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Aibe exam में संवैधानिक कानून (Constitutional Law) से पूछे जाने वाले कम से कम 350 प्रश्न

मकान सम्पत्ति से होने वाली आय का निर्धारण कैसे किया जाता है ? ( How can be income from house property assessed ? )

मकान सम्पत्ति से आय का निर्धारण ( Computation of Income from House Property ) 

आयकर अधिनियम की धारा -23 के अनुसार मकान सम्पत्ति से होने वाली आय का निर्धारण निम्नलिखित दो प्रकार से किया जा सकता है -

( 1 ) किराये पर उठायी गयी सम्पत्ति की आय - धारा 23 ( 1 ) 

( 2 ) स्वयं के रहने वाले मकान सम्पत्ति से आय - धारा -23 ( II ) 

किराये पर उठायी गयी सम्पत्ति की आय धारा 23 ( 1 ) – किसी ऐसी सम्पत्ति जो कि वार्षिक मूल्य निकाला जाता है । इसी वार्षिक मूल्य के आधार पर मकान सम्पत्ति की आय पर किराये पर उठायी गयी हो के सन्दर्भ में आय का निर्धारण निम्न प्रकार से किया जायेगा ।

 ( a ) वार्षिक मूल्य का निर्धारण - किसी मकान सम्पत्ति पर कर लगाने के लिए उस सम्पत्ति से प्राप्त होने वाले वास्तविक किराये उचित किराये आदि के आधार पर उस सम्पत्ति का आय पर आय की गणना की जाती है । मकान सम्पत्ति का वार्षिक मूल्य वह माना जाता है जो कि निम्न में से सबसे अधिक हो-


 ( i ) वह राशि जिस पर वह मकान सम्पत्ति सम्भावित है कि उचित किराये पर उठायी जा सकती है , या 

( ii ) अगर वास्तविक किराया ( प्रति वर्ष ) उक्त उचित किराये से ज्यादा है तो वास्तविक किराये की राशि , या

 ( iii ) अगर वह मकान सम्पत्ति उचित किराये से कम किराये पर उठायी गयी है तो उचित किराये की राशि ही वार्षिक मूल्य माना जायेगा ।



अन्य दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वार्षिक मूल्य ( 1 ) वास्तविक किराया 

 ( ii ) नगरपालिका का किया गया मूल्यांकन , 

( ii ) उचित किराया , उन तीनों में से सबसे होगा , वही माना जायेगा । 

 उच्चतम न्यायालय ने आयकर आयुक्त बनाम माधव प्रसाद जटिया  (1976) 105 ITRb 179 ( S.C. ) के मामले में अपने निर्णय में कहा है - जब किसी करदाता ने उस किराये राशि जो उसे प्राप्त न हुई हो , की वसूली के लिए विधिक कार्यवाही के सन्दर्भ में सभी आवश्यक  उपाय किये हों या कर निर्धारण प्राधिकारी उसकी कार्यवाही से सन्तुष्ट हो गया हो , की विधिक  कार्यवाही करना व्यर्थ है । 


( b ) शुद्ध वार्षिक मूल्य का निर्धारण ( Computation of Net Annual Value ) - मकान  सम्पत्ति से प्राप्त होने वाली आय पर आयकर की गणना के लिए वार्षिक मूल्य निकाला जाता है । जब उस वार्षिक मूल्य में से स्थानीय सत्ता द्वारा लगाये गये नगरपालिका इत्यादि के करों को घटा देने से जो राशि शेष बचती है , वह शुद्ध वार्षिक मूल्य कहलाती है । किन्तु नगरपालिका कर केवल जब ही घटाया जाता है जबकि उक्त कर की धनराशि का भुगतान मकान सम्पत्ति के स्वामी द्वारा  किया गया हो वह कर तब भी कटौती के योग्य माने जायेंगे जबकि सम्पत्ति विदेश में स्थित हो और उस सम्पत्ति पर विदेशी स्थानीय सत्ता ( Local authority ) द्वारा ही लगाये गये हो और उनका  भुगतान मकान सम्पत्ति के स्वामी द्वारा ही किया गया हो । इन करों में भुगतान किया गया सेवा कर ( Service tax ) भी शामिल किया जायेगा ।


 ( c ) धारा -24 के अनुसार प्राप्त कटौतियाँ ( Deduction granted under sec - 24 ) मकान सम्पत्ति से प्राप्त होने वाली आय के सन्दर्भ में करदाता को धारा -24 के अनुसार निम्नलिखि दो प्रकार की कटौतियाँ प्राप्त हैं । 

