मुस्लिम विधि मे दान (हिबा )क्या होता है ? मुस्लिम विधि में एक वैध दान के सारभूत सिद्धांत क्या होते हैं?
दान- डी . एफ . मुल्ला के अनुसार , " हिबा या दान सम्पत्ति का ऐसा हस्तान्तरण है जिसको बिना किसी प्रतिदान के बदले में किया गया हो और जिसको दान प्राप्त करने वाला स्वीकार कर ले या दूसरे से स्वीकार करवा ले । "
फैजी का कथन है कि " हिबा ( दान ) सम्पत्ति का तुरन्त एवं अपरिचित हस्तान्तरण है । इस हस्तान्तरण में सम्पत्ति का स्थूल हस्तान्तरण किया जाता है और यह हस्तान्तरण बिना किसी प्रतिदान के बदले में होता है । "
बेली के अनुसार , " हिबा बिना किसी विनिमय के किसी विशिष्ट वस्तु में सम्पत्ति के अधिकार के रूप में की जाती है । विधिशास्त्र की दृष्टि में यह एक ऐसी संविदा समझी जाती है , जिसको दाता की ओर से किसी वस्तु के देने के प्रस्ताव और दान गृहीता थी ओर से स्वीकृति होती है ।
जीवित लोगों के बीच ( intervivos ) हिबा का शाब्दिक अर्थ है— " ऐसी वस्तु का दान जिससे आदाता अर्थात् दान ग्रहीता ( Donce ) लाभ उठा सके । " ( हेदाया 482 ) । तकनीकी भाषा में हिबा की परिभाषा है- " एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को तुरन्त और बिना किसी विनिमय ( Exchange ) या बदले ( एवज ) के किया गया बिना शर्त सम्पत्ति का अन्तरण , जिसे दूसरा स्वीकार करता है या उसकी ओर से स्वीकार किया जाता है । " ( हेदाया 482 ) ।
दुर्रूल मुखतार ग्रन्थ के मुताबिक हिबा का शाब्दिक अर्थ है बिना किसी आर्थिक प्रतिफल के अन्य सम्पत्ति पर हावी होना । विधि में इसका आशय है सम्पत्ति के स्थूल का एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को बिना प्रतिफल के किया गया अन्तरण ।
" Hiba literally means getting predominance under another even without a pecuniary consideration . In law it means to assign the corpus of a thing without consideration . "
धर्म प्रन्थ हेदाया ( Hedaya ) में ' हिबा ' या दान की परिभाषा इस प्रकार से दी गयी है . कि हिबा सम्पत्ति का तुरन्त और अपरिमित अन्तरण है । इस प्रकार से सम्पत्ति का स्थूल हस्तान्तरित किया जाता है और यह अन्तरण बिना किसी प्रतिफल के बदले में होता है ।
अतः बिना किसी प्रतिफल के किसी वस्तु के भौतिक स्वामित्व का अन्तरण किये जाने को " हिबा " या दान कहते हैं जबकि किसी व्यक्ति को केवल लाभ के लिए स्वामित्व दिये जाने पर जो कि हिना प्रतिफल के हो , मुनाफा ( तामीलकुल मुनाफी ) कहा जाता है ।
बी . सी . कदेसा उम्पा बनाम नारायन्नाथ कुम्हासा ' के वाद में न्यायाधीश हिदायत उल्ला ने ' हिवा ' की परिभाषा देते हुए यह मत व्यक्त किया है कि , ' हिबा ' किसी विशिष्ट वस्तु पर बिना एवज के अधिकार प्रदान करने को कहा जाता है । ' हिबा ' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है किसी वस्तु का दान जिससे दानप्रहीता का लाभ हो । इस प्रकार अन्तरण पूर्ण एवं तुरन्त होता है ।
दान के आवश्यक तत्व ( Essentials elements of a Gift ) - ' दान ' या ' हिबा ' के निम्न आवश्यक तत्व हैं
( i ) दान करने वाले की आयु 18 वर्ष की हो । यदि उस व्यक्ति का अभिभावक न्यायालय द्वारा नियुक्त किया गया हो तो ऐसे दानदाता की आयु 21 वर्ष हो ।
( ii ) उसे दान के बारे में समझ हो ।
( iii ) दान स्वतन्त्र इच्छा से किया जाये ।
( I've ) दानदाता का उस सम्पत्ति में स्वामित्व हो ।
( v ) दान बिना प्रतिफल की भावना से किया जाता है ।
( vi ) जिस वस्तु का दान किया जाय वह अस्तित्व में हो किसी सम्भावित या भविष्य में होने वाली सम्पत्ति का दान मान्य नहीं होता ।
