राष्ट्रीयता(Nationality): राष्ट्रीयता शब्द से किसी व्यक्ति के किसी देश का सदस्य होने का ज्ञान होता है। राष्ट्र के व्यक्तियों से अपने राज्यों के प्रति निष्ठा धारण करने की अपेक्षा की जाती है जो व्यक्ति राज्य के प्रति स्थाई निष्ठा धारण करते हैं उन्हें राज्य के नागरिक के रूप में जाना जाता है। इसलिए राष्ट्रीयता को व्यक्ति की प्रस्थिति जो निष्ठा के बंधन द्वारा राज्य से संबंध है के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसलिए शब्द राष्ट्रीयता व्यक्तियों तथा राज्य के मध्य विधिक संबंध को व्यक्त करता है। ओपनहाइन ने राष्ट्रीयता की परिभाषा निम्न प्रकार से दी है कि किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता उसका किसी राज्य का सदस्य अर्थात नागरिक होने का गुण है।
" nationality of an individual is the quality of being subject of a certain state and therefore its citizen.
(professor oppenheim)
According to storc, राष्ट्रीयता युक्तियों की सामूहिक सदस्यता का पद है जिसके माध्यम से उन व्यक्तियों के कार्यों उनके निर्णय और उनकी नीतियों की प्रमाणिकता प्रदान होती है।
( nationality is a state of membership collectivity of the individuals who's acts decisions and policies are vouchasafed through the legal concept of the state representing these individuals .)
stark International Law 2nd edition p.214
राष्ट्रीयता का संबंध किसी देश को वास्तविक नीति से होता है जिसके अनुसार किसी व्यक्ति को अधिकार देना या छीन लेना उस देश की सर्वोच्च सत्ता पर निर्भर करता है। अंतर्राष्ट्रीय विधि इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करती। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने संयुक्त राष्ट्र बनाम बोंग क्रिमआर्क169 यू. एस. 649 नामक वाद में यह तय किया कि प्रत्येक स्वतंत्र राज्य का यह अंतर्निहित अधिकार होता है कि वह स्वयं के लिए तथा संविधान और कानून के अनुसार यह निर्धारण करे कि किस श्रेणी के व्यक्ति नागरिकता के अधिकारी होंगे।
it is the inherent right of every independent Nation to determine for itself according to its own constitution and laws what classes of persons shall be entitled to its citizenship.
अंतर्राष्ट्रीय विधि राष्ट्रीयता प्रदान करने या वापस करने संबंधी प्रावधानों को निर्देशित करने के लिए कोई निर्धारित नहीं करती। यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि राष्ट्रीयता से संबंधित प्रश्नों का समाधान उस राज्य के राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार होता है जिस की नागरिकता के बारे में कोई व्यक्ति दावा करता है। अतः विभिन्न राष्ट्रों के नियमों से राष्ट्रीयता के निर्धारण के विषय में भिन्नताएं होती हैं। परंतु फिर कुछ आधारभूत सिद्धांत होते हैं जिनके आधार पर राष्ट्रीयता का निर्धारण होता है। यह निम्नलिखित है:-
(1) किसी व्यक्ति के जन्म के समय उसके मां-बाप की राष्ट्रीयता के आधार पर।
(2) उसके जन्म के क्षेत्र वाले राज्य के आधार पर
(3) उपर्युक्त सिद्धांतों के सम्मिलित आधार पर
राष्ट्रीयता जाति संघ राष्ट्र के निवास या नागरिकता या कूटनीतिक संरक्षण से सर्वदा भिन्न है। कभी कभी व्यक्ति राष्ट्रीयता से संयुक्त होते हैं फिर भी नागरिकता के अधिकारों का प्रयोग नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए जर्मन की नदी सरकार ने जर्मन प्रजा और जर्मन नागरिकों में अंतर रखा था। इस प्रकार जर्मनी में रहने वाले यहूदी नागरिकता के अधिकारों से वंचित किया गया था।
राष्ट्रीयता के विवाद से संबंधित कानूनों के संबंध में सन 1930 में हुए हेग सम्मेलन में इन बातों की पुनः पुष्टि की गई थी राष्ट्रों द्वारा नागरिकता देने या वापस लेने संबंधी कानून बनाने की क्षमता को उस समय चुनौती नहीं दी जा सकती है जब तक वह अंतर्राष्ट्रीय विधि के प्रतिकूल ना हो। सम्मेलन में यह कहा गया कि इस बात का निर्धारण की कोई व्यक्ति किसी राज्य की राष्ट्रीयता रखता है नहीं उस राज्य के राष्ट्रीय कानून के अनुसार होगा।
इस प्रकार व्यक्ति से संबंधित अंतरराष्ट्रीय विधिक समस्याओं को निपटाने में उनकी राष्ट्रीयता का जानना आवश्यक है। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय विधि के लिए व्यक्तियों को कई राष्ट्रीयता धारण करने वाले या राष्ट्रीयता ना धारण करने की अनुमति देना असुविधाजनक है।
अंतर्राष्ट्रीय विधि का यह लक्ष्य है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास एक राष्ट्रीयता हो। मानव अधिकार सार्वभौमिक घोषणा1948 के अनुच्छेद 15 परिच्छेद(1) के अधीन प्रावधान करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है।
राष्ट्रीयता के अर्जन का ढंग(modes of Acquisition of Nationality)
राष्ट्रीयता निम्नलिखित में से किसी भी ढंग से अर्जित की जा सकती है:-
(1) जन्म द्वारा(by birth):- कई राज्यों द्वारा व्यक्तियों को राष्ट्रीयता जन्म के आधार पर प्रदान की जाती है। जिन व्यक्तियों का जन्म राज्य की राज्य क्षेत्रीय सीमा के अंतर्गत होता है वे उस राज्य की राष्ट्रीयता अर्जित कर लेते हैं। इस सिद्धांत को जेस सोली(Jus soli) कहा जाता है।
(2) वंश क्रम द्वारा(By descent): -एक राज्य की राष्ट्रीयता किसी व्यक्ति द्वारा माता-पिता दोनों में से किसी भी राष्ट्रीयता के आधार पर अर्जित की जा सकती है। इस प्रकार शिशु उस राज्य की राष्ट्रीक हो जाता है, जिस राज्य के नागरिक उसके माता-पिता है। इस सिद्धांत को jus sanguinis के रूप में जाना जाता है।
(3) पुनर ग्रहण द्वारा(By resumption ):- जो व्यक्ति देसी करण द्वारा या किन्हीं अन्य कारणों से अपनी राष्ट्रीयता खो देता है वह पुनः उसी राज्य की राष्ट्रीयता अर्जित कर सकता है।
(4)अधीनीकरण द्वारा(By subjugation):- व्यक्ति राज्य द्वारा विजय प्राप्त करने के बाद अधीनीकरण के माध्यम से राष्ट्रीयता अर्जित कर सकता है।
(5) अध्यपूर्ण द्वारा( by cession):- जब किसी राज्य के राजयोग का कोई भाग अन्य राज्य को दे दिया जाता है तब सभी नागरिक समर्पित करने वाले की राष्ट्रीयता को अर्जित कर लेते हैं।
इसके अलावा एक व्यक्ति विकल्प द्वारा तथा पंजीकरण द्वारा भी किसी भी राज्य की राष्ट्रीयता ग्रहण कर सकता है।
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