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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के लिए कौन-कौन से तरीके हैं?(what is the main remedies to solve the international disputes by peaceful method ?)

अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण उपाय(pacific means of settlement of international Disputes ):


(1) माध्यस्थम (Arbitrations): - prof.openhaime के अनुसार राज्यों के मतभेदों को एक या अधिक निर्णायक द्वारा हल करने को माध्यस्थम कहते हैं। इन निर्णयों  को पक्षकार स्वयं चुनते हैं। विवाचन द्वारा  अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का निवारण बहुत प्राचीन समय से होता रहा है। परंतु आधुनिक समय में इसके जन्म का श्रेय अमेरिका तथा इंग्लैंड के बीच 1794 की संधि को है। माध्यस्थम विवाचन द्वारा विवाद निपटाने की दो आवश्यक तत्व है:

(क)माध्यस्थम विवाचन के प्रत्येक चरण में पक्षकार राज्यों की सहमति आवश्यक है। यह एक ऐसा तत्व है जिनके ऐतिहासिक रूप से राज्यों को अपने झगड़ों को विवाचन के सुपुर्द करने को प्रेरित किया गया है।


(ख)विवाचन प्रक्रिया का दूसरा तत्व यह है कि झगड़ों का निस्तारण विधि के सम्मान के आधार पर होना चाहिए।


          विवाचन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का निवारण बहुत प्राचीन समय से होता चला आ रहा है। परंतु आधुनिक समय में इनके जन्म का श्रेय अमेरिका तथा इंग्लैंड के बीच Jay treaty  of 1774 को है। हेग सम्मेलन ,1899 में विवाचन से  संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विधि का संहिताकरण हुआ । इसके अतिरिक्त विवाचन  या माध्यस्थम का स्थाई न्यायालय की स्थापना की गई।

माध्यस्थम का गठन (Composition of Arbitration ): माध्यस्थम आयोग या अधिकरण को गठित करने वाले व्यक्तियों को मध्यस्थ कहा जाता है वे स्वयं विवादी पक्षकारों द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। माध्यस्थम  में एक अथवा कई मध्यस्थ हो सकते हैं। यदि विवादी पक्षकार मध्यस्थों को नियुक्त करने में असफल हो जाते हैं तो नियुक्ति संधि के प्रावधानों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अध्यक्ष द्वारा या संयुक्त राष्ट्र के महासचिव द्वारा की जा सकती है।



(2) न्यायिक निपटारा(Judicial settlement ): अंतर्राष्ट्रीय विवादों को न्यायिक अधिकरण द्वारा निपटाया जा सकता है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ(League of nations ) व्यवस्थाओं के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय न्याय की स्थाई अदालत(permanent court of international justice ) की स्थापना हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ का चार्टर स्वीकार किए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय न्याय की स्थाई अदालत के स्थान पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय(international court of justice ) की स्थापना की गई। वर्तमान समय में न्यायिक निर्णय द्वारा अंतरराष्ट्रीय झगड़ों का निपटारा करने में न्याय के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का महत्वपूर्ण स्थान है। न्याय के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अतिरिक्त राज्यों के न्यायालय भी बहुत से अंतरराष्ट्रीय झगड़ों का न्यायिक निस्तारण करते हैं।


(3)वार्ता (Negotiation): वार्ता या बातचीत द्वारा भी अंतरराष्ट्रीय विवादों को निपटाने का प्रयास किया जाता है। कभी-कभी केवल वार्ता द्वारा ही विवाद का निपटारा हो जाता है परंतु कभी-कभी वार्ता के साथ अन्य ढंगों का प्रयोग भी होता है जैसे सेवाएं मध्यस्था आदि का प्रयोग वार्ता के साथ किया जाता है। विवादों के शांतिपूर्ण निस्तारण में वार्ता सबसे सरल ढंग है क्योंकि इसकी प्रक्रिया में केवल झगड़े के पक्षकार ही सम्मिलित होते हैं। झगड़े के पक्षकारों के अनुसार वार्ता द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय हो सकती है। झगड़ों के निस्तारण में वार्ता का सदैव महत्व रहा है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 33 में जिसमें झगड़ों के शांतिपूर्ण निस्तारण के ढंगों का उल्लेख किया जाता है सर्वप्रथम वार्ता का उल्लेख है।


