Skip to main content

व्यक्तिगत प्रतिरक्षा का अधिकार क्या होता है?( what is the right of private defence?)

प्रतिरक्षा का अधिकार:- प्रतिरक्षा के अधिकार का मूल स्रोत यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को जीवित रहने का अधिकार है और यदि कोई व्यक्ति उसके जीवन को हानि पहुंचाता है या पहुंचाने का प्रयत्न करता है तो उसको अपनी सुरक्षा करने का अधिकार है। यद्यपि व्यक्तियों की जीवन रक्षा करने का कार्य राज्य और कानून का है परंतु फिर भी राज्य से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह प्रत्येक व्यक्ति की जीवन रक्षा के लिए हर समय सतर्क और तत्पर रहेगा। इसके लिए व्यक्तियों को अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी। इसके लिए यदि कोई ऐसा कार्य भी करना पड़े जो अन्य स्थितियों में अपराध हो तो कानून की दृष्टि में वह क्षमा योग्य होता है। इस संबंध में सिसरो (Cicero) का यह कानून की When the laws are silent arms are raised यथार्थ है क्योंकि जब कानून में किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा ना हो सके तब वह स्वयं अस्त्र-शस्त्र उठाकर अपनी रक्षा करता है। आत्मरक्षा की भावना ना केवल मनुष्यों में बल्कि प्रत्येक प्राणी जीव और जंतु में होती है। मनुष्य की आत्मरक्षा की भावना और उसको करने के लिए उठाया गया सक्रिय कदम जो विधि पूर्ण और आवश्यकता जन्य हो अपराध नहीं होता।

            व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के विषय में लॉर्ड बैरन पार्क ने लिखा है कि प्रकृति व्यथित व्यक्ति को प्रोत्साहित करती है कि वह आक्रमणकारी या क्षति पहुंचाने वाले का विरोध करें तथा उस सीमा तक बल प्रयोग करें जो उन परिस्थितियों में क्षति को रोकने या आक्रमण की पुनरावृतियों को रोकने के लिए पर्याप्त हो।


हेनरी मेन(Henry Maine) ने प्रतिरक्षा के अधिकार के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए हैं:-


(1) समाज व्यक्तियों की निजी जीवन और संपत्ति पर कानून के विरुद्ध होने से रक्षा करने का वचन देता है परंतु अधिकतर मामलों में वह ऐसा करने में असमर्थ होता है।


(2) ऐसी सहायता प्राप्त ना हो  ,प्रत्येक व्यक्ति ऐसा कार्य कर सकता है जो उसकी रक्षा के लिए आवश्यक हो

(क) हिंसा का प्रयोग उतना ही किया जाए जितना उसकी रक्षा के लिए आवश्यक हो

(ख) वह कार्य के बदले की भावना या जानबूझकर हानि पहुंचाने के लिए ना किया जाए


  • ग्रेसियस(Grotious) के अनुसार आत्मरक्षा के अधिकार को इस दृष्टि से देखना चाहिए( जैसे उसका मूल स्वरूप , जो प्रत्यक्ष और मुख्य रूप से इस तथ्य पर आधारित हो) की प्रकृति अपनी आत्मरक्षा स्वयं सिखाती है।


  • बैन्थम (Bentham) के अनुसार मजिस्ट्रेट की सतर्कता व्यक्तियों की ओर से सतर्कता नहीं हो सकती कानून का भय दुष्ट  आदमियों को नहीं रोक सकता।



टॉमस बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि वस्तुतः व्यक्तिगत प्रतिरक्षा का अधिकार तब उत्पन्न होता है जब व्यक्ति के सामने दो विकल्प रह गए हो या तो वह आक्रमणकारी के समक्ष समर्पण कर दे अथवा उस परिस्थिति में आवश्यक बल प्रयोग करते हुए स्वयं को बचाए। ऐसी स्थिति में विधि यह अपेक्षा नहीं करती है कि वह कायरता पूर्ण समर्पण कर दे वरन्  व्यक्ति को उचित बल प्रयोग द्वारा स्वयं का संरक्षण करने की अनुमति देती है। यदि व्यक्ति स्वयं आक्रमण करता है तो उस दशा में वह स्वयं आत्मरक्षा के बचाव की मांग नहीं कर सकेगा।


