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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

संधि किसे कहते हैं? संधियों के निर्माण तथा समाप्ति की विवेचना कीजिए। युद्ध का संधियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?( what is treaty? Discuss the formation and termination of treaties. Discuss the effect of War on treaty.)

सन्धि(Treaty):- अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत संधि का महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान युग में अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत संधियों को इसका महत्वपूर्ण स्रोत माना गया है। जब भी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय किसी अंतरराष्ट्रीय झगड़े पर अपना फैसला देता है तो सर्वप्रथम वह यह देखता है कि उस विषय पर कोई अंतरराष्ट्रीय संधि है अथवा नहीं। यदि उस विषय पर कोई अंतरराष्ट्रीय संधि होती है तो न्यायालय का फैसला संधि के प्रावधानों पर ही निर्भर करता है।


          अंतरराष्ट्रीय संधि दो या दो से अधिक राज्यों के बीच अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत आपस में संबंध स्थापित करने के लिए एक प्रकार का समझौता होता है।

       फ्रांसीसी विद्वान लातेरपस्त(Lauterpacht) ने संधि की परिभाषा इस प्रकार दी है कि यह राज्यों या राज्यों के संगठनों के मध्य ऐसे संविदा आत्मक समझौते हैं जिनके पक्षों  में कुछ अधिकारों और दायित्वों का सृजन होता है।


     It is an agreement of the contractual character between state of organition of state creating legal rights and obligation between the parties .


ओपेनहाइम (Oppenheim) ने इसका लक्षण स्पष्ट करते हुए लिखा है कि अंतर्राष्ट्रीय संधियां ऐसे समझौते हैं जो कानूनी अधिकार और कर्तव्य उत्पन्न करते हैं  और राज्यों संगठनों के मध्य किए जाते हैं।


प्रो.स्वार्जनाबर्जर(schwarzenberger) के अनुसार संधियां अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषयों के बीच समझौते हैं जो अंतर्राष्ट्रीय विधि में बंधन कारी दायित्व उत्पन्न करते हैं।


स्टार्क(starke)के शब्दों में संधि का लक्षण किया जा सकता है कि यह एक ऐसा समझौता है जिसमें दो या दो से अधिक राज्य आपस में अंतरराष्ट्रीय कानून के अधीन संबंध स्थापित करते हैं या करना चाहते हैं।


संधि (treaty) की व्याख्या वियना सम्मेलन सन 1969 में हुई। यह संधि विषयक विधि के सम्मेलन में अनुच्छेद 2(1)(a)में  इस प्रकार की गई संधि राज्यों द्वारा लिखित  रूप में किए गए तथा अंतर्राष्ट्रीय विधि में नियंत्रित अंतरराष्ट्रीय अनुबंध हैं।(An international agreement conclude between states in written from and governed by international law.)


            मैकनेयर के शब्दों में संधि शब्द का तात्पर्य एक ऐसी लिखित करार से है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक राज्य या  अन्तर्राष्ट्रीय संगठन अंतर्राष्ट्रीय विधि के क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करते हुए, संबंधों का सृजन करते हैं या सृजित करने का आशय रखते हैं ।


फासे के अनुसार संधि पक्षकारों के मध्य एक लिखित करार होती है जिसके द्वारा में आपस में किसी विशेष क्षेत्र या उद्देश्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय विधि संबंध स्थापित करते हैं।


      उपर्युक्त परिभाषाओं के तथ्यों को देखते हुए संधियों के निम्न लक्षण बताए जा सकते हैं:

(1) संधि द्वारा राज्यों के व्यवहारों को संचालित किया जाता है।

(2) संधियां राज्यों के मध्य करार स्वरूप होती हैं

(3) संधि करके राष्ट्र अपने प्रति आधार एवं कर्तव्यों का निर्माण करता है।


Treaty is a written agreement by which two or new states or international organizations create or intend to create a relation between them selves operating with in the sphere of international law.

