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राजस्व न्यायालय क्या होता है तथा भूराजस्व नियम 1901 में वर्णित रिवेन्यू बोर्ड की शक्तियों तथा कार्यों की व्याख्या कीजिए । ( Discuss the revenue courts in brief and explain the power and func o of bodrd of Revenue as discussed in Land Revenue Act , 1901. )

 राजस्व न्यायालय ( Revenue Court )

 राजस्व न्यायालय से तात्पर्य " ऐसे न्यायालय से है जिसे कृषि प्रयोजनार्थ उपयोग में लाई गई किसी भूमि के लगान , मालगुजारी या लाभ से सम्बन्धित किसी वाद या अन्य कार्यवाइयों को स्वीकार करने का क्षेत्राधिकार किसी प्रदेशीय अधिनियम के अंतर्गत हो , परन्तु  इसमें प्रारंभिक क्षेत्राधिक रखने वाले सिविल न्यायालय शामिल नहीं हैं । " 


रिवेन्यू बोर्ड ( Revenue Board ) 

      उ . प्र . में मालगुजारी से सम्बन्धित न्यायिक कार्यों की सबसे बड़ी सत्ता बोर्ड ऑफ रेवेन्यू  है । यह राजस्व का सर्वोपरि राजस्व न्यायालय है । रेवेन्यू बोर्ड के निर्णय हाई कोर्ट निर्णय की तरह सारे न्यायालयों पर बाध्यकारी है । रेवेन्यू बोर्ड के निर्णयों की अपील उत्तर   प्रदेश जमींदारी विनाश तथा भमि व्यवस्था अधिनियम एवं भूराजस्व अधिनियम के अन्तर्गत हाई कोर्ट को नहीं जाती है । रेवेन्यू बोर्ड अंतिम कोर्ट है लेकिन भारतीय संविधान अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत हाईकोर्ट को शक्ति दी गई है कि वह किसी भी न्यायालय खिलाफ रिट इत्यादि जारी कर सकता है । इसलिए हाई कोर्ट के समक्ष रेवेन्यू बोर्ड के मुकदमे संविधान के अनु . 226 के अंतर्गत लाए जाते हैं ।


 बोर्ड की नियन्त्रणकारी शक्तियाँ ( Controlling Powers of the Board ) - उत्तर प्रदेश  भूमि - विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1975 के लागू होने के पूर्व बन्दोबस्त ( settle को छोड़कर मालगुजारी से सम्बन्धित सभी न्यायिकेत्तर ( non - judicial ) मामलों के नियन्त्रित करने की शक्ति राज्य सरकार की थी और बन्दोबस्त तथा सभी न्यायिक मामलों में नियन्त्रण करने की शक्ति रेवेन्यू बोर्ड की ।राज्य सरकार ने इस नियन्त्रण शक्ति द्वारा रेवेन्यू मैन्युअल की संरचना की , और रेवेन्यू बोर्ड ने रेवेन्यू कोर्ट मैन्युअल की । इस प्रकार न्यायिक कार्य और बन्दोबस्त के मामले रेवेन्यू कोर्ट मैन्युअल में प्रदत्त प्रक्रिया प्रभावित होते थे तथा बन्दोबस्त के अलावा न्यायिकेत्तर कार्य रेवेन्यू मैन्युअल में प्रद प्रक्रिया से उ . प्र . भूमि - विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1975 ने पुरानी धारा 5 के पर नई धारा इस प्रकार रखी है 


       " राज्य सरकार के अधीक्षण , निदेश तथा नियन्त्रण के अधीन रहते हुए बोर्ड वादों अपीलों , अभिदेशों तथा पुनरीक्षणों के निस्तारण से सम्बद्ध विषयों को छोड़कर , अधिनियम के अधीन उपबन्धित अन्य विषयों के सम्बन्ध में मुख्य नियन्त्रक प्राधिकारी होगा । " 


