मान्यता प्रकट या परोक्ष किसी भी रीति से की जा सकती है। प्रकट मान्यता(Direct recognition ) किसी औपचारिक रीति से संकेत, घोषणा या मान्यता देने का मंतव्य प्रकट करके दी जाती है। परोक्ष मान्यता(indirect recognition ) ऐसे कार्यों द्वारा दी जाती है जिसमें मान्यता देने का उल्लेख नहीं होता परन्तु फिर भी उसके मिलने में संन्देह नहीं होता।
जब विद्यमान राज्य कुछ औपचारिक घोषणा करके नए राज्य को मान्यता देते हैं, तब मान्यता को अभिव्यक्त मान्यता कहा जाता है। औपचारिक घोषणा सार्वजनिक कथन के रूप में हो सकती है जिसके मूल पाठ को राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाले राज्य को भेजा जाता है। इस प्रकार की मान्यता राज्य के प्रमुख या विदेशी मामलों के मंत्री राजनयिक विवरण(Deplomatic note) मौखिक विवरण(Note verbal) व्यक्तिगत संदेश(Personal message ) द्वारा या संसदीय घोषणा द्वारा भी दी जा सकती है।
जब विद्यमान राज्य नये राज्य की मान्यता के संबंध में कोई औपचारिक घोषणा ना करने के बावजूद भी कुछ ऐसे कृत्य करते हैं जिससे नए राज्य को मान्यता देने का आशय निर्दिष्ट होता है तो इसे विवर्णित मान्यता कहते हैं।
मान्यता देने की विधियां:
(1) संधि द्वारा
(2) संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाकर
(3) राजनयिक प्रतिनिधियों के माध्यम से
(4) एक पक्षीय घोषणा करके
(5) कई राज्यों द्वारा
(6)सामूहिक घोषणा द्वारा
(7) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों द्वारा
मान्यता प्रदान करने का एक और तरीका है जिसको प्रतिबंध युक्त मान्यता(Recognition subject to condition ) कहते हैं। इसके अंतर्गत किसी ने राज्य को कुछ प्रतिबंधों के पालन करने के आधार पर मान्यता दी जाती है और यदि वह उस में असफल रहता है तो मान्यता वापस ले ली जाती है। इस प्रकार की मान्यता की बड़ी आलोचना हुई और लातेरपेस्ट (Lauterpacht) ने इसकी मान्यता रूपी अस्त्र का अनुचित प्रयोग कहकर निंदा की है।
मान्यता प्राप्त होने के परिणाम: मान्यता प्राप्त ना होने के निम्नलिखित परिणाम होते हैं
(1) मान्यता ना पाया हुआ देश उन देशों के न्यायालयों में मुकदमा नहीं चला सकता जिन्होने उसे मान्यता ना दी हो।
(2) ऐसे राज्य या देश अन्य देशों के साथ राजनीतिक संबंध नहीं रख सकते
(3) ऐसे राज्य के प्रतिनिधि कानूनी छूट और राजनयिक विशेषाधिकारों का दावा नहीं कर सकते।
(4) मान्यता ना मिलने वाला राज्य अपनी संपत्ति को पूर्व की पदच्युत सरकार से वसूल नहीं कर सकता है।
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