(4) सत्प्रयत्न(Good office ): जब दो राष्ट्र अपने झगड़ों का आपस में निपटारा नहीं कर पाते तो एक तीसरा मित्र देश उनके झगड़ों को सुलझाने में सहायता कर सकता है। यह तीसरा राष्ट्र इस विषय में अपने सत्प्रयत्न अर्पित कर सकता है। यह सेवाएं किसी राष्ट्र द्वारा किसी व्यक्ति द्वारा या अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा दी जा सकती हैं। परंतु इस ढंग के द्वारा तीसरा व्यक्ति या राष्ट्र केवल ऐसा वातावरण उपस्थित कर देता है तथा सामान्य सुझाव प्रस्तुत करता है जिससे दो राष्ट्रों के बीच विवाद का निपटारा हो जाए।


(5) मध्यस्थता (Mediators): मध्यस्थता  द्वारा भी 2 देशों के विवादों में तीसरा देश अपने प्रयासों द्वारा विवाद सुलझाने के लिए अपना संपूर्ण प्रयास करता है। मध्यस्थता में  तीसरा राज्य या व्यक्ति ना केवल अपनी सेवाएं अर्पित करता है वरन्  वार्ता आदि में भाग लेकर झगड़े को सुलझाने का पूरा प्रयास करता है।


(6) सुलह (Conciliation ): सुलह शब्द का प्रयोग दो भागो में किया जाता है सामान्य भाव के अनुसार वे सारे उपाय आते हैं जिनके द्वारा कोई विवाद दूसरे देश की सहायता से या निष्पक्ष जांच संस्थाओं या सलाहकारिणी कर्मचारियों की सहायता से सद्भावना से निपट जाते हैं परंतु सीमित भाव के अनुसार समझौते का अर्थ होता है किसी विवाद को किसी कमीशन या कमेटी के सुपुर्द करना जो सुलह के प्रभाव के साथ अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें। हड़सन(Hudson) ने सुलह या समझौते की परिभाषा इस प्रकार दी है कि तथ्यों की जांच पड़ताल करके परस्पर विरोधी तर्क वितर्कों में समाधान का प्रयत्न करने के बाद समझौते के प्रस्तावों की सूत्रबद्ध करने की प्रक्रिया है जिन प्रस्तावों को विवाद ग्रस्त पक्ष स्वीकार करने अथवा रद्द करने के लिए स्वतंत्र है।


(7) जाँच (enquiries ): जांच पड़ताल विवादों को निपटाने का एक सौहार्दपूर्ण  तरीका है जिसके द्वारा तथ्यों की खोजबीन की जाती है और वार्तालाप आधारित समझौते के लिए कोई रास्ता निकाला जाता है। जांच समझौते से भिन्न होती है। जांच का उद्देश्य कोई निश्चित प्रस्ताव अंतर्राष्ट्रीय विवादों को तय करने के लिए प्रस्तुत करना नहीं होता है बल्कि केवल जांच पड़ताल करना तथा तथ्यों को स्थिर करना होता है। सन 1899 के हेग सम्मेलन(Hague convention ) ने अंतर्राष्ट्रीय विवादों को निपटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय जांच आयोग की स्थापना का सुझाव दिया था जिसके उद्देश्य किन्ही पक्षों के हितों को न देखकर केवल तथ्यों को देखना और संकलन करना ही था। The north  sea incident inquiry  और डेवेसिय inquiry इसके प्रमुख उदाहरण है।



