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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

अपहरण और व्यपहरण क्या होता है? दोनो में अन्तर बताओ ।( What is the different between offence of kindnapping from lawful guardianship and distintuished kindnapping and abduction.)

विधि पूर्ण संरक्षण से व्यपहरण:- भारतीय दंड संहिता की धारा 361 के अनुसार जो कोई किसी अवयस्क को यदि वह पुरुष जाति का हो तो 16 वर्ष की आयु  से कम वाले को और स्त्री जाति का हो तो 18 वर्ष से कम आयु वाली को या किसी  विकृत चित्त वाले व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति के अभिभावक या कानूनी रूप से संरक्षण  करने के अधिकार प्राप्त व्यक्ति की सहमति के बिना ले जाता है तो उसने विधि पूर्ण संरक्षण से व्यपहरण का अपराध किया है।


स्पष्टीकरण: इस धारा में विधि पूर्ण संरक्षण शब्दों के अंतर्गत ऐसा व्यक्ति आता है जिस पर ऐसे अवयस्क या अन्य व्यक्ति की देखरेख या अभिरक्षा का भार विधि पूर्ण सौंपा गया है।


अपवाद: इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति के कार्य पर नहीं है , जिसे सदभावना पूर्वक यह विश्वास है कि वह ऐसे किसी अधर्म शिशु का पिता है , या जिसे सदभावना पूर्वक यह विश्वास है कि वह  ऐसे  शिशु की  विधि पूर्ण अभिरक्षा का हकदार है जब तक ऐसा कार्य दुराचरित्र विधि विरुद्ध  प्रयोजना के लिए किया जाता है।

         एक 15 वर्षीय हिंदू कन्या का पति उसका विधि पूर्व संरक्षक होता है और यदि उसका पिता उसे बिना उसके पति की सम्मति के लिए जाता है तो व्यपहरण माना जाएगा यद्यपि उसके पिता का अनैतिक या विधि विरुद्ध आशय  नहीं होता।




आवश्यक तत्व(Necessary Ingredients ): विधि पूर्व संरक्षकता से व्यपहरण का अपराध पारित किए जाने के लिए निम्नलिखित शब्दों का पूरा किया जाना आवश्यक है:-

(1) अवयस्क या विकृत चित्त वाले व्यक्ति का विधि पूर्ण संरक्षण से ले जाना या फुसलाना


(2) ऐसे अवयस्क  की आयु यदि वह स्त्री है तो 18 वर्ष एवं यदि में पुरुष है तो 16 वर्ष से कम होना


(3) ऐसे किसी अवयस्क या विकृत चित्त  वाले व्यक्ति को उसके विधि पूर्ण संरक्षक के संरक्षणता से ले जाया जाना एवं  फुसलाया जाना एवं


(4) ऐसे किसी व्यक्ति को विधि पूर्ण  संरक्षक की सहमति के बिना ले जाया जाना




                   जहां किसी स्त्री को अवैध संभोग के लिए अपहरण या व्यपहरण  किया जाता है वहां अपहरण के लिए आवश्यक है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य स्थान पर ले जाने के लिए बलपूर्वक या छलपूर्वक बाध्य करे। इसमें अभियुक्त का इरादा अपहरण के लिए मुख्य आधार है।

हरियाणा राज्य बनाम राजाराम के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह  अभिनिर्धारित किया है कि यदि अभियुक्त के अनुनय विनय के परिणाम स्वरूप अवयस्क बालक या बालिका उसके साथ स्वयं जाने को तैयार हो जाए तो अभियुक्त को धारा 361  के अपराध का दोषी माना जाएगा ।



विध्याधर नायक बनाम राज्य  के वाद में  जहां एक अप्राप्तवय बालिका के पिता ने बालिका की अभिरक्षा उसके होने वाले पति को सौंप दी ताकि वह उसे अपने घर ले जाकर सभी अनुष्ठान विधिवत संपादित कर सके और जब वह होने वाला पति उसे अपने साथ लेकर जा रहा था तो रास्ते में अभियुक्त उसे अपने साथ ले गए। यह अभिनिर्धारित किया गया  कि वे व्यपहरण के दोषी  थे क्योंकि घटना के समय बालिका अपने विधि पूर्ण  संरक्षक अर्थात होने वाले पति की संरक्षणता में थी।