 ( i ) मानक कटौती ( Standard deduction ) - अधिनियम के अनुसार किसी भी करदात को शुद्ध वार्षिक किराये के मूल्य का 30 % भाग कटौती के रूप में स्वीकार है ।

 ( ii ) लिए गये ऋण पर ब्याज ( Interest on Received Loan ) - जहाँ पर किसी  करदाता द्वारा अपनी मकान सम्पत्ति के क्रय मरम्मत निर्माण या पुननिर्माण के सन्दर्भ में यदि कोई  ऋण लिया जाता है तो उस ऋण पर लगने वाला ब्याज वह दिया गया हो या नहीं कटौती के रूप  में स्वीकार होगा । जहाँ करदाता ने उपर्युक्त वर्णित ऋण को चुकाने के लिए कोई ऋण लिया है तो वह भी कटौती के मान्य होगा और उस पर दिया गया ब्याज वार्षिक मूल्य में से घटाया जायेगा ।



 स्वयं के रहने वाले मकान सम्पत्ति से आय ( Income from self - residence house property ) - दूसरे प्रकार की मकान सम्पत्ति वह होती है जिसे करदाता अपने स्वयं के रहने के लिए प्रयोग करता है । ऐसी सम्पत्ति के सन्दर्भ में कर निर्धारण सम्बन्धी प्रावधानों का वर्णन 23 ( II ) में किया गया है जिसे निम्न प्रकार निर्धारित किया जा सकता है 


( a ) ऐसी मकान सम्पत्ति जो पूरे वर्ष करदाता ने स्वयं प्रयोग की हो - कोई ऐसा मकान सम्पत्ति जो करदाता के अपने रहने के लिए प्रयोग की हो या पूरे वर्ष उसकी नौकरी या व्यापार  दूसरे स्थान पर होने के कारण खाली रहा हो और जहाँ वह रहा हो। वह उसकी स्वयं की मकान  सम्पत्ति न हो तथा उसने अपनी मकान सम्पत्ति से अन्य किसी प्रकार का कोई लाभ प्राप्त न किया हो तो उसके मकान सम्पत्ति का वार्षिक मूल्य शून्य होगा और उस पर ब्याज की कटौती ।



अधिकतम ₹ 30,000 तक मान्य होगी जब कि ऋण मकान के क्रय करने के लिए या उसके निर्माण के लिए लिया गया हो ।


 ( b ) ऐसी मकान सम्पत्ति जो कुछ समय स्वयं प्रयोग की हो तथा कुछ समय के लिए किराये पर उठायी हो - धारा -23 ( 3 ) के अनुसार , ऐसी मकान सम्पत्ति जो कि पूरे गत वर्ष या कुछ समयावधि के लिए स्वयं प्रयोग किया हो और कुछ समय के लिए किराये पर उठा दिया हो या उस मकान सम्पत्ति से अन्य किसी प्रकार का लाभ लिया हो तो उसका वार्षिक मूल्य शून्य नहीं माना जायेगा और मकान सम्पत्ति को किराये पर उठा हुआ मानते हुए धारा -23 ( 1 ) में वर्णित प्रावधानों के अनुरूप मूल्यांकन किया जायेगा । 



( c ) स्वयं के रहने के एक से अधिक मकान होने की स्थिति में:- जब करदाता के एक से अधिक रहने के मकान हैं जिन्हें वह अपने प्रयोग में लाता है तो उक्त मकानों में से कोई सा भी एक मकान जिसे करदाता चाहे उसे छोड़कर अन्य सभी मकान किराये पर उठे हुए माने जायेंगे । उन मकानों की आय की गणना भी ठीक उसी प्रकार की जायेगी जिस प्रकार वास्तविक रूप से किराये पर उन्हें हुए मकान की गणना की जाती है और उस पर छूट सम्बन्धी सभी प्रावधान धारा -23 ( 1 ) के अनुसार ही लागू होंगे । यहाँ करदाता को यह विकल्प प्राप्त होता है कि अपने लिए कर छूट के लिए प्रतिवर्ष अलग - अलग मकानों का चयन कर सकता है । यहाँ पर यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि करदाता अपने लिए वह मकान चयनित करे जिसके कारण मकान सम्पत्ति की कर योग्य आय कम से कम हो रहे और उस पर न्यूनतम कर भार रहे । इस प्रावधान के अन्तर्गत भी उचित कटौती के रूप में किराये का ( वार्षिक मूल्य ) 30 % भाग कटौती के रूप में स्वीकार है । किन्तु ब्याज की राशि की सीमा निर्धारित नहीं की गयी है । 