(8) संयुक्त राष्ट्र संघीय संगठन के तत्वावधान में निपटारा(Settlement under the auspices of the U.N.O.): संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठनों का प्रमुख उद्देश्य सभी राष्ट्रों के मतभेदों को दूर करना तथा और अच्छे संबंध बनाना है। चार्टर के अनुच्छेद के द्वारा संगठन के मामलों पर इस बात का दायित्व डाला गया है कि वे अपने विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करें तथा युद्ध की धमकियों  और बल का प्रयोग को रोक सके। चार्टर द्वारा संघ की साधारण सभा को यह अधिकार दिया हुआ है कि वह किसी भी ऐसी परिस्थिति के शांतिपूर्ण समाधान के लिए उपायों की सिफारिश करें जिससे लोकहित हो अथवा राष्ट्रों के मध्य किसी प्रकार की क्षति पहुंचने की संभावना ना हो। संघ की सुरक्षा परिषद(Security Council ) को इस कार्य को करने की अधिक शक्ति प्राप्त है। सुरक्षा परिषद निम्न प्रकार के विवादों में कार्य कर सकती है:


(1) उन विवादों में जिनमें अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होने की संभावना हो


(2) शांति भंग होने की आशंका या आक्रमण होने पर

बल पूरक विवादों का हल(solution of disputes by forces):- जब अंतरराष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण हल नहीं निकल पाता तो बल प्रयोग करना पड़ता है, जिनके निम्नलिखित तरीके हैं:

(1) प्रतिशोध (Retorsion)

(2)प्रत्यापरहण (Reprisals)

(3) अवरोध (Embargo)

(4) शान्तिपूर्ण नाकाबंदी (Peaceful blockade)

(5) हस्तक्षेप(Intervention )


(1) प्रतिशोध(Retorsion):- कोई एक राज्य दूसरे राज्य के विरुद्ध प्रतिकार लेखे को दृष्टि से किया गया कर्म प्रतिशोध होता है। स्टार्क ने उसे एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध किंन्ही असम्मानपूर्ण या अनौचित्यपूर्ण कार्यों के विरुद्ध कार्यवाही करना कहा है जिसका स्वरूप अपमानित राष्ट्र द्वारा कोई अमैत्रीपूर्ण परंतु वैद्य कार्य हो सकता है, जो उसकी क्षमता के अंतर्गत हो। प्रतिशोध का स्वरूप राजनयिक संबंधों को तोड़ लेना या आयात निर्यात शुल्क संबंधी सुविधाओं को वापस लेना या राजनयिक संबंध को रद्द करना इत्यादि हो सकता है।



(2) प्रत्यापहरण (Reprisals):- यह भी बदला लेने का एक उपाय है जिसका उपयोग एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र से किसी बात का समाधान प्राप्त करने के लिए करता है। प्रत्यापहरण का शाब्दिक अर्थ संपत्ति का जब्त  करना या व्यक्तियों को पकड़ना है। पहले यह  बात असाधारण नहीं थी कि राज्य अपने नागरिकों को प्रत्यापहरण  पत्र (Letter of margue) दे जो दूसरे राज्य में न्याय से वंचित कर दिया गया है। इस पत्र द्वारा वह दूसरे राज्य में किसी व्यक्ति द्वारा पहुंचाई गई हानि को बलपूर्वक कर सकता था यह प्रथा अब समाप्त हो चुकी थी।


              प्रतिशोध और प्रत्यापहरण में अन्तर है। प्रत्यापहरण  का अन्तर्राष्ट्रीय विधि में भले ही औचित्य हो , परन्तु  वह विधिपूर्ण नहीं  है जबकि  प्रतिशोध स्वयं अवैध नहीं है।


          प्रत्यापहरण केवल उसी स्थिति में उचित होता है जब शान्तिपूर्ण उपायों से क्षतिपूर्ति न हो सके। प्रत्यापहरण के लिए निम्नलिखित दशाएं होनी चाहिए:

(1) अपराध  करने वाले राज्य द्वारा पहुंचाई गई हानि से निवारण की प्रार्थना विफल ना हो चुकी हो।

(2) किसी राज्य की पहुंची हुई क्षति की तुलना में प्रत्यापहरण का कार्य अधिक ना हो।

(3) वह केवल गहरी क्षति वाले मामलों में ही किया जाए।

       युद्ध के समय युद्ध रत राज्यों द्वारा एक दूसरे के विरुद्ध किए गए कार्यों को भी प्रत्यापहरण कहते हैं। प्रत्यापहरण निम्नलिखित दो प्रकार का होता है:


