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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

अपराध क्या होता है उसकी परिभाषा दीजिए? अपराध की मुख्य अवस्थाओं का उल्लेख कीजिए?( define crime. Discuss the essential stage of crime. Clarify the difference between crime and torts.)

अपराध वह कृत्य है जो ना केवल विधि द्वारा वर्जित है बल्कि वह समाज की नैतिक मान्यताओं के प्रतिकूल भी है जिसके लिए किसी देश की दंड विधि के अधीन दंड का प्रावधान हो। उदाहरण : हत्या ,चोरी, डकैती, बलात्कार आदि अपराध है क्योकि यह न केवल दंड  विधि के अंतर्गत दंडनीय है बल्कि समाज विरोधी कृत्य भी हैं। इसके ठीक विपरीत संपरिवर्तन (conversion) मानसिक आघात आदि समाज के हित में ना होते हुए भी अपराध नहीं है बल्कि केवल अपकृत्य हैं क्योंकि इनके लिए दंड का प्रावधान ना होकर अपकृत्य विधि में क्षतिपूर्ति की व्यवस्था है।

                 वास्तव में अपराधी कैसा रोग और बुराई है जिससे संपूर्ण सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन प्रभावित हो उठता है। समाज के लिए यह बहुत ही घातक है। इसी रोग के निदान के लिए दंड विधि का प्रादुर्भाव हुआ है।

           अपराध शब्द जितना प्रचलित है उसकी परिभाषा देना ही कठिन है। रसेल का भी ऐसा ही विचार है। वे कहते हैं कि अपराध को परिभाषित करना एक ऐसा कार्य है जो अब तक किसी लेखक ने संतोषजनक रूप से नहीं किया है। वास्तव में अपराध मूल रूप से समय समय पर समाज के उन वर्गों द्वारा अपनाई गई नीति का निर्माण है जो अपनी सुरक्षा और आराम की रक्षा करने के लिए राज्य  की प्रभुसत्ता द्वारा  उस व्यवहार को दबा देने में जिसके बारे में वे सोचते हैं कि उससे उनकी स्थिति को खतरा उत्पन्न हो सकता है, पर्याप्त शक्तिशाली और चतुर है। इसकी अभी तक कोई एक सर्व सम्मत परिभाषा नहीं दी जा सकती है। भिन्न भिन्न विधि शास्त्रियों ने इसकी भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी है।


ब्लैकस्टोन की परिभाषा : ब्लैकस्टोन के अनुसार ऐसा कोई कार्य करना अथवा करने से विरत रहना जिससे सामान्य विधि के किसी नियम का अतिक्रमण होता हो अपराध कहलाता है।

       ब्लैकस्टोन ने इसकी एक और परिभाषा दी है जिसके अनुसार अपराध का अर्थ है ऐसे लोक अधिकारों तथा कर्तव्यों का उल्लंघन करना जो संपूर्ण समाज अथवा समुदाय को एक समाज अथवा समुदाय को एक समाज अथवा समुदाय के रूप में प्राप्त है।

स्टीफेन सर्जेन्ट अपराध को विधिक अधिकार का ऐसा उल्लंघन मानते हैं जिसमें दुष्ट कृति की भावना (Mens Rea) सार्वजनिकता के संदर्भ में देखी जा सकती है।


कैली की परिभाषा: कैली के अनुसार अपराध उन अवैधानिक कार्यों को कहते हैं जिनके बदले में दंड दिया जाता है और वह क्षम्य  नहीं होते हैं। यदि क्षम्य होते हैं तो भी जी के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को क्षमा प्रदान करने का अधिकार नहीं है।

गेरी फेली की परिभाषा : गेरी फेली के अनुसार  Crime is a violation of the prevalent sentiments of pity propriety.


