मुस्लिम विधि में पत्नी के भरण - पोषण करने के अधिकार ( the right of Maintenance of muslim wife according to the muslim law): पत्नी के भरण - पोषण का अधिकार - मुस्लिम विधि के अनुसार पत्नी निम्न प्रकार से भरण-पोषण की अधिकारिणी है:-
( 1 ) स्वीय विधि के अधीन ,
( 2 ) करार के अधीन ,
( 3 ) दण्ड प्रकिया संहिता 1973 के अधीन ।
( 1 ) स्वीय विधि के अधीन ( क ) विवाह के दौरान - मुस्लिम विधि में पति के ऊपर पूर्ण दायित्व डाला गया है कि वह अपनी पत्नी का भरण - पोषण करे , पत्नी चाहे कितनी ही क्यों न हो । पति का पत्नी को भरण - पोषण का दायित्व उस समय प्रारम्भ होता है जबकि पत्नि यौवनावस्था को प्राप्त हो जाती है , इसके पहले नहीं ।पत्नी पति से भरण - पोषण पाने की अधिकारिणी है , भले ही वह सम्पन्न हो और पति गरीब । पत्नी चाहे मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम या अमीर स्वस्थ हो या रोगी युवा हो या वृद्ध वह सभी अवस्थाओं में पति से भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार है । पति उसे भरण - पोषण का करार न होने पर भी भरण - पोषण का अधिकार निरपेक्ष है । अपने को - पोषण पत्नी के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह अपना एक पैसा खर्च न करे । खर्च - ए पानदान ( Betal box expences ) या मेवा खोरी के सम्बन्ध में यदि कोई करार है तो पति उन्हें भी पत्नी को देने के लिए बाध्य है । मुस्लिम विधि के अन्तर्गत यद्यपि पति एक से अधिक पत्नियाँ एक - साथ रखने के लिए अधिकृत है तथापि यदि वह दूसरा विवाह करता है तो प्रथम पत्नी भरण - पोषण एवं प्रथक निवास के लिए सफलतापूर्वक वाद दायर कर सकती है ।
निम्नलिखित परिस्थितियों में पति उसका भरण - पोषण करने के लिए बाध्य है
( 1 ) उसने यौवनावस्या ( Pubcrty ) प्राप्त करली है अर्थात् ऐसी अवस्था जिसमें अपने पति के दाम्पत्य अधिकारों को पूरा कर सकती है ।
( 2 ) वह अपने को उसके अधिकार में समर्पित कर देती है या कर देने को प्रस्तुत है जिसमें कि पति हर वैध समय पर उसके पास बेरोक - टोक पहुंच सके और वह उसकी सब आज्ञाओं का पालन करती है ।
( 3 ) मुस्लिम विधि के अन्तर्गत , पति तभी पत्नी का भरण - पोषण करने के लिए बाध्य होगा जबकि विवाह मान्य हो । यदि विवाह अनियन्त्रित या शून्य है तो पत्नी भरण - पोषण नहीं पा सकती ।
▪ वह नीचे लिखी परिस्थितियों में भरण - पोषण की अधिकारिणी नहीं होती
( 1 ) यदि वह दाम्पत्य - अधिवास को बिना मान्य कारण के त्याग देती है ।
( 2 ) यदि वह पति को अपने पास नहीं आने देती है ।
( 3 ) यदि वह उसको युक्तिसंगत आज्ञाओं का पालन नहीं करती है ।
( 4 ) यदि वह किसी वैध कारण के बिना पति के साथ रहने से इन्कार कर देती है ।
( 5 ) यदि उसे ( पत्नी ) कारावास हो गया है ।
( 6 ) यदि वह किसी के साथ भाग गई हो ।
( 7 ) यदि यह अवयस्क है जिसकी वजह से विवाह पूर्णावस्था को नहीं प्राप्त हो सकता ।
( 8 ) यदि वह स्वेच्छा से पति को छोड़ जाती है और अपना दाम्पत्य कर्तव्य का पालन नहीं करती
( 9 ) यदि पति के द्वारा दूसरा विवाह कर लेने पर उसे त्याग देने का समझौता कर लेती
( 2 ) करार के अधीन पत्नी का भरण - पोषण का अधिकार - पक्षकारों या उनके संरक्षकों के मध्य हुए करार के आधार पर पत्नी पति से भरण - पोषण पाने की हकदार है , किन्तु ऐसा किसी विधि के विरुद्ध या लोक नीति के विरुद्ध नहीं होना चाहिये ।
उदाहरण के लिए पति और पत्नी के बीच यह विधिक रूप से करार हो सकता पति प्रथम विवाह के रहते हुए दूसरा विवाह नहीं करेगा और यदि वह ऐसा करता है तो पत्नी को यह अधिकार होगा कि वह अपने माता पिता के साथ जाकर रहने लगे और ऐसी माता - पिता के घर रहने लगे ऐसी सूरत में पत्नी को भरण - पोषण का अधिकार होगा या यह करार कि पति - पत्नी का भरण - पोषण ' उसके माता पिता के घर मासिक धन देगा ।