             इस नई धारा का प्रभाव यह हुआ कि न्यायिक और न्यायिकेत्तर दोनों मामलों सम्बन्ध में रेवेन्यू बोर्ड मुख्य नियन्त्रक प्राधिकारी होगा । किन्तु वादों, अपीलों , निर्देशन और पुनरीक्षणों के निपटारे के मामले में मुख्य नियन्त्रक , प्राधिकारी नहीं होगा वरन् अधिनियम में वर्णित विधि द्वारा ही शासित होगा । रेवेन्यू बोर्ड के ऊपर राज्य सरकार अधीक्षण और नियन्त्रण रहेगा । 


          उपर्युक्त विभाजन के अधीन रहते हुए रेवेन्यू बोर्ड किसी न्यायिक मामले क निपटारा एकल सदस्य या बेंच द्वारा कर सकता है । रेवेन्यू के किसी सदस्य का आदेश डिक्री बोर्ड का आदेश या डिक्री मानी जाती है । उ . प्र . रेवेन्यू बोर्ड ( प्रक्रिया का विनियम ) अधिनियम , 1966 के लागू होने के पहले न्यायिक मामले में निचले न्यायालय की डिक्री या आदेश को बोर्ड के सदस्यों की परस्पर सहमति के बिना उलटा या बदला नहीं जा सकता था । इस प्रकार बोर्ड का एक सदस्य निचले न्यायालय के विरुद्ध दायर की गई अपील को तो खारिज कर सकता था , किन्तु उसे परिवर्तित या उलट नहीं सकता था । अब 1966 के इस अधिनियम के लागू होने के पश्चात् किसी न्यायिक मामले में यदि कोई डिक्री या आदेश रेवेन्यू बोर्ड के सम्मुख अपील , निर्देशक या पुनरीक्षण विचार के लिए आया है तो उसे बोर्ड के सदस्यों की परस्पर सहमति के बिना भी उलट या बदला जा सकता है । कोई सदस्य किसी मुकदमे की , यदि अकेले सुनवाई करता है , मे तो वह निचले न्यायालय के आदेश की पुष्टि कर अपील को खारिज कर उसे पलट सकता है , या उसे परिवर्तित कर सकता है ।


  जब मुकदमे की सुनवाई बेंच द्वारा , जिसमें दो या दो अधिक सदस्य बैठते हैं , होती  है तो मुकदमे का निर्णय बहुमत से किया जायगा । यदि बेंच के सदस्य फैसले की किसी बात पर बराबर - बराबर विभक्त ( equally divided ) हो जाते हैं तो मामला अन्य सदस्य ( एक या एक से अधिक ) के पास भेजा जायेगा । सुनवाई के बाद निर्णय बहुमत , पहले सदस्यों का मत और बाद वाले का मत शामिल किया जायेगा ।


रेवेन्यू बोर्ड के कार्य (Function of Revenue Board )

रेवेन्यू बोर्ड के कार्यों को हम सामान्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं (a)प्रशासनिक , और ( b ) न्यायिक । 


प्रशासनिक भाग में ऐसे कार्य आते हैं ; जैसे - बन्दोबस्त , भूमि अभिलेखों का रखरखाव मालगुजारी और अन्य देयों की वसूली , भूमि - अर्जन इत्यादि । इस प्रकार का कार्य लखनऊ में नियुक्त प्रशासनिक सदस्यों द्वारा किया जाता है और वे प्रशासनिक इस मामले में राज्य सरकार के अधीन होते हैं । जहाँ तक न्यायिक कार्यों की बात है उसे तीन भागों में बाँट सकते हैं : ( a ) अपीलीय , ( b ) निगरानी ( पुनरीक्षण ) , और पुनर्विलोकन।


 निगरानी ( रिवीजन ) की शक्ति :- ( धारा 219 ) : राजस्व अधिकारियों एवं राजस्व न्यायालयों के ऊपर रेवेन्यू बोर्ड को अधीक्षक और निर्देशक के रूप में रखा गया है । उत्तर प्रदेश  भू - राजस्व अधिनियम की धारा 219 बोर्ड को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह अधीनस्थ न्यायालय द्वारा निर्णीत किसी मामले के अभिलेख को माँग सकती है , और यदि यह प्रतीत हो कि : 


 ( a ) अधीनस्थ न्याथालयों ने ऐसे क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया है जो विधि द्वारा उसमें  निहित नहीं है , या 


( b ) अधीनस्थ न्यायालय इस प्रकार निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में असफल रहा है 


