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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

मालगुजारी के बंदोबस्त से क्या तात्पर्य है ? बंदोबस्त की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए । ( What do you mean by settlement of land Revenue ? Describe the procedure of land revenue . )

मालगुजारी का बंदोबस्त  ( Settlement of Land Revenue )

 किसी भूमि के संबंध में सरकार को देय मालगुजारी के समय - समय पर निश्चित  किए जाने को मालगुजारी का बंदोबस्त कहते हैं । जब किसी क्षेत्र में बन्दोबस्त की कार्यवाही की जाती है तो उसके प्रत्येक जोतदार द्वारा देय मालगुजारी की धनराशि निश्चित अवधि के लिए तय की जाती है । 



     बन्दोबस्त अवधि - उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियएम के प्रारम्भ से बीस वर्ष के बाद किसी समय राज्य सरकार किसी जिले या उसके भाग की मालगुजारी का बन्दोबस्त करने का निर्देश दे सकती है । इस पहले वाले बन्दोबस्त को मूल बन्दोबस्त कहा जायेगा । इस बन्दोबस्त की अवधि 20 साल की होगी । राज्य सरकार मूल बन्दोबस्त से बीस साल की अवधि के बाद किसी समय किसी जिले या उसके भाग की मालगुजारी के नये बन्दोबस्त का निर्देश कर सकती है । इस दूसरे बन्दोबस्त को " पुनरीक्षण बन्दोबस्त " की संज्ञा दी जायेगी । परन्तु यदि इस पुनरीक्षण बन्दोबस्त में किसी कारण देर हो गई हो या राज्य सरकार के मत में इस बन्दोबस्त की कार्यवाही अनावश्यक होगी , तो राज्य सरकार चालू बन्दोबस्त को ऐसे समय के लिए बढ़ा सकती है जिसे वह उचित समझे । 


बन्दोबस्त की प्रक्रिया - मालगुजारी के बन्दोबस्त की प्रक्रिया निम्नलिखित रूप में निर्धारित की गयी है-

 ( i ) बन्दोबस्त की विज्ञप्ति - ज्यों ही राज्य सरकार यह निश्चित करे कि किसी जिले या उसके भाग का नया बन्दोबस्त किया जाये तो इस आशय का एक विज्ञप्ति प्रकाशित की जायगी । इस विज्ञप्ति के प्रकाशन के बाद उक्त जिला या उसका भाग बन्दोबस्त कार्यवाही के अधीन समझा जायेगा और तब तक रहेगा जब तक बन्दोबस्त कार्यवाही की समाप्ति की घोषणा करने वाली विज्ञप्ति प्रकाशित न हो जाए । 



( ii ) बन्दोबस्त अधिकारियों की नियुक्ति , शक्ति एवं कर्त्तव्य - नया बन्दोबस्त करने के लिए विज्ञप्ति जारी होते ही राज्य सरकार किसी जिले या उसके भाग के लिए बंदोबस्त का कार्यभार सँभालने के लिए एक बन्दोबस्त अधिकारी की नियुक्ति करेगी तथा जितना आवश्यक होगा उतने सहायक बन्दोबस्त अधिकारी की नियुक्ति करेंगी । ऐसे अधिकारीगण इस अधिनियम द्वारा उन्हें प्रदत्त शक्तियों का उपयोग उस जिले , उसके भाग में तब तक करते रहेंगे जब तक यह भाग बन्दोबस्त - प्रक्रिया के अधीन रहेगा । 


 बन्दोबस्त कार्यवाही में गजट में अधिसूचना प्रकाशित कर राज्य सरकार बन्दोबस्त अधिकारी को नक्शों - खसरों के रख - रखाव और वार्षित रजिस्टरों ( खतौनी ) के तैयारी कर्त्तव्य उसे अन्तरित कर सकती है और ऐसा होने पर बन्दोबस्त अधिकारी को वे भी अधिकार प्राप्त होंगे जो " भू - राजस्व अधिनियम , 1901 " के अध्याय 3 के अन्तर्गत अलेक्टर को दिये गये हैं । 


 ( iii ) मालगुजारी - निर्धारणार्थ निर्देश - बन्दोबस्त अधिकारी या सहायक बंदोबस्त अधिकारी सर्वप्रथम कार्यवाही के अधीन आने वाले प्रत्येक गाँव का निरीक्षण करेंगे और नियम में दिये गये सिद्धान्त और रीति से उस जिले या भाग को भूमि श्रेणियों और निर्धारण - मण्डलों में बाँट देंगे । 

