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इद्दत क्या होती है? मुस्लिम विवाह मे इद्दत का पालन करना क्यों इतना आवश्यक है?

इद्दत(Iddat):- इद्दत वह अवधि है जिसका पालन करना एक ऐसी मुस्लिम स्त्री के लिए आवश्यक है जिसके पति की मृत्यु हो गई हो या उसका अपने पति से विवाह विच्छेद( तलाक) हो गया हो। यह विशुद्धता की अवधि है । विवाह भंग हो जाने के पश्चात् इसका पालन इसलिये आवश्यक है कि इस अवधि में बच्चे का पितृत्व का निश्चय होता है । यह वह अवधि है , जिसके समाप्त होने पर नया विवाह वैध होता है । वास्तव में ' इद्दत ' वह अवधि है जिससे जिस स्त्री के पति की मृत्यु हो गई हो या तलाक द्वारा विवाह विच्छेद हो गया हो , उसे एकान्त में रहना और दूसरे पुरुष से विवाह न करना अनिवार्य है । मुस्लिम विधि में जब कोई विवाह विच्छेद या पति की मृत्यु के कारण विघटित हो जाता है , तो स्त्री कुछ समय तक पुनः विवाह नहीं कर सकती । इस निश्चित समय को ' इद्दत ' कहा जाता है । 

        अमीर अली का कहना है कि " यह मृत्यु या तलाक द्वारा एक वैवाहिक सम्बन्ध की समाप्ति और दूसरे के आरम्भ के बीच ऐसा अन्तराल ( interval ) है , जिसका पालन करना स्त्री के लिए अनिवार्य है । " 


     न्यायमूर्ति महमूद ' इद्दत ' की परिभाषा एक ऐसी अवधि के रूप में करते हैं जिसका पूरा कर देना नये विवाह को वैध बना देता है । यह एक ऐसी अवधि है जिसमें पहले विवाह का विच्छेद हो जाने के बाद स्त्री  दूसरा विवाह नहीं कर सकती , अर्थात् वह ' प्रतीक्षा की अवधि है ।

        इद्दत का उद्देश्य यह निश्चित करना होता है कि क्या स्त्री पति से गर्भवती है अथवा नहीं जिससे कि मृत्यु अथवा विवाह - विच्छेद के पश्चात् उत्पन्न हुई सन्तान की पैतृकता में भ्रम पैदा न हो ।

      इद्दत की  अवधि भिन्न - भिन्न परिस्थितियों में अलग - अलग होती है । उदाहरण के लिए

 ( अ ) पति की मृत्यु होने पर जिस स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है उसको 4 महीना 10 दिन तक दूसरा निकाह करने की अनुमति नहीं होती अर्थात् वह समय उसकी इद्दत का होता है । 


( ब ) गर्भवती स्त्री द्वारा यदि कोई स्त्री अपने पति की मृत्यु के समय गर्भवती होती है । तो जब तक गर्भ की सन्तान का जन्म न हो जाये दूसरा निकाह नहीं कर सकती । अगर चार महीने दस दिन की अवधि के समाप्त होने के पहले बच्चा या गर्भपात हो जाये तो बाकी अवधि भी पूरी करनी पड़ेगी । उदाहरण के लिए ' अ ' की बीबी ' ब ' , ' ब ' के मरने के समय गर्भवती अवधि भी पूरी करनी पड़ेगी । है । ' अ ' के मरने के तीन माह बाद उसके बच्चा हो जाता है तो उसे बाकी एक माह 10 दिन की अवधि पूरी करनी पडे़गी ।

( स ) इद्दत की अवधि में गर्भपात या सन्तानोत्पत्ति होने पर :-

यदि सन्तानोत्पत्ति या गर्भपात विधवा होने के बाद 4 माह 10 दिन में शेष रह जाये तो जितना उस 4 माह 10 दिन में शेष रह जायेगा उसके पूरा होने पर दूसरा विवाह कराने की कानूनी तौर पर अधिकारी होगी । 

