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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

यौवनागमन का विकल्प क्या है?किसी अवयस्क लडके या लडकी द्वारा विवाह निरस्त किये जाने की शक्ति और उसकी सीमायें क्या होंगीं ?

 यौवनागमन का विकल्प ( ख्यार - उल - बुलूग ) ( option of puberty ) - यौवनागमन का विकल्प ऐसे अवयस्क लड़के या लड़की का जिसके विवाह की संविदा अभिभावक द्वारा की गई हो , वयस्कता प्राप्त कर लेने पर विवाह की अस्वीकृति या पुष्टि करने का अधिकार है । " कुछ विशेष परिस्थितियों में किसी मुसलमान लड़के या लड़की को जिसके विवाह की संविदा , वैवाहिक अभिभावक द्वारा की गई हो , वयस्कता प्राप्त कर लेने पर विवाह को अस्वीकार कर देने का विकल्प प्राप्त होता है । यह अधिकार अवयस्क बालकों को वयस्कता प्राप्त कर लेने पर विवाह को अस्वीकार करने का विकल्प प्राप्त होता है । अवयस्क बालकों के इस अधिकार को वयस्कता का विकल्प ( ख्यात - उल - बुलूग ) कहते हैं । अस्वीकार के समय तक यह विवाह मान्य होता है ।

 अब्दुल करीम बनाम अमीना बाई के वाद में बम्बई उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया है कि पत्नी को दिया गया अस्वीकार का विकल्प ऐसे सिद्धान्तों पर आधारित है जिन पर कुरान में बार - बार जोर दिया गया है । यह अभिरक्षा के उन साधनों में से एक है जिनके द्वारा इस्लाम स्त्रियों और बच्चों पर कठोर दबाव डालने वाली इस्लाम के पूर्व की प्रथाओं में कमी लाता है । 

           
         विषय को स्पष्ट समझने के लिए मनुष्य के जीवन को निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है -

( 1 ) सगीर - यह पहली अवस्था है जिसमें लड़के या लड़की की आयु सात वर्ष से कम हो । इस अवस्था में विवाह प्रारम्भ से ही शून्य होता है और  लड़के या लड़की की अनुमति या विकल्प का सवाल पैदा ही नहीं होता । इस अवस्था में किया गया विवाह किसी परिस्थिति में मान्यता प्राप्त नहीं कर सकता । 

( 2 ) सरीरी :-यह वह अवस्था है जिसमें लड़के या लड़की की आयु सात वर्ष से अधिक परन्तु पन्द्रह वर्ष से कम हो । इस अवस्था में विवाह के लिए लड़के या लड़की की अनुमति मान्य नहीं होती है । परन्तु वैवाहिक अभिभावक द्वारा मान्य रूप से विवाह किया जा सकता है । अपनी स्वतन्त्र अनुमति से वे विवाह नहीं कर सकते ।


 ( 3 ) ' बुलूग ' — यह तीसरी अवस्था है जिसमें लड़के या लड़कों की उम्र पन्द्रह साल से अधिक हो , अर्थात् वे बालिग हो । इस अवस्था में वे अपनी इच्छा से विवाह कर सकते हैं । 

               अगर लड़के या लड़की का विवाह उसके अभिभावक ने दूसरी अवस्था में किया है तो उन्हें तीसरी अवस्था में अभिभावक द्वारा किये गये विवाह का अनुसमर्थन या उसे स्वीकार करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है । इस प्रकार यह देखा गया है कि इस विकल्प का अधिकार या उद्भव दूसरी अवस्था में होता है और उसका लाभ इस तीसरी अवस्था में उठाया गया है , जबकि वे पन्द्रह वर्ष की आयु पूरी कर लेते हैं ।

             विवाह की अस्वीकृति ( ख्यार - उल - बुलूग ) के सम्बन्ध में प्राचीन मुस्लिम विधि के अनुसार यदि अवयस्क का विवाह पिता या पितामह ने किया हो तो विवाह मान्य और अवयस्क पर बन्धनकारी होता है और अवयस्क वयस्कता प्राप्त कर लेने पर उसे सिवाय अत्यन्त विशिष्ट परिस्थितियों में अस्वीकार नहीं कर सकता । ऐसा विवाह निम्नलिखित अपवादिक परिस्थितियों के अतिरिक्त अन्य अवस्थाओं में अस्वीकृत नहीं किया जा सकता था-

