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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

समुद्री डकैती के संबंध मेंPiracy jury Gentium के सिद्धांत की विवेचना कीजिए?

समुद्री डाके की परिभाषा : समुद्री डाके की परिभाषा के संबंध में बड़ा मतभेद है। परंपरागत विधि के अनुसार, बिना किसी राज्य द्वारा अधिकृत या अनुमति प्राप्त किए निजी हितों तथा दूसरे व्यक्तियों या उनकी सहमति के विरुद्ध हिंसक कार्य करने के उद्देश्य से खुले समुद्र में नौपरिवहन करने को समुद्री डाका कहते हैं। विभिन्न विधिशास्त्रियों ने समुद्री डाके  की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं परंतु सभी लेखक इस बात से सहमत हैं की समुद्री डाके तात्पर्य समुद्र में डाका डालना या लूटपाट करना है। एक अमेरिकी वाद में संघीय न्यायालय ने यह मत प्रकट किया था कि समुद्र में सशस्त्र जहाज किसी राज्य के प्राधिकार के अंतर्गत होना चाहिए तथा यदि ऐसा नहीं है तो ऐसे जहाज को समुद्री डाका डालने वाले जहाज की कोटि में आएगा। इस बात से अंतर नहीं पड़ेगा कि उक्त जहाज ने डाका नहीं डाला है।

         स्टार्क के अनुसार समुद्री डकैती का अपराध सीमाधारिक पहलुओं की दृष्टि से बिल्कुल निराला है। समुद्री डाकू समस्त मानव समाज जाति के शत्रु होते हैं। अतः सभी राज्यों को उसे पकड़ने और मुकदमा चलाने का अधिकार है।


         अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग(International Law Commission ) ने समुद्री डकैती को अवैध हिंसा अवरोध अथवा लूट करने का कार्य कहा है जो निजी उद्देश्यों से किया जाता है। वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो निजी क्षेत्र या समुद्र से जिस पर किसी राष्ट्र का सीमा अधिकार ना हो जहाज पर उपस्थित किसी व्यक्ति या उसकी संपत्ति का अपहरण करता हो।


          उक्त परिणाम के अनुसार समुद्री डकैती के अपराध के निम्नलिखित तत्व है-

(1) समुद्री डकैती हिंसा अवरोध या लूटमार का कार्य है।

(2) यह निजी उद्देश्यों के लिए किया गया कार्य है।

(3) यह निजी जहाज या व्यक्तिगत वायुयान पर चढ़े लोगों द्वारा किया जाता है।

(4) यह कार्य या तो खुले समुद्र में या ऐसे क्षेत्र या समुद्र में किया जाता है जो किसी राष्ट्र के सीमा आधिकार में नहीं होते।


(5) इस कार्य का लक्ष्य कोई जहाज व्यक्ति या संपत्ति जो खुले समुद्र में हो अर्पण करना होता है।


          प्रिवी काउंसिल(Privy council) ने सन 1934 में रिपायरेसी ज्यूरे जोटियम (Re piracy Gentium) नामक कांड में यह निर्णय दिया था कि समुद्री डकैती के लिए उसका वास्तविक रूप से हटा होना आवश्यक नहीं होता। खुले समुद्र में यदि डकैती का असफल प्रयास किया जाए तो वह भी उतना ही गंभीर अपराध होता है।


          समुद्री डकैती के दो पहलू हैं:- एक अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण में जैसा कि ऊपर व्याख्या की गई है और दूसरा राष्ट्रीय विधि के दृष्टिकोण से है। क्योंकि समुद्री डकैती के अपराध का प्रभाव एक राज्य पर ना पडकर कई राज्यों पर पड़ता है तो ऐसी स्थिति में कई राज्य मिलकर संधि द्वारा उनमें उन्मूलन के लिए अतिरिक्त रूप में सीमा अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं।


समुद्री डकैती और राज्य विद्रोह(Piracy and Insurgent):- समुद्री डकैती केवल निजी जहाज द्वारा ही की जा सकती है। युद्धपोत और दूसरे सार्वजनिक जहाज जो मान्यता प्राप्त सरकारों के अथवा मान्यता प्राप्त युद्ध ग्रस्त राज्यों के आदेश अनुसार चलते हैं समुद्री डकैती के अपराधी नही करार किए जा सकते  अन्यथा ऐसी सरकारों को दोषी ठहराया जा सकता है।


     जब विद्रोही(Insurgents) समुद्र में विद्रोह करने लगता है  तब एक समस्या खड़ी हो जाती है और प्रश्न यह है उपस्थित होता है कि इस प्रकार के विद्रोहियों में यदि वह मान्यता प्राप्त नहीं है दूसरे में राज्य समुद्री डाकू मानकर उसके साथ व्यवहार करें या उनके मित्र व्यवहार हो। इस संबंध में ब्रिटिश परंपरा इस प्रकार के अमान्यता प्राप्त  विद्रोहियों से समुद्री डकैती का व्यवहार करने की नहीँ  रहती है जब तक उसके द्वारा ब्रिटिश नागरिकों के जान-माल के विरुद्ध कोई हिंसात्मक कार्यवाही ना हुई हो।


