राज्य उत्तराधिकार का अर्थ:- अंतर्राष्ट्रीय विधि में राज्यों के उत्तराधिकारों का नियम ग्रोशियस(Grotius) ने प्रारम्भ किया था। यह नियम उन्होंने रोमन विधि से अपनाया था। रोमन विधि के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो विधि में उसके उत्तरदायित्व तथा अधिकार उसके उत्तराधिकारियों को प्राप्त हो जाते हैं। यह नियम ग्रोशियस ने राज्यों के उत्तराधिकार के विषय में भी अपनाया । बाद में कुछ अंतरराष्ट्रीय संधियां हुईं जिनके द्वारा उत्तराधिकार संबंधी विधि के नियमों का विकास हुआ। प्रोफेसर ओपनहाइम के अनुसार," अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तियों का उत्तराधिकार तब होता है जब एक या एक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति(राज्य ) एक अन्य अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति का स्थान कुछ परिवर्तनों के फल स्वरुप ग्रहण कर लेते हैं।"( a succession of international person occurs when one or more International persons take the place of another International person, in consequence of certain changes in the letters condition.)
यह परिभाषा अधिदेश(Mandate) तथा न्यास(trust)क्षेत्र के उत्तराधिकार को छोड़कर राज्य के उत्तर अधिकारों के सभी मामलों में लागू होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिदेश तथा न्यास के राज्य क्षेत्र में प्रभुत्व संपन्नता नहीं बल्कि एक विधिक प्रकार की समता के प्रतिस्थापित किया जाता है। जो राज्य अन्य राज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित होता है उसे उत्तराधिकार राज्य(Successor State) या कुछ मामलों में नया राज्य (New state)कहा जाता है।जिस राज्य को प्रतिस्थापित किया जाता है, उसे मूल (Parent) या पूर्ववर्ती राज्य (Predecessor states )कहा जाता है।
राज्यों के अभ्यास से यह संकेत मिलता है कि अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार सामान्य रूप से राज्यों का उत्तराधिकार नहीं होता और एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति या राज्य के लुप्त हो जाने से उसके अधिकार तथा कर्तव्य भी सामान्यतः लुप्त हो जाते हैं।ओपेनहाइम उपयुक्त कथन बहुत हद तक उचित प्रतीत होता है। परंतु यह कहना कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत राज्यों का उत्तराधिकार होता नहीं उचित नहीं होगा। वास्तव में अधिकांश विधिशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति या राज्य के लुप्त होने से उसका कुछ अधिकार तथा उत्तरदायित्वों का वास्तविक रूप से उत्तराधिकार है और नया राज्य जो उसका स्थान लेता है उसमें उसके उत्तरदायित्व का अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।
कुछ विधि शास्त्रियों ने उत्तराधिकार शब्द पर आपत्ति की है। उनके अनुसार वैयक्तिक कानून (Private law) में लिये गये इस शब्द का अन्तर्राष्ट्रीय विधि के क्षेत्र में प्रयोग करना वांछित नहीं है। इस संबंध में ब्रियली(Brierly) का मत था" उत्तराधिकार प्रधान रूप से वैयक्तिक कानून का सिद्धांत है। इससे यह संकेत मिलता है कि कुछ अंशों में राज्य की समाप्ति की तुलना व्यक्ति की मृत्यु से की जा सकती है परंतु शाब्दिक अर्थों में किसी राज्य की मृत्यु नहीं होती और ना उसकी जनसंख्या और प्रदेश लुप्त होते हैं। केवल इनकी राजनीति में परिवर्तन होता है अर्थात किसी देश की प्रभुसत्ता से ही परिवर्तन होता है जिसमें पूर्वाधिकार के अधिकारी और दायित्व नहीं राज्य को मिल जाते हैं।