 ( 1 ) जब पिता या पितामह ने उपेक्षा या शरारत की हो या 

( 2 ) जब विवाह से अवयस्क को प्रत्यक्ष क्षति पहुंचती हो । 

उदाहरण — एक अवयस्क शिया लड़की के पिता ने उसका विवाह एक सुन्नी से कर दिया । वयस्क होने पर उस लड़की को बोध हुआ कि विवाह से उसकी धार्मिक भावनाओं को चोट या अत्यन्त हानि पहुंची है । निर्णीत किया गया कि उसे विवाह अस्वीकार करने का विकल्प दिया जाना जरूरी है । 

             पिता और पितामह से भिन्न अभिभावक द्वारा संविदाकृत विवाह को अस्वीकार करने का अवयस्क को पूर्ण विकल्प होता है । शिया विधि के अन्तर्गत पिता और पितामह से भिन्न किसी के द्वारा संविदाकृत विवाह को मान्यता नहीं दी जाती है और ऐसे व्यक्ति को विवाह के प्रयोजन के लिए ' फजली ' कहा जाता है । 


                         लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तिगण ने एक वाद में यह निर्णोत किया है कि पिता और पितामह के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा कराये गये विवाह  में अवयस्क लड़की वयस्कता प्राप्त करने पर विवाह को अस्वीकार कर सकती है । यह प्रश्न असंगत है कि क्या विकल्प का प्रयोग लड़की के लिये हितकर होगा । देखना केवल यह है कि क्या लड़की विवाह का विच्छेद चाहती है ? 


                   ( i )स्त्री द्वारा विकल्प का प्रयोग – यदि लड़की को विवाह की जानकारी हो तो वयस्कता प्राप्त कर लेने पर उसे तुरना ही विकल्प के अधिकार का प्रयोग करना जरूरी रहता था कोई अनुचित विलम्ब उसे विकल्प के अधिकार से वंचित कर देता था । 


( II ) पुरुष द्वारा विकल्प का प्रयोग - पुरुष के विकल्प के सम्बन्ध में नियम अब भी वही हैं जो प्राचीन मुस्लिम विधि के अन्तर्गत थे । पुरुष का विकल्प अब तक बना रहता है जब तक कि वह संविदा का अनुसमर्थन ( 1 ) सुव्यक्त घोषणा , ( 2 ) मेहर का भुगतान , ( 3 ) समागम के द्वारा न कर दे । 

विकल्प का प्रभाव - यदि अस्वीकृति का विकल्प ग्रहण किया जाए तो विवाह समाप्त हो जाता है और फलतः यह समझा जाता है कि विवाह कभी हुआ ही नहीं था । 


कानून द्वारा संशोधन ( Modification by law ) - ' यौवनागम ' के विकल्प ' या ख्यार - उल - बुलूग को मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 ( Dissolution of Muslim Marriage Act , 1939 ) के द्वारा संशोधित किया गया है । इस अधिनियम के पैराग्राफ आठ का आशय है कि यदि किसी स्त्री का विवाह उसकी अवयस्कता ( अर्थात् 15 से कम न थी ) में उसके अभिभावकों ने किया हो तो वह 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर इस सम्बन्ध में न्यायालय में वाद दायर करके विवाह को अमान्य घोषित करवा सकती है परन्तु वैसा होने के लिए पति और पत्नी ने विवाहोपरान्त समागम न किया हो । 



अधिनियम का प्रभाव ( Effect of Enaciment ) - सन् 1939 के अधिनियम  ख्यार - उल - बुलूग पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा कि 


 ( अ ) पिता या अभिभावक द्वारा तय किये विवाह तब तक मान्य नहीं होंगे जब तक न्यायालय द्वारा तलाक की डिक्री प्राप्त न कर ली जाये ।

 ( ब ) परित्याग के विकल्प के अधिकार ( Right of option for dissolution ) का प्रयोग के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत करना और उसकी डिक्री लेना आवश्यक है । 


( स ) निकाह में पिता या पितामह की लापरवाही दिखानी आवश्यक है । 

( द ) यदि विवाह समागम द्वारा 15 वर्ष की आयु से पूर्व ही पूरा हो जाता है तो लड़की विवाह परित्याग के विकल्प को नहीं खोती । 


( क ) निकाह की हानियों को प्रमाणित करना आवश्यक नहीं है ।

 ( ख ) वयस्क होने के तुरन्त बाद विकल्प का प्रयोग आवश्यक नहीं है ।



(1) ए . आई . आर 1992 म प्र 244     


  (2)( 1935 ) 59 बम्बई 529


(3)अजीजबानी बनाम मोहम्मद ( 1925 ) 47 ,इलाहाबाद  823

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