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दलित व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अमानवीय घटना कारित करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें ?

बल ,अपराधिक बल और हमला क्या होता है? What is the force ,criminal force and assault ?

बल(Force ): भारतीय दंड संहिता की धारा 349 में बल(force ) को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है जब कोई किसी अन्य व्यक्ति के गतिमान होने ,गति परिवर्तन, होने गति हीन होने संबंधी कोई कार्य करता है अथवा किसी ऐसे पदार्थ के गतिमान, गति परिवर्तन होने या गतिहीन होने का कार्य करता है या जिस पदार्थ या अन्य व्यक्ति के शरीर के कोई भाग या उसके द्वारा पहनी हुई किसी वस्तु या जाने वाली वस्तु या  किसी ऐसी वस्तु से जो इस प्रकार स्थित है कि ऐसे स्पर्श से  उस अन्य व्यक्ति की वेदना शक्ति प्रभावित होती है स्पर्श में आ जाए तो यह कहा जाता है दोषी व्यक्ति ने बल (force ) प्रयोग किया है परंतु वह तब होता है जब गतिमान गति परिवर्तन या गतिहीन करने वाला व्यक्ति उस गति को निम्नलिखित तरीके से करता है।


(1) अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा

(2) किसी पदार्थ को इस नीति में व्यवस्थित करने के द्वारा कि उसके अपने या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा किसी के किए जाने के बिना ही गति अथवा गति परिवर्तन या गति घटित होती है।


(3) किसी पशु को गतिमान होने के लिए गति परिवर्तन करने के लिए या गतिहीन की उत्प्रेरणा दें।

          बल से हमारा अभिप्राय है कि बल का प्रयोग व्यक्ति के लिए हो ना वस्तु के लिए क्योंकि बल का प्रयोग करने के लिए तथा जिस पर बल प्रयोग किया जाए उस व्यक्ति का होना आवश्यक है।


उदाहरण(1) 'अ' एक बैलगाड़ी में सवार होकर जा रहा था।'ख' बैलगाड़ी रोकने के लिए बैल को रोक देता है। अतः 'अ' ने बल का प्रयोग किया है।


(2)'क' ने क्रोध में आकर अपनी पत्नी 'ख' को धक्का दिया जिससे वह जमीन पर गिर पडी। 'अ' ने बल प्रयोग किया।


आपराधिक बल(Criminal force ):- जो कोई किसी अन्य व्यक्ति पर बिना उसकी सहमति से किसी अपराध करने के उद्देश्य से बल प्रयोग करता है जिससे यह संभावना है कि बल प्रयोग किए जाने वाले व्यक्ति को क्षति, भय या क्लेश पहुंचेगा तो यह कहा जाता है कि अभियुक्त ने आपराधिक बल प्रयोग किया है।

           (धारा 350)


   इस परिभाषा से स्पष्ट है कि आपराधिक बल में अपराधी साशय बल का प्रयोग करता है। इस बल का प्रयोग किसी व्यक्ति पर ही प्रयोग किया जाना आवश्यक है। बल के प्रयोग में उस व्यक्ति की सम्मति नही होनी चाहिए  जिस पर बल का प्रयोग किया जाता है ।क्षति ,भय या क्षोभ ऐसे बल के प्रयोग  से कारित करने के  आशय से , या ऐसे बल के प्रयोग से सम्भाव्यत: कारित करेगा यह जानते हुये आशय करता है वह उस अन्य व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है।

           आपराधिक बल जैसा भारतीय दंड संहिता की धारा 350 में परिभाषित है ऐसे ऐसे बल का बोध होता है जो कि एक व्यक्ति  पर प्रयोग किया गया हो ना की किसी वस्तु पर।( कालरदीन बनाम इम्परर क्रि.लाॅ. जनरल 272)



उदाहरण(1) 'अ' नदी के किनारे बंधी नाव पर बैठा है। 'ब' इस आशय से कि अगर वह नाव को खोल दे तो वह पानी की तेज धारा में डूब जाएगी नाव की रस्सी बिना अ की सम्मति से खोल देता है जिससे नाव  बहाव में जाकर डूब जाती है 'ब' ने आपराधिक बल प्रयोग किया है।

(2)'अ' किसी पालकी पर सवार होकर सड़क से गुजरता है ,ख ने उसको लूटने के इरादे से पालकी को रोक लिया। अतः  आपराधिक कार्य के लिए शक्ति का प्रयोग करके उसने इस धारा के अंतर्गत अपराध किया है।