ऐसी भूमि , जिस पर साधारणतया मालगुजारी निर्धारित की जायगी , यह चार प्रकार की भूमियों को छोड़कर गाँव के भूमिधरों के अभिलेख वर्ष वाले सभी जोतों की संकलित भूमि होगी । मालगुजारी से मुक्त निम्नलिखित चार भूमियाँ हैं 

 ( a ) भवनों द्वारा अधिकृत भूमि ; किन्तु यदि इमारतें ऐसी हैं जो उन्नत कार्य में आती जैसे- कृषि , बागवानी , पशुपालन में मदद देने के लिए जो इमारतें बनायी गयी हैं और इनसे जोतों के मूल्यांकन में वृद्धि हुई है , तो वह भवन मालगुजारी से मुक्त नहीं होंगे । 


( b ) खलिहान

 ( c ) कब्रिस्तान या श्मशान

 ( d ) अन्य भूमि जो निर्धारित हो ; जैसे - बाग । 

( iv ) मालगुजारी - निर्धारण के सिद्धान्त ( धारा 264 ) - सर्वप्रथम बन्दोबस्त अधिकार जोत की अनुमानित औसत बचत उपज निकालेंगे । यह औसत बचत खेती के साधारण व्यय के घटने के बाद ऐसी रीति से निर्धारित की जायेगी जैसा कि नियम द्वारा किया गया है । इस औसत बचत का कुछ प्रतिशत देय मालगुजारी निर्धारित की बचत का कौन - सा भाग मालगुजारी होगी यदि प्रतिशत राज्य विधान - मण्डल प्रस्ताव पास करके निश्चय किया जायगा । यहाँ यह ध्यान रखने योग्य है कि राज्य सरकार द्वारा नियत क्रमिक मान के अनुसार उपज की बचत पर मालगुजारी का प्रतिशत परिवर्तित होता रहेगा । वह उपज की सबसे अधिक बचत वाली जोतों पर सबसे अधिक और कम बचत वाली जोतों पर सबसे कम।


( v ) प्रस्तावित निर्धारण का प्रकाशन- जब बन्दोबस्त अधिकारी किसी क्षेत्र की मालगुजारी - निर्धारण का कार्य समाप्त कर लेगा तो वह अपने प्रस्ताव को नियम निर्धारित ढंग से प्रकाशित करेगा । निश्चित काल में जो आपत्तियों की जायेंगी उन पर विचार करेगा और फैसला देगा । उन आपत्तियों और उन पर दिये गये आदेशों को इत प्रस्ताव  में संलग्न कर निर्धारित प्राधिकारी को प्रस्तुत करेगा जो अपनी टिप्पणी के साथ उसे राज्य  के सरकार के पास भेज देगा । राज्य सरकार सब बातों पर विचार कर ऐसा आदेश देगी जैसी कि वह उचित समझे यह आदेश अन्तिम होगा । इस प्रकार बन्दोबस्त की प्रक्रिया  पूरी हो जायेगी । 



             उ . प्र . जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था नियमावली के निम्नलिखित नियम बन्दोबस्त प्रक्रिया से सम्बन्धित हैं ।


 ● नियम 205 - प - औसत बचत उपज का आकलन - जब फसल के औसत उपज के तथा उसके पाँच वर्षों के दौरान के औसत मूल्य के आंकड़े अवधारित हो जायें तब बन्दोबस्त अधिकारी प्रत्येक प्रकार की भूमि से प्राप्त प्रति एकड़ औसत बचत उपज के आँकड़े तैयार करने की कार्यवाही करेगा । इस नक्शे में पाँच वर्षों के दौरान भूमि में प्राप्त औसत उपज प्रदर्शित रहेगी । प्रत्येक वर्ष के लिए मुद्रा के आशयार्थ औसत उपज सम्बन्धित वर्ष के औसत उपज तथा बाजार मूल्य पर आधारित होंगे । प्रत्येक प्रकार की भूमि का प्रति एकड़ उपज पाँच साल के औसत पर आधारित होगा । 


