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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

चूककर्ता से क्या मतलब होता है? मालगुजारी भुगतान के लिए वित किश्तें क्या होती हैं?मालगुजारी एवं लगान में अंतर भी बताइए । ( Define defaulter . Describing the instalments fixed for the ent of land revenue and also give difference between Renandadtev cnuc . )

चूककर्ता की परिभाषा ( Meaning of Defaulter )


 अधिनियम के अनुसार , वह मालगुजारी जो निश्चित की जाती है , उसका भुगतान निश्चित समय या उसके पूर्व अदा भुगतान नहीं की जाती है , ' बकाया मालगुजारी ' कहलाती है और उस ' बकाया मालगुजारी ' को देनदार व्यक्ति चूककर्ता ( Defaulter ) कहलाता है । 


मालगुजारी के भुगतान की नियत किस्तें ( Instalments for Payment of Land Revenue )

    मालगुजारी के भुगतान के लिए अधिनियम की धारा 248 में कहा गया है , राज्य सरकार ऐसे दिनांक या दिनांकों को जिनसे और ऐसी किस्तें जिनमें धारा 245 और 246 में अभिदिष्ट भूमिधरों द्वारा मालगुजारी देय होगी , नियत कर सकती है जो मालगुजारी या उसकी जो किस्त निश्चित तिथि पर या उसके पहले देने से रह जायेगी , मालगुजारी की बकाया हो जायेगी और उसके देनदार ' बाकी दार ' अथवा ' चूककर्ता ' हो जायेगी । 


        वर्तमान समय में वार्षिक भूराजस्व 2 किश्तों खरीफ तथा रबी में विभाजित होता है । खरीफ का भूराजस्व 31 दिसम्बर तक तथा रबी का 30 जून तक देय होता है । अगर भूराजस्व का भुगतान 30 जून तक नहीं किया जाता तो अगले वर्ष के लिए यह धनराशि ' बकाया लगान ' बन जाती है । ऐसी बकाया मालगुजारी की वसूली अलग से निर्धारत प्रक्रिया अपना कर या दूसरी किश्त के साथ वसूली जा सकती है । 


मालगुजारी और लगान में अन्तर में ( Differences between Revenue and Rent )

 मालगुजारी और लगान सिद्धान्ततः एक ही हैं , क्योंकि दोनों की भूमि के कब्जे के एवज में ही देय होते हैं , दोनों एक निश्चित निर्धारित दर पर देय होते हैं किन्तु व्यवहार ( In Practice ) दोनों में निम्नलिखित अन्तर हैं


 1. मालगुजारी सरकार द्वारा लगाया गया कर है जो किसी अधिनियम में बने सिद्धान्त के अनुसार लगाया जाता है परन्तु लगान संविदानुसार होता है ।


 2. भूमिधर सरकार को मालगुजारी देते हैं , जबकि असामी अपने असफल काश्तकार ( क्षेत्रपति ) अथवा गाँव सभा को लगान देता है । 


3. लगान संविदा द्वारा तय की जाती है अत : संविदा के पक्षकारों द्वारा परिवर्तित भी की जा सकती है किन्तु मालगुजारी सरकार द्वारा निश्चित सिद्धान्त पर निर्धारित की जाती है जिसमें कोई परिवर्तन सरकार द्वारा हो सकता है न कि किसी पक्षकार द्वारा । 


       सूखा - बाढ़ या अन्य प्राकृतिक अथवा दैवीय आपदा की स्थिति में सरकार मालगुजारी पूर्णत : या अंशतः ; जैसे- आधी , चौथाई , तिहाई , माफ करने को घोषणा करती है लेकिन लगान माफ करना या करना काश्तकार के विवेक पर निर्भर करती है।





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