न्यायालय ने एक मामले आयकर आयुक्त बनाम जस्टिस अवध बिरी रस्तोगी ( 1985 ) 21 टैक्समैन 409 ( दिल्ली ) में कहा है कि धारा -23 ( 2 ) उन समस्त परिस्थितियों लागू होगी जबकि विभिन्न कर्मचारियों एवं बड़े प्रतिकारियों को अपने नौकरी के कारण अपने मकान में न रहकर विभिन्न सरकारी क्वाटरों में रहना पड़ता है । 



         इसी तरह एक अन्य मामले में म . प्र . उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय देते हुए कहा कि किसी मकान के सन्दर्भ में आयकर अधिनियम की धारा -23 ( 2 ) का लाभ लेने के लिए  कर दाता  का उसकी सर्विस , सर्विस की जगह , व्यापार एवं उस मकान का जो कि उसके स्वामित्व में नहीं है ।  आपसी सम्बन्ध होना बहुत जरूरी है ।


( II ) घुड़दौड़ के हुई राशि- घोड़ों के स्वामित्व एवं रख - रखाव की क्रिया से होने वाली हानि को घोड़ों के लाभों से पूर्ण किया जा सकता है किसी अन्य दूसरे स्रोत से नहीं । 



( 3) लॉटरी , जुआ , वर्ग पहेली - लॉटरी , ताश पत्ते के खेल , वर्ग पहेली आदि की इन्कम के विषय में किसी खर्चे को घटाने की स्वीकृति नहीं है । इसलिए इस तरह के हानियों की पूर्ति न तो अपने ही स्रोत की अन्य आय में और न ही दूसरे स्रोत की आय से की जा सकती है ।


( iv ) कर ( Tax ) मुक्त आय के स्रोत की हानि - अगर किसी करदाता को कर मुक्त आय के स्रोत से हानि हुई है ; उदाहरणार्थ , कृषि में हानि तो इस कृषि हानि की पूर्ति किसी दूसरे स्रोत की आय से नही की जायेगी ।





( v ) पूंजीगत हानि - लम्बे समय की पूँजी के नुकसान की पूर्ति केवल दीर्घकालीन पूजी लाभों से उसी गत वर्ष में की जा सकती है जबकि अल्पकालीन पूँजी हानियों की पूर्ति किसी भी पूँजी लाभ से उसी गत वर्ष में की जा सकती है । 


( 2 ) आय के एक शीर्षक ( Heading ) की हानि की पूर्ति दूसरे शीर्षक की आय से करना- अगर किसी करदाता को आय के किसी एक शीर्षक के अन्तर्गत कोई हानि होती है और वह आय के उसी शीर्षक के किसी अन्य स्रोत से आय की अपर्याप्तता ( Inefficiency ) कारण पूर्ण नहीं की जा सकती है तो फिर उस हानि को आय के किसी अन्य शीर्षक में हुई आप से पूर्ण किया जाता है परन्तु शर्त यह है कि दूसरे शीर्षक की आय कर योग्य है , इसे अन्तशीर्षक पूर्ति भी कहते हैं । 
धारा 71 ( 2A ) | 

( 3 ) सामान्य व्यापार :- सामान्य व्यापार में सट्टे के व्यापार तथा धारा 35 AD के अन्तर्गत विशिष्ट प्रकृति के व्यापार को छोड़कर शेष सभी तरह के व्यापार सम्मिलित हैं । ऐसे व्यापार की हानि की पूर्ति उसी गत वर्ष में किसी भी शीर्षक के अन्तर्गत हुई आय से की जा सकती है । इस तरह के व्यापार या पेशे ही हानि को सट्टे व्यापार की इनकम से पूर्ण किया जा सकता है । 


( 4 ) सट्टे के व्यापार की हानि की पूर्ति - सट्टे के व्यापार की हानि केवल सट्टे के व्यापार की आय से पूर्ण की जा सकती है । अगर किसी कम्पनी के द्वारा दूसरी कम्पनी के अंशों का क्रय - विक्रय किया जाता है तो ऐसे व्यापार की आप सट्टे की आप मानी जायेगी । अगर ऐसे व्यापार की हानि तो इसकी पूर्ति सट्टे की आय से की जायेगी जिस सट्टे में व्यापार की हानि को पूर्ति की जा रही है उसका चालू रहना जरूरी नहीं है । 


