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दलित व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की अमानवीय घटना कारित करने वाले व्यक्तियों को सजा कैसे दिलायें ?

राजद्रोह क्या होता है?define Sedition and explain the law relation to it.

राजद्रोह(Sedition): भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (क) में राजद्रोह की परिभाषा निम्न प्रकार दी गई है:


" राजद्रोह का अपराध तब होता है जब वादी द्वारा लिखे गए शब्दों द्वारा अथवा संकेतों द्वारा अथवा दृश्य प्रदर्शन द्वारा अथवा किसी अन्य तरीके से


(क) भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या तिरस्कार पैदा किया जाता है अथवा


(ख) पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है या

(ग) शत्रुता बढ़ाई जाती है अथवा

(घ) शत्रुता बढ़ाने का प्रयत्न किया जाता है । इस अपराध के लिए ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास एवं जुर्माने से अथवा 3 वर्ष के कारावास तथा जुर्माने दोनों से दंडित किया जा सकता है ।

      उपर्युक्त परिभाषा के अंतर्गत कुछ व्याख्या भी की गई है जो कि निम्नलिखित हैं

(1) द्वेष(Disaffection ) मे धमकी और शत्रुता की भावना भी सम्मिलित है।

(2) घृणा द्वेष या उपेक्षा को उत्तेजित किए बिना या उत्तेजित करने के प्रयास के बिना सरकार के प्रति कार्यों के प्रति कानूनों द्वारा उनको परिवर्तन करने की दृष्टि से असहमति प्रकट करने वाली आलोचनाएं इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है।

(3) घृणा , उपेक्षा या द्वेष  को उत्तेजित किए बिना या उत्तेजित करने का प्रयास  किए बिना सरकार की प्रशासनिक या अन्य क्रिया के प्रति असहमति प्रकट करने वाली आलोचनाएं इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है।

             इस प्रकार धारा 124 (क) के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बोले गए लिखे गए या संकेत को अथवा दृश्य रूपण द्वारा विधि द्वारा स्थापित भारत सरकार के प्रति घृणा या अवमानना या अप्रीति उत्पन्न करता है  या उत्पन्न करने का प्रयत्न करता है तो उसे इस धारा के अंतर्गत राजद्रोह के अपराध के लिए दंडित किया जा सकेगा।


इस धारा के तत्व(1) भारत सरकार के प्रति क्षण आया उपेक्षा या द्वेष उत्पन्न करना या उत्तेजित करना या उनका प्रयास करना।

(2) यह कार्य या प्रयास जो

(3) बोले हुए या लिखित शब्दों द्वारा

(ब) संकेतों  द्वारा

(स) दृष्टव्य  प्रदर्शन द्वारा किए जाएं

     राजद्रोह के अपराध के लिए निम्नलिखित बातें भी आवश्यक है

(1) अभिप्राय(intention): इस अपराध के लिए मुख्य तत्व अभिप्राय होता है लेखक वक्ता या प्रकाशक के द्वारा जारी वक्तव्य लेख या पत्र से उसका अभिप्राय जाना जा सकता है।

(2) उत्तेजित करना या उत्तेजित करने का प्रयास करना: राजद्रोह के लिए केवल अनुचित भावना का अभिप्राय होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि राज्य के प्रति घृणा या उपेक्षा की भावना दूसरों से उत्तेजित करना या करने का प्रयास करना।


(3) गैरकानूनी साधन और तरीके: कानूनी ढंग से सरकार का या किसी उच्च सत्ताधारी का बदलना कोई अपराध नहीं होता परंतु गैरकानूनी ढंग से और शक्ति का हिंसा का प्रयोग करके सरकार बदलने का प्रयत्न राजद्रोह होता है।


उदाहरण के लिए: अमृत बाजार पत्रिका लिमिटेड कलकत्ता  के मामले में राजद्रोह शब्द की व्याख्या की गई है। इस पत्र में भारत किसका है  तथा गांधी जी की गिरफ्तारी अधिक निर्लज्ज (outragrous) प्रकाशित हुई। सरकार के दृष्टिकोण में इन लेखों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष में अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति घृणा  और तिरस्कार उत्पन्न होता था। अतः उस समाचार पत्र की सारी प्रतियां धारा 124 (क) के अधीन जब्त  कर ली गई।


             प्रतिरक्षा में तर्क यह दिया गया है कि लेखक को यह प्रकट करने की स्वतंत्रता थी कि  वे लेख राजद्रोह वाले आशय  से नहीं लिखे गए थे और जब तक की धारा 124 (क) के अधीन दोष सिद्ध ना प्रमाणित हो जाए समाचार पत्र की जब्ती का आदेश जारी नहीं किया जा सकता ।

             निर्णायक यह किया गया कि अभिलेख द्वारा जब लेखक के आशय  को समझ लिया जाए तो उसके लिए अतिरिक्त साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती । अतः आवेदन खारिज कर दिया गया।


सामज्ञी (Queen ) बनाम बाल गंगाधर तिलक के वाद में बंबई उच्च न्यायालय के  तत्कालीन न्यायाधीश स्ट्रेटची ने अभि निर्धारित किया कि धारा 124 (क) के अंतर्गत अपराध का आवश्यक तत्व हिंसा को भड़काना है । अतः किसी भी व्यक्ति को तब तक राजद्रोह के अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता जब तक कि उसके भाषण या लेखन से भारत सरकार के विरुद्ध या विप्लव उकसाने वाली कोई बात ना पाई जाए   । इस मामले में अभियुक्त लोकमान्य तिलक के राजद्रोह के लिए दोषी ठहराया गया तथा अपील में प्रिवी कौंसिल ने भी उनकी दोष  सिद्ध को  उचित ठहराते हुए अपील अस्वीकार कर दी ।



           कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह  अभिनिर्धारित किया है कि समाचार पत्र का संपादक अपने समाचार पत्र में छापे गए और बगैर हस्ताक्षर राजद्रोह आत्मक पत्रों के लिए  इस धारा के अधीन दंडनीय है ।


        लाहौर उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की प्रेस का स्वामी उस प्रेस में छापे गए राजद्रोहात्मक लेखों को प्रकाशन के लिए  इस धारा के अधीन दंडित नहीं किया जा सकता यदि न्यायालय इस बात से संतुष्ट हो की उन लेखों के छापे जाने केक समय वह उस शहर से बाहर गया हुआ था और उनकी विषय वस्तु से अवगत नही था ।




(1)(1886) 22 बम्बई 112


(2) अर्वूव कृष्ण बोस बनाम एम्प (1907) 35 कलकत्ता 141


(3)चुन्नीलाल बनाम  एम्प (1931)12 लाहौर 483


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