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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

एकांतिक कब्जे एवं भूमि के उपयोग का अधिकार क्या होता है ?बेदखली एवं अधिवासी का अर्थ और भूमि को पट्टे पर उठाने के कौन कौन से नियम होते हैं?

एकांतिक कब्जे एवं भूमि के उपयोग का अधिकार (exclusive possession and rights of land use)


अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए आसामी को अपने खाते के अंतर्गत सभी भूमि पर एकांतिक कब्जे का अधिकार होगा और उसको यह भी अधिकार होगा कि वह कृषि ,  बागवानी या पशुपालन जिसके अधीन मत्स्य पालन और कुकुट पालन भी आता है से सम्बन्ध रखने वाले जिस प्रयोजन के लिये   भूमि का उपयोग करे। 


     इस प्रकार इस धारा के अधीन असामी अपने भूमि का उपयोग न केवल कृषि , बागवानी , पशुपालन , मत्स्य पालन एवं कुक्कुट पालन के लिय कर सकता है वरन् कृषि प्रयोजन से सम्बन्धित किसी भी कार्य के लिये कर सकता है । अर्थात् वह अपनी भूमि का उपयोग जानवर बाँधने , घूर लगाने , खाद एकत्र करने का गढ्ढा , चारा रखने , कोल्हू गाढने , हेतु कर सकता है । 

     यहाँ एक प्रश्न उत्पन्न हो सकता है कि यदि इस धारा के अधीन भूमिधर असामी को मात्र कृषि फसल उगने के लिये ही भूमि उठाता है और असामी उस भूमि का उपयोग या पशुपालन के लिये करता है तो क्या असामी के बेदखल किया जा सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक होगा क्योंकि धारा 146 के प्रावधान किसी संविदा से समाश्रित नहीं है । धारा 146 में वर्णित अधिकार विधान मण्डल द्वारा प्रदत्त हैं उन्हें संविदा द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता । 


      गाँव सभा बनाम डी . सी के मामले में गाँव सभा द्वारा एक व्यक्ति को धारा 132 के अधीन सिंघाड़ा उगाने के लिये ' तालाब ' का आवंटन किया गया था । उस व्यक्ति द्वारा सिंघाड़ा उगाने के बजाय मत्स्य पालन और धान की फसल उगाने हेतु उक्त ' तालाब ' का उपयोग किया जाने लगा । गाँव सभा द्वारा लाये गये बेदखली के वाद के उत्तर में न्यायालय ने निर्णीत किया कि ऐसा व्यक्ति धारा 132 के उपबन्धों के अधीन असामी कहा जायेगा और उसको गाँव सभा बेदखल नहीं कर सकती क्योंकि ऐसे उपयोग अधिनियम द्वारा परिदत्त किये गये हैं । लालबिहारी बनाम ग्राम सभा के वाद में तथ्य यह था कि ग्राम सभा के द्वारा जीउत नामक व्यक्ति को 1362 फसली में सिंघाड़ा उगाने हेतु पोखर की भूमि का असामी नियुक्त किया गया है । चकबन्दी की कार्रवाई जब प्रारम्भ हुई तो उस असामी ने सीरदारी अधिकार के लिये चकबन्दी विभाग में प्रार्थना पत्र दिया किन्तु चकबन्दी उपनिदेशक द्वारा उसे केवल असामी माना गया । बाद में लगान भुगतान न करने की दशा में गाँव सभा द्वारा धारा 202 के अन्तर्गत बेदखली की कार्रवाई की गयी । इस बीच जीउत के मरने पर लालबिहारी को आयुक्त द्वारा उसे पोखर पर असामी मान लिया गया था । आयुक्त के आदेश के विरुद्ध राजस्व परिषद् में द्वितीय अपील की गयी जिसे निरस्त कर दिया गया । न्यायालय ने यह संप्रेक्षित किया कि धारा 132 अधीन जो अधिकार असामी के रूप में प्रदान किया गया था वह उसके उत्तराधिकारी को ही प्राप्त होगा । 


 यह धारा एक प्रतिबन्ध भी अधिरोपित करती है कि कोई भूमि जिसके विषय में राज्य सरकार ने गजट में विज्ञप्ति द्वारा यह प्रख्यापित कर दिया हो कि उसमें टौन्गिया रीति  से वन लगाने का विचार है या उसके लिये अलग कर दी है । उसके असामी ऐसे उपयोग में नहीं लायी जायेगी जो खेती की फसल बोने के प्रयोजनों से भिन्न हो ।


धारा 146 के उल्लंघन के परिणाम- यदि कोई असामी द्वारा 146 के उपबन्धों का  उल्लंघन करता है तो ऐसे उल्लंघन के निलिखित परिणाम होंगे 

 ( 1 ) बेदखली (धारा 206 , 207 ) - कृषि , बागवानी या पशुपालन ( जिसके अधीन मत्स्य संवर्धन एवं कुक्कुट  पालन भी होता है ) से सम्बन्ध प्रयोजनों से भिन्न किसी प्रयोजन के लिये भूमि का उपयोग किये जाने के कारण असामी गाँवसभा या क्षेत्रपति के जैसी  भी दशा हो वाद पर दखल हो सकेगा और उसको ऐसी क्षतिपूर्ति भी देनी होगी , जो उस भूमि को उक्त प्रयोजनों के लिये फिर से उपयुक्त बनाने के लिये आवश्यक कार्यों पर होने वाले व्यय के बराबर हो । अगर असामी डिक्री की तारीख से ठीक बाद के तीन मास के भीतर क्षति को ठीक कर दे तो डिक्री वाद - व्यय के अतिरिक्त और किसी बात के लिये निष्पादित नहीं की जाएगी ।


