Skip to main content

क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

भूराजस्व क्या है ? भूराजस्व की वसूली प्रक्रिया का वर्णन कीजिए इस उद्देश्य के लिए कौन सी सम्पत्ति कुर्क की जा सकती है ? ( What is land revenue ? Discuss the procedure for the recovery ofLand revenue .Which property can be attached for this purpose . )

भूराजस्व से आशय ( Meaning of Land Revenue ) 

भूराजस्व एक ऐसा कर है जो भूमि पर या उसकी उपज पर लगाया जाता है और यह कर सरकार को इसलिए देय है कि वह सब भूमि का अधिपति है ।

 मालगुजारी की वसूली ( Recovering of Land Revenue )

                                  मालगुजारी की वसूली का दायित्व राज्य सरकार पर है । राज्य सरकार जैसा उचित समझे , मालगुजारी वसूली का वैसा प्रबन्ध करे । चाहे वह अपने कर्मचारियों से वसूल करवाये या कुछ व्यक्तियों को वसूलने के लिए ठेका दे दे या ग्राम पंचायत को यह कार्य सौंप दे । राज्य सरकार मालगुजारी वसूली का काम भूमि - प्रबन्धक समिति को भी सौंप सकती है । किन्तु इसके लिए जरूरी है कि गजट में सामान्य या विशेष आज्ञा  राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित की गई हो । राज्य सरकार ने गजट में अधिसूचना जारी करके मालगुजारी की वसूली का भार भूमि प्रबन्धक समिति को देने का कलेक्टर को प्रतिनिधानित कर दिया है । यदि कलैक्टर चाहे तो किसी भी भूमि - प्रबन्धक समिति को मालगुजारी की वसूली का काम दिया जा सकता है । किन्तु अभी तक  कभी भी कलेक्टर ने किसी भूमि - प्रबन्धक समिति को मालगुजारी वसूली जिले की मालगुजारी वसूली की ज़िम्मेदारी का काम नही दिया  है  ।


                                    जिले की  मालगुजारी की वसूली की जिम्मेदारी कलेक्टर पर है जिले की प्रत्येक तहसील का तहसीलदार अपनी तहसील की मालगुजारी की वसूली के लिए जिम्मेदार  है ।मालगुजारी की वसूली  प्रत्येक तहसील में नियुक्त अमीन द्वारा की जाती है । इन अमीनों  का पर्यवेक्षण नायब तहसीलदार और तहसीलदार द्वारा होता  है । अमीन प्रत्येक  भूमिधर के यहाँ जाकर मालगुजारी की वसूली करेगा। प्राप्त रकम के बदले में अमीन रसीद देगें ; जिस रसीद  पर विस्तृत विवरण होगा । यह रसीद  इस बात का निर्णायक सबूत , कि मालगुजारी  जमा हो गई है । यदि अमीन को दीगयी रकम अमीन द्वारा  गबन कर ली जाती है तो जोतदार फिर से मालगुजारी को फिर से देने के लिए दायीं नहीं हो सकेगा ।



            जोतदार अपनी देय मालगुजारी को तहसील में भी जमा कर सकते हैं । प्रत्येक मास में कम से कम दो बार अमीन तहसील में उपस्थित होंगे , और इस उपस्थिति के अवसर पर अमीन को मालगुजारी की वसूली की सूचना दे दी जायगी और उसके वसूली को जमाबन्दी रजिस्टर में उपयुक्त स्थान पर दर्ज करा दिया जायगा । 





मालगुजारी वसूली की प्रक्रिया ( Modes for the Realisation of Land Revenue ) 


            धारा 279 वर्णन करती है कि बकाया मालगुजारी की वसूली के सात तरीके हैं , जिनमें से एक या एक से अधिक तरीकों से मालगुजारी की बकाया वसूल की जा सकती है । ये सात तरीके निम्नलिखित हैं : -