(Macnair)


यद्यपि संधियां अंतरराष्ट्रीय करारों का निर्माण करती हैं और उनकी तुलना किसी विधि में संविदा से की जा सकती है, फिर भी संधियों वाले करार में जो राष्ट्रों के बीच अथवा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संवादाओं के बीच होता है, उन संविदाओं में जो एक राष्ट्र किसी व्यक्ति अथवा संस्था से करता है अन्तर है। संधि का मूल तत्व यह है कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यक्तियों के बीच एक करार हैं भले ही उसके द्वारा संविदात्मक दायित्वों की रचना होती हो। परंतु संविदाओं के विषय में यह बात नहीं है उनमें कम से कम एक पक्ष अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति नहीं होता है। वह निजी विधि से संबंधित कोई सामान्य व्यक्ति होता है।


           कोई भी प्रभुसत्ता संपन्न राष्ट्र जिसने अपनी प्रभुसत्ता  खो नहीं दी है संधि  करने की पूर्ण शक्ति रखता है। जैसा कि अंतरराष्ट्रीय न्याय के स्थाई ने आता है(permanent court of international justice ) ने एस एस बिम्बिलडन(1923) केस में कहा की अंतर्राष्ट्रीय करार में प्रविष्ट होने की क्षमता राष्ट्र की प्रभुसत्ता का एक अंग है। परंतु यह शक्ति केवल प्रभुसत्ता राष्ट्रों तक सीमित नहीं है। उपनिवेश तथा संरक्षित राष्ट्र और अन्य  अधीन क्षेत्र भी वस्तुतः अनेक प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय करारों  में प्रविष्ट हुए हैं। कभी-कभी तकनीकी किस्म के करार भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के सरकारी विभागों के बीच होते रहते हैं जिन पर इन विभागों के प्रतिनिधि के हस्ताक्षर होते रहते हैं।


           संधि का उद्देश्य उन विभिन्न राज्यों को बंधन में बांधना है जो किसी मामले पर परस्पर संधि करते हैं। कुछ विधि शास्त्री संधियों को मात्र एक अनुबंध(Agreement ) ही मानते हैं परंतु उनका ऐसा सोचना सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय कार्यकलापों और व्यवहारों को अति सरल बनाने का स्वप्न देखना ही है। संधि का तो कार्य ही पृथक होता है क्योंकि संधि वह साधन(Instrument) है जिसके माध्यम से राज्यों के विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कार्य और व्यवहार चलते हैं। कुछ विचारक यह प्रश्न करते हैं की संधि(treaty ) को इतने बाध्यकारी रूप में क्यों माना है? शायद इसका उचित उत्तर यही हो की संधि(treaty ) स्वयं अपने आप एक अनुबंध है जिससे उसे करने वाले राज्य स्वयं ही कर्तव्य से बंध जाते हैं। फ्रांस के प्रसिद्ध विचारक आंजिलोत्ती(Anzilotti)ने संधि की बाध्य  शक्ति(Binding force treaties) को प्रसिद्ध लैटिन  सिद्धांत Pacta sunt servanda पर आधारित माना है।


           जिसका तात्पर्य है कि राज्य सदभावना पूर्वक उन आधारों को पूरा करने के लिए बाध्य है जो उन्होंने संधि द्वारा अपने लिए उत्पन्न किए हैं। इसका अर्थ यह ही हुआ कि राज्य अपने द्वारा किए गए संधि के करार से उस समय तक बाध्य  है जब तक कि वह उस दूसरे राज्य जिससे संधि हुई थी से पूर्व सहमति लेकर संधि को समाप्त ना कर ले। सन1817 में ब्रिटेन ,इटली, रूस, पेलेस्ताइन, ऑस्ट्रेलिया और टर्की ने संधि करके इस प्रकार की बाध्यता से अपने आप को वचनबद्ध किया था।

             संधियों की विधि का वियाना सम्मेलन 1979 के अनुच्छेद 11 के अनुसार संधि से बाध्य  होने के लिए किसी राज्य की सम्मति अग्र लिखित ढंग से व्यक्त की जा सकती है:-


(1) संधि के पक्षकारों द्वारा उस संधि पर हस्ताक्षर करके।

(2) संधि के विलेख के आदान-प्रदान द्वारा।

(3) संधि का अनु समर्थन, स्वीकृति अथवा अनुमोदन द्वारा।

(4) सम्मिलन अथवा तय किए किसी अन्य साधन द्वारा।


संधियों के प्रकार(kinds of Treaties):