  • नियम 205 - फ - तदुपरान्त बन्दोबस्त अधिकारी प्रत्येक प्रकार की भूमि के प्रत्येक फसल में कृषि के औसत व्यय को आकलित करने की कार्यवाही करेगा । ऐसा करने में वह पाँच वर्षों के दौरान प्रत्येक प्रकार की भूमि के प्रत्येक फसल के वार्षिक औसत कृषि व्यय को आकलित करेगा । कृषीय कृत्यों की लागत निकालने में बन्दोबल अधिकारी न्यूनतम मजदूरी अधिनियम , 1948 के अधीन क्षेत्र के लिए न्यूनतम मजदूरी बीजों और उर्वरकों की लागत , बुआई के लिये खेत तैयारी की लागत , सामान्यतः जाने वाली सिंचाइयों तथा प्रत्येक सिंचाई की लागत बुआई के लिये खेत तैयार की लागत , सामान्यतः की जाने वाली सिंचाइयों तथा प्रत्येक सिंचाई की लागत तथा कटाई , एकत्र कराई और मड़वाई की सामान्य लागत तथा बैलों के रख - रखाव के लागत खेत के लिए अपेक्षित ट्रैक्टरों के अनुरक्षण की लागत के सम्बन्ध में यथोचित ध्यान रखेगा । इस प्रकार कृषीय कृत्यों की लागत आकलित करने में , खातेदार द्वारा कृत्य तथ उप श्रम की लागत , मुद्रा के आशयांतर्गत न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अधीन क्षेत्र के लिये नियत न्यूनतम मजदूरी के आधार पर आकलित की जायेगी और उक्त प्रकार से प्राप्त लागत में जोड़ दी जायेगी ।



  •  नियम 205 - ब - उपर्युक्त आँकड़ों से बन्दोबस्त अधिकारी मुद्रा के आशयान्तपर्यत प्रत्येक प्रकार की भूमि के लिए प्रति एकड़ औसत बचत उपज आकलित करेगा । वह नक्शा अलग - अलग " गीली " और " शुष्क " भूमि के लिए तैयार किया जायेगा । 



  • नियम 205 - भ- बन्दोबस्त अधिकारी प्रत्येक प्रकार की भूमि के लिए औसत बचत उपज के मूल्य अनुसूची को कमिश्नर के माध्यम से रेवेन्यू बोर्ड को प्रस्तुत करेगा इनके साथ - साथ एक नक्शा होगा जिसमें क्षेत्र के गाँवों को यथा निर्धारण - हल्कों में उनके वर्गीकरण को प्रदर्शित किया रहेगा तथा इससे संलग्न एक संक्षिप्त 15 पृष्ठों से अनाधिक  का एक प्रतिवेदन रहेगा ( परिशिष्टियों को निकाल कर , यदि कोई हो ) , जिसमें निम्नलिखित इस प्रकार होगें


 ( a ) बहुत संक्षेप रूप से भू - खण्ड का भूमि वर्गीकरण का तथा निर्धारण हल्कों का वर्णन  जिसमे गत बन्दोबस्त से किये गये महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों को संक्षेप में समझाया गया होगा तथा प्रत्येक वर्ग की भूमि का क्षेत्र कथित रहेगा ।


 ( b ) कृषीय मूल्यों की गतिशीलता , सिंचन के क्षेत्र और प्रकार में तथा विभिन्न फसलों के प्रकार में सारवान् परिवर्तनों एवं उपज की मात्रा में परिवर्तनों तथा गत बंदोबस्त से उसके मूल्यों में परिवर्तनों का विवरण रहेगा ।


  ( c ) इस बात की संस्तुति करने में कि औसत बचत उपज का कितना प्रतिशत मालगुजारी के रूप में लिया जाये , बन्दोबस्त अधिकारी अधिनियम की धारा 264 ( 2 ) के उपबन्धों को ध्यान में रखेगा तथा जोतों के लिए क्रमिक स्तरों पर मालगुजारी के निर्धारण के प्रस्ताव निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत करेगा 

मुद्रा के आशयान्तर्गत ₹ 1,500 तथा उससे न्यून जोत का औसत  ₹ 1,500 से अधिक किन्तु ₹ 5,000 से न्यून बचत उपज  ₹ 5,000 से अधिक किन्तु ₹ 10,000 से न्यून  ₹ 10,000 से अधिक किन्तु ₹ 20,000 से न्यू ₹ 20,000 से अधिक किन्तु ₹ 30,000 से न्यून ₹ 30,000 तथा उससे अधिक ।