(अ) विशेष(special )

(ब) सामान्य (General )


       विशेष प्रत्यापहरण वह होता है कि क्षतिग्रस्त होने वाले विशेष व्यक्तियों को बदला लेने का अधिकार दिया जाए। ऐसा अधिकार सामान्यतः नागरिकों और सेना को दिया जाता है। इस प्रकार का प्रत्यापहरण पहले चलता था और आजकल इसकी प्रथा नहीं है।

          सामान्य प्रत्यापहरण के अंतर्गत किसी राज्य द्वारा हानि पहुंचाने वाले देश के जहाज और संपत्ति को जप्त करने का अधिकार अपनी सेना और प्रजा जनों को देना है।


         क्राबेल के समय में फ्रांस ने एक ब्रिटिश व्यापारिक जहाज को अवैध रीति से जब्त कर लिया और पेरिस द्वारा प्रतिकार करने पर विलंब किया। इस पर क्रामबेल ने फ्रेंच जहाज को सामान्य रूप से पकड़ने के लिए अपने जहाज भेज दिए जिन को बेचकर मुआवजा वसूल किया।


ओपेनहीम (Oppenheim) के अनुसार प्रत्यापहरण को भावनात्मक (Positive ) और निषेधात्मक नामक दो वर्गों में बांटा जाता है। भावनात्मक प्रत्यापहरण  में वे कार्य होते हैं जो सामान्य अवस्था में अंतर्राष्ट्रीय विधि में अपराध समझे जाते हैं। निषेधात्मक प्रत्यापहरण का तात्पर्य ऐसे कार्यों को ना करने का है जो सामान्य रूप से आवश्यक समझे जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार प्रत्यापहरण  का कार्य  अवैध है।

(3)अवरोध (Embargo) :- अंग्रेजी का Embargo शब्द मूल रुप से स्पेनिश शब्द है जिसका अर्थ है बंदरगाहों को रोकना। जब कोई राज्य किसी दूसरे राज्य को क्षति पहुंचाता है और दूसरा राज्य क्षतिपूर्ति प्रदान करने के लिए वाध्य करने के उद्देश्य से अपने बंदरगाहों में उपस्थित जहाजों को रोक लेता है तो वह अवरोध (embargo ) कहलाता है। सन 1766 में ऐसी रोक ग्रेट ब्रिटेन ने सन 18 सो 7 में अमेरिका ने अपने जहाजों पर लगाई थी।


(4) शांतिमय आवेष्ठन या नामावली (Pacific blackade):- युद्ध के समय युद्ध रत राष्ट्र एक दूसरे की नाकाबंदी का आवेष्ठन करते हैं। शांति काल में इस प्रकार का कार्य शांतिपूर्ण नाकाबंदी कहलाता है जिसका उद्देश्य दूसरे राज्य पर दबाव डालना होता है। दबाव डालने वाले देश के जहाज उसके तट और बंदरगाह को इस प्रकार लेते हैं कि अन्य देशों के साथ उसका संपर्क समाप्त हो जाता है। सन 1903 वेनेजुएला ने ग्रेट ब्रिटेन जर्मनी और इटली में ऋणों  की अदायगी नहीं की तो इन देशों की नौ सेनाओं ने उसका घेरा डालकर उसे ऋण अदा करने को विवश कर दिया ।


(5)हस्तक्षेप (Intervention ):- दो राज्यों के मध्य विवाद होने पर तीसरा हस्तक्षेप करता है। ओपेनहीम के अनुसार यह तीसरे राज्य का ऐसा तानाशाही ढंग का हस्तक्षेप देश से हस्तक्षेप करने वाले की इच्छा अनुसार विवाद का फैसला होता है। हस्तक्षेप कर्ता राज्य दोनों विवाद ग्रस्त राज्यों पर पंच निर्णय या विशेष समाधान को मानने के लिए जोर डाल सकता है। कई बार अनेक राज्य मिलकर ऐसा दबाव डालते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने मुनेरो सिद्धांत के आधार पर कई बार दक्षिणी अमेरिका के मामले में हस्तक्षेप किया है।



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