शरण(Asylam):- शरण या आश्रय से तात्पर्य उस शरण तथा सक्रिय सुरक्षा से है जो एक राज्य द्वारा अन्य राज्य के राजनीतिक शरणार्थी को उसकी प्रार्थना पर प्रदान की जाती है। शरण प्रत्यर्पण का विलोम है। जहाँ शरण की समाप्ति होती है वहां प्रत्यर्पण प्रारंभ होता है। शरण के अंतर्गत प्रत्येक राष्ट्र को किन्ही परिस्थितियों में समर्पण से इनकार करने का अधिकार है और इस अधिकार के अंतर्गत शरण देने वाले क्षेत्र अधिकारियों का दायित्व है कि वे शरणागत को आश्रय दें और उस को सक्रिय सुरक्षा प्रदान करें। शरण के दो आवश्यक तत्व होते हैं(1) शरण अस्थाई सहारे से अधिक होती है,(2) सक्रिय सुरक्षा उन अधिकारियों द्वारा जिनके क्षेत्र में आश्रय दिया गया है।
मानवीय अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 14 के अनुसार प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को दूसरे देशों में आश्रय मांगने का अधिकार है। प्रोफेसर ओपेनहाइम के अनुसार वास्तव में शरण का अधिकार और कुछ नहीं वरन प्रत्येक राज्य की क्षमता है जिसके अनुसार वह पीड़ित विदेशी व्यक्ति को अपने क्षेत्र में आने दे तथा उसे आश्रय प्रदान करें। वास्तव में शरण प्राप्त करने का अधिकार कदाचित राज्यों की सक्षमता(Competence) है कि वह उत्पीड़ित विदेशी व्यक्ति को अपने राज्य में प्रवेश करने दे तथा उसे अपने संरक्षण में रहने दे।
राज्य को किसी व्यक्ति को शरण प्रदान करने का अधिकार इस सिद्धांत पर आधारित है कि उसे अपने राज्य क्षेत्र में पाये जाने वाले सभी व्यक्तियों पर नियंत्रण करने का प्रभुत्व संपन्न अधिकार है। इस प्रकार राज्य को राष्ट्र क्षेत्रिय शरण(Territorial Asylum) का अधिकार अपने राज्य क्षेत्र पर उसके प्रभुत्व संपन्नता के आधार पर प्रदान किया गया है। यह अधिकार इस अर्थ में अनन्य है कि अन्य राज्य उस राज्य पर अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने से वंचित किए जाते हैं। महासभा द्वारा 1974 में स्वीकृत राज्य क्षेत्रीय करण प्रारूप अभी समय(Draft convention on territorial Asylum) ने अनुच्छेद 1 के अधीन मान्यता दी है की शरण प्रदान करना राज्य का प्रभुत्व संपन्न अधिकार है।
शरण निम्नलिखित दो प्रकार की होती है-
(1) क्षेत्रीय शरण(Territorial Asylam)
(2)गैर क्षेत्रीय शरण(Extra territorial Asylam)
क्षेत्रीय शरण(territorial Asylam):- जब कोई राज्य किसी अन्य राज्य के व्यक्ति को अपने क्षेत्र के भीतर शरण देता है तो उसे क्षेत्रीय शरण कहते हैं। बहुत प्राचीन समय से यह स्वीकार किया जाता है कि राज्य क्षेत्रीय शरण देने के मामले में स्वतंत्र होता है तथा यह शरण अपराधियों के अतिरिक्त राजनीतिक सामाजिक धार्मिक शरणार्थियों को दिया जा सकता है। शरण के संबंध में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 14 दिसंबर 1967 के प्रस्ताव में यह कहा है कि राज्यों निम्नलिखित बातों को माननी चाहिए
(क) कोई व्यक्ति जब शरण मांगे तो उसे अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए अथवा जब वह शरण देने वाले राज्य के क्षेत्र में प्रवेश कर लेता है तो उसे निष्कासित नहीं किया जाना चाहिए। परंतु राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर या अपनी जनता की सुरक्षा के आधार पर जब बड़ी संख्या में लोग शरण की प्रार्थना करें तो शरण की प्रार्थना को अस्वीकार किया जा सकता है।
(ख) यदि कोई राज्य आश्रय देने में कठिनाई महसूस करता है तो व्यक्तिगत राज्य या संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय एकता के भाव से उचित उपाय पर विचार करें।
(ग) जब कोई राज्य पीड़ित व्यक्तियों को शरण दे दे तो अन्य राष्ट्र को उसका सम्मान करना चाहिए ।
राज्य अन्य राज्यों के व्यक्तियों को शरण देने में स्वतंत्र हैं परंतु इस स्वतंत्रता को संधि द्वारा नियंत्रित तथा सीमित किया जा सकता है।
क्षेत्रीय शरण के अंतर्गत भारत में दलाई लामा तथा उनके अनुयायियों को शरण प्रदान की। चीन ने भारत के इस कार्य की आलोचना की तथा कहा कि यह उसके आंतरिक मामले में हस्तक्षेप है। परन्तु वास्तविकता यह है कि भारत में अपनी क्षेत्रीय प्रभु संपन्नता का प्रयोग किया तथा अपने क्षेत्र के अंतर्गत भारत को पूर्ण स्वतंत्रता थी कि वह शरण प्रदान करें अथवा नहीं। इसी प्रकार भारत ने बांग्लादेश के लाखों व्यक्तियों को अपने यहाँ शरण प्रदान की।
गैर क्षेत्रीय शरण(Extra territorial Asylam):- ऐसी शरण दूतावासों, अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय, युद्धपोतों और व्यापारिक जहाजों के संबंध में तथा उनके लिए क्षेत्रीय राष्ट्र के अधिकारियों से शरण चाहने वाले व्यक्तियों को प्रदान की जाती है। गैर क्षेत्रीय शरण का प्रदान किया जाना एक प्रकार से क्षेत्रीय राष्ट्र की प्रभुसत्ता के विरुद्ध उस सत्ता की हीनता का प्रतीक है और यह बहुत कुछ अपराध स्वरूप परिस्थितियों में प्रदान की जाती है। अतिरिक्त क्षेत्रीय शरण निम्न प्रकार की है:
(1) दूतावासों में शरण
(2) वाणिज्य दूतावासों में शरण
(3) युद्ध पोतों में शरण
(4) व्यापारिक जहाजों में शरण
(1) दूतावासों में शरण(Asylam in Legation): दूतावासों में शरण देने का अधिकार सामान्य नहीं है। एसाइलम(Asylam case 1960) में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा कि दूतावासों को राजनीतिक शरण देने का कोई अधिकार नहीं है लेकिन निम्नलिखित अपवाद स्वरूप परिस्थितियों में शरण दी जा सकती है:
(1) जब भयंकर दंगा फसाद यह अव्यवस्था हो और जीवन में गंभीर खतरा हो।
(2) जब क्षेत्रीय राष्ट्र और दूतावास वाले राज्य के मध्य विशेष संधि हो।
(3) जब इस प्रकार की शरण दिए जाने के बाध्य प्रथा हो।
(3) वाणिज्य दूतावासों में शरण(Asylam in consulates): उपर्युक्त दी गई शर्ते हैं
(3) युद्धपोतों में शरण: भयानक और घोर संकट की स्थिति में शरण की याचना करने वाले व्यक्ति को मानवता के आधार पर शरण दी जा सकती है।
(5) व्यापारिक जहाज में शरण: इनमें शरण प्रदान करने का कोई अधिकार नहीं है।
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