1. माँग पत्र और उपस्थिति पत्र - तहसीलदार द्वारा माँग पत्र जारी किया जाता है । जिसमें बकायेदार को आदेश दिया जाता है कि वह निर्दिष्ट तिथि के भीतर अमुक धनराशि जमा करे । इस माँग पत्र के स्थान पर या इसके अलावा तहसीलदार उपस्थिति पत्र जारी कर बकायेदार को आदेश दे सकता है कि निर्दिष्ट तिथि को तहसील में उपस्थित होकर बकाया मालगुजारी जमा करे बकाया मालगुजारी में  दो रूपये  जोड़ दिया जायगा । माँग पत्र या उपस्थिति पत्र बकायेदार या उसके एजेन्ट पर व्यक्तिगत रूप से तामील किया जाना चाहिए । कलेक्टर की पूर्वानुमति से माँग पत्र रजिस्टर्ड डाक द्वारा बकायेदार को भेजा जा सकता है ।



                  माँग पत्र या उपस्थिति पत्र जारी होने पर बकायादार चाहे तो मालगुजारी जमा करे या न करे , तथा उपस्थित हो या न हो । इस पत्र का उल्लंघन  भारतीय दण्ड संहिता ( I.P.C. ) की धारा 174 के अन्तर्गत दण्डनीय नहीं है क्योंकि यह उपस्थिति ( हाजिरी ) का केवल एक प्रस्ताव मात्र है न कि सम्मन , नोटिस या आर्डर । अतएव व्यवहार में ( in practice ) यह प्रभावहीन सा है ।



 2. गिरफ्तारी तथा निरोधन - गिरफ्तारी का वारण्ड कलेक्टर , परगनाधिकारी या तहसीलदार द्वारा जारी किया जाएगा । हर एक ऐसे वारण्ट पर बकाया मालगुजारी में ₹ पाँच जोड़ा दिये जाएँगे । यदि संयुक्त बकायेदार हैं तो हर एक के लिए अलग - अलग वारण्ट जारी किया जाना चाहिये ।


       गिरफ्तारी का वारण्ट जारी किया जा सकता है , चाहे वसूली के अन्य तरीके अपनाये गये हों या न अपनाये गये हैं । इस सन्दर्भ में उदाहरणस्वरूप वाद है 

      मोती लाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के केस में मोतीलाल ने राज्य सरकार से ₹ 4,000 ऋण लिया और करार में यह था कि किसी किस्त के बकाया हो जाने " मालगुजारी की बकाया की भांति जमानत में दी गई सम्पति की बिक्री से वसूल की जायेगी । मोतीलाल बकायेदार हो गये । वसूली कार्यवाही के दौरान गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया गया । मोतीलाल ने उच्च न्यायालय में समादेश (रिट) के लिये याचिका दायर की। किन्तु उच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया कि प्रार्थी (मोती लाल) गिरफ्तार  किया जा सकता है ।



गिरफ्तारी और निरोधन से कौन बरी है - निम्नलिखित व्यक्तियों की गिरफ्तारी और उनका निरोधन नहीं हो सकता :- -

( a ) अवयस्क , 

( b ) स्त्री . 


( c ) भारतीय सुरक्षा विभाग का कर्मचारी ।


 3. चल सम्पत्ति की कुर्की और विक्रय - चल सम्पत्ति की कुर्की और विक्रय का आदेश कलेक्टर या परगनाधिकारी द्वारा ही दिया जायगा । बकाया मालगुजारी में 75 पैसे कुर्क करने का खर्च भी जोड़ दिया जायगा वसूली किये जाने वाली बकाया मालगुजारी का 6 प्रतिशत विक्रय ( नीलाम ) खर्च भी बकाया मालगुजारी के साथ वसूल किया जायगा । यदि विक्रय के परिणामस्वरूप बकाया मालगुजारी और उस पर 6 प्रतिशत विक्रय खर्च दोनों को जोड़कर घटाने से कुछ पैसा बच जाता है तो उसे बकायेदार को दे दिया जायगा और इस रकम पर 6 प्रतिशत विक्रय खर्च भी नहीं पड़ेगा । सी . पी . सी . की धारा 60 में वर्णित जिन वस्तुओं की कुर्की नहीं होती है उनकी कुर्की नहीं होगी । साथ - साथ वे वस्तुएँ भी कुर्की ( और विक्रय ) से बरी कर दी जायेंगी जिनका कि एकमात्र उपयोग धार्मिक उपासना के कार्य में होता है । इस प्रकार से संक्षेप में वे वस्तुएँ निम्नलिखित हैं जिनकी कुर्की  और विक्रय नहीं हो सकती :