( c ) अधीनस्थ न्यायालय ने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में अवैध रूप से या सारवान् अनियमितता के साथ कार्य किया है , तो रेवेन्यू बोर्ड ऐसा आदेश दे सकती है , जो वह उचित समझे । " 


मुकदमे का अन्तरण ( Transfer ) ( धारा 191 ) :- इस अधिनियम के अन्तर्गत उठने वाले किसी मुकदमे या कार्यवाही की , जिसमें बँटवारे का मुकदमा भी शामिल है , किसी अधिनस्थ राजस्व न्यायालय या राजस्व अधिकारी के यहाँ से किसी अन्य ऐसे न्यायालय अधिकारी को अन्तरित किया जा सकता है जो उसका निपटारा करने में सक्षम हो । 


पुनर्विलोकन ( रिव्यू ) की शक्ति ( धारा 220 ) : - विधि का यह सुस्थापित सिद्धान्त प्रत्येक न्यायालय को अन्तर्विष्ट क्षेत्राधिकार होता है कि वह अपनी किसी गलती को दुरुस्त कर ले । वह शक्ति एक विधि - सूत्र पर आधारित है कि कोई भी पक्षकार न्यायालय  या न्यायाधिकार की गलती के परिणाम का शिकार न बने । किन्तु भूमि विधि में इस सिद्धान्त को सीमित रूप में ही लागू किया गया है । उ . प्र . भू - राजस्व अधिनियम अर्गत केवल रेवेन्यू बोर्ड को ही यह शक्ति है कि वह अपने आदेश या निर्णय का पुनर्विलोकन कर सके । अन्य राजस्व न्यायालय या राजस्व अधिकारी को पुनर्विलोकन की शक्ति प्रदान नहीं की गई है ।




बोर्ड की नियम बनाने की शक्ति : ( धारा 234 ) 

 उ . प्र . भूमि - विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1975 द्वारा रेवेन्यू बोर्ड की नियम बनाने की शक्ति में वृद्धि कर दी गई है । संशोधित धारा 234 इस प्रकार है 


( 1 ) बोर्ड राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति से निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के सम्बन्ध में इस अधिनियम से संगत नियम बना सकता है , अर्थात् 

( क ) तहसीलदारों तथा नायब तहसीलदारों के कर्त्तव्यों को नियम करना और  उनकी तैनाती तथा स्थानान्तरण और अस्थायी रिक्तियों में उनकी नियुक्ति को विनियमित करना ; 


( ख ) इस अधिनियम के अधीन बनाये या रखे गये अधिकार अभिलेखों तथा अन्य अभिलेखों , नक्शों , खसरों , रजिस्टरों तथा सूचियों के प्रपत्र , उनकी अन्तर्वस्तुएँ उन्हें  तैयार करने , अनुप्रमाणित करने तथा अनुरक्षित करने की रीति नियत करना तथा उस भूमि के , यदि कोई हो , प्रकार को नियत करना जिसके सम्बन्ध में धारा 32 के अधीन ऐसा  अभिलेख तैयार करने का आवश्यकता न हो ; 


( ग ) उत्तराधिकार तथा अन्तरणों को अधिसूचित न करने पर धारा 38 के अधी जुर्मान का आरोपण विनियमित करना ; 


( घ ) उन खर्चों को विनियमित करना जो इस अधिनियम के अधीन किस कार्यवाही में या उसके सम्बन्ध में वसूल किये जा सकते हों ;  


( ङ ) किसी ऐसी अधिकारी ( या अन्य व्यक्ति ) द्वारा , जिसमें इस अधिनियम अधीन किसी वाद या कार्यवाही में इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अधीन कार्यवाही करने की अपेक्षा की जाय या जो ऐसा करने के लिए अधिकृत हो , अनुसरि की जाने वाली प्रक्रिया को विनियमित करना ;


( च ) इस अधिनियम के अधीन किसी वाद या कार्यवाही में सभी व्यक्तियों प्रदर्शन के लिए और ऐसे वाद या कार्यवाही के सम्बन्ध में इस अधिनियम के उपबन्धों कार्यान्वित करने के लिए नियम बनाना ;