खर्च - ए - पानदान ' ' मेवा खोरी के लिए विशेष भते का संदाय करने के लिए करार लोक नीति के विरूद्ध नही है और वह तभी देय होगा अपने पति के पास लौट आने से इन्कार कर देती है । नीति के विरुद्ध नहीं है और वह तभी से देयय होगा ।
( 3 ) दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण का अधिकार : दण्ड प्रकिया संहिता 1908 की धारा 488 के अन्तर्गत पत्नी को भरण - पोषण का अधिकार भरण - पोषण दिये जाने अधिकार पहले से था । किन्तु पत्नी के भरण - पोषण देने का आदेश न्यायालय जब पति को देता था तो पति अपनी पत्नी को तलाक दे देता था तब न्यायालय का आदेश इद्दत अवधि के पश्चात् समाप्त हो जाता था । परिणाम यह होता था कि मुस्लिम पुरुष न्यायालय द्वारा भरण - पोषण का आदेश दिये जाने के तुरन्त पश्चात् ही अपनी पत्नी को तलाक देकर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 488 के अन्तर्गत दिये गये न्यायालय के आदेश को निराकृत एवं व्यर्थ बना देता था । नयी दण्ड प्रक्रिया संहिता , 1973 के अन्तर्गत दिये गये न्यायालय के आदेश को पति अवैध निष्फल एवं व्यर्थ नहीं बना सकता , क्योंकि धारा 125 ( 3 ) में संलग्न स्पष्टीकरण के अनुसार
" पत्नी शब्द में ऐसी स्त्री भी शामिल है जो पति द्वारा तलाक दी गई है , या जिसने पति विरुद्ध विवाह - विच्छेद प्राप्त कर लिया है और पुनर्विवाह नहीं किया है ।
बाई ताहिरा खातून बनाम अली हुसैन के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया है कि तलाकशुदा पत्नी द्वारा भरण - पोषण प्राप्त करने का अधिकार अधिनियमित Statutory ) अधिकार है और इसे मुस्लिम विधि के नियमों से पराभूत नहीं किया जा सकता है ।
जोहरा , खातून बनाम मोहम्मद इब््रहीम के वाद में यह मत व्यक्त किया है कि दण्ड किया संहिता 1973 की धारा 125 के अन्तर्गत न केवल तलाक शुदा पत्नी ही सम्मिलित है , बल्कि इसके अन्तर्गत ऐसी पत्नी भी सम्मिलित है , जिसने मुसलम विवाह - विच्छेद अधिनियम , 9139 के अन्तर्गत विवाह के विघटन की डिक्री प्राप्त कर ली है । अतः इस अधिनियम के अन्तर्गत विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर लेने के बाद भी पत्नी अपने पूर्व पति से भरण - पोषण प्राप्त कर सकती है , बशर्ते उसने दूसरा विवाह न कर लिया हो ।
मोहम्मद अहमद खाँ बनाम शाहबानो बेगम ' के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्णीत किया है कि तलाक के पश्चात् " औरत को गुजारे की रकम दी जाये , यदि औरत के पास इतना धन या सम्पत्ति नहीं है कि वह उससे अपना गुजारा कर सके , तथा पति इस लायक है कि वह तलाक शुदा पत्नी को गुजारा दे सकता है , किन्तु शर्त यह है कि औरत अपना पुनर्विवाह अन्य पुरुष से न करे ।
भरण पोषण का आदेश ( Order of Maintenance ) - यदि बिना किसी कारण के अपनी पत्नी के भरण - पोषण में उपेक्षा करे या इन्कार करे तो पत्नी भरण - पोषण के लिए है पर दावा दायर कर सकती है । वह पिछले भरण - पोषण के लिए डिक्री की अधिकारिणी जब तक कि दावा किसी विशेष करार पर आधारित न हो वह दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 125 और 126 या मुस्लिम महिला ( विवाह - विच्छेद या अधिकारों का संरक्षण ) अधिनियम 1986 का सहारा ले सकती है । पति के द्वारा दूसरी पत्नी लाने पर , प्रथम पत्नी , पति के साथ रहने से इन्कार करने के बावजूद भी भरण - पोषण का दावा कर सकती है
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