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विदेशों में भारतीय कानून: IPC, UAPA, और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत भारतीय अधिकार क्षेत्र की समझ

भूमि बन्दोबस्त अधिकारी के कर्तव्य एवं अधिकार क्या होतें हैं?(what is the power and function of settlement office )

भूमि बंदोबस्त  अधिकारी के कर्तव्यों एवं अधिकार ( Power and Functions of Settlement Officer ) 

अधिनियम की धारा -225 के अन्तर्गत राज्य सरकार किसी जिले या उसके भाग के बंदोबस्त  का भार ग्रहण करने के लिए एक बन्दोबस्त अधिकारी तथा उतने  सहायक बंदोबस्त  अधिकारी , जितने कि वह उचित समझे , नियुक्त कर सकती है और जब तक उक्त जिला या उसका भाग बन्दोबस्त कार्रवाई के अधीन रहेगा तब तक ऐसा अधिकारी उन अधिकारों का प्रयोग करेंगे जो उन्हें इस अधिनियम के द्वारा दिये गये हैं । नियुक्ति का क्या ढंग होगा , इसके बारे में सरकार ही  निर्णय करने में सक्षम तथा उपर्युक्त अथोरिटी है । नियुक्ति प्रोमोशन से अथवा सीधे - सीधे की जा सकती है । कितनी संख्या में अधिकारी वांछित हैं , उसे भी राज्य सरकार ही निर्णीत करेगी । 


     सभी अधीनस्थ अधिकारी तथा कर्मचारी बन्दोबस्त अधिकारी के नियन्त्रण तथा निर्देश में कार्य करेंगे । सामान्यता कलेक्टर को ही बन्दोबस्त अधिकारी बना दिया जाता है , यही व्यावहारिक भी प्रतीत होता है । 


   अधिनियम की धारा -256 के अन्तर्गत , कोई जिला या उसका भाग बन्दोबस्त कार्रवाई के अधीन हो जाने पर राज्य सरकार गजट में विज्ञप्ति के द्वारा बन्दोबस्त अधिकारी को नक्शा और खसरा के रखने और वार्षिक रजिस्टरों की तैयारी के कर्तव्य संक्रामित ( transfer ) कर सकती है और ऐसा होने पर बन्दोबस्त अधिकारी को वे सब अधिकार मिल जायेंगे जो यू . पी . लैण्ड रिवेन्यू एक्ट , 1901 के तृतीय अध्याय में कलेक्टर को दिये गये हैं । 

( धारा 256 ) 


प्रक्रिया ( Procedure ) - मालगुजारी के बन्दोबस्त में निम्न प्रक्रिया को अपनाया जाता है 

 अधिनियम की धारा -260 के अनुसार , किसी जिला या उसके भाग के बन्दोबस्त कार्यवाई के अधीन आ जाने पर बन्दोबस्त अधिकारी या सहायक बन्दोबस्त अधिकारी बन्दोबस्त कार्यवाई के अधीन प्रत्येक गाँव का निरीक्षण करेगा और ऐसी रीति से ऐसे सिद्धान्तों पर , जो नियत किये जायें , उस जिले या भाग को भूमि श्रेणियों और निर्धारण मण्डलों में बाँट देगा । 


      अधिनियम की धारा -261 के अनुसार , बन्दोबस्त अधिकारी ऐसी सभी भूमियाँ के विषय में जो किसी प्रतिबन्ध के और साथ किसी विशेष अवधि के लिए मालगुजारी के . मुक्त कर दी गयी हों , जाँच करेगा और यदि उसे यह ज्ञात हो कि प्रतिबन्धों का उल्लंघन हुआ है अथवा अवधि समाप्त हो गयी है , तो वह ऐसा सब भूमियों पर  मालगुजारी का निर्धारण कर देगा ।



अधिनियम की धारा 262 के अनुसार ( 1 ) यदि किसी ऐसी भूमि के विषय में जो मालगुजारी से मुक्त न अभिलिखित हो , कोई यह दावा करे कि वह मालगुजारी से मुक्त है , तो उसे ऐसी भूमि का अपने अधिकार में मालगुजारी से मुक्त रखने का आगम सिद्ध करना पड़ेगा ।