 ( छ ) राजस्व न्यायालय में याचिका - लेखकों के रूप में कार्य करने के लिए • व्यक्तियों को लाइसेंस जारी करने , ऐसे व्यक्तियों के कार्य संचालन तथा उनके द्वारा लिये जाने वाले शुल्कों के मान को विनियमित करना तथा लाइसेंस की ऐसी शर्तो था निबन्धनों का उल्लंघन करने के लिए लाइसेंस रद्द करना । 



 ( 2 ) उपधारा ( 1 ) किसी बात के होते हुए भी , इस धारा के अधीन राज्य सरकार रेवेन्यू बोर्ड द्वारा बनाये गये समस्त नियम , जो उत्तर प्रदेश भूमि - विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1975 के प्रारम्भ होने की दिनांक के ठीक पूर्व विद्यमान थे और ऐसे दिनांक  को प्रवृत्त थे , बने रहेंगे जब तक कि वे किसी प्राधिकारी द्वारा निरस्त , संशोधित परिवर्तित न कर दिये जायें । 


    
                ऐसे सभी मामले , जो मूल अधिनियम की धारा 218 के अधीन , जैसा कि वह उत्तर प्रदेश भूमि विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1975 के प्राराम्भ होने की दिनांक के ठीक पूर्व विद्यमान थे , राज्य सरकार को अभिदिष्ट किये गये हो तथा ऐसे सभी पुनरीक्षण , जो धारा  219 के अधीन , जैसा कि उत्तर प्रदेश भूमि विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1975 के प्रारम्भ होने की दिनांक से ठीक पूर्व विद्यमान थी , राज्य सरकार के समक्ष दाखिल किये गये हो, और उक्त दिनांक को राज्य सरकार के समक्ष विचारधीन हों , किसी न्यायालय या  प्राधिकारी के किसी निर्णय , डिक्री या आदेश में किसी बात के होते हुए भी बोर्ड की अन्तरित हो जायेंगे और बोर्ड द्वारा निर्णीत किये जायेंगे तथा बोर्ड का निर्णय अन्तिम  होगा । 


कमिश्नरः -वर्तमान में उत्तर प्रदेश 18 कमिश्नरियों ( मण्डलों ) में बटा हुआ है । प्रत्येक कमिश्नरी में एक आयुक्त ( कमिश्नर ) होता है । कमिश्नर की नियुक्ति राज्य सरकार करती है । कमिश्नर अपने क्षेत्र में इस भू - राजस्व अधिनियम और तत्समय प्रचलित किसी अन्य विधि के अन्तर्गत कमिश्नर को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग या कमिश्नर पर आरोपित कर्तव्यों का पालन करेगा और अपने क्षेत्र ( डिवीजन ) में समस्त राजस्व अधिकारियों के ऊपर प्राधिकार का प्रयोग करेगा । 


कमिश्नर राजस्व न्यायालय है और साथ - साथ राजस्व अधिकारी भी । कमिश्नर के पास केवल अपील के ही मामले आते हैं । उसके पास प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार नहीं है ।


शक्तियाँ तथा कर्तव्यः- कमिश्नर की शक्तियाँ निम्नलिखित हैं

 ( 1 ) अपने कर्तव्य और शक्तियों की अतिरिक्त कमिश्नर को सुपुर्द करना धारा 131 


( 2 ) किसी भी न्यायिक या गैर - न्यायिक मुकदमे या कार्यवाही का अन्तरण करना  ( transfer ) -धारा 19।


 ( 3 ) मुकदमों का एकीकारण का आदेश देना  धारा 192(क)


( 4 ) साक्ष्य देने तथा कांगजात पेश करने के लिए व्यक्तियों को बुलाना (सम्मन करना ) धारा 193 । 

 ( 5 ) जब कोई व्यक्ति साक्ष्य  न दे या  कागजात न पेश करे तो उसके ऊपर सिविल न्यायालय की शक्तियों का इस्तेमाल किया जा सकता है , अर्थात् उसकी सम्पत्ति की कुर्की की जा सकती है और गिरफ्तारी का वारण्ट उसके विरुद्ध जारी किया जा सकता है धारा 194 ।

