कौन-कौन से विवाह मुस्लिम विधि के अनुसार निष्प्रभावी और अमान्य होते हैं? What marriages are void and invalid? What Are legal consequences of such marriages? State the difference between void and in regular marriages.
( 1 ) शून्य (बातिल) विवाह ( Void Marriage ) - निरपेक्ष असमर्थता वाले पक्षकारों द्वारा किये गये विवाह अर्थात् एक वैवाहिक अथवा धात्रेय सम्बन्धों के कारण निषिद्ध विवाह शून्य होते हैं । ऐसे विवाहों का कोई वैधानिक प्रभाव नहीं होता है । निम्न विवाह शून्य होते है -
( 1 ) विवाहित स्त्री से किया गया विवाह
( 2 ) रक्त - सम्बन्ध (कराबत) के उल्लंघन में किया गया विवाह
( 3 ) विवाह - सम्बन्ध ( मुशारत ) के निषेध के उल्लंघन में किया गया विवाह
( 4 ) छात्रेम सम्बन्ध ( रिजा ) के उल्लंघन में किया गया विवाह
( 5 ) अपनी ही तलाकशुदा स्त्री से पुनर्विवाह ।
यद्यपि ऐसे सम्बन्ध विवाह की तरह लगते हैं किन्तु विधि की दृष्टि में यह विवाह नई माना जाता है । शून्य विवाह के पक्षकारों को कोई पारस्परिक अधिकार या कर्तव्य प्राप्त नही प्राप्त होते हैं । कोई भी पक्षकार न्यायालय से डिक्री प्राप्त किये बिना भी किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर सकता है । पति से भरण - पोषण की अधिकारिणी नहीं होती है । किसी एक की मृत्यु हो जाने पर दूसरा उसकी सम्पत्ति में उत्तराधिकार पाने का हकदार नहीं होता है । शून्य से उत्पन्न सन्ताने अवैध हटायी ) होती है और उन्हें अभिस्वीकृति ( acknowledgemen) द्वारा भी वैध्य नहीं बनाया जा सकता ।
( 2) अनियमित ( Irregular ) या अमान्य फासिद विवाह - सुनी विधि के अन्तर्गत निम्न विवाह अनियमित ( फासिद ) माने जाते हैं-
( 1 ) बिना साक्षियों के किये गये विवाह
( 2 ) चार पत्नियों से विवाहित व्यक्ति द्वारा पांचवी पत्नी से विवाह
( 3 )तलाक शुदा या विधवा स्त्री से ' इद्दत ' की अवधि पूरी होने से पहले विवाह
( 4 ) मूर्ति पूजक या अग्निक धर्म को मानने वाली स्त्री से विवाह
( 5 ) अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा विवाह ।
( 6 ) अवैध संयोग के कारण निषिद्ध विवाह
जब तक विवाह का सम्भोग न हो जाय तब तक अनियमित विवाह का कोई या कुछ विधिक परिणाम नहीं होते । किन्तु विवाह - संभोग के पश्चात् इसके विधिक परिणाम संतानों के पितृत्व ( नसब ) या धर्मजना ( legitimacy ) के सम्बन्ध में वही होते हैं जो नियमित ( valid) या वैध विवाह के विधिक परिणाम होते हैं । विवाह के संभोग हो चुकने के पश्चात् भी पक्षकारों को पूर्ण हैसियत प्राप्त नहीं होती है । यह सम्बन्ध किसी भी पक्षकार द्वारा किसी भी समय समाप्त किया जा सकता है । इसमें न तो तलाक की डिक्री की कोई भी एक पक्षकार वह विवार सम्बन्ध की समाप्ति हो जायेगी । यद्यपि ऐसे विवाह की सन्तानें वैध होतीं हैं और माता पिता में से प्रत्येक से उतराधिकार पाने का अधिकार नहीं क्षेत्र है ।
जब विवाह का संभोग हो चुका हो तो पत्नी में हर पाने की हकदार है । पति की मृत्यु पर या तलाक दिए जाने पर पत्नी को इद्दत केवल तीन मासिक धर्म काल तक ही मानना पड़ता है किंतु इद्दत्त काल में वह भरण-पोषण पाने की अधिकारिणी नहीं होती है
शून्य (Void ) एवं अनियमित (irregular ) विवाहों में भेद:
(1) यदि रुकावट निरपेक्ष और स्थाई है तो विवाह शून्य हैं और यदि वह सापेक्ष और स्थाई है तो विवाह अनियमित है।
(2) शून्य विवाहों में रुकावट कभी भी दूर नही की जा सकती अर्थात शून्य विवाह प्रारम्भ से ही शून्य होता है और कभी मान्य नही होता है। परन्तु अनियमित विवाह में निषेध सापेक्ष होते हैं इसलिए विवाह की रुकावट दूर हो जाने पर विवाह मान्य हो जाता है।
(3) शून्य विवाह पति पत्नी के बीच किन्ही वैधानिक अधिकारों या दायित्वों का सृजन नहीं करता परंतु अनियमित विवाह के यदि उसने प्रावस्था प्राप्त कर ली है कुछ वैधानिक परिणाम होते हैं।
(4) शून्य विवाह में समनाम अवैध है और उसकी संतान अवैध होती है परंतु अनियमित विवाह की संतान वैद्य होती है।
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