          सन 1885 में अमेरिका में हुए The Ambrose Light केस में न्यायालय ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि कोई विद्रोही जहाज समुद्री डकैत नहीं गिना जाएगा यदि वह किसी उत्तरदाई सरकार के अदेशानुसार  कार्य कर रहा है। इस निर्णायक सिद्धांत के मूल में अंतर्निहित  तत्व यही था कि विद्रोही लोग किसी उत्तरदाई सरकार के आदेश पर चलते हैं तो शिकायतकर्ता राष्ट्र को उस सरकार के विरुद्ध कार्यवाही करने और लाभ प्राप्त करने का साधन अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार सुलभ रहता है। इस प्रकार की किसी उत्तरदाई सरकार के प्रत्यक्ष साधन के अभाव में विद्रोहियों को समुद्री डाकू अवश्य ही मानना चाहिए और उनके विरुद्ध सार्वभौमिक सिद्धांत के अंतर्गत सीमा अधिकार का प्रयोग होना चाहिए।


समुद्री डकैती के लक्षण और उसके दमन के लिए राज्यों के अधिकार (The characteristics and power of states to supress the piracy on high sea): 
सब राज्यों को यह अधिकार है कि वे खुले समुद्री डाकुओं(Pirates ) या जल दस्युओं  का दमन करें। सर्वदेशीय दृष्टि से इनका दमन करना आवश्यक होता है। अतः सभी राज्यों को सार्वभौमिक(universal ) रूप में यह अधिकार प्रदान कर दिया गया है कि जल दस्यु जिस किसी भी राज्य की पकड़ में आए वही दंडित करें। इस प्रकार का नियम बनने का मूल कारण यह है कि समुद्री डाकू ना केवल किसी देश या राज्य विशेष का शत्रु होता है बल्कि वह समस्त मानव जाति का शत्रु होता है और जघन्य कृत्यों से देश के नागरिकों को मिलने वाले आम संरक्षण से भी वंचित कर दिया जाता है।


          पहले समुद्री डकैती का यह लक्षण माना जाता था कि यह कानून की रक्षा में निर्वाचन या आतातायी व्यक्तियों द्वारा महा समुद्रों में की जाने वाली हत्या या डकैती है। ओपेनहाइम  के अनुसार यह व्यक्तियों या संपत्ति के संबंध में हिंसा का प्रत्येक ऐसा अनाधिकृत कार्य है जो खुले समुद्र में एक निजी जहाज द्वारा एक दूसरे जहाज के विरूद्ध किया जा सकता है या एक जहाज के विद्रोही नाविक या  सवारियाँ  इस जहाज के विरुद्ध करते हैं।

       मूर(moor)ने समुद्री डाकू का एक और लक्षण बताया है। समुद्री डाकू वह व्यक्ति है जो किसी राज्य में कानूनी अधिकार पाए बिना एक जहाज पर इस इरादे से हमला करता है कि इसकी संपत्ति लूट लेगा। आज कल यह परिभाषा बड़ी व्यापक कर दी गई है।


अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग(International Law Commission ) ने सन 1956 में इसका लक्षण करते हुए लिखा है कि यह वैयक्तिक स्वार्थ की दृष्टि से किया गया हिंसा, विरोध या लूटमार का कोई अवैध कार्य है।इसे  किसी वैयक्तिक विमान पर सवार व्यक्तियों द्वारा महासमुंदरों पर या स्वामीहीन समुद्रों पर या प्रवेश पर दूसरे जलपोत व्यक्ति या जलपोत की संपत्ति के विरोध किया जाता है।


उपयुक्त प्रकार से यह देखा जा सकता है कि समुद्री डकैती के नियमों का लक्षण है:-

(1) किसी व्यक्ति या संपत्ति विरुद्ध अनाधिकृत हिंसा

(2) यह कार्य खुले समुद्र में हो

(3) एक वैयक्तिक जहाज द्वारा दूसरे अथवा विद्रोही नाविकों के जहाजों द्वारा अपने जहाज की सवारियों के विरुद्ध होना चाहिए।


(4) लूटमार का विफल प्रयास समुद्री डकैती है

(5) इसका लक्ष्य वैयक्तिक ना होकर सार्वजनिक होता है।


       समुद्री डकैती को रोकने के लिए सन 1952 में वाशिंगटन में  सम्मेलन हुआ। जिसमें यह प्रस्ताव रखा गया कि जो पनडु्बी या जलपोत समुद्री युद्ध के नियमों को तोड़े उन्हें भी जल दस्यु माना जाए और उचित दंड दिया जाए। सन 1937 के स्पेन के गृह युद्ध में भूमध्य सागर में अनेक व्यापारी जहाज पनडुब्बियों द्वारा नष्ट कर दिए गए।

         सन 1958 में महा समुद्रों के अभिसमय के हल करने के लिए अधिकाधिक सहयोग देना चाहिए। महासागरों में प्रत्येक राज्य समुद्री डाकुओं के अथवा इससे नियंत्रित जहाजों को पकड़ सकता है और ऐसे कार्य करने वाले को बंदी बना सकता है, साथ ही समुद्री डाकुओं की संपत्ति को भी जप्त कर सकता है। इस प्रकार से जब्ती और डकैती के दमन का कार्य केवल सरकार द्वारा अधिकृत युद्धपोत या सैनिक विमान कर सकते हैं।





         

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