 ( i ) पहनने के आवश्यक कपड़े , खाना पकाने के बर्तन बकायेदार , उसकी पत्नी और बच्चों की चारपाइयाँ एवं विस्तर

 ( ii ) कारीगर के औजार , कृषि के औजार , बोने के बीज आदि ,

 ( iii ) खेतिहर के मकान एवं इमारतें , जिन पर वह काबिज है , 

( iv ) पूजा के सामान ; जैसे - धातु की मूर्ति , घण्टी , मृगछाला इत्यादि । 

     चल सम्पत्ति , जिसमें कि खेत की उपज भी शामिल है , की कुर्की किए जाने के पश्चात् निश्चित अवधि में बकायेदार यदि बकाया धनराशि की अदायगी नहीं करता है तो कुर्क की गई चल सम्पत्ति का विक्रय किया जा सकता है । यह विक्रय अमीन द्वारा भी कराया जा सकता है । इण्डस्ट्रियल वीवर्स को - आपरेटिव सोसाइटी लि . शाण्डिला बनाम कलेक्टर हरदोई के वाद में कुर्क की गई चल सम्पत्ति का विक्रय कलेक्टर या सहायक कलेक्टर द्वारा नहीं कराया गया , वरन् कुर्क करने वाले अमीन ने ही उनका  विक्रय कराया इलाहाबाद उच्च न्यायालय ( जस्टिस गोपीनाथ ) ने विक्रय को वैध और  मान्य निर्णीत किया ।


        बकायेदार की चल सम्पत्ति कुर्की और उसके विक्रय का आदेश " गिरफ्तारी  " और " निरोधन " के पहले भी किया जा सकता है और साथ - साथ भी किया जा सकता है । अधिकारी की स्वेच्छा पर आधारित है कि वह एक या एक से अधिक तरीकों को अपनाये ।


 हबीब शेख बनाम स्टेट ऑफ यू . पी . के केस में सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया  कि चल सम्पत्ति की नीलामी बिक्री के पश्चात् उसका पुष्टिकरण आवश्यक नहीं है जैसा कि अचल सम्पत्ति का विक्रय के पश्चात् पुष्टिकरण होना आवश्यक है। चल सम्पत्ति का विक्रय होते ही क्रेता द्वारा मूल्य भुगतान करने के उपरान्त विक्रय पूर्ण हो जाता है।


     माननीय सार्वोच्च न्यायालय के समक्ष सेठ बनारसी दास ( द्वारा विधिक प्रतिनिधि ) बनाम जिला कलेक्टर मेरठ एवं अन्य की अपील स्वीकार करते हुए माननीय न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि राजस्व बकाये की वसूली के सम्बन्ध में चल सम्पत्ति की कुर्की एवं विक्रय जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 279 एवं 282 ( 2 ) तथा धारा 47 आदेश 21 एवं नियम 27 सिविल प्रक्रिया सहिता के अन्तर्गत आवश्यक है कि पहले न्यायालय बकायेदार द्वारा दाखिल किये गये आपत्ति को निस्तारित करे और तब विक्रय नीलामी द्वारा किये जाने का आदेश का आदेश करे । उपरोक्त किये में बिना आपत्ति निस्तारित किये बकायेदार की चल सम्पत्ति विक्रय का आदेश दिया गया जिसे न्यायालय में निरस्त कर दिया ।



