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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

Define Talaq ( Divorce ) . Explain the various modes of Talaq ( Divorce ) according to Muslim Law . मुस्लिम विधि में विवाह किन - किन रीतियों द्वारा विच्छेदित किया जा सकता है ? उन रीतियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए । What are the modes in which the marriage may be disolved under the Muslim Law ?

तलाक ( Talaq ) - अरबी में ' तलाक ' शब्द का अर्थ होता है - ' निराकरण करना ' या ' नामन्जूर करना ' । परन्तु मुस्लिम विधि के अन्तर्गत इसका अर्थ वैवाहिक बन्धन से मुक्त करना है । मोहम्मद साहब के एक कथन के अनुसार " खुदा ने जितनी भी वस्तुओं की स्वीकृति दी है इसमें अगर सबसे घृणित कोई वस्तु है तो वह तलाक । " इतने पर भी मुस्लिम विधि ने तलाक की स्वीकृति दी है और कुछ मामलों में आवश्यक भी माना है । तलाक के प्राविधान को मुस्लिम विधि स्वीकार करती है , परन्तु इसके उपयोग को दैवीयकोप की धमकी द्वारा वर्जित भी करती है । बैली महोदय का कहना है कि " पहले भी यह निषिद्ध था और अब भी इसे निन्दित कार्य समझा जाता है परन्तु तुलना में अधिक बुराइयों से बचने के लिए इसकी अनुमति दी गई है । 


    " इस्लाम के पूर्व अरब देश में तलाक प्रथा बड़ी सामान्य थी । पति को तलाक देने का ऐसा व्यापक अधिकार प्राप्त था जिसका वह बिना बाधा के प्रयोग कर सकता था । 

काजी न्यूमन ( Kazi Numan ) ने तलाक के दुष्परिणाम के बारे में उदाहरण देते हुए लिखा था कि एक बार हजरत अली ने चार पत्नियों में एक का तलाक देने ( ताकि दूसरा विवाह कर सके ) को मना किया और उन्होंने यह कहा है कि कूफा सम्प्रदाय ( Kufa School ) के लोग उनके पुत्र इमाम हसन को अपनी पुत्रियों को निकाह में न दें क्योंकि उसको बहुत तादाद में स्त्रियों के साथ निकाह कर और तलाक देने की आदत है । इस आदत को हजरत अली ने पसन्द नहीं किया । 

    तलाक के दुष्प्रभावों के बारे में कोई अन्यथा राय नहीं हो सकती । इस सम्बन्ध में प्रो . जी . सी . चैशायर ( G. C. Cheshir ) की यह राय थी कि ' तलाक ' जो कि पारिवारिक एकता को तोड़ती है , अपने आप में एक सामाजिक बुराई है जो एक आवश्यक बुराई है । अतः इस्लाम धर्म से पूर्व तलाक पति के हाथ में एक ऐसा एकतरफा अस्त्र था जिसे वह कभी भी प्रयोग कर सकता था ।


           मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 से पूर्व पत्नी पति की मर्जी के बिना विवाह विच्छेद नहीं कर सकती थी परन्तु इस अधिनियम के लागू होने के पश्चात् पत्नी इस अधिनियम  की धारा 2 के अन्तर्गत दिये गये आधारों में से किसी एक या अधिक आधारों न्यायालय से तलाक की डिक्री प्राप्त कर सकती है ।


  तलाक के प्रकार 

( 1 ) तलाक उल - सुन्ना ( Talaq 1 Sunna ) - 

( अ ) अहसान ( Ahsan ) ,

 ( ब ) हसन ( Hassan ) ।

 ( 2 ) तलाक उल बिद्दत ( Talaq biddat ) 

( अ ) तीन बार तलाक का उच्चारण , 

( ब ) न तोड़े जाने वाला ( लिखित ) तलाक । 


( 1 ) तलाक अहसान ( Talaq Ahsan ) इस प्रकार के तलाक में पत्नी की पवित्रता ( तुहर ) की अवधि में एक बार तलाक की घोषणा विवाह - विच्छेद के लिए पर्याप्त मानी जाती है । उस अवधि में पत्नी रजस्वला नहीं होनी चाहिए । तलाक की घोषणा के बाद पुरुष उस स्त्री ( अपनी पत्नी के साथ समागम नहीं कर सकता और न ही वह इद्दत की अवधि समाप्त होने से पहले किसी अन्य पुरुष से विवाह कर सकती है । पति यदि चाहे तो इद्दत की समाप्ति से पूर्व तलाक की घोषणा वापिस ले सकता है या तलाक को रद्द कर सकता है । पति द्वारा पत्नी के साथ पुनः समागम करने पर भी ऐसा तलाक रद्द हो जाता है । 


फैजी का मत है कि इस प्रकार के तलाक के तरीके या प्रक्रिया को , जिसको कि मुहम्मद साहब ने अपना मन्त्रिमण्डल बनाते समय स्वीकृत किया था , नियमित या उचित रूढ़िवादी तलाक के रूप में माना जाता है ।


 अगर विवाह पूर्णावस्था को प्राप्त नहीं हुआ है तो अहसान रूप से तलाक का उच्चारण पत्नी के मासिक धर्म के समय में भी किया जा सकता है । 