(3) 'क' सड़क पर साशय 'य को धक्का देता है। यहां क ने अपनी निजी शारीरिक शक्ति द्वारा अपने शरीर को इस प्रकार गति दी कि वह 'य' के संस्पर्श में आये। अतएव  उसने साशय 'य' पर बल का प्रयोग किया है और यदि उसने 'य' की सम्मति के बिना यह कार्य यह आशय  रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है कि वह उससे 'य' को क्षतिमय या क्षोभ उत्पन्न करे तो उसने 'य' पर अपराधिक बल का प्रयोग  किया है।


      (4)   'क' किसी स्त्री का घुंघट साशय हटा देता है। यहाँ 'क' ने उस पर साशय बल का प्रयोग किया है  और यदि उसने उस स्त्री की सहमति के बिना यह कार्य यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए किया है की उससे उसको क्षति ,भय या क्षोभ कारित करने का है तो उसने 'य' पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है।


        धारा 350 के अंतर्गत आपराधिक बल प्रयोग के लिए अभियुक्त द्वारा जानबूझकर स्वेच्छया बल प्रयोग किया जाना आवश्यक है। यदि ऐसा बल प्रयोग अनैच्छिक ( involuntary) आकस्मिक या असावधानी के कारण हो तो उसे धारा 350 के प्रयोजन के लिए आपराधिक बल नहीं माना जाएगा। उदाहरणार्थ यदि किसी स्नान ग्रह का परिचालक असावधानी बस ठंडे पानी का नल खोलने के बजाय उबलते गर्म पानी के नल की टोटी खोल देता है जिससे स्नान करने वाले को क्षति है पहुंचती है तो उसे आपराधिक बल प्रयोग के लिए सिध्द दोष नहीं किया जा सकेगा।


हमला(Assult):- जब कोई इस आशय से और यह जानते हुए कि संभव है कि उसकी किसी हरकत अथवा तैयारी से किसी उपस्थित व्यक्ति को यह आशंका हो गई कि वह ऐसी हरकत इसलिए करता है कि उस व्यक्ति  पर आपराधिक बल प्रयोग करने ही वाला है या तैयारी करता है तो यह कहा जाता है कि वह हमला करता है।


(धारा 351)


स्पष्टीकरण: केवल शब्द हमले की कोटि में नहीं आते। किंतु जो शब्द कोई व्यक्ति प्रयोग करता है वह उसके अंग विक्षेप या तैयारियों को ऐसा अर्थ दे सकते हैं जिससे वे अंग विच्छेप या तैयारियां हमले की कोटि में आ जाए।


उदाहरण(1) 'अ' घूँसा तानकर ब की ओर इस प्रकार बढ़ता है जिससे यह मालूम पड़े कि वह ब  को मारने वाला है तो 'अ ने हमला किया है।


(2) 'A' ने अपने शिकारी कुत्ते की जंजीर B को दिखाकर इस प्रकार खोलना शुरू किया की वह B पर उस कुत्ते को झपटाने   ही वाला था A ने हमला कर दिया।


(3) A छड़ी उठा लेता है और B से कहता है कि मैं तुम्हें पीट दूंगा यद्यपि के द्वारा प्रयुक्त शब्द हमला नहीं है किंतु  उसके द्वारा छड़ी उठाया जाना तथा उसका हाव-भाव उसके शब्दों में हमला प्रकट करता है।


विजय दत्त बनाम सम्राट के मामले में यह  अभिनिर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति की ओर भरी हुई पिस्तौल लक्षित करना धारा 351 के अंतर्गत हमले का अपराध है , जिसके लिए दोषी व्यक्ति को धारा 352 के अन्तर्गत दंडित किया जाएगा ना की धारा 307 के अंतर्गत।


एन.असमुगम बनाम ए.व्ही. एम. बेल्लई चन्नी के वाद में मद्रास उच्च न्यायालय ने यह अभि निर्धारित किया है कि जहां अभियुक्त ने परिवादी पर रिवाल्वर तानकर गोली मार देने की धमकी दी उसने धारा 307 के अधीन हत्या के अपराध का प्रयत्न का अपराध नहीं बल्कि धारा 351 में परिभाषित हमला करने का अपराध किया है।


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