  ( d ) उपर्युक्त खण्ड ( ग ) में उल्लिखित प्रत्येक स्तर क्रम के लिए औसत बचत के उस प्रतिशत का सुझाव देते समय जिसे मालगुजारी के रूप में लिया जायेगा , या बंदोबस्त अधिकारी क्षेत्र के विभिन्न भू - वर्गों तथा प्रत्येक प्रकार की भूमि के प्रति एकड़ मत उपज के आधार पर सम्पूर्ण निर्धारण - हल्के के लिये मुद्रा के आशयान्तर्गत और बचत उपज सबसे पहले आकलित करेगा । तदुपरान्त वह ये आकलन करेगा :


 ( a ) वर्तमान मालगुजारी का प्रतिशत , जो सम्पूर्ण निर्धारण - हल्के के कुल बचत उपज की तुलना में होगा ।


 ( b ) अगर उन भूमिधरों की मालगुजारी जिन्होंने अधिनियम की धारा 18 की उपधारा  ( 1 ) के खण्ड ( क ) के अधीन ये अधिकार अर्जित किये थे , मौरूसी दरों पर  आकलित की गई होती तथा उन भूमिधरों की मालगुजारी जिन्होंने दस गुना या बीस गुना मालगुजारी जमा करके ये अधिकार प्राप्त किये थे , वर्तमान मालगुजारी के दुगुने पर आकलित की गयी तो आकलित की गई होती तो मालगुजारी का वह प्रतिशत जो सम्पूर्ण निर्धारण हल्के कुल औसत अधिक उपज की तुलना में हो । 


( c ) गत बन्दोबस्त के उपरान्त सिंचित क्षेत्र में सम्पन्न वृद्धि । 

( d ) गत बन्दोबस्त के उपरान्त क्षेत्र उपज में मूल्य वृद्धि ।

  ( e ) वह सीमा , जिस तक कि पिछले पाँच वर्षों के दौरान उर्वरकों एवं उच्च उपज वाले बीजों का प्रयोग किया गया हो , उपर्युक्त तथ्यों पर विचार करने के उपरान्त  बन्दोबस्त अधिकारी यह निर्णय करेगा कि निर्धारण - हल्के के कुल औसत बचत उपज का कितना प्रतिशत उचित रूप से मालगुजारी के रूप में निर्धारित किया जा सकता है । इसके बाद वह उन जोतों की निकटतम संख्या और क्षेत्र आकलित करेगा , जिसका वार्षिक औसत अधिक उपज ऊपर खण्ड ( ग ) में उल्लिखित प्रत्येक स्तर क्रम के अन्तर्गत आता हो तथा ऐसी रीति से विभिन्न स्तर क्रमों के लिए औसत बचत उपज के क्रमिक प्रतिशत का सुझाव देगा जिससे कि सभी स्तर क्रमों की कुल मालगुजारी न्यूनाधिक रूप से निर्धारण हल्के के लिये प्रथमतः निर्णीय प्रतिशत के आधार पर आकलित मालगुजारी के समान हो वह इस बात का ध्यान रखेगा कि विशेष कारणों के सिवाय प्रस्तावित निर्धारण ऊपर वर्णित मद ( 2 ) के अनुसार तथा निरूपित मालगुजारी के प्रतिशत से जो निर्धारण - हल्के के कुल औसत अधिक उपज से हो , से न्यून न हो ।


  •  नियम 205 - म - निर्धारण हल्के के विभिन्न कुल औसत बचत उपज आकलित करने के उपरान्त बन्दोबस्त अधिकारी इन्हें अवधारित करने की कार्यवाही करेगा -

( a ) विभिन्न भू - वर्गों तथा उनके क्षेत्र पर आधारित हल्के का प्रति एकड़ भारित ( वेटेड ) औसत बचत उपज ।


 ( b ) भूक्षरण , सिंचाई के विस्तार की सम्भावनाओं , उपज को लगान एवं सम्बन्धित गाँवों के खातेदारों के कौशल जैसे ठोस तथ्यों को ध्यान में रखकर गाँवों की स्पष्ट निम्नता अथवा उच्चता के सम्बन्ध में लागू करने के लिए अपेक्षित उपर्युक्त प्रति एकड़ भारित बचत उपज का परिष्करण । 




