हवाई युद्ध नियमों के कुछ मौलिक सिद्धांत है जिनका पालन हवाई युद्ध में किया जाता है।
प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय विधि शास्त्री ओपेनहाइम (Openheim)के अनुसार यह निम्नलिखित है
(1) मानवीयता का सिद्धांत: इसके अंतर्गत आवश्यकता से अधिक क्रूरता और हिंसा का प्रयोग नहीं करना है
(2) युद्ध ना करने वाली जनता पर सीधा आक्रमण करने का निषेध।
(3) तटस्थ देशों को किसी युद्ध मान देशों के विरुद्ध तैयारी का अथवा लड़ाई का क्षेत्र ना बनाना।
हेग सम्मेलन (The Hague coference):- पहले गुब्बारों द्वारा या जहाजों द्वारा विस्फोटक द्रव्य फेंकने का कार्य होता था परंतु सन 1899 से पहले हेग सम्मेलन में इस पर पाबंदी लगाई गई।
सन् 1907 के दूसरे हेग सम्मेलन तथा वायुयानों के तथा हवाई लड़ाई से क्षेत्र में नए अविष्कारों के कारण परिस्थिति बदल गई और कई राज्य इस विषय पर पाबंदी नहीं लगाना चाहते थे। इस अधिवेशन में निम्नलिखित नियमों पर आम सहमति हुई-
(1)असैनिक जनता को डराने या आतंकित करने के उद्देश्य से इसे हानि पहुंचाने के प्रयोजन से अथवा सैनिक स्वरूप रखने वाली वैधानिक संपत्ति का विध्वंस करने के लिए बम बरसा नहीं की जा सकती।
(2) हवाई बम वर्षा केवल निम्नलिखित मामलों में वैध है:-
(१) जब वह किसी सैनिक लक्ष्य पर की गई हो और वे लक्ष्य निम्नलिखित हो
(1) सेनायें
(2) सेनाओं से सम्बन्धित स्थान
(3)शास्त्रगार
(4) गोलाबारी और सैनिक सामग्री तैयार करने वाले महत्त्वपूर्ण स्थान
(5) स्थानीय सेवाओं की लडाई के क्षेत्र में बिल्कुल लगे प्रदेशों में दूरवर्ती नगरों कस्बा गांव आदि इमारतों पर बम वर्षा वर्जित है यहां तक की कुछ सैनिक स्थान असैनिक जनता के निवास स्थानों के संबंध और बमवर्षा के उद्देश्य से उन्हें प्रथक प्रथक ना किया जा सके ऐसे स्थानों पर भी बम वर्षा निषिद्ध है।
सन् 1911 में अंतरराष्ट्रीय कानून की एक संस्था ने मेर्डिड में हवाई युद्ध कानूनी स्थिति पर विचार करके यह मौलिक सिद्धांत स्वीकार किया कि हवाई लड़ाई में स्थान और समुद्री लड़ाई की अपेक्षा अधिक मात्रा में हानि नहीं पहुंचा नहीं चाहिए। इस सिद्धांत में निम्नलिखित त्रुटियां थी
(1) इनमें रक्षा किए जाने वाले तथा असुरक्षित स्थानों की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं की गई थी।
(2) गोला बारूद और हथियार बनाने के अधिकांश कारखाने तथा सैनिक बस्तियां प्राया आबादी वाले कस्बों और शहरों में होती हैं। इनकी बमवर्षा में वैधता का प्रश्न बड़ा जटिल और संदिग्ध था।
(3)हवाई युद्ध के नवीन साधनों के आविष्कार और विलक्षण उन्नति के कारण उपयुक्त नियमों की सर्वथा अपूर्ण और अपर्याप्त होना था।
(4) युद्ध की नई धारणा का विचार नहीं किया गया जिसमें युद्ध की आवश्यकता सर्वोपरि मानी जाती है। शत्रु की समूची जनता के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने में कोई दोष नहीं समझा जाता।
प्रथम विश्वयुद्ध और वाशिंगटन सम्मेलन(First war and wasington conference ):- प्रथम विश्व युद्ध में भयंकर हवाई युद्ध हुए जिन में युद्ध की समाप्ति सैनिक लक्षणों से दूरवर्ती खुले शहरों और कस्बों पर बड़े अविवेक पूर्ण ढंग से हवाई बम वर्षा के साथ हुई।
अतः उन परिस्थितियों पर विचार करने के बाद सन 1922 में वाशिंगटन में एक समिति करने के लिए एक सम्मेलन बुलाया गया जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका ग्रेट ब्रिटेन फ्रांस इटली और जापान ने भाग लिया। इस सम्मेलन में एक प्रस्ताव द्वारा हवाई लड़ाई की समस्याओं पर विचार करने के लिए एक समिति बना दी गई। इस समिति ने सन 1933 हवाई युद्ध के नियमों की एकसंहिता बना दी और सूक्ष्म नियम यह बनाए कि
(1)वैयक्तिक हवाई जहाजों की आत्मरक्षा के लिए शस्त्र वर्षाना पूर्ण रूप से वर्जित है।
(2) असैनिक जनता को डराने या उसकी संपत्ति को नष्ट करने के लिए बम वर्षा करना निषिद्ध है।
(3) शत्रु से जबरन धनराशि या समान वसूली करने के लिए बम बरसा नहीं की जा सकती.
