूप में हुआ था।


(8) क्षतिकर्त्ता को अपकृत्य के दायित्व से क्षतिग्रस्त व्यक्ति मुक्त कर सकता है। अपकृत्य एक व्यक्तिगत अपकार होता है। अतः क्षतिग्रस्त पक्षकार वादी के रूप में अपकृत्य का वाद लाता है। किसी भी समय क्षतिग्रस्त व्यक्ति क्षतिकर्त्ता से समझौता करके वाद वापस भी ले सकता है।

किन्तु अपराध के दायित्व से छूट देने का अधिकार क्षतिग्रस्त व्यक्ति को नहीं होता; केवल राज्य ही आपराधिक दायित्व से मुक्त या क्षमा दे सकता है।

उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 की सांविधानिकता के प्रश्न पर विचार करते समय अपराध एवं अपकृत्य के अन्तर को भी स्पष्ट किया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह नहीं कहा जा सकता कि अपकृत्य से उत्पन्न क्षति व्यक्ति विशेष तक ही सीमित रहती है-एक व्यक्ति को पहुँचाई क्षति अन्ततः समाज तक पहुँचती है।


5) In case of tort, the amount received as compensation or compensation is given to the injured person, but the offender is punished.



 (6) In the case of misdemeanor, the main objective of the court is to compensate the injured person, but in the case of crime, punishment is given to prevent the tendency of the criminal to commit crime and to reform the criminal.


 (7) There is a difference between crime and misdemeanor on historical basis.  The law of tort arose later than that of tort.  Sir Henry Main in his book 'Ancient Law' has written that in the early castes the law of crime was not in the form of penal law but in the form of misdemeanor law.



 (8) The person injured may absolve the injurer from liability for the tort.  A wrongdoing is a personal wrongdoing.  Therefore, the injured party brings a suit for tort as plaintiff.  At any time, the injured person can also withdraw the suit by compromising with the injured person.


 But the person injured is not entitled to be exempted from the liability of the offence;  Only the state can release or grant pardon from criminal liability.


 The Supreme Court while considering the question of constitutionality of Section 309 of the Indian Penal Code also clarified the difference between crime and tort.  The Court made it clear that it cannot be said that the damage caused by the tort is confined to a particular person – the damage caused to an individual ultimately reaches the society.



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