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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

न्यायालय किन आधारों पर वाद - पत्र को खारिज कर सकता है ?On what grounds can the court dismiss the plaint?

वाद - पत्र का अर्थ:


वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के दाखिल करने पर होता है और यह वाद का प्रथम अभिवचन है । यह वादी के दावे का कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष की माँग करता है । अतः वाद - पत्र वादी की वह आधारशिला है जिस पर वह अपने मामले की इमारत खड़ी करता है । यदि वादी का वाद - पत्र उचित है तो उसके दावे में कानूनी गलतियों के होने का डर नहीं रहता है , परन्तु जहाँ वाद - पत्र त्रुटिपूर्ण होते हैं वहाँ कई प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाते हैं तथा जो कभी कभी इतना गम्भीर रूप धारण कर लेते हैं कि उनको दूर करना असम्भव हो जाता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं -

 ( 1 ) वाद - पत्र का शीर्षक और नाम , 

( 2 ) वाद - पत्र का शरीर , 

( 3 ) दावा किया गया अनुतोष ,

 ( 4 ) सत्यापन । 


Meaning of plaint:



 The suit begins with the filing of the plaint and it is the first pleading of the suit.  It is the statement of claim of the plaintiff on the basis of which he demands relief from the court.  Therefore, plaint is the foundation stone of the plaintiff on which he builds the building of his case.  If the plaintiff's plaint is proper, then there is no fear of legal mistakes in his claim, but where the plaints are defective, many types of defects arise and which sometimes take such a serious form.  That it becomes impossible to remove them.  The plaint consists of the following main parts -


 (1) the title and name of the plaint,


 (2) The body of the plaint,


 (3) the relief claimed,


 (4) Verification.


वाद- पत्र की अन्तर्वस्तुएँ :-

  वाद - पत्र की अन्तर्वस्तुएँ निम्नलिखित हैं - 

( i ) उस न्यायालय का नाम जिसमें वाद प्रस्तुत किया जाना है । 

( ii ) वादी का नाम पिता का नाम , आयु व्यवसाय और निवास स्थान ।

 ( iii ) प्रतिवादी का नाम , पिता का नाम , आयु व्यवसाय एवं निवास स्थान ।

 ( iv ) यदि वादी अथवा प्रतिवादी में से कोई अवयस्क या मूढ़ है तो इस आशय का कथन । 

( v ) वे तथ्य जिसे वाद हेतु उत्पन्न होता है और ऐसे उत्पन्न होने का समय ।

 ( vi ) यह दिखाने वाले तथ्य का न्यायालय को वाद के सुनने का क्षेत्राधिकार । 

( vii ) क्षेत्राधिकारी और न्यायालय शुल्क का कथन ( आदेश 7 , नियम 1 ) ।
Contents of plaint:-


 The contents of the plaint are as follows -


 (i) the name of the court in which the suit is to be presented.


 (ii) Name of the plaintiff, father's name, age, occupation and place of residence.


 (iii) Name, father's name, age, occupation and place of residence of the defendant.


 (iv) If either the plaintiff or the defendant is a minor or an idiot, a statement to that effect.


 (v) the facts arising out of the suit and the time of such arising.


 (vi) the facts showing that the Court had jurisdiction to hear the suit.


 (vii) Statement of jurisdiction and court fee (Order 7, Rule 1).

 न्यायालय किन आधारों पर वाद - पत्र को खारिज कर सकता है ? 

न्यायालय निम्नलिखित आधारों पर वाद - पत्र को खारिज कर सकता है :-

( क ) जहाँ वाद - पत्र किसी वाद - कारण को स्पष्ट रूप से प्रकट न करता हो ।

 ( ख ) जहाँ वाद - पत्र में दावाकृत अनुतोष मूल्यांकन कम किया जाता है और वादी 
न्यायालय  द्वारा नियम की गई मियाद के भीतर मूल्यांकन ठीक करने के लिए न्यायालय द्वारा अपेक्षित होने पर भी वैसा करने में विफल हो जाता है ।



  ( ग ) जहाँ वाद पत्र में दावाकृत अनुतोष या उचित मूल्यांकन किया गया हो लेकिन -पत्र ऐसे कागज पर लिखा गया है जो पर्याप्त रूप से मुद्रांकित नहीं है और वादी अदालत द्वारा नियत की जाने वाली मियाद के भीतर उचित रूप से मुद्रांकित कागज को प्रस्तुत करने के लिए अदालत द्वारा अपेक्षित होने पर भी वैसा करने में विफल हो जाता है , और 


( घ ) जहाँ मुकदमा वाद - पत्र में दिये गये बयान से कानून द्वारा वर्जित मालूम पड़ता है

On what grounds can the court dismiss the plaint?


 The Court may dismiss the plaint on the following grounds:-


 (a) where the plaint does not clearly state any cause of action.