संधि को संधि के प्रकार के आधार पर तीन भागों में बांटा गया है:-

(1) द्विपक्षीय संधियां(Bilateraltreaties):- द्विपक्षीय संधि उस संधि को कहते हैं जिसमें संधि से उत्पन्न अधिकार तथा बाध्यता केवल दो  पक्षकरों तक सीमित रहती है। इसे  कभी-कभी द्विदलीय(bipartite) संधि भी कहा जाता है। कई द्विपक्षीय संधियां वैधानिक विधि संविदा के समान होती है, इसलिए इन्हें कभी-कभी संधि संविदा भी कहा जाता है।


(2) अनेकपक्षीय संविदा(Plurilateral treaties):- जिन संधियों में कई राज्य पक्षकार होते हैं उन्हें अनेक पक्षीय संधि कहा जाता है। ऐसी संधियों में पक्षकारों की न्यूनतम संख्या से अधिक होना चाहिए।


(3) बहुपक्षीय संधियां(multi lateral treaties):- बहुपक्षीय संधियां उस संधि को कहते हैं जिसमें सभी राज्य पक्षकार हो सकते हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय विधि के सामान्य सिद्धांतों को या अन्य राज्यों तथा संधि के पक्षकारों के सामान्य संबंध के मामलों को निपटाने के लिए सामान्य ढंग से प्रतिपादित करती हैं। बहुपक्षीय संधियों के संबंध में यह कहा जाता है कि यह अंतरराष्ट्रीय विधायन का कार्य करती हैं।


संधि का पक्षकार कौन हो सकता है?

वियाना अभिसमय अनुच्छेद 6 के अनुसार प्रत्येक राज्य संधि करने के लिए समर्थ है। सभी राज्य चाहे प्रभुता संपन्न हैं अथवा नहीं संधि करने के लिए सक्षम है। इस प्रकार उपनिवेश(Colony) न्यासी राज्य क्षेत्र(Trust territories) संरक्षित या अधिनस्थ राज्य संधि के पक्षकार हो सकते हैं। राज्यों के अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय संगठन भी संधि  करने के लिए सक्षम है। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ तथा उसके विशिष्ट अभिकरण अपने कार्यों को करने के लिए संधि कर सकते हैं।



संधियों का बनाना(Formation of treaties):- किसी भी संधि द्वारा उत्तरदायित्व उत्पन्न होने के लिए निम्नलिखित शर्तें आवश्यक है:-

(1) प्रतिनिधि को समझौता वार्ता के लिए अधिकार प्रदान करना:- संधि बनाने में सर्वप्रथम कदम यह होता है कि किसी भी संधि के पक्षकार अपने किसी प्रतिनिधि को संधि के विषय में वार्ता करने का अधिकार प्रदान करते हैं। जब किसी संधि को बनाने के विषय में कोई सम्मेलन होता है तो यही अधिकृत प्रतिनिधि भाग ले सकता है।


(2) समझौता वार्ता तथा संधि को अपनाना:- उपर्युक्त अधिकृत प्रतिनिधि संधि के विषय में वार्ता आदि करते हैं। वार्ता के उपरांत जब संधि के प्रावधानों के विषय में निर्णय लिया जाता है तो उन्हें अपनाया जाता है।


(3) हस्ताक्षर:- जब वार्ता के आधार संधि के प्रावधानों को आखिरी रूप दे दिया जाता है तब राज्य पक्षकार प्रतिनिधि को उस करार पर हस्ताक्षर करने होते हैं। यह प्रतिनिधि अपने राज्य की ओर से संधि पर हस्ताक्षर करते हैं परंतु उस संधि पक्षकारों पर तब तक बाध्यकारी नहीं होती है जब तक की बाद में उसका अनु समर्थन ना कर दिया जाए।


(4) अनुसमर्थन(Ratification ):- संधि का अनु समर्थन किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है। समानता बिना अनु समर्थन के राज्य पक्षकारों पर संधि के प्रावधान बन्धनकारी नहीं होते हैं। अनु समर्थन द्वारा राज्य के अध्यक्ष या उसकी सरकार उसके अपने प्रतिनिधि द्वारा किए गए हस्ताक्षर का अनुमोदन करते हैं।


(5) सम्मिलन तथा संशक्ति(Accession and Adhesion):- राज्यों के अभ्यास से यह पता चलता है कि वह राज्य जिसने संधि पर हस्ताक्षर किए हैं वह भी बाद में इसे स्वीकार करते हैं। सम्मिलन किसी राज्य द्वारा तब किया जा सकता है जब किसी संधि को उसके निश्चित पक्षकारों ने हस्ताक्षर करके स्वीकार कर लिया है तथा उसका अनु समर्थन भी कर दिया है और इस प्रकार संधि लागू हो जाती है।