  • नियम 206 - य सम्पूर्ण अवधि के लिए बन्दोबस्त सार्वजनिक हित में अल्पकालिक बन्दोबस्त से श्रेष्ठतर है , किन्तु जब कि कृषि में न्यूनाधिकतायें स्वल्प हों या उपार्जन सारवान न हो तब एहतमाली खण्डों में पड़ने वाले एकल गाँवों के लिए बन्दोबस्त अधिकारी अल्पकालिक बन्दोबस्त का प्रस्ताव करेगा । अस्थायी रूप से उपार्जित गाँवों के सम्बन्ध में बन्दोबस्त अधिकारी यदि वह आवश्यक समझे 10 साल के निमित्त घटे हुए निर्धारण पर बन्दोबस्त करेगा जिससे कि गाँव का पुनरुत्थान हो सके , साथ ही साथ पूर्ण माँग भी निश्चित करेगा , जिसे तत्पश्चात् लागू किया जायेगा । 


नियम 205 (क)क - औसत बचत उपज सूची का प्रकाशन - ऐसी छानबीन के बाद जिसे परिषद् उचित समझे वह अनुसूची तथा प्रतिवेदन को सामान्य सूचना तथा आपत्तियों के निमित्त प्रकाशित करेगा । ऐसी अधिसूचना सहित जिसमें यह उल्लिखित हो कि जनता
के लिये निरीक्षण तथा विक्रय के निमित्त सम्पूर्ण प्रतिवेदन कहाँ उपलब्ध होगा ; सरकारी गजट में निम्नलिखित पत्रजातों का प्रकाशन आवश्यक होगा : 

( a ) प्रत्येक निर्धारण हल्के में पढ़ने वाले गाँव की सूची जिसमें स्पष्टतः निम्नता और उच्चता वाले गाँव प्रदर्शित होंगे ।

 ( b ) प्रत्येक वर्ग की भूमि के लिए औसत बचत उपज की अनुसूची हल्के के लिए औसत बचत उपज का प्रति एकड़ भारित औसत तथा स्पष्ट निम्नता या उच्चता वाले गाँवों में विषय में परिष्करण ।


 ( c ) एक नक्शा , जिसमें हल्के के लिए तथा प्रत्येक गाँव के लिये अवधारित मालगुजारी का स्थूल अनुमान दिया होगा । 


 ( d ) एहतमाली गाँवों की सूची ; जहाँ कि स्वल्पतर अवधि के लिये बन्दोबस्त प्रस्तावित हो । 


क्लेक्टरी ; तहसील तथा बन्दोबस्ती कार्यालय में रेवेन्यू बोर्ड सार्वजनिक निरीक्षणार्थ औसत बचत उपज की अनुसूची तथा प्रतिवदेन की प्रतियाँ रखवायेगा या चिपकवायेगा जहाँ कि बन्दोबस्त अधिकारी का पूर्ण प्रतिवेदन उपलब्ध रहेगा , जिसमें प्रस्तावित मालगुजारी को समझाया गया होगा तथा क्षेत्र का नक्शा भी उपलब्ध रहेगा , परिषद् ( बोर्ड ) प्रतिवेदन की मुद्रित प्रतियों को बन्दोबस्त कार्यालय में तथा राजकीय मुद्रणालय में विक्रयार्थ उपलब्ध करायेगी । प्रकाशन दिनांक से एक महीने की अवधि , आपत्तियाँ , प्रस्तुत करने के लिये होगी , जिसके दौरान बन्दोबस्त अधिकारी के पास आपत्तियाँ प्रस्तुत की जायेंगी , बन्दोबस्त अधिकारी ऐसी आपत्तियों पर विचार करेगा और उन्हें अपनी आलोचनाओं सहित कमिश्नर के माध्यम से परिषद् के आदेशार्थ भेजेगा ।


 नियम 205 खख - राजस्व परिषद् बन्दोबस्त अधिकारी के प्रतिवेदन को अपनी आलोचनाओं एवं कमिश्नर के माध्यम से अग्रेषित आपत्तियों सहित मालगुजारी के निमित्त औसत बचत उपज के सुझाये गये प्रतिशत को अनुमोदनार्थ सरकार के पास भेजेगा । राज्य सरकार अपनी संस्तुतियों को उत्तर प्रदेश विधान मण्डल के समक्ष प्रस्तुत करेगा , जो कि एक संकल्प द्वारा यह निर्णय करेगा कि औसत अधिक उपज से कितने प्रतिशत को मालगुजारी के रूप में लेना चाहिये ।