उपयुक्त विरोधाभासी विचारकों को ध्यान में रखते हुए राज्य उत्तराधिकार(States Succession) को इस प्रकार समझा जा सकता है" जब किसी राज्य का कोई प्रदेश उसकी प्रभुसत्ता से निकलकर दूसरे राज्य को प्राप्त होता है तो पहले राज्य को पूर्वाधिकारी(Predeccessor) और दूसरे को उत्तराधिकारी (Successor ) कहा जाता है और उस प्रक्रिया को उत्तराधिकार(succession) कहा जाता है। उदाहरण के लिए सन 1947 से पहले भारत एक ही देश था जो कि ब्रिटिश ताज के अधीन था परंतु स्वतंत्रता के बाद उसके भारत और पाकिस्तान दो उत्तराधिकारी हुए और ब्रिटिश सत्ता उनका पूर्वाधिकारी। इस प्रकार एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व का स्थान अंतर्राष्ट्रीय व्यक्तियों ने ले लिया जिसे राज्य उत्तराधिकार कहा जा सकता है।
उत्तराधिकार निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं:
(A) सार्वभौमिक उत्तराधिकार(Universal succession)
(B)आंशिक उत्तराधिकार(Partial succession)
(A) सार्वभौमिक उत्तराधिकार( universal succession) :-जब किसी राज्य का संपूर्ण प्रदेश दूसरे राज्य में पूर्ण रूप से मिला दिया जाता है तो पहले राज्य की समस्त भूमि पर राज्य का प्रभुत्व हो जाने के कारण यह सार्वभौमिक उत्तराधिकार कहलाता है।
सार्वभौमिक उत्तराधिकार निम्न रूपों में संपन्न होता है:
(1) विजय द्वारा:- जब किसी राज्य को दूसरे का पूर्ण क्षेत्र युद्ध में विजय द्वारा प्राप्त हो, जैसे सन 1901 में ग्रेट ब्रिटेन ने दक्षिण अफ्रीका को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
(2) कई राज्यों द्वारा मिलाकर एक संघ राज्य बनाना:- जब कई राज्य मिलकर एक संघीय राज्य(federal states ) का निर्माण करते हो तो एक नए राज्य को जन्म मिलता है। उदाहरण के लिए 18 वीं शताब्दी में कई जर्मन राज्यों ने मिलकर एक जर्मन साम्राज्य का निर्माण किया तथा मिस्र और सीरिया ने मिलकर संयुक्त अरब गणराज्य बनाया।
सन 1990 में जर्मन संघीय गणतंत्र(Federal Republic of Germany ) के साथ जर्मन लोकतांत्रिक गणतंत्र (German Democratic Republic ) के परिणाम स्वरुप जर्मनी का एकीकरण सार्वभौमिक उत्तराधिकार का उदाहरण है। ओपनहाइम के अनुसार जब राज्य कई भागों में अल्प हो जाते हैं, जो या तो प्रथम अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति हो जाते हैं या अन्य अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति द्वारा उपबध्द कर लिए जाते हैं तो यह भी सार्वभौमिक उत्तराधिकार का मामला होता है।
(3) विभाजन:- जब किसी अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति या राज्य की प्रभुसत्ता का विभाजन कर दिया जाए तो प्रत्येक विभाजित राज्य को अपने स्वयं के लिए सार्वभौमिक प्रभुसत्ता प्राप्त हो जाती है, जैसे सन् 1947 ने ब्रिटिश भारत के भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राज्य बने।
(ब) आंशिक उत्तराधिकार:- आंशिक उत्तराधिकार निम्नलिखित परिस्थितियों में होता है:
(क) जब किसी राज्य का कोई हिस्सा विद्रोह करके अथवा करार या समझौते द्वारा उससे अलग हो जाता है तथा स्वतंत्रता प्राप्त करके एक अलग अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति या राज्य बन जाता है। बांग्लादेश का पाकिस्तान के विरुद्ध विद्रोह करके स्वतंत्रता प्राप्त करना तथा उसके पश्चात अलग राज्य बनाना आंशिक उत्तराधिकार का अच्छा उदाहरण है।
(ख) जब किसी राज्य को किसी दूसरे का हिस्सा हस्तांतरण कर दिया जाता है या मिल जाता है ।
