चोट(Hurt): भारतीय दंड संहिता की धारा 319 में चोट की परिभाषा दी गई है। इसके अनुसार जो कोई व्यक्ति किसी मामले को-
(1) शारीरिक पीड़ा पहुंचाता है,
(2)रूग्ण अथवा रोग ग्रस्त करता है या
(3) दुर्बल अथवा क्षीण करता है उसे चोट कारित करना कहा जाएगा।
इस प्रकार सामान्य रूप से चोट के अंतर्गत वे समस्त कार्य आते हैं जिनसे किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट बीमारि या दुर्बलता पैदा होती है। अतः अपहति (चोट)का अर्थ किसी प्रकार की पीड़ा पहुंचाना।
उदाहरणार्थ किसी स्त्री को उसके बाल पकड़कर खींचना इस धारा के अंतर्गत अपराध है।
साधारण चोट के संबंध में चतुर नाथ का मामला उल्लेखनीय है। इस मामले में अभियुक्त एवं परिवादी में एक रात को झगड़ा हो गया। अभियुक्त ने एक छड़ी से परिवादी के सिर पर निशाना बनाना चाहा। उसके वार से पति को बचाने के लिए परिवादी की पत्नी ने जिस के गोद में एक बच्चा था उन दोनों के बीच में हस्तक्षेप किया। निशाना चूक जाने से वार बच्चे के सिर पर आ पड़ा। उससे गंभीर चोट पहुंची और परिणाम स्वरूप बच्चा मर गया। यह धारण किया गया कि यदि वार अपने सही निशाने पर बैठता तो साधारण चोट पहुचती।इसलिए अभियुक्त साधारण चोट पहुंचाने का दोषी है।
जहां अभियुक्त ने एक स्त्री को थप्पड़ मारा जिससे वह गिर पड़ी जिसके पश्चात उसने उस पर लात से प्रहार किया यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह अपहृति(चोट) कारित करने का दोषी था।
गंभीर चोट(Grievus hurt): धारा 320 के अनुसार निम्नलिखित चोट गंभीर चोट कहलाती है।
(1) पुसंत्व हरण
(2) किसी की आंख की रोशनी स्थाई रूप से नष्ट करना
(3) किसी की कान की शक्ति को स्थाई रुप से नष्ट करना
(4) किसी अंग या जोड़ का विच्छेदन
(5) किसी अंग या जोड़ की शक्तियों की क्षति से उसे स्थाई रूप से नष्ट कर देना
(6) सिर या चोट को स्थाई रूप से विकृत कर देना
(7) हड्डि या दांत टूटना या अपने स्थान से हट जाना
(8) कोई ऐसी चोट जिसके जीवन के लिए संकट उत्पन्न हो जाए या पीड़ित व्यक्ति घोर पीड़ा में रहे।
जहां अभियुक्तों ने मृतक के माथे( कृपाल) पर लाठी से एक प्रहार किया लोहे की सरिया से नहीं जैसे कहा गया और उस क्षति से उसकी मृत्यु हो गई , अभियुक्त को घोर अपहृति के लिये दोष सिद्ध किया गया। जहां अभियुक्त ने मृतक के नाम में पहले गहने की चोरी करने के आशय से उसके नाक से उस भाग को काट दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई उसे घोर अपहति के लिए दोषी ठहराया गया क्योंकि कारित क्षति से मृत्यु होने की संभावना नहीं थी यद्यपि मृत्यु हो गई।
राज्य बनाम शिवलिंगैया के वाद में अभियुक्त ने अचानक मृतक की अंड ग्रंथियों को दबा दिया जिससे आघात और हृदय गति रुक जाने से उसकी मृत्यु हो गई यह अभि निर्धारित किया गया कि अभियुक्त के कार्य से जीवन को खतरा था अतः धारा 320 के आठवें खण्ड के आधार पर वह घोर अपहति कारित करने का दोषी था।
स्वेच्छा पूर्वक चोट पहुंचाना(Voluntarily causing hurt): भारतीय दंड संहिता की धारा 321 के अनुसार जब कोई व्यक्ति इस आशय से कार्य करता है कि उसके द्वारा किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाए या इस ज्ञान के साथ कि इस बात की संभावना है कि यह द्वारा किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाए और वह उसके द्वारा किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाता है तो यह कहा जाता है कि उसने स्वेच्छा पूर्वक चोट पहुंचाई है।