(6) संधि का लागू होना:- संधि का लागू होना संधि के प्रावधानों पर निर्भर करता है। बहुत सी संधियां केवल हस्ताक्षर करने के बाद ही लागू हो जाती हैं। परंतु जिन संधियों का अनु समर्थन आवश्यक है वे तभी लागू होती हैं जब निश्चित संख्या के पक्षकारों ने उनका समर्थन कर दिया है।



(7) पंजीकरण एवं प्रकाशन (Registration and Publication ):- किसी संधि के लागू हो जाने के बाद उसका पंजीकरण तथा प्रकाशन भी आवश्यक समझा जाता है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 102 में यह प्रावधान है कि प्रत्येक संधि या अंतरराष्ट्रीय करार जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य करते हैं उनका संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय में पंजीकरण कराना आवश्यक है तथा उसके द्वारा इसका प्रकाशन होना चाहिए।


संधि की समाप्ति(Termination of treaties):- संधि की समाप्ति निम्नलिखित तरीकों से हो सकती है:


(1) विधि द्वारा:- विधि के द्वारा संधि की समाप्ति निम्नलिखित परिस्थितियों में होती है:

(क) किसी एक पक्ष कार के विलुप्त हो जाने के कारण:- द्विपक्षीय संधि में यदि एक राज्य विलुप्त हो जाता है तो संधि समाप्त मानी जाती है।


(ख) युद्ध के प्रारंभ पर:- पुराने मत के अनुसार युद्ध होने पर सभी प्रकार की संधियों की समाप्ति हो जाती है। परंतु वर्तमान समय में युद्ध के द्वारा सभी प्रकार की संधि समाप्त नहीं होती है। इस संबंध में स्टॉक ने निम्नलिखित मत प्रकट किए हैं:

(1) युद्ध मान राज्य(belligenent states ) के बीच वे संधियां जिनके द्वारा सामान्य राजनैतिक कार्य या अच्छे संबंध समाप्त हो जाते हैं।


(2) वह संधि जो कोई स्थाई बात के लिए होती है जैसे सीमा निर्धारित करने की संधि युद्ध से अप्रभावित रहती है।

(3) वह संधि जिसमें युद्ध के नियम आदि दिए जाते हैं युद्ध के अप्रभावित रहती है तथा पक्षकारों बंधनकारी रहती है।

(4) कुछ विधि  निर्माण करने वाली बहुपक्षीय   संधियां:- स्वास्थ्य सेवाओं या उद्योग संपत्ति के संरक्षण के विषय में युद्ध के प्रारंभ में पूर्णता समाप्त नहीं होती वरन्  युद्ध के समय निलंबित हो जाती हैं तथा युद्ध की समाप्ति पर फिर से लागू हो जाती हैं।


(5) कभी-कभी संधि में स्वच्छता प्रावधान होता है कि युद्ध के प्रारंभ में उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

             अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि युद्ध के प्रारंभ होने से सभी प्रकार की संधियां समाप्त नहीं होती। कुछ संधियां पूर्णतया समाप्त हो जाती हैं कुछ अप्रभावित रहती हैं तब अन्य संधियां युद्ध के समय अप्रभावित रहते हैं।


(ग) संधि का सारवान उल्लंघन:- यदि किसी बहुपक्षीय  संधि के किसी महत्वपूर्ण प्रावधान का उल्लंघन होता है तो दूसरे पक्ष कार को उस संधि को समाप्त करने का अधिकार समाप्त हो जाता है।

(घ) संधि का लागू होना असंभव हो जाना: वियना संधि के अनुच्छेद 51 एक के अनुसार जब किसी संधि का लागू होना असंभव हो जाता है तो भी संधि समाप्त हो जाती है।


(ड) जब उन मौलिक परिस्थितियों में जिनमें संधि की गई थी यदि परिवर्तन हो जाता है तो यह एक आधार हो सकता है दूसरा पक्ष संधि को समाप्त कर दें


(च) यदि कोई संधि किसी निश्चित अवधि के लिए की गई थी तो उस अवधि के समाप्त होने पर वह संधि भी समाप्त हो जाती है।

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