( vii ) दान तुरन्त प्रभावशाली होता है ।
( viii ) दानदाता उस सम्पत्ति का कब्जा दानमहीता को दे देता है ।
फैजी ( Fazee ) के अनुसार दान ( Gift ) के तीन आवश्यक तत्व हैं
( 1 ) दानदाता द्वारा दान की घोषणा ( इजाब )
( 2 ) दानप्रहीता द्वारा उसकी स्वकारोक्ति ( कबूल ) ,
( 3 ) कब्जे का परिदान ( कब्जा ) ।
अमीर अली ( Ameer Ali ) ने मान्य दान . ( Valid Gift ) के निम्न तीन आवश्यक तत्व बताये हैं
( i ) दानदाता द्वारा दान करने की इच्छा की अभिव्यक्ति ।
( ii ) दानग्रहीता द्वारा व्यक्त या अभिव्यक्त रूप से उसकी स्वीकारोक्ति ।
( iii ) दान की वस्तु के आधिपत्य का वास्तविक ( actual ) का अनुमान सिद्ध ( Constructive ) रूप में ग्रहण करना ।
अतः दान के आवश्यक तत्व निम्नलिखित होते हैं:-
( 1 ) घोषणा ( Declaration ) ,
( 2 ) दानगृहीता द्वारा स्वीकृति ( Acceptance by donce ) ,
( 3 ) कब्जे का परिदान ( Delivery of Possession ) ।
( 1 ) घोषणा ( Declaration ) - दाता का हिबा करने का स्पष्ट और असंदिग्ध आशय होना चाहिए । जब हिबा करने वाले की ओर से वास्तविक या सद्भावनापूर्ण आशय न हो तो अनियमित हिबा शून्य होगा ।
महबूब साहब बनाम सैयद इस्माइल ' के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि मुस्लिम द्वारा किये गये दान का लिखित होना और उसके फलस्वरूप उसका पंजीकरण होना आवश्यक नहीं है । वैध दान के लिए दानकर्ता द्वारा घोषणा , दानग्रहीता द्वारा या उसके नाम पर दान के प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वीकार किया जाना और कब्जा देना आवश्यक है । दानग्रहीता , सम्पत्ति का कब्जा वास्तव में या प्रलक्षित रूप से ग्रहण कर सकता है । यदि उक्त आवश्यक तत्व सिद्ध हो जाते हैं तो दान वैध होगा ।
( 2 ) दानगृहीता द्वारा स्वीकृति ( Acceptance by Donee ) - दानग्रहीता द्वारा या उसकी ओर से हिबा की स्वीकृति होना आवश्यक है । वाद की परिस्थितियों के अनुसार हिबा वास्तविक या आन्वयिक हो सकता है ।
दान की स्वीकृति या तो व्यक्त हो सकती है या परिलक्षित ( Constructive ) । जहाँ एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को यह कहते हुए कोई वस्तु अर्पित करता है कि मैं तुम्हें कह देता हूँ , और दूसरा व्यक्ति बिना कोई शब्द कहे उस वस्तु को ले लेता है तो यह दान की अव्यक्त स्वीकृति है । जब पिता या अन्य विधिक संरक्षक अपने अवयस्क शिशु के पक्ष में किसी वस्तु का दान करते हैं तो दान की स्वीकृति आवश्यक नहीं है क्योंकि वहाँ दाता को ही अवयस्क शिशु के विधिक संरक्षक की हैसियत से अवयस्क की ओर से स्वीकृत देता है , अतएव ऐसे मामले में दान की स्वीकृति की उपधारणा परिलक्षित कर ली जानी चाहिए ।
( 3 ) कब्जे का परिदान ( Delivery of Possession ) - हिबा की मान्यता के लिये तीसरा आवश्यक तत्व कब्जे का परिदान है । जब तक कब्जे का परिदान न कर दिया जाय हिबा पूर्ण नहीं होता । मान्य हिबा की सबसे आवश्यक अपेक्षा कब्जे का परिदान बनाये जाने का कारण यह है कि हिबा प्रतिकर बिना की गई संविदा और बिना प्रतिकर की संविदाएँ विधितया प्रति संहरणीय नहीं होती हैं ।
माननीय न्यायाधीश हिदायत उल्ला ने कथेसा उम्मा बनाम बाई नारायण नाव कुन्हामू के वाद में हिबा में कब्जे के महत्व को प्रदर्शित करते हुए मत व्यक्त किया है कि , " मुस्लिम हिबा विधि , हिबा की गई सम्पत्ति पर कब्जे को अत्यधिक महत्व प्रदान करती है , विशेषतया अचल सम्पत्तियों ( कब्जे - उल - कामिल ) के मामलों में । "
एआई . आर . 1995 एस . सी . 1205
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