      ( 2 ) यदि वह अपने आगम ( title ) को सिद्ध कर ले और उससे बन्दोबस्त अधिकारी को सन्तोष हो जाय तो यह मामला राज्य सरकार की प्रसूचित कर दिया जायेगा और इस सम्बन्ध में सरकार जो आज्ञा देगी वह अन्तिम होगी । 


( 3 ) यदि आगम इस प्रकार सिद्ध न हो तो बन्दोबस्त अधिकारी उस भूमि पर मालगुजारी निर्धारण की कार्रवाई करेगा और उस भूमि के अधिकारी व्यक्ति के साथ उसका बन्दोबस्त करेगा । 


अधिनियम की धारा 263 के अनुसार भूमि जिस पर साधारणतया मालगुजारी निर्धारित की जायेगी , ऐसी भूमि को छोड़कर जिसके विषय में इस धारा में आगे अपवाद दिया गया है , गाँव के भूमिधरों के अभिलेख ( Record ) वर्ष वाली सभी भूमि - धृतियों की संकलित ( Aggregate ) भूमि होगी । इस अपवाद निम्नलिखित हैं 


( क ) ऐसी भूमि जिस पर इस प्रकार की इमारतें हों जो उन्नति न समझी जाएँ ,

 ( ख ) खलिहान , 

( ग ) कब्रिस्तान और श्मशान भूमि , और 

( घ ) ऐसी भूमि जो नियत की जायें । 


अधिनियम की धारा -164 के अनुसार , बन्दोबस्त अधिकारी सर्वप्रथम जोत की अनुमानित औसत बचत उपज ( surplus produce ) निकालेंगे । यह औसत बचत खेती के साधारण खर्च को घटाने के पश्चात् ऐसी रीति से निर्धारित की जायेगी , जैसा कि . नियत किया गया हो । इसी औसत बचत का वह प्रतिशत देय मालगुजारी होगा , जो राज्य विधान - मण्डल द्वारा प्रस्ताव पास करके निश्चित किया जायेगा । राज्य सरकार द्वारा अनुसार उपज की बचत पर मालगुजारी का प्रतिशत परिवर्तित होता रहेगा । वह उपज की सबसे अधिक बचत वाली जोतों पर सबसे अधिक होगी और कम बचत वाली जोतों पर सबसे कम ।


उत्तर प्रदेश भूमि विधि ( संशोधन ) अधिनियम , 1976 द्वारा बन्दोबस्त विधि में परिवर्तन - 

उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम , 1950 द्वारा यह गारण्टी दी गई थी कि अधिनियम की लागू होने के 10 वर्ष के पहले भूमि का बन्दोबस्त  नहीं किया जायेगा और नये बन्दोबस्त के बगैर पूरा हुए भूमिधरों और सीरदारों की मालगुजारी बढाई जा सकेगी ।


       1976 के संशोधन अधिनियम द्वारा दोनों गारण्टियों को समाप्त कर दिया गया है  और अब यह व्यवस्था की गई है कि अधिनियम के लागू होने के 20 वर्ष के पश्चात् किसी भी समय बन्दोबस्त किया जा सकता है और धारा 246 के अन्तर्गत एक अस्थायी विवरण - पत्र तैयार करवाकर मलगुजारी का निर्धारण किया जायेगा । मालगुजारी  भौमिक अधिकारों पर आधारित न होकर भूमि की श्रेणी , सिंचित या असिंचित होने के आधार पर निर्धारित होगी चूंकि संचित भूमिधर उपज सम्पदा होती है , इसलिए स्वाभाविक है कि उसकी मालगुजारी असिंचित क्षेत्र की तुलना में अधिक आँकी जायेगी क्योंकि असिंचित भू - भागों पर उपज तुलनात्मक रूप से कम ही होती है । 



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