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दलित व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अमानवीय घटना कारित करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें ?

सीमा चिन्ह (Boundary marks) क्या होते हैं ?इनका निर्माण किस प्रकार किया जाता है?

 सीमा चिह्न ( Boundary Marks )


 भूमि रिकार्ड्स मैनुअल के पैरा 587 के अनुसार सीमा चिह्न के अन्तर्गत प्रत्येक ऐसा स्थायी चिह्न शामिल है जो किसी गाँव या खेत की सीमा का द्योतक है जो चाहे ऐसा चिह्न सर्वे के दौरान बनाया गया हो या विवादिता सीमा को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया हो । इस प्रकार किसी गाँव या खेत की सीमा को दर्शित या सुनिश्चित करने वाला प्रत्येक चिह्न सीमा चिह्न कहलाता है । 

     भूमि से सम्बन्धित अभिलेख को तैयार करने तथा रख - रखाव के लिए सीमा चिह्नों का होना जरूरी होता है कोई क्षेत्र जब अभिलेख प्रवर्तन में होता है तो अभिलेख अधिकारी घोषणा के द्वारा सभी ग्राम सभाओं में तथा भूमि मालिकों को निर्देश देते हैं कि पन्द्रह दिनों के अंतर्गत सीमा चिह्नों को बना लें । अगर वे निर्देश का पालन करने में चूकते हैं तो अभिलेख ऑफीसर सीमा चिह्नों का निर्माण तथा स्थापना कर देगा तथा कलेक्टर उन खर्चों को धारा 50 के अनुसार तत्सम्बन्धित ग्राम पंचायतों अथवा जोतदारों से वसूल करेगा । 



    प्रत्येक जोतदार का यह अपना कर्त्तव्य होता है कि वह अपनी जोतों पर वैध रूप से निर्मित स्थाई सीमा चिह्न की देखभाल तथा रख - रखाव करे तथा अपने निजी खर्चे से उसकी मरम्मत करवाए । यह कर्त्तव्य ग्राम पंचायत पर भी आरोपित है कि वह अपने क्षेत्राधिकार में बसे गाँव पर वैध तरीके से बनाए गए स्थाई सीमा चिन्हों  को रख - रखाव करे तथा अपने निजी खर्चे पर उसकी मरम्मत कराए । 

सीमा चिह्नों का निर्माण ( Making of Boundary Marks )

 अधिनियम की धारा -50 और धारा -29 ( 3 ) के अन्तर्गत , सीमा चिह्न साधारणतया अभिलेख कार्रवाई के दौरान बनाए जाते हैं जैसा कि अधिनियम की धारा 50 उपबन्ध करती है कि जब कोई स्थानीय क्षेत्र सर्वेक्षण संक्रियाओं के अन्तर्गत हो , अभिलेख अधिकारी एक उद्घोषणा , जो सभी ग्राम सभाओं और भूमिधरों को 15 दिनों के भीतर ऐसे सीमा चिह्न निर्धारित करने के लिए , जैसा कि वह गाँवों और खेतों की सीमाओं को परिभाषित करने कि लिए आवश्यक समझे , निर्माण करने के लिए , जारी कर सकता है । और कलेक्टर उनके निर्माण का व्यय , सम्बन्धित ग्राम सभाओं या भूमिधरों से वसूल करेगा । 


    अधिनियम की धारा 29 ( 3 ) कलेक्टर की सीमा निर्माण करने का आदेश देने की शक्ति प्रदान करती है । धारा 29 ( 3 ) इस प्रकार है कि कलेक्टर किसी भी समय , ग्राम सभा या खातेदार को जैसी स्थिति हो , आदेश दे सकता है , कि- ( क ) वह ऐसे गाँवों तथा खेतों पर सीमा चिह्न बनाये ; ( ख ) वह उन पर विधिपूर्वक बनाये गये सभी सीमा - चिह्नों को ऐसे रूप में या तरीके से जैसा कि विहित किया जाये , मरम्मत कराये या पुनः बनाये । 



             अधिनियम की धारा 34 ( 5 ) द्वारा लगाया गया प्रतिबन्ध केवल राजस्व न्यायालयों पर लागू होता है अर्थात् सिविल न्यायालय में धारा 34 ( 1 ) के अधीन बिना रिपोर्ट किए ही वाद दायर किया जा सकता है ।


       इसी प्रकार अधिनियम की धारा -34 ( 5 ) के अनुसार , अतिचारी के विरुद्ध बेदखली का वाद दायर करने से वर्जित नहीं करती । चकबन्दी न्यायालयों में भी धारा 34 ( 1 ) के अधीन रिपोर्ट किए बिना ही वाद दायर किया जा सकता है क्योंकि चकबन्दी न्यायालय राजस्व न्यायालय नहीं है । 


        अगर अधिनियम की धारा 34 ( 1 ) के अधीन दी गई रिपोर्ट तहसीलदार द्वारा खारिज कर दी गई है तो भी वाद फाइल किया जा सकता है । धारा 34 ( 1 ) के अधीन वाद फाइल करने के पूर्व रिपोर्ट भी तहसीलदार को दी जा सकती है क्योंकि दाखिल खारिज का आदेश पारित होना वाद फाइल करने की पूर्व शर्त नहीं है । 


 कलेक्टर , सहायक कलेक्टर , बन्दोबस्त अधिकारी , सहायक बन्दोबस्त अधिकारी , अभिलेख अधिकारी , सहायक अभिलेखके अतिरिक्त राजस्व अधिकारी की परिभाषा में नायब तहसीलदार , सुपरवाइजर कानूनगो अधिकारी और तहसीलदार इन अधिकारियों एवं लेखपाल भी शामिल हैं । 


   उपर्युक्त परिभाषाओं को देखने से यह प्रकट है कि कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जो राजस्व न्यायालय हैं और राजस्व अधिकारी भी । जब कोई अधिकार न्यायिक मामलों की सुनवाई करता है तो वह राजस्व न्यायालय होता है और रेवेन्यू बोर्ड के नियन्त्रण में रहता है । किन्तु जब वह न्यायिकेतर ( non - judicial ) मामलों से संव्यवहार करता है तो उसे राजस्व अधिकारी कहते हैं और वह राज्य सरकार के नियन्त्रण में कार्य करता है । इस प्रकार राजस्व प्रशासन के कार्यों को दो भागों में बाँट सकते हैं - न्यायिक और न्यायिकेतर ( non - judicial ) । 


       राज्य सरकार ने न्यायिक कार्य क्या है और न्यायिकेतर कार्य कौन - कौन से हैं , यह अधिनियम में नहीं बताया गया है । उ . प्र . भू - राजस्व अधिनियम की धारा 234 ( ग ) राज्य सरकार को शक्ति प्रदान करती है कि राज्य सरकार नियम द्वारा यह निश्चय कर सकती है कि क्या कार्य न्यायिक है और क्या न्यायिकेतर । इस शक्ति का लाभ उठा कर रेवेन्यू मैन्युअल के अनुच्छेद 911 द्वारा यह बताया है कि ये कार्य न्यायिक हैं


 1. धारा 35 या 40 के अन्तर्गत दाखिल - खारिज 


2. धारा 41 और 42 से सम्बन्धित सीमा विवाद का निपटारा ।

 3. धारा 39 , 40 , 42 , 43 और 54 के अन्तर्गत अधिकार अभिलेख के इन्दराजों के विवादग्रस्त मामले । 

4. धारा 28 के अन्तर्गत नक्शा और खसरा में गलती दुरुस्ती । 

5.बकाया माल गुजारी की भाँति अन्य देयों की वसूली ।
              

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