Skip to main content

भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

दुष्कृत्य कितने प्रकार के होते हैं?How many types of misdeeds are there?



दुष्कृत्यों के प्रकार (Kinds of Torts)

अपकृत्य विधि में दुष्कृति के दो प्रकार माने जाते हैं-

(1) बिना हानि के क्षति (Injuria Sine Damno)

(2) बिना क्षति के हानि (Damno Sine Injuria)

(1) बिना हानि के क्षति (Injuria Sine Damno)—इस सूत्र का तात्यर्य है कि बिना किसी वास्तविक क्षति के वादी के विधिक अधिकारों का उल्लंघन । यहाँ वादी को कोई वास्तविक क्षति होना आवश्यक नहीं है। इस सूत्र के अनुसार दुष्कृति के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति में निहित विधिक अधिकारों का प्रतिवादी द्वारा अतिक्रमण किया गया हो, किसी वास्तविक क्षति अथवा नुकसान को सिद्ध करना आवश्यक नहीं है।

विधि में व्यक्ति के अधिकारों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। विशुद्ध अधिकार (absolute rights) एवं विशेषित अधिकार (Qualified rights)। विशुद्ध अधिकार विधि द्वारा संरक्षित अधिकार होते हैं इन अधिकारों का उल्लंघन मात्र अपने आप में वाद योग्य होता है। वादी को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है कि उसे किसी प्रकार की वास्तविक हानि हुई है जैसे अतिचार (Tresspass) का अपकृत्य ।

Kinds of Torts


 In tort law, two types of tort are considered-


 (1) Injury without harm (Injuria Sine Damno)


 (2) Damno Sine Injuria


 (1) Injuria Sine Damno—The meaning of this formula is that the legal rights of the plaintiff have been violated without any actual damage.  There need not be any actual damage to the plaintiff.  According to this formula, for tort it is necessary that the legal rights vested in the person have been infringed by the defendant, it is not necessary to prove any actual damage or loss.


 The rights of a person in law can be divided into two categories.  Absolute rights and Qualified rights.  Pure rights are rights protected by law, the infringement of these rights is justifiable in itself.  The plaintiff is not required to prove that he has suffered any actual loss as in the tort of trespass.



विशेषित अधिकारों (Qulified rights) का उल्लंघन स्वयं अपने आप में वाद योग्य नहीं होता है। यह केवल वास्तविक क्षति होने की दशा में ही योग्य होता है इस सूत्र (Injuria Sine Damno) का प्रयोग ऐशबी बनाम व्हाइट (Ashby v. White नामक वाद में प्रमुखता से किया गया था। इस वाद में वादी एक कानूनी रूप से योग्य मतदाता था। संसदीय चुनावों में प्रतिवादी निर्वाचन अधिकारी ने दोषपूर्ण तरीके अपनाते हुए वादी का मत लेने से इन्कार कर दिया था। निर्वाचन अधिकारी के इस कृत्य से वादी को वास्तविक रूप से कोई क्षति नहीं हुई थी क्योंकि वादी जिस प्रत्याशी को मत देना चाहता था वह चुनाव में विजयी हुआ था। परन्तु फिर भी न्यायालय ने निर्णय दिया कि चूँकि वादी के मत देने के विधिक अधिकार का प्रतिवादी द्वारा उल्लंघन किये जाने के कारण वह उत्तरदायी है। मुख्य न्यायाधीश लार्ड हाल्ट सी. जे. (Lord Holt C. J.) ने अपने निर्णय में कहाँ कि यदि वादी का कोई अधिकार है तो उसे लाग करने तथा बनाए रखने के लिए एक साधन भी होना चाहिए तथा यदि उसे इस अधिकार के उपभोग में क्षति पहुँचती है तो इसके लिए कोई उपचार होना चाहिए तथा उपचार के बिना किसी अधिकार की कल्पना निरर्थक होगी क्योंकि अधिकार की अनुपस्थिति तथा उपचार की अनुपस्थिति पारस्परिक (Reciprocal) होती है।

Infringement of Qualified rights is not justifiable in itself.  It qualifies only in case of actual injury. This formula (Injuria Sine Damno) was prominently used in Ashby v. White. The plaintiff in this case was a legally qualified voter.  In the Parliamentary elections, the defendant Returning Officer, adopting a wrongful method, refused to take the vote of the plaintiff. The plaintiff was not actually harmed by this act of the Returning Officer, because the candidate for whom the plaintiff wanted to vote was victorious in the election.  But still the court held that the plaintiff was liable because the defendant had violated his legal right to vote. The Chief Justice, Lord Holt C.J., in his judgment said that  If the plaintiff has any right then there should be a means to enforce and maintain it and if he is injured in the enjoyment of this right then there should be some remedy for it and without remedy any right will be meaningless because right  Absence of treatment and absence of treatment are reciprocal.



मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि प्रत्येक अपकृत्य क्षति प्रदान करती है चाहे इससे पक्षकार को एक दमडी (Forthing) की हानि भी नहीं हुई हो। क्षति केवल धन सम्बन्धी ही नहीं होती है। अपकृति का अभिप्राय ऐसी क्षति से होता है जिसमें व्यक्ति के विधिक अधिकार का अतिक्रमण होता है जैसे कि मानहानि के मामले में बिना हानि के क्षति में न्यायालय वादी को नाममात्र की क्षति (Nominal damage) प्रदान करते हैं।

(2) बिना क्षति के हानि (Damnum Sine Injuria ) — इस सूत्र का अर्थ है कि वादी को वास्तविक क्षति तो हुई है परन्तु उसके किसी विधिक अधिकार का उल्लंघन है नहीं हुआ है। इस स्थिति में वादी को न्यायालय में वाद लाने का अधिकार नहीं होगा। अपकृत्य दायित्व के उत्पन्न होने के लिए वादी को विधिक अधिकार का उल्लंघन एक आवश्यक शर्त है। यह सूत्र ग्लोसेसर ग्रामर स्कूल वाद में स्थापित किया गया था। इस वाद में वादी का एक ग्रामर स्कूल था प्रतिवादी ने उसके मकान के समीप एक दूसरा स्कूल खोल दिया जिससे वादी को फीस में आर्थिक हानि हुई। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि चूँकि प्रतिवादी के स्कूल खोल लेने से वादी के किसी विधिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। इसलिये प्रतिवादी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। न्यायाधीश हैन्कफोर्ड (Hankford) ने मत व्यक्त किया कि हानि यदि किसी ऐसे कार्य के परिणामस्वरूप होती है जो विशुद्ध प्रतियोगिता के
अन्तर्गत प्रतिवादी द्वारा अपने विधिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए किया गया है तो वह कार्य अवैध नहीं है भले ही ऐसे कार्य के परिणास्वरूप वादी को क्षति उठानी पड़ी हो। ऐसे कार्यों को निरपेक्ष अपकृति (Obseque Injuria) की संज्ञा दी जा सकती है।

The Chief Justice further said that every tort confers damages even if it does not cause loss of a forthing to the party.  The loss is not only monetary.  Malfeasance refers to such damage in which a person's legal right is encroached, such as in the case of defamation, without loss, the courts provide nominal damage to the plaintiff.


 (2) Damage without damage (Damnum Sine Injuria) — This formula means that the plaintiff has suffered actual damage but no legal right has been violated.  In this situation, the plaintiff will not have the right to bring the case in the court.  Infringement of a legal right to the plaintiff is a necessary condition for the tort liability to arise.  This formula was established in the Glossary Grammar School Case.  In this suit, the plaintiff had a Grammar School, the defendant opened another school near his house, causing financial loss to the plaintiff in fees.  The court said in its decision that since the opening of the school by the defendant has not violated any legal right of the plaintiff.  Therefore, the respondent cannot be held liable.  Judge Hankford opined that if a loss results from an act which is not in the course of pure competition,

 If the act has been done by the defendant in exercise of his legal rights under this Act, then that act is not illegal even if the plaintiff has suffered loss as a result of such act.  Such actions can be termed as Obseque Injuria.



उदाहरण के लिए मेरे पास एक मिल है और मेरा पड़ोसी एक नये मिल की स्थापना करता है जिसके फलस्वरूप मेरे मिल का लाभ कम हो जाता है। इस स्थिति में, मैं आर्थिक हानि होते हुए भी अपने पड़ोसी के विरुद्ध कोई विधिक कार्यवाही नहीं कर सकता। परन्तु पड़ोसी मिल का मालिक मेरे मिल में आने अथवा जाने वाले पानी को अवरुद्ध करता है अथवा इसी प्रकार की कोई अन्य कार्य करता है तो मुझे अपने पड़ोसी के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार होगा।

इसके बाद कई अन्य वादों जैसे चसमोर बनाम रिचर्डस (Chasemore Vs. Richords) व भोगल स्टीम शिप क. बनाम मैक ग्रेगर गे एण्ड क. (Mogal Steanship Co. Vs. Mc. Gregore Gow and Co.) आदि में उपरोक्त सिद्धान्त का पालन किया गया।


For example, I have a mill and my neighbor sets up a new mill as a result of which the profit of my mill decreases.  In this situation, I cannot take any legal action against my neighbor even if there is a financial loss.  But if the owner of the neighboring mill blocks the water coming or going to my mill or does any other similar act, then I will have the right to take action against my neighbor.


 After this, the above principle was followed in many other cases like Chasemore Vs. Richards and Bhogal Steam Ship Co. Vs. McGregor Gay & Co.  Went.

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...