 नियम 205 गग - मालगुजारी का आकलन - औसत बचत उपज के उस प्रतिशत को , जिसे मालगुजारी के रूप में लिया जायेगा , शासन द्वारा अनुमोदित होने के उपरान्त किन्तु राज्य विधान मण्डल द्वारा पुष्टिकरण निमित्त विचारार्थ न होने पर , बन्दोबस्त अधिकारी प्रत्येक भूमिधरी खाते की मालगुजारी पर प्रस्ताव के प्रभावों को ब्योरे से आकलित करेगा । यदि राज्य विधान मण्डल इन दरों को परिष्कृत कर देता है तो वह शासन के निदेशों के अनुसार इन आकलनों को परिष्कृत करेगा ।


 बन्दोबस्त के विद्यमान काल में बन्दोबस्त का पुनरीक्षण - जब किसी क्षेत्र का बंदोबस्त  किया जाता है तो उस क्षेत्र की मालगुजारी बढ़ायी जा सकती है , या घटायी जा सकती है । जहाँ तक मालगुजारी बढ़ाने का प्रश्न है धारा 253 का परन्तुक स्पष्ट शब्दों में आदेश देता है कि , " तत्समय प्रचलित बन्दोबस्त की समाप्ति के पहले मालगुजारी में कोई वृद्धि न की जायेगी । " किन्तु यदि जोत का क्षेत्रफल बढ़ जाये तो मालगुजारी भी उसी हिसाब से बढ़ायी जा सकती है ।


 उपज के मूल्यों में गिरावट होने पर राज्य सरकार किसी क्षेत्र में पुनरीक्षण बन्दोबस्त का आदेश बन्दोबस्त के संचालन काल में भी दे सकती है बशर्ते कि मूल्यों की यह गिरावट अधिक हो और कुछ काल तक बराबर बनी रहने वाली हो । बन्दोबस्त करने के लिए राज्य सरकार गजट में विज्ञप्ति प्रकाशित करेगी , एवं बन्दोबस्त अधिकारी की निक्ति करेगी । इस प्रकार नियुक्त किया गया बन्दोबस्त अधिकारी मालगुजारी को कम तो कर सकेगा , किन्तु बढ़ा नहीं सकेगा । 


मालगुजारी की छूट तथा स्थगन - जब कभी किसी गाँव या उसके किसी भाग की फसलों को प्रभावित करने वाली कृषि सम्बन्धी किसी गम्भीर विपत्ति ; जैसे - सूखा , बाढ़ , ओला , पाला , फसल - रोग , टिड्डी - आक्रमण आदि के घटित हो जाने पर राज्य सरकार ऐसी आपदा द्वारा प्रभावित किसी जोत की मालगुजारी के सम्पूर्ण या किसी भाग को किसी अवधि के लिए छूट दे सकती है , या उसे स्थगित कर सकती है । मालगुजारी में छूट देने का अधिकार केवल राज्य सरकार को है , न कि कलेक्टर को राज्य सरकार किसी भी अवधि के लिए मालगुजारी की वसूली का स्थगन कर सकती है । कलेक्टर को मालगुजारी में छूट देने का अधिकार नहीं है , यह केवल राज्य सरकार से सिफारिश हो कर सकता है । कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह तीन मास तक के लिए मालगुजारी की वसूली को स्थगित कर दे । जब राज्य सरकार मालगुजारी की छूट या स्थगन का आदेश देती है तो वह असामी द्वारा देय लगान को किसी अवधि के लिए छोड़ या स्थगित कर सकेगी , चाहे वह गाँव - सभा का असामी हो या भूमिधर का जब तक लगान की वसूली स्थगित रहेगी तब तक का समय लगान वसूली का वाद दाखिल करने के लिए दी गई मियाद अवधि की गणना से निकाल दिया जायगा ।


 सरकार द्वारा दी गई मालगुजारी या लगान में छूट या स्थगन के आदेश को किसी माल या दीवानी न्यायालय में चुनौती न दी जा सकेगी । ऐसे किसी धन की वसूली के दायर नहीं किया जायगा ; उदाहरणार्थ -

 A एक जोत का भूमिधर है । वह ₹ 20 इसकी मालगुजारी देता है । उसने यह जोत B को ₹ 200 वार्षिक लगान पर उठा रखा है । पट्टे की एक शर्त यह है कि B द्वारा ₹ 200 लगान देना होगा , चाहे कोई कृषि सम्बन्धी घोर आपत्ति क्यों न घटित हो जाए । 