(4) हवाई बम वर्षा तभी वैद्य होती है जब ऐसे सैनिक अड्डों संचार के साधनों गोला बारूद बनाने के कारखानों को लक्ष्य बनाकर की जाए जिनके विध्वंस से शत्रु की सैनिक हानि हो।
(5) असैनिक जनता का ध्यान रखते हुए सैनिक लक्ष्यों पर की जाने वाली बम वर्षा अवैध है।
(6) स्थानीय सेनाओं की कार्यवाही यों के अति निकटस्थ स्थानों में अतिरिक्त अन्य शहरों कस्बा इमारतों पर बम वर्षा करना असंवैधानिक है।
(7) सार्वजनिक पूजा उपासना कला धर्म विज्ञान तथा परोपकार का कार्य करने वाली इमारतों स्मारकों शरणार्थियों के बने चिकित्सालयों को हवाई बम वर्षा का लक्ष्य नहीं बनाया जा सकता।
(8) स्थल सेनाओं पर लागू होने वाले युद्ध और तटस्थता के नियम हवाई युद्ध पर भी लागू होते हैं।
(9) किसी युद्ध पक्ष की सेनाओं द्वारा उपयुक्त नियमों के भंग होने पर उससे होने वाली क्षति का मुआवजा देना पड़ेगा।
यद्यपि उपयुक्त नियमों का राज्यों ने समर्थन नहीं किया परंतु फिर भी उपयुक्त नियमों के भंग होने की स्थिति में क्षतिपूर्ति देनी पड़ी है।
सन 1932 के निशस्त्रीकरण सम्मेलन के सामान्य आयोग (General commission of the disarmament) ने निश्चय किया की असैनिक (civil) जनता पर हवाई आक्रमण करना पूर्ण निषिद्ध है।
द्वितीय विश्व युद्ध(Second world war):- दूसरे विश्व युद्ध में हवाई युद्ध के नियमों की घोर अवहेलना हुई। सन 1932 में इंग्लैंड और फ्रांस से यह घोषणा की गई कि वह असैनिक क्षेत्रों पर बम वर्षा नहीं करेंगे। 17 सितंबर 1932 में जर्मनी ने पारस्परिकता के आधार पर इस नियम के पालन की घोषणा की परंतु उस घोषणा के 6 दिन बाद उसने पोलैंड की राजधानी वारसा पर अंधाधुंध बम बरसा की। नार्वे के आक्रमण में इसे पुनः तोड़ा गया। 1940 41 में हिटलर ने ग्रेट ब्रिटेन को हराने तथा उसकी जनता में त्रास और आतंक उत्पन्न करने के लिए लंदन तथा अन्य ब्रिटिश शहरों पर अंधाधुंध बम वर्षा की तो ब्रिटेन ने लक्ष्य क्षेत्रीय बम बरसा(target area bombing) प्रारंभ की। द्वितीय विश्व युद्ध के समय सामान्य रूप से मित्र राष्ट्री यह सिद्धांत मानते रहे कि शत्रु के युद्ध प्रयत्नों से संबंध न रखने वाले नगरों और स्थानों पर बम वर्षा करना अवैध है किंतु जापान को हराने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने अणुबम का प्रयोग किया।
अणुबम का उपयोग(use of atomic power):- संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 6 अगस्त 1945 में जापान के हिरोशिमा नागासाकी नामक नगर पर बिना कोई चेतावनी दिए 11 अगस्त को अणु बम गिराए। अनुमान है कि इस प्रकार अणु बम विस्फोट में केवल हिरोशिमा नगर में ही करीब 60,000 लोग मारे गए। 100000 लोग घायल हुए और 20 लाख के करीब बेघर हो गये। इस घटना की सारे विश्व में निंदा की गई और उसे मानवीयता तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के विरुद्ध घोर अपराध वाला समझा गया। उसके बाद अनेक बार अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में अणु बम के विस्फोट को और प्रयोगों पर प्रतिबंध लगाने की कई देशों द्वारा मांग उठती रही सन 1950 में संयुक्त राष्ट्र संघ इस दिशा में प्रयत्न कर रहा है।
अणु शक्ति(Atomic energy ) का युद्धों में प्रयोग करने के लिए निम्नलिखित संधियां की गई हैं:-
(1)Neclear test ban treaty 1963.
(2)Treaty on non protliferation of Nuclear weapons 1968
(3)treaty on prohibition of emplacement of nuclear weapons in sea bed and ocean floor 1971 or sea bed treaty (1871).
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