( 5 ) घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व एवं रख - रखाव से होने वाली हानि की पूर्ति - ऐसे नुकसानों की पूर्ति केवल इसी व्यवसाय से की जा सकती है और किसी से नहीं । | धारा 74 A ( J ) ] 


( 6 ) लॉटरी , वर्ग पहेली , जुआ , लाश के खेल आदि की हानियों की पूर्ति - इन हानियों की पूर्ति किसी आय से नहीं की जा सकती है । 



( 7 ) व्यक्तियों के संघ / समूह की हानियों की पूर्ति ( Set - off of Losses of A. o . P / B.O.I . ) - ऐसे संघ या समूह की हानियों की पूर्ति इन्हीं की आय के किसी भी शीर्षक की जा सकती है । यदि आय न होने के कारण हानि अपूरित रह जाती है तो इनके सदस्य अपनी व्यक्तिगत आय से हानि की पूर्ति नहीं कर सकेंगे । अगर लाभों पर अधिकतम सीमांत दर से संघ द्वारा करा भुगतान कर दिया गया है तो हानियों की पूर्ति नहीं की जाएगी चाहे हानि चालू वर्ष की हो या आगे लाई गई हो ।


 ( 8 ) साझेदारी फर्म की हानियों की पूर्ति - किसी एक साझेदारी फर्म की हानियों को पूर्व के विषय में सामान्य व्यापार के नियम ही लागू होते हैं । कोई भी साझेदारी उस फर्म की हानियों में अपने हिस्से से हानि की उस वर्ष हुई अपनी व्यक्तिगत आय पूर्ति नहीं कर सकता है ।
    

    
Computation of Income from House Property


 According to Section-23 of the Income Tax Act, income from house property can be determined in the following two ways -


 (1) Income from property taken on rent - Section 23 (1)


 (2) Income from self-occupied house property - Section-23 (II)


 Income of property taken on rent Section 23 (1) – Any property which is of annual value is calculated.  On the basis of this annual value, income will be determined in the following manner in respect of house property taken on rent.

(a) Determination of annual value - For taxing a house property, the income of that property is calculated on the basis of actual rent received from that property, fair rent etc.  The annual value of the house property is considered to be the higher of the following-



 (i) the amount at which the house property is likely to be raised at a reasonable rent, or


 (ii) if the actual rent (per annum) exceeds the said fair rent, the amount of the actual rent, or


 (iii) If the house property has been taken on a rent less than the fair rent, then the amount of the fair rent will be considered as the annual value.




 In other words, we can say that the annual value (1) Actual rent


 (ii) the assessment made by the municipality,


 (ii) The fairest rent shall be the highest of the three.


 The Supreme Court in its decision in the case of Commissioner of Income Tax Vs. Madhav Prasad Jatiya (1976) 105 ITRb 179 (S.C.) has said - When a tax payer has taken legal action for recovery of rent amount which has not been received by him  All necessary measures have been taken or the tax assessment authority has been satisfied with its action, it is futile to take legal action.


(b) Determination of Net Annual Value (Computation of Net Annual Value) - Annual value is derived for the calculation of income tax on income from house property.  When the amount left after deducting the municipal taxes imposed by the local authority from that annual value, it is called the net annual value.  But municipal tax is deducted only when the amount of said tax is paid by the owner of the house property, that tax will be considered eligible for deduction even if the property is located abroad and the foreign local authority on that property  have been installed by the owner and the payment has been made by the owner of the house property.  Service tax paid will also be included in these taxes.



 (c) Deductions granted under sec-24 (Deduction granted under sec-24) The following two types of deductions are available to the taxpayer as per section-24 in respect of income from house property.


 (i) Standard deduction - According to the Act, 30% of the value of net annual rent is allowed to any taxpayer as deduction.


 (ii) Interest on Received Loan - Where a loan has been taken by a taxpayer in connection with the purchase, repair, construction or reconstruction of his house property, the interest on that loan has been paid or  No will be accepted as deduction.  Where the taxpayer has taken any loan to repay the loan mentioned above, it will also be eligible for deduction and the interest paid on it will be deducted from the annual value.