अपहरण (Abduction): धारा 362 के अनुसार जो कोई किसी व्यक्ति को उस स्थान से ले जाने के लिए बल का प्रयोग  करता है।


या


किन्ही छल पूर्ण उपायों से उत्प्रेरित करता है तो कहा जाता है कि उसने अपहरण का अपराध  किया है।


             अपहरण का अपराध एक निरंतर चलने वाला अपराध है। वह किसी व्यक्ति को पहली बार स्थान से हटाने से पूर्ण नही हो जाता , बल्कि उस समय तक जारी रहता है जब तक कि उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है।


हत्या करने के लिए अपहरण या व्यपहरण : जो कोई किसी व्यक्ति का इस आशय  से अपहरण या व्यपहरण  करे कि उसकी हत्या कर दी जाए तो ऐसा व्यक्ति धारा 364 के अनुसार आजीवन कारावास  जो कि 10 वर्ष तक की अवधि तक का होगा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा ।



व्यपहरण के लिए दंड: जो कोई भारत में से या विधि पूर्ण संरक्षकता में से किसी का अपहरण करेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि 7 वर्ष तक की हो सकेगी , दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।

                                                                                                                                    ( धारा 363)

              जहां अभियुक्त ने लैंगिक संबंध स्थापित करने के आशय से एक अप्राप्तवय बालिका का व्यपहरण  किया और यह पाया गया कि वह बालिका पहले से ही संभोग करने की आदी थी और उसने अभियुक्त के साथ ऐसे संबंधों के लिए  अपनी सहमति दी थी , यह अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण के  अपराध के लिए दोषी है पर बालिका की सम्मति धारा 363 के अधीन अभियुक्त के दंड को कम कर देगी।


व्यपहरण एवं अपहरण में अंतर:


(1) अपहरण किसी भी आयु के व्यक्ति का किया जा सकता है जबकि व्यपहरण केवल किसी नाबालिक या विकृत चित्त व्यक्ति का ही किया जा सकता है। ऐसा नाबालिक यदि पुरुष है तो 16 वर्ष से कम आयु का और यदि वह स्त्री है तो 18 वर्ष से कम आयु की होनी चाहिए।


(2) अपहरण किसी भी व्यक्ति का स्वतः  किया जा सकता है  जबकि व्यपहरण किसी विधि पूर्ण संरक्षक की अभि रक्षा से किया जा सकता है। किसी भी नाबालिग बालक का  बिना उसके विधि पूर्ण संरक्षक के व्यपहरण नहीं किया जा सकता।


(3) अपहरण में बल या छल का प्रयोग किया जाना आवश्यक है जबकि व्यपहरण में बल या छल का प्रयोग किया जाना आवश्यक नहीं है।


(4) जिस व्यक्ति का अपहरण किया गया है यदि वह अपनी स्वतंत्र सहमति प्रदान कर देता है तो यह अपराध नही होगा। जबकि व्यपहरण में सहमति का कोई महत्व नहीं होता।

(5) अपहरण के अंतर्गत किसी व्यक्ति को किसी स्थान से ले जाने के लिए बाध्य किया जाना या उत्प्रेरित किया जाना आवश्यक है जबकि व्यपहरण में ऐसा आवश्यक  नहीं होता।


(6) अपहरण का अपराध निरंतर जारी रहने वाला अपराध होता है। जबकि व्यपहरण का अपराध निरंतर जारी रहने वाला नहीं होकर एक ही बार में पूरा हो जाता है।


(1) ए.आई.आर. 1947 नागपुर 237

(2) 1994 क्रि.एल.जे.एन. ओ.सी. 267 (मद्रास)

(3)रवीनारायण बनाम राज्य 1992 क्रि.ला. ज. 270

(4) ए.आई.आर. 1973 सु.को. 819


(5)(1990) क्रि.एल.जे. 1579 उडीसा 


(6) गंगा देवी(1914) 12 ए.एल. जे. आर .91


(7)हरमेल  सिंह बनाम राज्य  1972 क्रि. एल. जे. 1648( पंजाब और हरियाणा)




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