 4. जोत की कुर्की तथा पट्टा - जिस भूमि ( जोत ) के सम्बन्ध में मालगुजारी का बकाया देय है ; उस भूमि को कुर्क किया जा सकता है । यह तरीका कलेक्टर के द्वारा ही जारी किया जा सकता है । अन्य प्रक्रिया के अलावा या साथ - साथ भी यह प्रक्रिया अपनायी जा सकती है ।


            जोत की कुर्की के बाद कलेक्टर को अधिकार है कि वह इस कुर्क की गयी भूमि को अधिकतम 10 वर्ष की अवधि के लिए किसी उपयुक्त व्यक्ति को लगान पर उठा दे । यह पट्टेदार ऐसा होना चाहिये जो भूमि की मालगुजारी दे सके एवं बकाया मालगुजारी का चुकता कर दे । इस प्रसंग में निम्नलिखि बातें  ज्ञातव्य हैं :


 ( i ) जोत की कुर्की के बाद ही पट्टा दिया जा सकता है । यह कुर्की वास्तविक होनी चाहिये । कुर्की का आदेश केवल यह उपधारणा नहीं करेगा कि सम्पत्ति यथार्थतः कुर्क की गई थी ।


 ( ii ) पट्टा कितने कृषि - वर्षो ( फसली वर्ष ) के लिए दिया जाय , यह कलेक्टर की स्वेच्छा पर निर्भर करेगा । किन्तु पट्टा किसी भी हालत में आने वाले फसली वर्ष से 10 वर्ष से अधिक के लिए नहीं दिया जा सकता ।


 ( iii ) पट्टा बकायेदार को नहीं दिया जा सकता । 


( iv ) कलेक्टर द्वारा पट्टा तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक कि पट्टेदार बकाया बालगुजारी की अदायगी न कर दे , अर्थात् बकाया मालगुजारी की अदायगी पट्टा लिये जाने की पूर्व शर्त है ।

 ( v ) पट्टा लिखित होगा और जेड . ए . फार्म 74 - ग में निष्पादित होगा । पट्टाकाल में पट्टेदार की क्या हैसियत होगी ? पट्टेदार को भूमिधर या असामी में कोई भी हैसियत नहीं मिलेगी , वह धारा 133 - क के अन्तर्गत सरकार पट्टेदार कहलायेगा और पट्टे को शर्तों से शासित होगा । 


( Vi ) पट्टा अवधि के समाप्त होते ही पट्टा समाप्त हो जायगा । यदि पट्टे की अवधि मे पट्टेदार पट्टे की मालगुजारी की अदायगी में चूक करता है तो उससे मालगुजारी वसूल की जा सकेगी तथा उसके पट्टे की अवधि से पहले समाप्त किया जा सकता है लेकिन मालगुजारी न अदा करने पर पट्टे की स्वतः समाप्ति नहीं मानी जायगी । 


( vii ) पट्टा की समाप्ति पर क्षेत्रपति ( भूमिधर ) को राज्य सरकार द्वारा जोत वापस कर दी जायगी और उस पर मालगुजारी के किसी प्रकार के बकाये का भार नहीं होगा और प्रारम्भ में जो बकाया मालगुजारी थी वह अदा हुई मानी जायेगी । कलेक्टर का यह कर्तव्य है कि जोतदार को भूमि पर कब्जा दिलाये । यदि पट्टेदार भूमि का कब्जा नहीं देता है तो उसे धारा 284 - क के अन्तर्गत बेदखल किया जा सकता है एवं उसे क्षतिपूर्तिक या मुआवजा करायी जा सकती है ।


 5. जोत की कुर्की तथा विक्रय - जिस भूमि ( जोत ) के सम्बन्ध में मालगुजारी का बकाया है और उसकी कुर्की की जा चुकी है , तो कलेक्टर उस भूमि का विक्रय तभी करेगा जब कोई उपयुक्त व्यक्ति भूमि को पट्टे पर लेने को तैयार नहीं है । यह आवश्यक है कि 