जब कोई सार्वभौमिक राज्य किसी संघात्मक राज्य में मिलकर अपनी स्वतंत्रता का कुछ भाग खो देता है या दूसरे राज्य के संरक्षण में आ जाता है।
राज्यों की निरंतरता का सिद्धांत:- सरकारों का उत्तराधिकार राज्यों की निरंतरता के सिद्धांत पर आधारित है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी राज्य की सरकार में परिवर्तन के परिणाम स्वरूप राज्यों के विधिक व्यक्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यदि अंतरराष्ट्रीय संधि के किसी पक्षकार(राज्य ) कि सरकार बदल जाती है तो इससे संधि की समाप्ति नहीं हो जाती। नई सरकार पूर्व सरकार के अधिकार तथा उत्तरदायित्व उत्तराधिकारी सरकार के रूप में ग्रहण कर लेती है। यह सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामान्य हितों पर आधारित है।
राज्य उत्तराधिकार के परिणाम(Consequences of states succession):- जब एक राज्य उत्तराधिकार द्वारा दूसरे राज्य का स्थान ग्रहण कर लेता है तो निम्नलिखित कर्तव्यों तथा अधिकारों का उदय होता है:
(1) राजनीतिक कर्तव्य तथा उत्तराधिकार(Political Duties and Rights ):- जब एक राज्य उत्तराधिकार द्वारा दूसरे राज्य का स्थान ग्रहण कर लेता है तो ऐसी परिस्थितियों में उसे पहले वाले राज्य के राज नैतिक कर्तव्य तथा अधिकार उत्तराधिकार में नही मिलते हैं। जब किसी राज्य का अन्य राज्य में विलय द्वारा जीवन समाप्त हो जाता है तो उसके द्वारा की गई संधियाँ भी समाप्त हो जाती हैं।
(2) स्थानीय अधिकार तथा कर्तव्य(Local Rights and duties):- जब एक राज्य उत्तराधिकार द्वारा दूसरे राज्य का स्थान ग्रहण कर लेता है तो ऐसे राज्य में स्थित भूमि, नदियों, सड़कों, रेल आदि स्थानीय वस्तुओं के मामले में अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का उदय होता है। इस सिद्धांत के अनुसार लुप्त हो जाने वाले राज्य द्वारा सीमा, सड़कों, नदियों द्वारा आवागमन के मामलों में संधियां नये राज्यों को भी अधिकार तथा उत्तरदायित्व प्रदान करती हैं।
इसके अतिरिक्त उत्तराधिकार के निम्नलिखित परिणाम है:
(1) संधि विषयक अधिकार और दायित्व(Treaty Rights &obligation ):- इसके अंतर्गत पुराने राज्य द्वारा की गई निम्नलिखित संधियों को नए राज्य को स्वीकार करना पड़ता है:
(1) सामान्य उपयोगिता की संधियाँ और समझौते।
(2) स्थानीय अधिकारों और प्रादेशिक अधिकारों की संधियां।
(2) सांपत्तिक अधिकार(Public property Rights )- किसी राज्य पर उत्तराधिकार मिलने पर अंतर्राष्ट्रीय विधि की यह परंपरा रही है कि नए राज्य को पुराने राज्य की पूरी संपत्ति मिलती है , जैसे बैंक , सरकारी रियायते, सरकारी रुपैया, रेलवे वह अन्य सार्वजनिक संपत्ति। इस संबंध में यह बात उल्लेखनीय है कि प्रभुसत्ता में परिवर्तन होने पर भी वैयक्तिक सम्पत्ति (Private property ) के अधिकारों में कोई अंतर नहीं आता अतः वे उसी प्रकार बने रहते हैं।
(3) संविदात्मक दायित्व(Contractual liability):- उत्तराधिकारी राज्य का अपने पूर्वाधिकारी राज्य से सभी संविदात्मक दायित्व को निभाने का नैतिक दायित्व होता है। वह सिर्फ उन दायित्वों को अस्वीकार कर सकता है जो उसके विरुद्ध युद्ध करने के उद्देश्य से उठाए गए थे।दायित्वों के पालन के संबंध में ओपेनहाइम का विचार है कि राज्यों के आधुनिक व्यवहार की प्रवृत्ति अंतरराष्ट्रीय कानून के ऐसे नियमों के स्थापना की ओर है जिसके अनुसार उत्तराधिकार राज्यों का यह कर्तव्य है कि उसे यह उत्तराधिकार भले ही हस्तान्तर(Cession) वर्गीकरण(Annexetion) विघटन से मिला हो किंतु वह किसी निजी व्यक्तियों द्वारा प्राप्त साम्पत्तिक सांविदिक तथा रियासतें प्रदान करने वाले अधिकारों का सम्मान करेगा।