Income from self-residence house property - The second type of house property is that which the taxpayer uses for his own residence.  The provisions relating to assessment of tax in respect of such property have been described in section 23(II) which may be determined as follows



 (a) such house property which is used by the taxpayer himself throughout the year - any such house property which is used by the taxpayer for his own residence or which remains vacant during the whole year due to his employment or business being shifted to another place and where he resides  Are.  If it is not his own house property and he has not received any other kind of profit from his house property, then the annual value of his house property will be nil and interest will be deducted thereon.




 A maximum of ₹ 30,000 will be valid when the loan is taken for the purchase or construction of a house.



 (b) Such house property which is for some time self-use and for some time taken on rent - According to section-23 (3), such house property which is self-use for the entire previous year or some period of time and  If the house property has been taken on rent for some time or any other kind of benefit has been taken from that house property, then its annual value will not be considered as zero and according to the provisions mentioned in Section-23 (1) considering the house property as taken on rent  Will be evaluated.



(c) In case of more than one residential house owned by the taxpayer:- When the taxpayer has more than one residential house which he uses, any one of the said houses other than the house which the taxpayer  All the houses will be considered as taken up on rent.  The income of those houses will also be calculated in the same way as the house actually given to them on rent is calculated and all the provisions related to exemption will be applicable on it as per Section-23(1).  Here the taxpayer gets the option that he can choose different houses for himself every year for tax exemption.  Here it should be kept in mind that the taxpayer should select such a house for himself, due to which the taxable income of the house property is reduced to the minimum and the tax burden is minimum on it.  Under this provision also, 30% of the rent (annual value) is accepted as a reasonable deduction.  But the limit of the amount of interest has not been fixed.




 The Court has said in a case Commissioner of Income Tax Vs Justice Avadh Biri Rastogi (1985) 21 Taxman 409 (Delhi) that Section-23 (2) will be applicable in all those circumstances when various employees and big defendants are not able to stay in their house due to their job.  Have to live in different government quarters.


Similarly in another case M.  Q.  The High Court, while giving its decision, said that in order to avail the benefit of Section-23 (2) of the Income Tax Act in respect of a house, the tax payer has to consider his service, place of service, business and the house which is not owned by him.  .  It is very important to have mutual relations.



 (II) Profits from horse racing - Losses arising from the operation of owning and maintaining horses can be set off from the profits of the horses and not from any other source.




 (3) Lottery, gambling, crosswords - No expenditure is allowed to be deducted in respect of income from lottery, card games, crosswords etc.  Therefore, such losses can neither be set off from other income from own source nor from income from other sources.



 (iv) loss of source of tax free income - if a taxpayer has suffered loss from source of tax free income;  For example, if there is a loss in agriculture, then this agricultural loss will not be compensated by income from any other source.






 (v) Capital loss - Long term capital loss can be set off only against long term capital gains in the same previous year whereas short term capital loss can be set off against any capital gain in the same previous year.


(2) Set-off of loss under one head of income from income of another head- If a taxpayer has a loss under any one head of income and that income from any other source of the same head of income is insufficient  (Inefficiency) cannot be set off, then that loss is set off from any other head of income, but the condition is that the income of the second head is taxable, it is also called inter-head set-off.

 Section 71(2A) |


 (3) General business:- General business includes all other types of business except speculative business and business of specific nature under section 35AD.  The loss of such business can be set off against income under any head in the same previous year.  The loss in such business or profession can be set off from the income of speculative business.



 (4) Set-off of loss of speculative business - Loss of speculative business can be set-off only from the income of speculative business.  If the shares of another company are bought and sold by a company, then such trade will be considered as speculation.  If there is a loss in such business, then it will be recovered from the income of the speculation, it is not necessary that the speculation in which the loss of the business is being compensated should continue.



 (5) Compensation of losses arising from the ownership and maintenance of race horses - Such losses can be recovered only from this business and from no one else.  ,  Section 74A(J)]



 (6) Compensation of losses of lottery, crossword puzzle, gambling, zombie games etc. - These losses cannot be recovered from any income.

(7) Set-off of Losses of A. o. P / B.O.I. - The losses of such an association or group can be set-off against any head of their income.  If the loss remains incomplete due to lack of income, then its members will not be able to make up for the loss from their personal income.  If tax has been paid by the union at the maximum marginal rate on profits, losses will not be set off whether the loss is of the current year or carried forward.



 (8) Set-off of losses of a partnership firm - The rules of ordinary business apply only to the losses of a partnership firm in the case of the former.  No partnership can make up for the loss from its share in the losses of the firm and its personal income in that year.

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