( i ) जोत को नियमतः कुर्क किया गया हो ।

 ( ii ) निश्चित किये गए विक्रय ( नीलाम ) की तिथि से कम - से - कम तीस दिन पहले या विक्रय की घोषणा कलेक्टर द्वारा की जानी चाहिए ।


 ( iii ) यदि विक्रय - तिथि को निलम्बित किया जाय तो नये विक्रय की घोषणा की जाय ।


 ( iv ) भूमि का विक्रय कलेक्टर द्वारा अपनी उपस्थिति में कराया जाके  गा या इसी विशेष काम के लिए नियक्त सहायक कलेक्टर द्वारा प्रत्येक तहसीलदार पदेन सहायक कलेक्टर होता है और वह कलेक्टर या इसी विशेष कम कराने के लिए विशेष तौर पर नियुक्त किया जा सकता है ।


 ( v ) जोत का विक्रय 3 / , से 12 / , एकड़ के टुकड़ों में होगा । धारा 154 का प्रावधान इस विक्रय पर लागू होगा , अर्थात् क्रेता के पास यह भूमि मिलाकर और पहले से प्राप्त भूमि 12 / , एकड़ अधिक न होनी चाहिये ।


 ( vi ) जो व्यक्ति क्रेता घोषित किया जाय , उसे अपनी बोली की धनराशि का 25  प्रतिशत तुरन्त जमा कर देना होगा ऐसा न करने पर उक्त भूमि तुरन्त ही फिर से विक्रय के( vii ) विक्रय - धनराशि में से विक्रय का खर्च ( नियम 284 के हिसाब से ) और बकाया मालगुजारी की अदायगी की जायगी । अगर कुछ रकम अधिक है तो उसे बकावेदार को वापस कर दिया जायगा । ( viii ) इस ब्रिकी के सम्बन्ध में कलेक्टर रेवेन्यू बोर्ड को रिपोर्ट करेगा । स्वीकार करते मुरारी लाल बनाम सब डिवीजनल आफिसर के बाद में याची की याचिका हुए खण्डपीठ ने निर्णीत किया कि उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश अधि की 


    नियमावली के नियम 285 - एच या 265 - जे के अन्तर्गत लोक देयों की वसूली में भूमि  की नीलामी द्वारा विक्रय किये जाने में केवल कलेक्टर को पुष्टि करने का अधिकार प्रदान करता है न कि परगनाधिकारी को ।


 6. अन्य अचल सम्पत्ति की कुर्की तथा विक्रय - वसूली के इस तरीके को केवल कलेक्टर ही अपना सकता है । यह तरीका तभी अपनाया जा सकता है जब ऊपर वर्णित 1 से 5 तरीकों से बकाया मालगुजारी की वसूली न हो सके । इन पाँचों तरीकों में से एक या एक से अधिक का सहारा लिये बिना भी कलेक्टर इस निष्कर्ष पर पहुँच सकता है कि ये तरीके कामयाब नहीं होंगे । इस तरीके से सम्बन्धित निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं 


 ( i ) सम्पत्ति को नियमतः कुर्क किया गया हो । जिस सम्पत्ति की कुर्की नहीं की गई है उसका विक्रय नहीं किया जा सकता ; 


( ii ) निश्चित किये गये विक्रय ( नीलाम ) तिथि से कम से कम 30 दिन पहले या विक्रय की घोषणा कलेक्टर द्वारा जारी की जानी चाहिये । 


( iii ) यदि विक्रय निलम्बित किया जाय तो नये विक्रय की घोषणा की जाय । 

( iv ) भूमि का विक्रय कलेक्टर द्वारा अपनी उपस्थिति में कराया जायगा ; या इसी विशेष काम के लिए नियुक्त किसी सहायक कलेक्टर द्वारा । 


