Skip to main content

भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

कंपनी के परिसमापन तथा विघटन को अपने शब्दों में बताइए? what is meant by winding up and dissolution of company ?also give a difference between them.

कंपनी का परिसमापन(winding up of Company )

कंपनी का परिसमापन का एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कंपनी का विघटन होता है और उसकी संपत्ति का प्रशासन ऋण दाताओं एवं सदस्यों के लाभ के लिए किया जाता है।

           प्रो गोवर के अनुसार कंपनी का  परिसमापन एक ऐसी विधिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी जाती है। कार्य संचालन के लिए एक प्रशासक की नियुक्ति की जाती है जो परिसमापक कहलाता है, जिसका कार्य कंपनी को नियंत्रण में लेना, चल अचल संपत्ति का एकत्रीकरण तथा ऋणों का भुगतान करना होता है। अंत में जो शेष बचे उसे अंश धारियों के मध्य उनके अधिकारों के अनुसार वितरित करना होता है।

              विद्वान सेनगुप्ता के मतानुसार" कंपनी के परिसमापन से आशय कंपनी के अस्तित्व को समाप्त करने से है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत कंपनी की सभी आस्तियों को एकत्रित करके या उनकी वसूली करके, उसके दायित्वों का अनमोचन किया जाता है तथा इसके बाद शेष बनी पूंजी , यदि हो, को कंपनी के अंतर नियमों के प्रावधानों के अनुसार हकदार व्यक्तियों में वितरित कर दिया जाता है।

              अतः परिसमापन का तात्पर्य" एक ऐसी कार्यवाही से है जिसके द्वारा कंपनी का व्यापार पूर्ण रुप से बंद कर दिया जाता है, कंपनी की संपत्तियां बेच दी जाती हैं, जिस से प्राप्त होने वाले धन को तथा अन्य प्रकार से एकत्रित किए हुए धन को लेनदारों का भुगतान प्रयोग किया जाता है और यदि विभिन्न प्रकार के  लेनदारों का भुगतान करने के पश्चात भी कुछ रकम शेष बचती है तो उसे अंश धारियों में कंपनी के अंतर नियमों के अनुसार बांट दिया जाता है।


कंपनी का विघटन( dissolution of a company)

जिस प्रकार विधान द्वारा कंपनी का जन्म होता है उसी प्रकार उसका अंत भी विधान द्वारा ही होता है। कंपनी का जन्म निगमन द्वारा होता है तथा कंपनी का अंत तब होता है, जब उसका विघटन हो जाता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में बिना परिसमापन हुए भी कंपनी का विघटन हो सकता है।


                भारतीय कंपनी अधिनियम की व्यवस्थाओं के अनुसार निम्नलिखित 3 प्रक्रियाओं द्वारा कंपनी का विघटन हो सकता है:

(1) किसी निष्क्रिय कंपनी का नाम कंपनियों के रजिस्ट्रार में कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा हटा दिया जाने पर

(2) कंपनी लॉ अधिकरण द्वारा आदेश किए जाने पर कंपनी का परिसमापन हुए बिना इसे विघटित किए जाने पर;

(3) कंपनी का नियमानुसार परिसमापन होने के उपरांत  विघटित होने पर।


कंपनी के परिसमापन एवं विघटन में भेद( distinction between company and winding off and dissolution)

कंपनी के विघटन एवं परिसमापन में मुख्य भेद  इस प्रकार है:

(1) कंपनी के परिसमापन काल में कंपनी के लेनदार  अपना दावा साबित करके ऋण की वसूली कर सकते हैं परंतु कंपनी के विघटन का आदेश होने के बाद यह संभव नहीं है।

(2) कंपनी का विघटन हो जाने के पश्चात कंपनी का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। अतः लेनदारों तथा अंश धारियों के प्रति परिसमापक के कर्तव्यों का भी अंत हो जाता है। परंतु यदि परिसमापक ने कंपनी विधि के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए कंपनी की आस्तियों के वितरण में कोई गड़बड़ी की हो या कर्तव्य भंग किया हो तो प्रभावित लेनदार या अंश धारी उसके विरुद्ध क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का दावा कर सकता है।

(3) कंपनी के अस्तित्व की समाप्ति दो चरणों में होती है।पहला चरण परिसमापन एवं द्वितीय चरण विघटन है। परिसमापन की प्रक्रिया में कंपनी की आस्थियों को हस्तगत करके उसके उत्तरदायित्व का भुगतान किया जाता है तथा इसके बाद यदि कुछ शेष बसता है तो उसे सदस्यों में विभाजित कर दिया जाता है। कंपनी की समाप्ति का दूसरा एवं अंतिम चरण विघटन होता है जब कंपनी का पूर्ण रूप से अंत हो जाता है। इस प्रकार कंपनी के  परिसमापन के परिणाम को विघटन कहा जाता है।


(4) कंपनी के परिसामान की कार्यवाही का संचालन कंपनी द्वारा या कोर्ट द्वारा नियुक्त किए गए परिसमापक द्वारा किया जाता है जबकि विघटन केवल न्यायालय के आदेश द्वारा ही किया जा सकता है।

(5) परिसमापन की अवधि में कंपनी का प्रतिनिधित्व परिसमापक द्वारा किया जाता है लेकिन जैसे ही न्यायालय द्वारा कंपनी के विघटन का आदेश पारित किया जाता है, परिसमापक की कंपनी का प्रतिनिधित्व करने की शक्ति स्वता ही खत्म हो जाती है।




    

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...