( 6 ) मुकदमे को सारत: जो प्रभावित न करे ऐसी आकस्मिक गलतियों या चूकों को दुरुस्त करना- धारा 202

 ( 7 ) पंचनिर्णय के लिए विवाद को भेजना- धारा 203।


 ( 8 ) कलेक्टर  , सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणी या सहायक कलेक्टर परगनाधिकारी के आदेश के विरुद्ध अपील को सुनना धारा 210 ।



 अपने अधीनस्थ अधिकारी द्वारा किये गये निर्णय को या की गई कार्यवाही को मँगाना और उसकी जाँच करना- धारा 218 ।


 अतिरिक्त कमिश्नर : -राज्य सरकार किसी कमिश्नरी में या दो या दो से अधिक कमिश्नरियों में संयुक्त रूप से अतिरिक्त कमिश्नर की नियुक्ति कर सकती है । एक अतिरिक्त कमिश्नर राज्य सरकार के प्रसाद काल तक पद धारण करेगा । 


        अतिरिक्त कमिश्नर मामलों में कमिश्नर की ऐसी शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करेगा जैसा कि राज्य सरकार निदेश दे , या राज्य सरकार के निदेश के अभाव में सम्बन्धित कमिश्नर जैसा कि निदेश दे । जब वह उपर्युक्त किन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर रहा है यह किन्हीं कर्त्तव्यों का पालन कर रहा है , तो यह अधिनियम तथा अन्य विधि , जो कमिश्नर पर लागू होती है , अतिरिक्त कमिश्नर पर भी इस प्रकार लागू होगी मानों वह क्षेत्र का कमिश्नर हो । 


अतिरिक्त कमिश्नर अधिकांशतः- कमिश्नर के न्यायिक कार्यों का निपटारा करता है ।


 कलेक्टर उत्तर प्रदेश कमिश्नरियों में विभाजित है और प्रत्येक कमिश्नरी जिलों में इस प्रकार उत्तर प्रदेश में 18 कमिश्नरियाँ और 75 जिले हैं । प्रत्येक जिले  में राज्य सरकार एक कलेक्टर की नियुक्ति करती है । कलेक्टर सम्पूर्ण जिले में ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो भू - राजस्व अधिनियम या तत्समय प्रचलित किसी अन्य विधि द्वारा उस पर प्रदत्त हैं या आरोपित हैं ।


 कलेक्टर न केवल कलेक्टर को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर सकता है बल्कि सहायक कलेक्टर को दी गई सभी या किसी शक्ति का भी प्रयोग कर सकता है । 


अतिरिक्त कलेक्टर अतिरिक्त कलेक्टर की हैसियत ( states ) जिले में वैसी हो है जिसी कमिश्नरियों में अतिरिक्त कमिश्नर की । अतिरिक्त कलेक्टर भूराजस्व अधिनियम की धारा 14 - क की उपधारणा के अंतर्गत कलेक्टर की शक्तियों तथा अधिकारों का प्रयोग करता है । यह विचार माननीय हाई कोई इलाहाबाद की पूर्ण पीठ ने ब्रहम सिंह एवं बनाम बोर्ड ऑफ निवेन्यू की याचिका निर्णीत करते हुए दिया । 

सहायक कलेक्टर :- राज्य सरकार प्रत्येक जिले में जितनी संख्या में जरूरी समझे , सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणा एवं सहायक कलेक्टर द्वितीय श्रेणी की नियुक्ति कर  सकती है । ऐसे सभी कलेक्टर एवं जिले के सभी राजस्व अधिकारीगण कलेक्टर के अन्तर्गत होते हैं ।

 परगना सहायक कलेक्टर ;- एक जिला कई तहसीलों में विभाजित होता है । प्रत्येक तहसील के सब - डिवीजन या उपखंड कहते हैं । प्रत्येक सब डिवीजन एक सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणी के चार्ज में होता है एवं ऐसे व्यक्ति को परगनाधिकारी सहायक कलेक्टर कहते हैं । जिले की तहसील का प्रत्येक राजस्व अधिकारी कलेक्टर के सामान्य नियन्त्रण में होते हुए परगनाधिकारी सहायक कलेक्टर के अधीन होगा । 