( v ) जोत को विक्रय 3.125 से 12.50 एकड़ के टुकड़ों में होगा । धारा 154 का प्रावधान इस विक्रय पर भी लागू होगा , अर्थात् क्रेता के पास यह भूमि मिलाकर और पहले से प्राप्त भूमि 12 1/3 , एकड़ से अधिक न होनी चाहिये ।


 विक्रय धनाशि में से विक्रय का खर्च ( नियम 284 के हिसाब से ) और बकाया मालगुजारी की अदयगी की जायगी । यदि कुछ रकम अधिक है , तो उसे बकायेदार को वापस कर दिया जायगा ।


 ( vii ) इस बिक्री के सम्बन्ध में कलेक्टर रेवन्यू बोर्ड को रिपोर्ट देगा ।


 ( viii ) घोषित क्रेता अपनी बोली के धनराशि का 25 % जमा करेगा और शेष 75 % विक्रय - तिथि से 15 दिनों के अन्दर 



     अचल सम्पत्ति की कुर्की नियमतः की गई होनी चाहिए । इसका तात्पर्य यह है कि बकायेदार की निजी सम्पत्ति हो । उसी की कुर्की की जा सकेगी । माननीय उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने श्रीमती शकुन्तला शर्मा बनाम स्टेट आफ यू . पी . एवं अन्य के वाद में : विवादित सम्पत्ति की कुर्की राज्य सरकार के कर्मचरियों द्वारा कर ली गई थी । जो कि याचिनी के नाम थी जिसका मृतक पति ज्योति प्रसाद शर्मा के विरुद्ध की जाने वाली वसूली की धनराशि ₹ 59 , 294 से कोई सम्बन्ध नहीं था तथा सन् 1968 में जिला जज , देहरादून के न्यायालय में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ज्योति प्रसाद शर्मा के विरुद्ध वाद दायर किया गया एवं ज्योति प्रसाद शर्मा के विरुद्ध डिक्री भी हो गयी एवं डिक्री के निष्पादन का कोई प्रयास नहीं किया गया इसी बीच श्री शर्मा की मृत्योपरान्त उनके विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध वसूल किया जाना प्रारम्भ किया गया । 


       माननीय न्यायालय के समक्ष याचिनी के अधिवक्ता द्वारा तर्क किया गया कि फारेस्ट ऐक्ट , 1927 की धारा 82 के अन्तर्गत सम्पत्ति उसी व्यक्ति की कुर्क की जा सकती है जिसके विरुद्ध बकाया है । उपरोक्त केस में ; विवादित मकान दावा प्रस्तुत किये जाने के काफी पूर्व पत्नी को अन्तरित किया जा चुका था । इसलिए वर्तमान कुर्की की अपनाई गई कार्रवाई अविधिक एवं क्षेत्राधिकार के बाहर है । न्यायालय ने विपक्षी के तर्कों को अस्वीकार करते हुए याचिका स्वीकृत करते हुए कुर्की एवं विक्रय - उद्घोषणा दिनांक 20-8-1998 जिसे कलेक्टर देहरादून द्वारा जारी किया गया था , निरस्त करते हुए न्यायालय ने विपक्ष को अवसर प्रदान किया कि यदि डिक्री का निष्पादन अधिनियम में दिये गये अन्य प्रावधानों में वसूल सम्भव हो तो उसे पूरा कर लिया जाय ।



नियमावली के नियम 285 - एच या 265 - जे के अन्तर्गत लोक देयों की वसूली में भूमि  की नीलामी द्वारा विक्रय किये जाने में केवल कलेक्टर को पुष्टि करने का अधिकार प्रदान करता है न कि परगनाधिकारी को ।


 6. अन्य अचल सम्पत्ति की कुर्की तथा विक्रय - वसूली के इस तरीके को केवल कलेक्टर ही अपना सकता है । यह तरीका तभी अपनाया जा सकता है जब ऊपर वर्णित 1 से 5 तरीकों से बकाया मालगुजारी की वसूली न हो सके । इन पाँचों तरीकों में से एक या एक से अधिक का सहारा लिये बिना भी कलेक्टर इस निष्कर्ष पर पहुँच सकता है कि ये तरीके कामयाब नहीं होंगे । इस तरीके से सम्बन्धित निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं 