प्रोफेसर पेटन ने अपराध का परिलक्षण राज्य द्वारा प्रक्रिया को नियंत्रित रखना दंड का परिहार करना और दंड का आरोहण करना बतलाया है।


मिलर की परिभाषा : अपराध वे कृत्य या अकृत्य उलंघन कार्य है जिसकी विधि समादेशित अथवा निर्देशित करती है और उन  उल्लंघनों को सरकार अपने नाम से कार्यवाही करके दंडित करती है।


आस्टिन के अनुसार अपराध वे अवैधानिक कार्य हैं जिनके साबित हो जाने पर न्यायालय अपराधियों को दंड देता है और ऐसे दंड में कमी करने का एकमात्र अधिकार राज्य को होता है

क्रास एण्ड जोन्स के अनुसार अपराध जानबूझकर किया गया विधिक अपकार (Legal wrong ) है जिस के उपचार के रूप में राज्य द्वारा अपराधी को दंडित किया जाता है। प्रोफेसर सदरलैण्ड ने अपराध को परिभाषित करते हुए कथन किया है कि यह मानव का ऐसा आचरण है जिससे अपराधिक विधि का उल्लंघन होता है।

डोनाल्ड टेफ्ट (Donalt Taft) के अनुसार अपराध एक ऐसा कृत्य है जिसका किया जाना दंड विधि के अंतर्गत निषिद्ध  है जो किए जाने पर दण्डनीय  है।


हेल्सबरी (Halsbury) के विचार से अपराध एक ऐसा कृत्य है जो लोक हित के विरुद्ध तथा जिसके कारित होने वाले को विधि के अंतर्गत दंडित किया जाता है।


       अपराध की उपयुक्त परिभाषा व से यह स्पष्ट है कि इसके अंतर्गत आने वाले सभी कार्य अवैधानिक होते हैं इनसे जन सामान्य की क्षतिकारित होती है जिनके बदले में अपराधियों को दंड दिया जाता है।

        उपर्युक्त विधिशास्त्रियों द्वारा दी गई परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष  निकाला जा सकता है कि अपराध के लिए कम से कम 2 तत्वों का विद्यमान होना परम आवश्यक है

(1)किसी कृत्य का किया जाना या किसी कृत्य का लोप (Act or omission)


(2) दूषित आशय या दुर्भावना(Mens Rea)

इन उपयुक्त दो तत्वों के साथ एक शर्त यह भी है कि इन कृत्यों  या अकृत्यों के लिए दंड विधि में दंड  नियत होना चाहिए।


अपराध के आवश्यक तत्व: आपराधिक दायित्व का मूलभूत सिद्धांत यह है कि केवल कार्य किसी को अपराधी नहीं बनाता यदि मन भी अपराधी ना हो। इसका आशय यह है कि किसी व्यक्ति ने जो कृत्य किया है उसे तब तक अपराध नहीं माना जा सकता है जब तक कि उस कार्य को करने में उसका दुराशय ना हो। इस सिद्धांत के विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि किसी कृत्य को अपराध माना जाने के लिए निम्नलिखित दो तत्वों का होना आवश्यक है:-


(1) भौतिक कृत्य तथा

(2) मानसिक तत्व जिसे दुराशय (Mens rea)कहा गया है। प्रोफेसर टॉल के अनुसार अपराधिक दायित्व उत्पन्न होने के लिए निम्नलिखित बातें विद्यमान होना आवश्यक है:

(1) व्यक्ति द्वारा कोई कृत्य किया जाना या किसी ऐसे कृत्य को ना किया जाना जिसे करना उससे आपेक्षित है। दूसरे शब्दों में इसे व्यक्ति का आचरण (conduct) कहा जा सकता है जो कृत्य या अकृत्य इन दोनों में से किसी भी रूप में हो सकता है।


(2) कृत्य या अकृत्य का बाह्य परिणाम जो विधि द्वारा निषिद्ध माना गया है।

(3) कृत्य या अकृत्य का विधि द्वारा वर्जन (Prohibited by law)

(4) कृत्य स्वेच्छा पूर्वक दुराशय से किया गया हो।


(5) कृत्य और उसके परिणाम में युक्ति युक्त एक बंध होना चाहिए।


अपराध की मुख्य अवस्थाएं(Essential stages of crime):- अपराध किए जाने की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं:-

(1) अपराध करने का आशय( Intention of crime )


(2) अपराध की तैयारी (Preparation of crime )


(3) अपराध करने का प्रयास (Attempt of commit crime )


     और चौथी स्थिति स्वयं अपराध होती है। उपयुक्त स्थिति में पहली स्थिति अर्थात अपराध करने का आशय दंडनीय नहीं होता। दूसरी स्थिति भी दंडनीय नहीं होती शिवाय इन तीन अवस्थाओं के:


(1) भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने की तैयारी( धारा 125)


(2) भारत सरकार के साथ शांति का संबंध रखने वाली किसी भी शक्ति के राज्य के क्षेत्र में लूटपाट( धारा 126)