विस्तार:- व्यक्ति को व्यक्तिगत प्रतिरक्षा का अधिकार केवल शारीरिक सुरक्षा तक ही सीमित नहीं है वरन संपत्ति की सुरक्षा के लिए भी इसका प्रयोग न्यायोचित माना गया है। इतना ही नहीं यह अधिकार  व्यक्ति को ना केवल  स्वयं की शरीर पर संपत्ति की प्रतिरक्षा के लिए प्राप्त है अपितु अन्य लोगों की शरीर व संपत्ति की रक्षा के लिए वह इस अधिकार का प्रयोग कर सकता है । इस संबंध में बेंथम का कथन उल्लेखनीय है मानव कि यह सामान्य प्रवृत्ति है की जबकि दुर्बल या असहाय व्यक्ति को किसी बलवान व्यक्ति को अन्याय पूर्ण आक्रमण का शिकार हुआ देखता है तो उसका कृत्य दया और करुणा से परिपूर्ण हो जाता है और वह उस निर्बल व्यक्ति की सहायता करने को प्रेरित होता है। सामाजिक दृष्टि से भी इसे न्याय उचित माना गया है।



भारतीय दंड संहिता और व्यक्तिगत रक्षा:- भारतीय दंड संहिता की धारा 96 में यह कहा गया है कि कोई भी बात जो व्यक्तिगत रक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाए अपराध नहीं है।( nothing is an offence which is done in exercise of a right private defence.)


         अतः प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करते हुए किए जाने वाले कोई कार्य अपराध नहीं होता। इस प्रति रक्षा के अधिकार को निम्नलिखित दो श्रेणियों में बांटा गया है


(1) निजी रक्षा का अधिकार( right to self defence):- इसके अंतर्गत अपने शरीर का किसी ऐसे अपराध को रोकने के लिए कोई कार्य नहीं किया जाता है जिससे मानव शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ता।


            सामान्यतया कोई भी व्यक्ति किसी भी दूसरे व्यक्ति के शरीर या उसकी संपत्ति को क्षति नहीं पहुंचा सकता और यदि वह इस तरह का कार्य करता है तो वह एक दंडनीय अपराध जाना जाता है।


            लेकिन धारा 96 में यह कहा गया है कि ऐसा कोई कार्य अपराध नहीं है जो व्यक्तिगत सुरक्षा के अधिकार के प्रयोग में किया जाता है।(nothing is an offense which is done in the exercise of the right of private defence .)


           जहां अपनी अवयस्क  पुत्री को किसी व्यक्ति द्वारा लैंगिक उत्पीड़न होता देख कर अभियुक्त ने उस व्यक्ति पर हमला कर दिया तो ऐसी परिस्थिति में अभियुक्त को प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त है और यह तथ्य की क्या मैथुन  उसकी पुत्री की सहमति से किया जा रहा था अथवा नहीं महत्वपूर्ण नहीं है। यह तथ्य की बाद में उस व्यक्ति की मृत्यु गिरने से हुई आंतरिक क्षति के कारण हुई या अभियुक्त द्वारा उस पर वार करने से यह भी महत्वपूर्ण नहीं है। अतः धारा 325 के अधीन अभियुक्त की दोष सिद्धि आपस्त करने योग्य है।


(2) संपत्ति की रक्षा का अधिकार( right to Defence of property):- इसके अंतर्गत चल या अचल संपत्ति का चाहे वह अपनी हो अथवा किसी दूसरे व्यक्ति की हो चोरी डकैती रिस्टी आपराधिक अतिचार या ऐसे प्रयास जिसमें चोरी डकैती करना या आपराधिक अतिचार करने से प्रतिरक्षा का अधिकार आता है।


             प्रतिरक्षा के अधिकार के बारे में एक विद्वान ने कहा है कि प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है प्रतिरक्षा का कार्य है दुर्व्यवहार का नहीं। इस अधिकार को किसी आक्रमण को उचित ठहराने के लिए ढाल की तरह उपयोग करने की स्वीकृति नहीं दी जा सकती। इसके लिये प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का सावधानीपूर्वक विवेचन आवश्यक है जिससेयह ज्ञात हो सके की क्या अभियुक्त ने वास्तव में प्राइवेट प्रतिरक्षा अधिकार का प्रयोग किया था अथवा नहीं। अभियुक्त के द्वारा बिना किसी अयुक्तियुक्त आधार की अवधारणा कर लेने की उस पर कोई आक्रमण होना संभव है अभियुक्त को अधिकार के प्रयोग की अनुमति नहीं देता।




Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...