 ( i ) सम्पत्ति को नियमतः कुर्क किया गया हो । जिस सम्पत्ति की कुर्की नहीं की गई है उसका विक्रय नहीं किया जा सकता ; 


( ii ) निश्चित किये गये विक्रय ( नीलाम ) तिथि से कम से कम 30 दिन पहले या विक्रय की घोषणा कलेक्टर द्वारा जारी की जानी चाहिये । 


( iii ) यदि विक्रय निलम्बित किया जाय तो नये विक्रय की घोषणा की जाय । 

( iv ) भूमि का विक्रय कलेक्टर द्वारा अपनी उपस्थिति में कराया जायगा ; या इसी विशेष काम के लिए नियुक्त किसी सहायक कलेक्टर द्वारा । 


( v ) जोत को विक्रय 3.125 से 12.50 एकड़ के टुकड़ों में होगा । धारा 154 का प्रावधान इस विक्रय पर भी लागू होगा , अर्थात् क्रेता के पास यह भूमि मिलाकर और पहले से प्राप्त भूमि 12 1/3 , एकड़ से अधिक न होनी चाहिये ।


 विक्रय धनाशि में से विक्रय का खर्च ( नियम 284 के हिसाब से ) और बकाया मालगुजारी की अदयगी की जायगी । यदि कुछ रकम अधिक है , तो उसे बकायेदार को वापस कर दिया जायगा ।


 ( vii ) इस बिक्री के सम्बन्ध में कलेक्टर रेवन्यू बोर्ड को रिपोर्ट देगा ।


 ( viii ) घोषित क्रेता अपनी बोली के धनराशि का 25 % जमा करेगा और शेष 75 % विक्रय - तिथि से 15 दिनों के अन्दर 



     अचल सम्पत्ति की कुर्की नियमतः की गई होनी चाहिए । इसका तात्पर्य यह है कि बकायेदार की निजी सम्पत्ति हो । उसी की कुर्की की जा सकेगी । माननीय उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने श्रीमती शकुन्तला शर्मा बनाम स्टेट आफ यू . पी . एवं अन्य के वाद में : विवादित सम्पत्ति की कुर्की राज्य सरकार के कर्मचरियों द्वारा कर ली गई थी । जो कि याचिनी के नाम थी जिसका मृतक पति ज्योति प्रसाद शर्मा के विरुद्ध की जाने वाली वसूली की धनराशि ₹ 59 , 294 से कोई सम्बन्ध नहीं था तथा सन् 1968 में जिला जज , देहरादून के न्यायालय में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ज्योति प्रसाद शर्मा के विरुद्ध वाद दायर किया गया एवं ज्योति प्रसाद शर्मा के विरुद्ध डिक्री भी हो गयी एवं डिक्री के निष्पादन का कोई प्रयास नहीं किया गया इसी बीच श्री शर्मा की मृत्योपरान्त उनके विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध वसूल किया जाना प्रारम्भ किया गया । 


       माननीय न्यायालय के समक्ष याचिनी के अधिवक्ता द्वारा तर्क किया गया कि फारेस्ट ऐक्ट , 1927 की धारा 82 के अन्तर्गत सम्पत्ति उसी व्यक्ति की कुर्क की जा सकती है जिसके विरुद्ध बकाया है । उपरोक्त केस में ; विवादित मकान दावा प्रस्तुत किये जाने के काफी पूर्व पत्नी को अन्तरित किया जा चुका था । इसलिए वर्तमान कुर्की की अपनाई गई कार्रवाई अविधिक एवं क्षेत्राधिकार के बाहर है । न्यायालय ने विपक्षी के तर्कों को अस्वीकार करते हुए याचिका स्वीकृत करते हुए कुर्की एवं विक्रय - उद्घोषणा दिनांक 20-8-1998 जिसे कलेक्टर देहरादून द्वारा जारी किया गया था , निरस्त करते हुए न्यायालय ने विपक्ष को अवसर प्रदान किया कि यदि डिक्री का निष्पादन अधिनियम में दिये गये अन्य प्रावधानों में वसूल सम्भव हो तो उसे पूरा कर लिया जाय ।