(3) डकैती डालने की तैयारी


         तीसरी स्थिति जिसमें अपराध करने का प्रयास(Attempt ) होता है दंडनीय होता है चाहे अपराध घटित ना हुआ हो। उदाहरण के लिए यदि A रुपए निकालने के लिए B की जेब में हाथ डाल देता है परंतु जेब में कुछ ना होने के कारण वह निष्फल रहता है। यद्यपि उस कार्य से कोई अपराध नहीं हुआ है परंतु फिर भी अपराध करने का यह प्रयास दंडनीय अपराध(Punishable offence) है।


अपराध एवं अपकृत्य में अंतर: अपकृत्य(टाॅर्ट) शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी भाषा के टार्टम(Tortum) शब्द से हुई है जिसका अंग्रेजी भाषा के पर्यायवाची शब्द अपकार (wrong) है और जिनको हानि पहुंचाने के लिए किया जाए।ऐसे कार्यों के लिए अपराधी को छतिपूर्ति (Damages) देनी पड़ती है। अपकृत्य के संबंध में चैम्बर्स शब्दकोश में यह उल्लेखित है कि अपकार कोई ऐसी त्रुटि या क्षती नहीं है जो किसी संविदा के भंग होने के कारण हो, और उसका उपचार प्रतिकार या क्षतिपूर्ति हो।


      सामण्ड(Salmond) ने अपकृत्य के बारे में लिखा है कि अपकृत्य (टाॅर्ट) के अंतर्गत केवल वे दुष्टकृतिपूर्ण कार्य  रखे जा सकते हैं जिनके लिए कॉमन विधि द्वारा क्षतिपूर्ति की व्यवस्था हो और सिर्फ संविदा भंग न्याय भंग या सिर्फ सम्यक दायित्व भाग ही ना हो।


        स्वभाव से अपराध एवं दुष्कृति दोनों एक जैसे लगते हैं और दोनों ही अपकार्य(wrong) की श्रेणी में आते हैं लेकिन दोनों के बीच कुछ अंतर पाया जाता है। इन दोनों के बीच अंतर का मुख्य आधार इनका क्रमसा आपराधिक एवं दीवानी प्रकृति का अपकार्य होता है। इन दोनों के बीच मुख्यतया निम्नलिखित अंतर है

(1) अपराध एक अपराधिक कृत्य होता है जबकि अपकृत्य एक दीवानी अपकार्य(civil wrong ) होता है।


(2) अपराध का प्रभाव संपूर्ण समाज के लोक अधिकारों पर पड़ता है जबकि अपकृत्य का प्रभाव किसी व्यक्ति विशेष अथवा व्यक्तियों के किसी समूह विशेष के सिविल अधिकारों पर पड़ता है।


(3) अपराध के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार स्वयं पीड़ित व्यक्ति को अथवा उसकी ओर से राज्य को होता है जबकि दुष्कृति के विरुद्ध कार्यवाही किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा भी की जा सकती है।


(4) अपराध के लिए दिया जाने वाला दंड शारीरिक अथवा आर्थिक( कारावास और जुर्माने) के रूप में भी हो सकता है जबकि दुष्कृति  में धन के रूप में क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाता है।



(5) अपराध में आशय एक महत्वपूर्ण तत्व होता है जबकि अपकृत्य में इस का होना आवश्यक नहीं है।


(6) अपराध में अपराधी को दंड देने का मुख्य उद्देश्य अपराधों का निवारण करना होता है जबकि अपकृत्य में क्षतिग्रस्त व्यक्ति की क्षति पूर्ति करना मुख्य उद्देश्य होता है।



(7) अपराधों का विचारण डांडिक न्यायालयों में होता है जबकि अपकृत्य के मामलों का विचारण व्यवहार न्यायालयों  में होता है।


(8) अपराधिक विचारण में अभियोजन को अपना पक्ष पूर्णता साबित करना होता है जबकि अपराधी द्वारा स्वयं किए जाने के प्रति संनदेह की स्थिति उत्पन्न किये जाने की दशा में उसे संदेह का लाभ देकर छोड़ा जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि केवल संदेह के आधार पर किसी अभियुक्तों को सिद्धदोष नहीं किया जा सकता है लेकिन अपकृत्य में ऐसा नहीं है क्योंकि इसमें अपराधी को दंड ना दिया जा कर उससे वादी को छतिपूर्ति दिलाई जाती है।







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