 ( ii ) परित्याग ( धारा 186 ) - यदि कोई असामी अपना खाता लगाकर दो कृषि वर्षों तक कृषि , बागवानी या पशुपालन जिसके अन्तर्गत मत्स्य सम्वर्धन और कुक्कुट पालन भी है , से सम्बन्ध रखने वाली किसी प्रयोजन में न लाया हो , तो तहसीलदार गाँव सभा या क्षेत्रपति की प्रार्थना पर अथवा अन्य किसी प्रकार से तथ्यों की जानकारी होने पर ऐसा असामी हो , इस आशय की नोटिस जारी कर सकता है कि वह इस बात का कारण बताए कि उक्त खाता क्यों न परित्यक्त कर दिया गया ।


  यदि नोटिस मिलने पर असामी उपस्थित नहीं होता है अथवा उपस्थित होता है , सन्तोषजनक उत्तर नहीं देता है तो तहसीलदार जोत को परित्यक्त कर देगा । यदि वह नोटिस का प्रतिवाद करने के लिये उपस्थित होता है तो तहसीलदार कार्रवाई को त्याग देगा । यदि भूमि ' परित्यक्त ' घोषित कर दी जाती है तो भूमि उस दशा में उत्तरभोगी को चली जायेगी जब असामी धारा 172 के अन्तर्गत आजीवन हित रखता है और अन्य दशा में यदि वह ग्राम पंचायत का असामी था तो वह भूमि सभा को चली जाएगी , यदि वह किसी अक्षम भूमिधर का असामी था तो भूमि ऐसे भूमिधर में निहित हो जायेगी ।

 अधिवासी से आशय ( Meaning of Adhivasi ) 


उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम के अन्तर्गत जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के साथ - साथ उत्तर प्रदेश के भौमिक अधिकारों की व्यवस्था में भी पूर्णरूपेण परिवर्तन ला दिया । इसके द्वारा तीन प्रकार के भौमिक अधिकारों की व्यवस्था की गई - भूमिधर , सीरदार व असामी । किन्तु अधिनियम द्वारा कुछ काश्तकारों को अस्थायी रूप से कुछ समय के लिए भौमिक अधिकार दिए जिन्हें अधिवासी कहा गया । इसका उल्लेख धारा 20 व अध्याय 9 व 9 - क में किया गया है । इस जोतदार को 1 जुलाई , 1942 से 10 अक्टूबर , 1945 तक अधिकार प्राप्त हुआ । इस प्रकार ' अधिवासी ' एक भौमिक अधिकार था जो कुछ समय विशेष के लिए प्रदान किया गया । उस समय ऐसे काश्तकार जिनमें सीर काश्तकार , शिकमी काश्तकार तथा दखीलकार काश्तकार सम्मिलित थे तथा जिनका भूमि पर कोई अधिकार नहीं था । काफी संख्या में थे । अतः विधान मण्डल यह आवश्यक समझा कि ऐसे कृषकों के अधिकारों की सुरक्षा की जाए । 


भूमि को पट्टे पर उठाने का अधिकार ( धारा 156 तथा 157 ) 


एक असामी उन्हीं एवं परिसीमाओं के अधीन अपनी भूमि पट्टे पर उठा सकता है जो अधिनियम में वर्णित है । धारा 156 के अनुसार निम्न दो परिस्थितियों में असामी किसी भी अवधि के लिये अपनी भूमि पट्टे पर उठा सकता है :-

 ( क ) धारा 157 में उपबन्धित मामले में , या 

( ख ) एक मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्था को कृषि , बागवानी या पशुपालन से  सम्बद्ध शिक्षा देने से सम्बन्धित प्रयोजनों के लिये । 


 समर्पण करने का अधिकार ( धारा 184 , 185 ) 

असामी अपनी भूमि का समर्पण कर सकता है । समर्पण के सम्बन्ध में प्रक्रिया लगभग वही है जो एक असंक्राम्य अधिकार वाले भूमिधर द्वारा समर्पण के सम्बन्ध में है । अन्तर केवल यह है कि असामी अपने सम्पूर्ण खाते का ही समर्पण कर सकता है न कि उसके किसी भाग का धारा 184 के अनुसार असामी भूमि प्रबन्धक समिति का क्षेत्रपति , जैसी भी दशा में हो , को अपने ऐसे विचार की नोटिस देकर और खाते का कब्जा छोड़कर सम्पूर्ण जोत का समर्पण कर सकता है ऐसी नोटिस उसे एक अप्रैल के  पूर्व ही दे दी जानी चाहिए । जब असामी अपने खाते का समर्पण कर देता है तो उसकी  समर्पित की गयी भूमि से अधिकार एवं हित समाप्त हो जाता है तथा भूमि ग्राम सभा अथवा असल काश्तकार को चली जाती है । सीमित स्वत्व वाली स्त्री द्वारा समर्पण किये  जाने पर भूमि अन्तिम पुरुष जोतदार के उत्तराधिकारी को चली जाती है न कि ग्राम सभा था अथवा ग्राम पंचायत को ।










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