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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

सभी सिविल क्षतियाँ अपकृत्य नहीं होती का क्या मतलब है ? (All Civil Injuries are Not Tort)

सभी सिविल क्षतियाँ अपकृत्य नहीं होती (All Civil Injuries are Not Tort)

किसी भी सिविल क्षति के अपकृत्य होने के लिए यह आवश्यक है कि उस क्षति में किसी व्यक्ति के कृत्य द्वारा दूसरे व्यक्ति में निहित तथा विधि द्वारा संरक्षित अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो। किसी वास्तविक हानि का होना अपकृत्य के दोष के लिए आवश्यक नहीं है। दूसरी तरफ यदि किसी कृत्य से वास्तविक हानि तो हुई है परन्तु किसी विधिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है तो वह क्षति अपकृत्य की श्रेणी में नहीं आती है। अपकृत्य की यह अवधारणा दो सूत्रों बिना हानि के अपकृति (Injuria Sine Damno) तथा विधिक अधिकार के उल्लंघन के बिना क्षति (Damno Sine Injuria) पर आधारित है।

All Civil Injuries are Not Tort


 For any civil injury to be a tort, it is necessary that in that injury, by the act of one person, the rights vested in another person and protected by law have been violated.  The existence of an actual loss is not essential to the culpability of tort.  On the other hand, if an act has caused actual loss but no legal right has been violated, then that damage does not come under the category of tort.  This concept of tort is based on two principles, injury without harm (Injuria sine damno) and damage without infringement of legal right (Damno sine injury).


प्रथम सूत्र बिना हानि के अपकृति (Injuria Sine demno) का अर्थ है कि बिना किसी वास्तविक क्षति के हानि। इस सूत्र के अनुसार यदि किसी सिविल क्षति से वादी में निहित विधिक अधिकारों (Legal right) का उल्लंघन होता है तो ऐसी क्षति अपकृत्य (Tort) के अन्तर्गत आती है। इसके लिए वादी की वास्तविक क्षति को साबित करना आवश्यक नहीं है। विधिक नुकसानी प्रतिवादी द्वारा विधिक कर्तव्य के उल्लंघन अथवा वादी के विधि द्वारा स्वीकृत किसी अधिकार के उल्लंघन के परिणामस्वरूप होती है।
The first formula, Injuria sine demno, means harm without any actual damage.  According to this formula, if any civil damage violates the legal rights vested in the plaintiff, then such damage comes under Tort.  For this it is not necessary to prove the actual damage caused to the plaintiff.  Legal damages result from the breach of a legal duty by the defendant or the infringement of a right granted by law to the plaintiff.




ऐशबी बनाम व्हाइट (Ashby Vs. White) के वाद में निर्णय देते हुए मुख्य न्यायाधीश लार्ड होल सी. जे. (Lord Holt C.J.) ने कहा कि प्रत्येक अपकृति क्षति (Injury) प्रदान करती है, चाहे इससे पक्षकार को एक दमड़ी (Farthing) की भी हानि हुई हो। क्षति हमेशा केवल धन सम्बन्धी ही नहीं होती है। अपकृति का अभिप्राय ऐसी क्षति से है जिसमें व्यक्ति में निहित विधिक अधिकारों का उल्लंघन अथवा अतिक्रमण होता हो। जैसे कि अपमान वचन (Slander) के मामलों में व्यक्ति को एक पैसे का भी नुकसान नहीं होता है परन्तु फिर भी उसे प्रतिवादी के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार होता है। इसी प्रकार सम्पत्ति पर अतिक्रमण (TressPass) के मामले में यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति को आर्थिक हानि हुई हो परन्तु यहाँ उसका विधि द्वारा संरक्षित अपनी सम्पत्ति के उपभोग के अधिकार का अतिक्रमण होने के कारण यह कृत्य अपकृत्य की श्रेणी में आता है।

In the case of Ashby Vs. White, Chief Justice Lord Hole C.J.  Lord Holt C.J. held that every tort gives injury, even if it causes loss of a farthing to the party.  Damage isn't always just money.  Tort refers to such damage in which the legal rights vested in the person are violated or encroached upon.  As in the case of slander, the person does not suffer even a single penny but still he has the right to take action against the defendant.  Similarly, in the case of trespass on property, it is not necessary that the person has suffered economic loss, but here this act comes under the category of tort due to encroachment on his right to enjoy his property protected by law.


दूसरे सूत्र विधिक अधिकार के उल्लंघन के बिना क्षति (Damnum Sine Injuria के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को वास्तविक क्षति तो हुई है परन्तु उसके किस विधिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है तो ऐसी क्षति अपकृत्य की श्रेणी में न आती है।

ग्लोसेसर ग्रामर स्कूल वाद में न्यायाधीश हेल्ककोर्ड ने यह सिद्धान्त प्रतिपाि किया था कि वादी को हानि यदि किसी ऐसे कार्य के परिणामस्वरूप होती है। विशुद्ध व्यवसायिक प्रतियोगिता के अन्तर्गत अपने अधिकारों का प्रयोग करते किया गया है तो वह अवैध नहीं है भले ही ऐसे कार्य के परिणामस्वरूप वादी पक्ष हानि उठानी पड़ी हो। ऐसे कार्य का निरपेक्ष अपकृति ही संज्ञा की जा सकती है। अतः केवल वे ही सिविल क्षतियाँ (Civil injuria) अपकृत्य की श्रेणी में हैं जिनके फलस्वरूप वादी के विधि द्वारा संरक्षित अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो ।

According to the second formula, damage without violation of legal right (Damnum Sine Injuria), if a person has suffered actual damage but which of his legal rights has not been violated, then such damage does not come under the category of tort.


 In the Gloucester Grammar School case, Justice Halkcord propounded the principle that damage to the plaintiff results from such an act.  In exercise of its rights under pure commercial competition, it is not illegal even if as a result of such act, the plaintiff has to suffer loss.  Absolute evil of such work can only be nounced.  Therefore, only those civil injuries are in the category of tort, as a result of which the rights of the plaintiff protected by law have been violated.


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