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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

मुस्लिम विधि में हिबा बिल एवज और हिबा ब शर्त उल एवज क्या होता है?

 हिबा- बिल- एवज ( Hiba - bil - Iwaz ) हिबा का दान और एवज का अर्थ है प्रतिकर या बदले में । ' हिबा - बिल एवज का अर्थ है प्रतिकर के बदले में दान तथा वस्तुतः पहले से ही प्रतिकर के बदले में दान । जब कोई व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का अन्तरण किसी अन्य सम्पत्ति या वस्तु के एवज में करता है तो संव्यवहार हिबा बिल - एवज कहलाता है । किन्तु बिना प्रतिफल के सम्पत्ति के अन्तरण को हिबा या दान कहा जाता है । अतएव हिबा - बिल - एवज दान की शर्तों को पूरा नहीं करता । फिर भी इसे हिबा इसलिए मानते हैं कि आरम्भ में यह प्रतिकर हिबा नहीं होता है बल्कि दो व्यक्तियों के बीच पारस्परिक दोनों से संगठित एक व्यवहार को यह नाम दे दिया गया था । हिबा - बिल - एवज में एक दानदाता की ओर से दानग्रहीता को और दूसरा दान ग्रहीता की ओर से दाता को किया जाता है । यह कुछ अर्थों में विक्रय से मिलता - जुलता है जिसके निम्न कारण हैं 

( अ ) इसके आधिपत्य दिये बिना ही पूर्ण मान लिया जाता है ।

 ( ब ) ऐसे दान में वही प्रभाव होते हैं जो विक्रय के होते हैं । 

हिबा - बिल - एवज के लिए निम्नलिखित उपेक्षाएँ हैं -

 ( 1 ) दान ग्रहीता द्वारा उस दान का प्रतिपादन ( Return ) या एवज दिया जाना ।

 ( 2 ) दाता ( Donor ) का उद्देश्य यह है कि वह अपनी सम्पत्ति के स्वामित्व से मुक्त होना चाहता है और उसको दान ग्रहीता को प्रदान करना चाहता है । 

उदाहरण के लिए ' अ ' ने अपने - अपने घोड़े का दान ' ब ' को दिया और बाद में ' ब ' ने अपने ऊंट का दान ‘ अ ’ को दिया । यदि ' ब ' यह कहे कि उसने ' अ ' का ऊंट सिर्फ ' अ ' द्वारा घोड़ा दिये जाने के बदले दिया था तो उक्त दान शून्य ( Void ) हो जायेगा । 


रहीम वक्श बनाम मुहम्मद ' के वाद में न्यायाधीश महमूद ने यह व्यवस्था दी है कि " The Rundament D conception of a Hiba - bil - Iwaz in Mohammedan Law is that it is a Transaction made of two separate acts of donation that it is a transaction made up of mutal or reciprocal gifts between two person all each of whom is alternately the donor at one gift and the donce of the other . " 


      इस्माइल बीवी बनाम सुलायकल बीबी ' के वाद में एक हिबा नामा इस प्रतिफल के साथ लिखा गया कि दान ग्रहीता दान की सम्पत्ति पर भारित ऋण का भुगतान करेगी और दाता के पुत्र के साथ विवाह करने के पश्चात् सम्पत्ति की हकदार होगी । निर्णय हुआ कि यह दान हिवा - बिल - एवज है । जिसमें दाता के पुत्र से विवाह करना प्रतिफल है । ऐसे मामलों में कब्जे का अन्तरण न होने पर भी हिबा मान्य होगा और दानग्रहीता सम्पत्ति का हकदार होगा । 


इस सम्बन्ध में विभिन्न उच्च न्यायालयों जैसे कलकत्ता , मद्रास , इलाहाबाद और लाहौर इत्यादि का यह मत है कि ऐसे , संव्यवहार विक्रय ( sale ) की श्रेणी में आते हैं । यदि कोई अचल सम्पत्ति विषय - वस्तु है और वह 100 रु . या उससे अधिक मूल्य की है तो उसका सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 54 के अनुसार पंजीकरण भी होना चाहिए । 


मेहर ऋण के एवज में हिबा शेख गुलाम अब्बास बनाम मुसम्मात रजिया बेगम के वाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय को एक पूर्ण पीठ द्वारा यह धारण किया गया कि मेहर ऋण के एवज में जो 100 रुपये से ज्यादा का हो , कोई मुस्लिम पति दान के रूप में 100 रुपये से अधिक मूल्य की अचल सम्पत्ति अपनी पत्नी के पक्ष में मौखिक रूप से अन्तरित नहीं कर सकता है । ऐसा संव्यवहार न तो दान है और न दोनों का संयोग है , जो केवल रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज द्वारा किया जा सकता है । 


" एच . एम . मण्डल बनाम डी . आर . बीबी ' के वाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अवलोकन किया है कि मेहर के बदले में भूमि का अन्तरण हिबा - बिल - एवज होगा । 


हिवा - वा - शर्त उल - एवज ( Hiba - ba - shart ul - Iwaz ) - शर्त का अर्थ है - अनुबन्ध ' हिब - बा - शार्तुल - एवज ' का अर्थ हुआ अनुबन्ध के साथ किसी प्रतिफल के लिए किया गया हिबा । 

जब किसी शर्त के साथ दान दिया जाता है और वह किसी प्रतिफल के बदले में होता है तो उसे ' हिबा - बा - शर्त उल - एवज ' कहा जाता है । हिबा - बा - शर्त उस एवज में प्रतिफल का भुगतान स्थगित कर दिया जाता है । चूँकि प्रतिफल तत्काल नहीं दिया जाता , इसलिए कब्जे का परिदान आवश्यक होता है । ऐसे दान की शर्तें निर्धारित हो भी सकती हैं और नहीं भी हो सकतीं । 


वे सम्पत्तियाँ जो हिबा ( दान ) द्वारा दी जा सकती हैं वे सब एवज द्वारा भी दी जा सकती  हैं और ऐसा करने से एवज वाली सारी औपचारिकताएं पूरी होनी चाहिए । 


 आवश्यक तत्व - इसके निम्नलिखित आवश्यक तत्व होते हैं

 ( i ) एवज ( प्रतिदान ) दिये जाने पर यह अखण्डनीय हो जाता है । 

( ii ) हिब की भाँति इसमें कब्जे का अन्तरण होना अनिवार्य होता है । 

( iii ) जब तक एवज ( प्रतिदान ) नहीं दिया जाता इसे रद्द किया जा सकता है । 

( iv ) एवज ( प्रतिदान ) के भुगतान के पूर्ण होने पर वह विक्रय का रूप धारण कर लेता है । 

जब हिबा ( दान ) एक एवज ( प्रतिदान ) का संव्यवहार आधिपत्य का परिदान ( Delivery of possession ) करके पूरा हो जाय तो उनमें से किसी को खण्डित नहीं किया जा सकता । उदाहरण के लिए ' घ ' ने अपना मकान ' क ' को दान किया और कब्जा दे दिया । उसके बाद ' क ' ने अपनी कार ' घ ' को एवज में दे दी जिसे ' घ ' ने स्वीकार कर लिया । बाद में ' क ' ने उस मकान को ' ख ' को बेचना चाहा तो ऐसा विक्रय व्यर्थ होगा और शून्य माना जायेगा । 

ए . आई . आर . 1967 मद्रास 250 

ए.आइ.ई.आर 1942 इला 86

 ए . आई . आर 1971 कलकत्ता 162


 ( 1888 ) 11 All 15

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