यदि राज्य - सरकार धारा 268 के अन्तर्गत भूमिधर की मालगुजारी में छूट देती है और उसके असामी के लगान में भी छूट देती है , तो A और B के बीच का करार छूट - काल में न केवल स्थगित रहेगा , बल्कि निष्प्रभावी भी रहेगा । A अपने इस लगान की वसूली के लिए B पर वाद दायर नहीं कर सकता ।


उ.प्र . भूधि - विध ( संशोधन ) अधिनियम , 1976 द्वारा बन्दोबस्त विधि में परिवर्तन 

   उ . प्र . भूमि विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1976 , जून 15 , 1976 से लागू किया गया और उसने भूमि की बन्दोबस्त - प्रणाली में और मालगुजारी की धनराशि में अत्यधिक परिवर्तन कर डाला है । 


                उ . प्र . जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम , 1950 द्वारा यह गारण्टी दी गयी थी कि अधिनियम के लागू होने के 40 वर्ष के पहले भूमि का बन्दोबस्त नहीं किया जायगा और बिना नये बन्दोबस्त को पूरा हुए भूमिधरों और सीरदारों को समाप्त कर दिया गया है और अब यह व्यवस्था की गई है कि अधिनियम के लागू होने के बीस वर्ष के पश्चात् किसी समय बन्दोबस्त किया जा सकता है , और धारा 246 के अन्तर्गत एक अस्थायी विवरणपत्र तैयार करा करके मालगुजारी का निर्धारण किया जायेगा । अब मालगुजारी भौमिक अधिकारों पर आधारित न होकर भूमि को श्रेणी , सिंचित या असिंचित पर आधारित होगी ।


              उ . प्र . भूमि विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1976 द्वारा परिवर्तित धाराएँ 245 , 246 और 247 इस प्रकार हैं


 भूमिघर द्वारा देय मालगुजारी ( धारा 245 ) : ( 1 ) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए प्रत्येक भूमिधर जुलाई 1 , 1976 ई . को या उसके पश्चात् प्रारम्भ होने वाले कृषि वर्ष के लिए राज्य सरकार को अपने द्वारा धृत भूमि के लिए धारा 246 की उपधारा ( 2 ) और धारा 247 के उपबन्धों के अनुसार अवधारित मालगुजारी का देनदार होगा 


( 2 ) किसी भूमिधर द्वारा देय मालगुजारी उस धनराशि के बराबर होगी जिसकी गणना उसके खाते में सम्मिलित गाटों पर लागू मौरूसी दरों के बराबर होगी जिसकी गणना उसके खातें में सम्मिलित गाटों पर लागू मौरूसी दरों के दुगुने पर की जायगी । प्रतिबन्ध यह है कि इस प्रकार गणना की गई मालगुजारी


 ( i ) किसी असिंचित गाटा के सम्बन्ध में ₹ 5 प्रति एकड़ से कम और ₹ 10 प्रति एकड़ से अधिक नहीं होगी ; 


( ii ) किसी सिंचित गाटा के सम्बन्ध में ₹ 10 प्रति एकड़ से कम और ₹ 20 प्रति एकड़ से अधिक न होगी 


स्पष्टीकरण- ( 1 ) ' गाटा ' से तात्पर्य ऐसी भूमि से है जिसके लिए एक पृथक् समान संख्या दी गई हो ।


 ( 2 ) इस धारा के प्रयोजनार्थ पद ' सिंचित गाटा ' का तात्पर्य ऐसे गाटा से है जिसके क्षेत्रफल के कम - से - कम आधे भाग में 1379 फसली से 1383 फसली ( दोनों को सम्मिलित करते हुए ) के बीच किसी तीन कृषि वर्ष में प्रत्येक में कम - से - कम एक फसल की सिंचाई किसी स्त्रोत से की गई हो और पद ' असिंचित गाटा ' का तात्पर्य सिंचित गाटों से भिन्न प्रत्येक गाटे से है ।


( 3 ) शंकाओं के निवारण के लिए एतद्वारा यह प्रख्यापित किया जाता है प्रत्येक भूमिधर 30 जून 1976 को समाप्त होने वाली अवधि के लिए अध्याय 10 के अनुसार जैसा कि वह धारा प्रारम्भ के पूर्व था , मालगुजारी को देनदार होगा ।


मालगुजारी के अवधारण की प्रक्रिया ( धारा 246 )

 ( 1 ) धारा 245 के अधीन भूमिधरों द्वारा देय मालगुजारी का अवधारण करने के सहायक कलेक्टर प्रत्येक गाँव के लिए अस्थायी विवरणपत्र तैयार करायेगा ।