Comments

Popular posts from this blog

मेहर क्या होती है? यह कितने प्रकार की होती है. मेहर का भुगतान न किये जाने पर पत्नी को क्या अधिकार प्राप्त है?What is mercy? How many types are there? What are the rights of the wife if dowry is not paid?

मेहर ( Dowry ) - ' मेहर ' वह धनराशि है जो एक मुस्लिम पत्नी अपने पति से विवाह के प्रतिफलस्वरूप पाने की अधिकारिणी है । मुस्लिम समाज में मेहर की प्रथा इस्लाम पूर्व से चली आ रही है । इस्लाम पूर्व अरब - समाज में स्त्री - पुरुष के बीच कई प्रकार के यौन सम्बन्ध प्रचलित थे । ‘ बीना ढंग ' के विवाह में पुरुष - स्त्री के घर जाया करता था किन्तु उसे अपने घर नहीं लाता था । वह स्त्री उसको ' सदीक ' अर्थात् सखी ( Girl friend ) कही जाती थी और ऐसी स्त्री को पुरुष द्वारा जो उपहार दिया जाता था वह ' सदका ' कहा जाता था किन्तु ' बाल विवाह ' में यह उपहार पत्नी के माता - पिता को कन्या के वियोग में प्रतिकार के रूप में दिया जाता था तथा इसे ' मेहर ' कहते थे । वास्तव में मुस्लिम विवाह में मेहर वह धनराशि है जो पति - पत्नी को इसलिए देता है कि उसे पत्नी के शरीर के उपभोग का एकाधिकार प्राप्त हो जाये मेहर निःसन्देह पत्नी के शरीर का पति द्वारा अकेले उपभोग का प्रतिकूल स्वरूप समझा जाता है तथापि पत्नी के प्रति सम्मान का प्रतीक मुस्लिम विधि द्वारा आरोपित पति के ऊपर यह एक दायित्व है

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद - पत्र में न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का नाम लिखना आवश्यक

अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा राष्ट्रीय विधि क्या होती है? विवेचना कीजिए.( what is the relation between National and international law?)

अंतर्राष्ट्रीय विधि को उचित प्रकार से समझने के लिए अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा राष्ट्रीय विधि के संबंध को जानना अति आवश्यक है ।बहुधा यह कहा जाता है कि राज्य विधि राज्य के भीतर व्यक्तियों के आचरण को नियंत्रित करती है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय विधि राष्ट्र के संबंध को नियंत्रित करती है। आधुनिक युग में अंतरराष्ट्रीय विधि का यथेष्ट विकास हो जाने के कारण अब यह कहना उचित नहीं है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि केवल राज्यों के परस्पर संबंधों को नियंत्रित करती है। वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय विधि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के संबंधों को नियंत्रित करती है। यह न केवल राज्य वरन्  अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, व्यक्तियों तथा कुछ अन्य राज्य इकाइयों पर भी लागू होती है। राष्ट्रीय विधि तथा अंतर्राष्ट्रीय विधि के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। दोनों प्रणालियों के संबंध का प्रश्न आधुनिक अंतरराष्ट्रीय विधि में और भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि व्यक्तियों के मामले जो राष्ट्रीय न्यायालयों के सम्मुख आते हैं वे भी अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय हो गए हैं तथा इनका वृहत्तर  भाग प्रत्यक्षतः व्यक्तियों के क्रियाकलापों से भी संबंधित हो गया है।