अहसान रीति में दिया गया तलाक सबसे उत्तम तलाक है । विल्सन का भी यही मत है । 


तलाक के अहसान की अपेक्षाएँ 


( 1 ) अहसान तलाक को इद्दत की अवधि में तोड़ा जा सकता है । ऐसे तलाक में इद्दत ( Iddat ) की अवधि उस घोषणा की तिथि से 3 माह समाप्त होने तक होती है । 


( 2 ) पति द्वारा तलाक की एक घोषणा पर्याप्त होती है ।

 ( 3 ) यदि विवाह समागम द्वारा पूर्ण हो चुका हो तो पवित्रता की अवधिं तुहुए में हो । 

( 4 ) विवाह की सन्तुष्टि ( Consummation ) यदि न हुई हो तो जब पत्नी रजस्वला हो तब भी तलाक दिया जा सकता है । 

( 5 ) इद्दत की अवधि समाप्त होने पर तलाक को निरस्त ( revoke ) नहीं किया जा है । 


( 6 ) जहाँ पत्नी वृद्ध हो और रजस्वला होने की आयु समाप्त हो चुकी हो तो उसके लिए तुहुर ( Tuhur ) पालन करने की आवश्यकता नहीं है ।

 ( ब ) तलाक हसन ( Talaq - ul - Hasan ) तलाक  हसन के अनुसार तलाक की घोषणा लगातार तीन बार की जाती है और ऐसी तीनों घोषणाएँ तुहर या पवित्रता की अवधि में की जाएँ तथा पहली और दूसरी घोषणा के दौरान पति - पत्नी द्वारा सभागम न किया गया हो । यदि ऐसी किन्हीं घोषणाओं के दौरान पति - पत्नी का समागम हो जाता है तो तलाक भंग माना जाता है ।तलाक हसन को अहसान की भाँति हो उच्च कोटि का माना जाता है और यदि पति चाहे तो तलाक को वापिस ले सकता है । 


तलाक हसन की अपेक्षाएँ - ऐसे तलाक को निम्नलिखित अपेक्षाएँ - 

( 1 ) तलाक की घोषणा लगातार तीन बार हो ।

 ( 2 ) स्त्री को पवित्रता की अवधि में ऐसी घोषणाएँ हो ।

 ( 3 ) यदि स्त्री रजस्वला न हो तो तलाक की घोषणा लगातार तीस - तीस दिन के बाद होनी चाहिए । 


( 4 ) तीनों घोषणाओं को अवधियों के मध्य पति - पत्नी के मध्य समागम न हो ।

 ( 5 ) ऐसे तलाक के बाद स्त्री इद्दत की अवधि में निर्वाह भत्ते की अधिकारी होती है । 


( II ) तलाक - उल - बिद्दत ( Talaq - ul - biddat ) तलाक - उल - बिद्दत परम्पराओं के आधार पर दिया जाने वाला है जो तलाक उल सुन्नत से निम्न  कोटि का माना जाता है । 


( अ ) तीन बार तलाक  ( Triple declaration ) - इसमें पति द्वारा पत्नी के रजस्वला होने के कारण तुहुर तीन बार तलाक की घोषणा करता है । ऐसा तलाक यद्यपि पाप होता है परन्तु कानून की दृष्टि से उसे मान्यता दी जाती है । हनाफी सम्प्रदाय  ( Hanafi School ) के अनुसार , इस प्रकार का तलाक पाप होते हुए कानूनी है लेकिन इथना आशारी ( Ithna Ashiri ) कानून के अनुसार इस प्रकार के तलाक को मान्यता नहीं दी गई है इस प्रकार के तलाक में निम्न बातों की अपेक्षा की जाती है 

( 1 ) पवित्रता की अवधि के समय एक ही वाक्य या अलग - अलग वाक्यों में घोषणा की जाती है , जैसे एक ही वाक्य तीन बार कहा जाय जैसे मैं तुम्हें तलाक देता हूं . मैं तुम्हे  तलाक देता हूँ , मैं तुम्हे तलाक  देता हूँ । 


 ( 2 ) तलाक देने के आशय  को प्रकट करने वाले शब्दों द्वारा जिनमें वैसा करने की दृढ़ता प्रदर्शित हो 



( ब) अखण्डीय तलाक ( Irrevokable ) - सामान्यतया अखण्डनीय तलाक जब दिया जाता है तो वह लिखित रूप में होता है । ऐसा तलाक एक बार दिये जाने पर तोड़ा नहीं जा सकता । 


     " तीन बार तलाक " दी गई स्त्री  से विवाह शून्य होता है । जब तक कि वह स्त्री  किसी अन्य पुरुष से विवाह न करे और वह पति उसे तलाक न दे दे । रसदी अहमद बनाम अनीसा खातून  के वाद में न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि " किसी बच्चे को अपनी धर्मज सन्तान को अभिस्वीकृति से विधि यह उपधारणा ( Presumption ) करता है कि उस पुरुष और बच्चे की माँ में मान्य विवाह हुआ था किन्तु विवाह को उपधारणा तीन बार तलाक शुदा व्यक्तियों पर लागू नहीं होती जब तक सिद्ध  न कर दिया जाय कि स्त्री  ने अन्य पुरुष से विवाह किया था और उस अन्य पुरुष से विवाह - सम्भोग के पश्चात् उसे तलाक दे दिया था ।


  •  A.I.R.1935P.C . 25


  • डाइजेस्ट ऑफ मोहम्मडन लॉ 205
    

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