( द ) तलाक होने पर - तलाक द्वारा विवाह विच्छेद के मामले में उस स्त्री को 3 माह में इद्दत का पालन करना पड़ेगा । इसका तात्पर्य यह है कि तलाक के बाद उसे लगातार तीन माह तक मासिक धर्म ( menturation ) आना चाहिए और तब इसकी इद्दत की अविध पूर्ण मानी  जायेगी । यदि तलाक के बाद उसके पति की मृत्यु हो जाये तो इद्दत  की अवधि उसकी ( पति की मृत्यु के दिन से आरम्भ होगी । उदाहरण के लिए ' क'ने ' ख ' को तलाक दिया । ' ख'ने तीन मासिक धर्म से एक दिन कम तक का पालन किया और उसी दिन ' क ' मर गया । जब ख के लिए चार महीने उस दिन की इद्दत अनिवार्य है ।

पति की मृत्यु के समय या विवाह विच्छेद की तिथि से ही इद्दत का समय प्रारम्भ हो जाता है न कि उस दिन से जब कि स्त्री  पति की मृत्यु या विवाह विच्छेद की सूचना पाती है । यदि ऐसी सूचना इद्दत  के लिए निश्चित अवधि के पश्चात् उसे प्राप्त होती है तो उसे इद्दत की अवधि का पालन करना आवश्यक नहीं है । 


( घ ) किसी अमान्य रीति से निकाह होने पर - जिन मामलों में स्त्री - पुरुष का निकाह अमान्य ( Invalid ) रूप से हुआ हो तथा पति ने विवाहोपरान्त उसको पूरा करने के लिए अपनी पत्नी के साथ समागम न किया हो । ऐसी अवस्था में विवाह विच्छेद के बाद इद्दत की कोई आवश्यकता नहीं होती , क्योंकि ऐसे मामलों में समागम न होने के कारण सन्तान की उत्पत्ति ( और उसकी वैधता या अवैधता ) के सम्बन्ध में कोई आशंका नहीं रहती । 

इद्दत की अवधि :-

( 1 ) मान्य विवाहों में -- ( i ) तलाक के द्वारा विवाह - विच्छेद में तीन चन्द्रमास या तीन मासिक धर्म , यदि स्त्री गर्भवती हो तो बच्चा होने तक जो भी अवधि लम्बी हो ।

 ( ii ) विधवा हो जाने पर चार महीने दस दिन यदि विधवा गर्भवती हो तो बच्चा होने तक जो भी अवधि लम्बी हो । 

( 2 ) अनियमित विवाहों में :-

( i ) मृत्यु या विवाह - विच्छेद होने पर तीन चन्द्रमास या तीन मासिक धर्म ।

 ( ii ) यदि पत्नी की इद्दत  की अवधि के दौरान पति की मृत्यु हो जाये तो पत्नी की नयी इद्दत पति की मृत्यु के समय से शुरू होगी । 


इद्दत की अवधि में अधिकार और कर्तव्य है - इद्दत की अवधि में निम्नलिखित अधिकार और कर्तव्य उत्पन्न होते हैं 

( i ) यदि पत्नी इद्दत व्यतीत कर रही है तो इद्दत की अवधि में उसके निर्वाह के लिए पति उत्तरदायी होगा ।

 ( ii ) अपनी इद्दत के पूरी होने तक पत्नी दूसरे पुरुष से विवाह नहीं कर सकती और यदि तलाक दी गई पत्नी को मिलाकर पति की चार पत्नियाँ हैं तो तलाक दी गई स्त्री की इद्दत की अवधि पूरी होने तक पति किसी पाँचवीं पत्नी से विवाह नहीं कर सकता । 

( iii ) पत्नी मुवज्जल मेहर की हकदार हो जाती है और यदि मुअज्जल मेहर का भुगतान नहीं किया गया तो वह तुरन्त देय हो जाता है । 

( iv ) इद्दत की अवधि समाप्त होने से पूर्व दम्पत्ति में किसी की मृत्यु हो जाने पर यदि मृत्यु हो जाने से पहले विवाह - विच्छेद अपरिवर्तनीय ( irrevocable ) नहीं हो गया है , तो दूसरा पक्षकार पति - पत्नी के रूप में पत्नी या पति से , जैसी स्थिति हो , सम्पत्ति उत्तराधिकार में पाने का हकदार होगा ।

 ( v ) यदि विवाह - विच्छेद मृत्यु रोग में दिया गया है और पत्नी की हदत पूरी होने के पहले पति मर जाय तो यदि उसकी मृत्यु से पहले विवाह - विच्छेद अपरिवर्तनीय भी हो गया है , तो पत्नी पति की सम्पत्ति उत्तराधिकार में पाने की हकदार हो जाती है , बशर्ते विवाह विच्छेद उसको सहमति से न किया गया हो ।


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