(4) सार्वजनिक ऋण (public debt): -ऋण के दायित्व के संबंध में यह व्यवस्था है कि उत्तराधिकार राज्य को पिछले राज्य के ऋणों का भुगतान करना पड़ता है बशर्ते पिछले राज्य ने ऐसा ऋण उत्तराधिकारी राज्य के साथ युद्ध करने या उसके नागरिकों को हानि पहुंचाने के लिए ना लिया हो। सार्वजनिक ऋण के भुगतान के संबंध में कभी-कभी संधियां भी की जाती है जैसे वारसा संधि के अनुसार जिन राज्यों को जर्मन प्रदेश में दिया गया उन्हें सन् 1914 तक जर्मन राष्ट्रीय ऋण के कुछ अंश उतारने के लिए उत्तरदाई बनाया गया।
(5)दुष्कृति (Tort):- किसी पूर्वाधिकारी राज्य द्वारा किए गए गलत कार्यों से कोई चोट या हानि पहुंचाने पर उत्तराधिकारी राज्य को दुष्कृति के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ऐंग्लो अमेरिकन दावा न्यायाधिकरण(Anglo American Pecuniary claims tribunal) ने 1910 में इस संबंध में हुई संधि के बारे में अपने स्पष्ट विचार व्यक्त किए थे।
(6) सदस्यता(Membership ):-पूर्वाधिकारी राज्य को जिन अंतरराष्ट्रीय संगठनों की स्वतंत्रता प्राप्त होती है उनका उत्तराधिकार राज्य को केवल उत्तराधिकार के कारण स्वतः ही मिल जाना आवश्यक नहीं होता। उदाहरण के लिए भारत और पाकिस्तान का विभाजन होने पर पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता स्वता नहीं मिली बल्कि सन 1947 में नया सदस्य बनाना पड़ा।
(7)विधि(Law):- जहां तक विधि का संबंध है, पूर्वाधिकारी राज्य द्वारा स्थापित दीवानी विधि लागू रहती है जब तक कि उत्तराधिकारी राज्य उसको बदल न दे। परंतु सार्वजनिक विधि में आवश्यक रूप से परिवर्तन हो जाता है। नए राज्य को यह भी शक्ति होती है कि वह विद्यमान अधिकारों को मान्यता प्रदान कर दें अथवा अपने कानून लागू करें।
(5) राष्ट्रीयता(Nationalit)-पूर्वाधिकारी राज्य के सभी निवासीे नये राज्य की जनता हो जाते हैं तथा पुराने राज्य की सदस्यता को खो देते हैं। उन्हें नए राज्य की राष्ट्रीयता प्राप्त हो जाती है। परंतु इस विषय में सामान्य नियम यह है कि ऐसे नागरिकों को एक निश्चित अवधि दी जाती है जिसके अंदर उन्हें निर्णय देना होता है कि वह अपनी राज्य भक्ति पूर्वाधिकारी राज्य के साथ रखते हैं या नए राज्य के राष्ट्रीयता को स्वीकार करते हैं।
(9) विदेश में स्थित संपत्ति का उत्तराधिकार:- इस विषय में विधिशास्त्रियों का निश्चित मत है कि विदेश में पूर्वाधिकारी राज्य की स्थिति सभी संपत्ति पर उत्तराधिकारी राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त हो जाता है।
(10) व्यक्तिगत अधिकार(Private Rights ):- प्रभुत्व संपन्नता के परिवर्तन से प्राप्त व्यक्तिगत अधिकार खत्म नहीं हो जाते । राज्यों के अभ्यास से यह प्रतीत होता है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि में यह नियम बन गया है कि उत्तराधिकारी राज्य का यह कर्तव्य है कि वह प्राप्त व्यक्तिगत अधिकारों को जारी रखें। पोलैंड में जर्मन सेटलर्स(Settlers of German origin in territory cedod by Germany to poland )वाद में यह कहा गया था कि प्रभुत्व संपन्नता के परिवर्तन से प्राप्त व्यक्तिगत अधिकार समाप्त नहीं हो जाते।अतः यह कहा जा सकता है कि राज्य उत्तराधिकार से प्राप्त व्यक्तिगत अधिकार प्रभावित नहीं होते।
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