 (b) where the relief claimed in the plaint is reduced in value and the plaintiff

 fails to do so when required by the court to correct the assessment within the period fixed by the court.




 (c) where the plaint contains the relief claimed or a reasonable assessment, but the plaint is written on paper not adequately stamped and the plaintiff is required to produce the properly stamped paper within such period as may be fixed by the court;  fails to do so when required by the court to do so, and



 (d) where the suit appears to be barred by law from the statement in the plaint


  व्यायालय का विषय - वस्तु सम्बन्धी क्षेत्राधिकार 


 
 विषय - वस्तु सम्बन्धी क्षेत्राधिकार के दृष्टिकोण से विभिन्न न्यायालयों को विभिन्न काम सौंपे गये है । लघुवाद न्यायालयों को कुछ अविवादास्पद प्रकार के वादों के परीक्षण का है , जैसे वचन पत्रों या बन्धनामों के आधार पर दिये गये ऋणों के सम्बन्ध में बाद , अधिनियम के अन्तर्गत बेदखली के सम्बन्ध में ₹ 25,000 तक के मूल्यांदन के में तथा नगरपालिका , नगर महापालिका द्वारा लगाये गये गृहकर की अपील के लिए यह अपोलेट कोर्ट है तथा धारा 21 के अन्तर्गत आवश्यकता के आधार पर मकानों की बेदखली के सुनने का अधिकार है । परन्तु इन न्यायालयों को संविदा के विशिष्ट पालन , सम्पत्ति के विभाजन के लिए वाद , व्यादेश आदि के लिए लाये गये वादों को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है । इसी प्रकार जिला न्यायाधीशको पत्रीय विषयों शोध क्षमता की कार्यवाहियों के सम्बन्ध में क्षेत्राधिकार प्राप्त है । फैमिली कोर्ट को तलाक संरक्षकता , विवाह , दत्तक गृहण तथा भरण पोषण आदि के मामलों में क्षेत्राधिकार है । 



 हिन्दू विवाह अधिनियम , 1955 की धाराओं के अन्तर्गत पति पत्नी को वाद चलाने का अधिकार प्राप्त है



  हिन्दू विवाह अधिनियम , 1955 की धाराओं 9 , 10 , 11 , 12 व 13 के अन्तर्गत वाद चलाने का अधिकार पति पत्नी को समान रूप से प्राप्त है । संक्षेप में वैवाहिक मामलों में बद निम्नलिखित धाराओं के अन्तर्गत दायर किया जा सकता है ।


 ( 1 ) धारा 9 में पूर्वस्थित दाम्पत्य अधिकार प्राप्त करने का दावा होता है । [ Restitution of Conjugal Rights ] 


( 2 ) धारा 10 में पति - पत्नी को एक दूसरे से विधान के अनुसार पृथक् रहने का दावा होता है । ( Judicial Separation ] 


( 3 )धारा  11 में विवाह अवैध शून्य और निरर्थक घोषित कराने का दावा है । [ For 4 Decree of Nullity , declaring the Marriage Null and Void ]


 ( 4 ) 12 में विवाह खण्डित  करने का दावा होता है । [ For Anulting Mariage by a Decree of Nulility )

 ( 5 )धारा  13 में विविच्छेद का दावा होता है । [ Far Divorce )


subject matter jurisdiction of the court





 From the point of view of subject matter jurisdiction, different courts have been assigned different functions.  Small Cause Courts have the jurisdiction to try some non-controversial types of suits, such as loans given on the basis of promissory notes or bonds, in respect of evictions under the Act, in assessment of up to ₹ 25,000 and imposed by the Municipal Corporation, Municipal Corporation.  It is an appellate court for the appeal of house tax and under Section 21, it has the right to hear the eviction of houses on the basis of necessity.  But these courts do not have jurisdiction to hear suits brought for specific performance of contract, suit for partition of property, injunction etc.  Similarly, the District Judge has jurisdiction in relation to proceedings of investigative capacity.  The Family Court has jurisdiction in matters of divorce, guardianship, marriage, adoption and maintenance, etc.




 Under the sections of the Hindu Marriage Act, 1955, husband and wife have the right to sue




 Under Sections 9, 10, 11, 12 and 13 of the Hindu Marriage Act, 1955, husband and wife have equal right to file a case.  In short, in matrimonial cases, a complaint can be filed under the following sections.



 (1) In Section 9, there is a claim to get the preexisting conjugal rights.  [ Restitution of Conjugal Rights ]



 (2) Section 10 entitles husband and wife to live separately from each other according to law.  (Judicial Separation)



 (3) Section 11 claims to declare marriage illegal, void and void.  [For 4 Decree of Nullity, declaring the Marriage Null and Void]



 (4) In 12 there is a claim to break the marriage.  [For annulling marriage by a decree of nullity]


 (5) Section 13 deals with the claim of separation.  [Far Divorce]

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