 अतिरिक्त परगनाधिकारी :- राज्य सरकार जिले के एक तहसील  या कई तहसीलों  में अतिरिक्त परगनाधिकारी के रूप में नियुक्ति के लिए किसी सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणी को मनोनीत कर सकती है । वह मामलों के कुछ वर्गों में परगनाअधिकारी सहायक सरकार निर्दिष्ट करे । 


 वह प्रवृत्त शक्तियों का प्रयोग कर रहा है या उस पर आरोपित कर्तव्यों का पालन कर रहा है तो उस पर इस अधिनियम के उपबंध एवं तत्समय प्रचलित अन्य विधि के उपबंध , जो परगनाधिकारी पर लागू होते हैं इस प्रकार लागू होंगे मानों कि वह एक परगनाधिकारी हो । 

तहसीलदार एवं नायब तहसीलदार तहसीलदार तहसील का भार ग्रहण करता है । वह परगनाधिकारी सहायक कलेक्टर के नियंत्रण में कार्य करता है तथा उसकी मदद के लिए नायब तहसीलदार होते हैं । तहसीलदार अब पदेन सहायक कलक्टर द्वितीय श्रेणी के बना दिए गए हैं । भूराजस्व अधिनियम की धारा 224 राज्य सरकार को शक्ति प्रदान करती है कि वह किसी भी तहसीलदार को सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणी की या द्वितीय श्रेणी की सभी या कुछ शक्तियों को सुपुर्द कर दे । इसी तरह से राज्य सरकार किसी भी नायब तहसीलदार को तहलीलदार के अधिकार या सहायक कलेक्टर द्वितीय श्रेणी के अधिकार दे सकती है ।


      लेखपाल जिले का सबसे बड़ा राजस्वाधिकारी कलेक्टर होता है वह जिला के गाँवों को लेखपाल के हलकों में बाँटता है । जिले में लेखपाल कितने होंगे , उनकी संख्या राज्य सरकार निर्धारित करेगी । परगनाधिकारी सहायक कलेक्टर को यह अधिकार है कि वह लेखपाल का नियुक्ति प्राधिकारी होने के कारण लेखपाल को एक हलके से दूसरे हलके में अपने तहसील क्षेत्र में स्थानांतरण कर दे । 

लेखपाल के प्रमुख कर्तव्य हैं :- 

( a ) तहसील में उपस्थिति , 

( b ) रजिष्ट्रार कानूनगो को सूचित करना ,

 ( c ) विपत्ति की सूचना , 

( d ) सुपरवाइजर कानूनगो की रिपोर्ट ,


 ( c ) अभिलेख को देखना एवं उद्धरण लेना , 

( 1 ) भूमि प्रबंधक समिति के मंत्री के कार्य करना । 


कानूनगो राजस्व अभिलेखों के समुचित पर्यवेक्षण , रखरखाव एवं दुरुस्ती करने के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए जिन्हें राज्य सरकार समय - समय पर निर्धारित करे प्रत्येक जिल में राज्य सरकार नियुक्त करेगी । कानूनगों तीन प्रकार के होते हैं : 


 ( i ) रजिस्ट्रार कानूनगो : रजिस्ट्रार कानूनगो की नियुक्ति करता है एवं वह तहसील मुख्यालय पर रहता है । प्रत्येक तहसील में एक रजिस्ट्रार कानूनगा होता है । रजिस्ट्रार कानूनगो का प्रमुख कार्य है - तहसील के सभी रिकॉर्डस का अभिरक्षण एवं लेखपालों के वेतन एवं अन्य भत्तों का हिसाब - किताब रखना ।


 ( II ) सुपरवाइजर कानूनगो : सुपरवाइजर कानूनगो का महत्व राजस्व विभाग में तीनों तरह के कानूनगों में अधिक है । इसकी नियुक्ति कलेक्टर द्वारा होती है । 


( iii ) सदर कानूनगो : सदर कानूनगों की नियुक्ति रिवेन्यू बोर्ड के द्वारा की है । सुपरवाइजर कानूनगो या रजिस्ट्रार कानूनगो की प्रोन्नति कर इस पद पर नियुक्ति की जाती है । 



    

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