 ( 2 ) अस्थायी विवरणपत्र ऐसे आकार में प्रकाशित किया जायगा जैसा कि नियत किया जाए ।

 ( 3 ) अस्थायी विवरणपत्र में किसी प्रविष्टि से व्यथित कोई व्यक्ति उपधारा ( 2 ) के अधीन अस्थायी विवरणपत्र के प्रकाशन के दिनांक से पन्द्रह दिनों के भीतर परगनाधिकारी को आपत्ति कर न्यायाधिकरण  ( 4 ) परगनाधिकारी सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात् आपत्ति पर निर्णय देगा और इसका निर्णय अन्तिम होगा ।


  ( 5 ) अस्थायी विवरणपत्र का , यदि आवश्यक हो , उपधारा ( 4 ) के अधीन आदेश के अनुसार पुनरीक्षण किया जायेगा और तदुपरान्त उस पर परगनाधिकारी द्वारा हस्ताक्षर किया जायगा और मुहर लगाई जायगी और वह अन्तिम तथा निश्चायक हो जायेगा । 


( 6 ) परगनाधिकारी सहायक कलेक्टर उपधारा ( 5 ) में अभिदिष्ट विवरण - पत्र में किसी लिपिक या गणित सम्बन्धी भूल या किसी आकस्मिक चूक या लोप से होने वाली किसी त्रुटि को ठीक कर सकता है ।



      मालगुजारी की दर पूर्ववत् रहेगी जब तक कि उसमें सम्यक् रूप से परिवर्तन न कर दिया जाय ( धारा 247 ) धारा 246 में अभिदिष्ट अन्तिम विवरणपत्र में विनिर्दिष्ट उसमें इस अध्याय धनराशि , यथास्थिति , भूमिधर द्वारा देय मालगुजारी होगी और पूर्ववत् रहेगी जब तक कि प्रावधानानुसार सम्यक् रूप से परिवर्तन न कर दिया जाय । 

मालगुजारी में छूट ( धारा 247 - क ) : ( 1 ) धारा 245 , 246 और 247 में किसी बात के होते हुए भी यदि ऐसे परिवार के सदस्यों द्वारा जुलाई , 1977 से प्रारम्भ होने वाले कृषि - वर्ष के प्रारम्भ के दिनांक को या उसके पश्चात् भूमिधर के रूप में धृत - भूमि का कुल क्षेत्रफल 1.26 हेक्टेयर ( 3.125 एकड़ ) से अधिक न हो , तो सदस्य को राज्य सरकार को मालगुजारी का भुगतान करके के दायित्व से छूट होगी ।


 ( 2 ) किसी व्यक्ति या उसके परिवार के किसी सदस्य का किसी खाते में अंश , इस धारा के अधीन छूट का अवधारण करने के प्रयोजनार्थ ; ऐसी रीति से और ऐसे प्राधिकारी द्वारा निश्चित किया जाएगा जो नियत किया जाय ; किन्तु कोई ऐसा अवधारण ऐसे खाते  के आगम से सम्बन्धित किसी वाद या अन्य कार्यवाही में किसी न्यायालय का न्यायाधिकरणपर बन्धकारी नहीं होगा ।




 ( 3 ) नियत प्राधिकारी , प्रत्येक गाँव - सभा के सम्बन्ध में ऐसे व्यक्तियों की जो धारा ( 1 ) में उल्लिखित छूट के हकदार हों , एक सूची तैयार करेगा जिसमें ऐसे ब्योरे प्रपत्र में और ऐसी रीति से दिये जायेंगे , और जो ऐसे दिनांक से पूर्व प्रकाशित किये येंगे जो नियम किये जायें , और ऐसी सूची के संगत उद्धरण सम्बन्धित व्यक्तियों को रित करायेगा । 


( 4 ) इस धारा के उपबन्धों के होते हुए भी किसी खाते के लिए धारा 245 , 246 ( 247 के अधीन निर्धारित मालगुजारी अधिकार - अभिलेखों में पूरी - पूरी लिखी देगी , और सभी अन्य प्रयोजनों के लिए उसके द्वारा देय मालगुजारी समझी जायगी । 


स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिए ' परिवार ' के अन्तर्गत कोई व्यक्ति , का पति या उसकी पत्नी और उसके अवयस्क बच्चे हैं , चाहे वे उसके साथ संयुक्त हों अथवा नहीं ।  

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अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...