स्पष्टीकरण: कोई व्यक्ति स्वेच्छया गंभीर चोट पहुंचाता है यह नहीं कहा जाता है सिवाय जबकि वह गंभीर चोट पहुंचाता है और गंभीर चोट पहुंचाने का उसका आशय हो या गंभीर चोट होता है वह सम्भाव्य जानता हो किंतु यदि वह यह आशय रखता है या यह साम्भाव्य जानते हुए कि वह किसी एक किस्म की गंभीर चोट पहुंचाए तो वह स्वेच्छया से गम्भीर चोट पहुँचाता है यह कहा जाता है।
उदाहरण :(1) 'अ' और 'ब' के बीच किसी बात पर बहस हो गई जिस से उत्तेजित होकर "अ' ने "ब' पर बेंत प्रहार किया जिससे 'ब' के सिर से खून बहने लगा । 'अ' ने चोट पहुंचाने का कार्य किया।
(2) 'अ' ने रात के अंधेरे में अपने घर में किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति को अनुभव करके उस पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया। जिससे उस व्यक्ति का पैर कट गया।'अ' ने धारा 322 के अंतर्गत गंभीर चोट पहुंचाने का अपराध किया है। यदि अ ने यह कार्य उस समय किया होता जब वह उस व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ देख कर उत्तेजित हो जाता है तो वह अपराध धारा 322 के अनुसार दण्डनीय होता।
स्वेच्छा पूर्वक चोट या गंभीर चोट पहुंचाने से संबंधित अपराध:-
(1) भयानक हथियारों या साधनों द्वारा गंभीर चोट पहुंचाना ।
( धारा 324,326)
(2) जब चोट ऐसी संपत्ति उद्दीपित(extort) करने या अवैध कार्य करने के उद्देश्य से पहुंचाई जाए ।
(धारा 324 , 326)
(3) विषैली वस्तु द्वारा चोट पहुंचाना
( धारा 328)
(4) जब चोट स्वीकृति उद्दीपित करने के लिए संपत्ति के लिए संपत्ति के प्रत्यावर्तन को बाह्य करने के लिए पहुंचाई जाए।
( धारा 330, 331)
(5) लोक सेवक को अपने कर्तव्य से च्युत करने के लिए जब चोट पहुंचाई जाए
(6) जब स्वेच्छा से चोट किसी गंभीर और आकस्मिक उत्तेजना द्वारा पहुंचाई जाए जिसका अपराधी को किसी अन्य व्यक्ति को पहुंचाने का ना तो आशय हो और ना ज्ञान हो तो इस प्रकार चोट पहुंचाने पर धारा 335 के अंतर्गत दोषी होगा।
(7) जब कोई व्यक्ति ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से ऐसा कार्य करेगा जिससे मानव जीवन या दूसरों का व्यक्तिगत क्षेत्र संकटपन्न हो जाए किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाता है वह दोनों में से किसी भाँति कारावास से जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो ₹1000 तक का हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जाएगा।
लोक अभियोजक बनाम एन .एस. मूर्ति के वाद में अभियुक्त ने अपनी पत्नी के साथ हुए अचानक झगड़े में उसके सिर पर दो सौ ग्राम का बांट दे मारा। जिसके कारण पत्नी की मृत्यु हो गई। मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर यह पाया गया कि चोट साधारण स्वरूप की थी तथा इस बात का कोई सबूत नहीं था कि मृतिका के मृत्यु अपहति से उत्पन्न मानसिक आघात के कारण हुई है। अतः अभियुक्त को धारा 323 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया ना की धारा 304 के अधीन।
श्रीप्रकाश बनाम राज्य के मामले में अभियुक्त ने बालक को पीटा परंतु बालक के शरीर पर किसी चोट के निशान नहीं पाए गए। उसकी तिल्ली बढी होने के कारण अभियुक्त द्वारा उसे पीटे जाने के फल स्वरुप बालक की मृत्यु हो गई। अता न्यायालय ने अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के अंतर्गत दोषी न मानते हुए धारा 323 एवं 326 के अंतर्गत दोष सिद्ध किया।
(1) (1919) बम्बई एल.आर. 110
(2 शैलेंद्र नाथ हाती बनाम अश्वनी 1988 क्रि.एल.जे.343 (कलकत्ता )
(3)मोहिन्दर सिंह बनाम राज्य ,1985 क्रि.एल.जे. 1903 (एस.सी)
(4) गुरुबुल बनाम एम्प.1945 मद्रास ,43
(5) ए .आई. आर .1988 एस.सी.115
(6) 1988 क्रि.ला.ज. 982
(7)ए.आई.आर. 1991 सु.को.(1069)
(8)1995 क्रि. एल. जे. 3975 ( एस.सी.)
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