एक अपंजीकृत कंपनी क्या होती है ? what is meant by an unregistered company ?describe the law relating to winding up of company .what are the liabilities of an examiner winding of up company.
अपंजीकृत कंपनी से आशय( meaning of unregistered company):
Company Act 2013 की धारा 275 एक अपंजीकृत कंपनी के परिसमापन से संबंधित है। इस धारा के अनुसार"अपंजीकृत कंपनी( unregistered company)" में कोई ऐसी भागीदारी फर्म, संघ या कंपनी सम्मिलित है जिसका गठन 7 से अधिक सदस्यों के साथ उस समय किया गया था जब इसके परिसमापन के लिए आवेदन किया जा चुका था, लेकिन परंतु निम्नलिखित कंपनियां अपंजीकृत कंपनी( unregistered company) नहीं है:
(क) संसद के अधिनियम या अन्य भारतीय विधि या ब्रिटेन की संसद के अधिनियम के अधीन निर्मित की गई रेल कंपनी।
(ख) किसी पूर्वर्ती कंपनी अधिनियम के अधीन पंजीकृत कंपनी तथा जो ऐसी कंपनी नहीं है जिसका पंजीकृत अधिकरण बर्मा, अदन या पाकिस्तान में उस देश का भारत से प्रथक होने से पहले अस्तित्व में था। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 378 के व्यावृत्ति खंड से स्पष्ट है कि कंपनी अधिनियम के भाग 1 में उप बंधित कोई भी प्रावधान किसी ऐसे अधिनियम के प्रवर्तन पर विपरीत प्रभाव नहीं डालेगा जो किसी भागीदारी फर्म, सीमित दायित्व वाली भागीदारी या सोसाइटी या सहकारी समिति या संगठन के कंपनी अधिनियम, 1956 या किसी निरसित हुये अधिनियम के अंतर्गत परिसमापन से संबंधित है।
Winding up of an unregistered(अपंजीकृत कंपनी का परिसमापन) Company
Company Act( कंपनी अधिनियम)2013 की धारा 275(2) के अनुसार कोई भी अपंजीकृत कंपनी अपना स्वैच्छिक परिसमापन नहीं करा सकती है। किसी अपंजीकृत कंपनी का परिसमापन केवल निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में ही किया जा सकता है।
(a) अगर उसका भी विघठन हो चुका है या उसने अपना व्यापार या कारोबार बंद कर दिया है या वह केवल परिसमापन की कार्यवाही के लिए ही अपना व्यापार या कारोबार जारी रख रही है; अथवा
(b) अपनी देनदारियों को चुकाने में असमर्थ है
(c) यदि कंपनी लाॅ( company law) अधिकरण के विचार में कंपनी का परिसमापन किया जाना उचित एवं न्यायहित है।
अपंजीकृत कंपनी के अंश धारियों का दायित्व( liability of contributories of an unregistered company)
किसी अपंजीकृत कंपनी के संदर्भ में अंशदाई वह व्यक्ति होता है जो कंपनी के ऋण तथा दायित्वों का निर्वहन करने तथा परिसमापन के खर्च को उठाने में योगदान करने के लिए विधिक रुप से बाध्य होता है। यदि किसी अंशदाई की मृत्यु हो जाती है या वह दिवालिया हो जाता है तो उसके स्थान पर उसका विधिक उत्तराधिकारी उस अंशदाई के स्थान पर प्रतिस्थापित हो जाता है।
अपंजीकृत( unregistered) company के परिसमापन में कंपनी लाॅ अधिकरण एवं कंपनी परिसमापन को वह शक्तियां प्राप्त होती हैं जोकि कंपनी अधिनियम के अंतर्गत उन्हें किसी पंजीकृत कंपनी का परिसमापन किए जाने के संबंध में प्राप्त होती हैं। चुंकी अपंजीकृत कंपनी ना तो स्वयं के नाम से किसी के विरुद्ध वाद संस्थित कर सकती है और ना उसके खिलाफ उसके नाम से कोई वाद संस्थित किया जा सकता है। अतः ऐसी स्थिति में कंपनी लाॅ( company Law Act) अधिकरण द्वारा कंपनी की परिसमापन कार्यवाही के संबंध में लागू होते हैं; ना कि उसके अल्पिकरण में। इसलिये अपंजीकृत कंपनी के परिसमापन का आदेश होते ही उसके विरुद्ध सभी वाद एवं विधिक कार्यवाही स्थगित रहेंगी जब तक कि कंपनी लाॅ अधिकरण ऐसी कंपनी की संपत्ति को परिसमापन काल में उसके शासकीय परिसमापक में निहित होने का आदेश पारित कर सकता है जो अपने पद की हैसियत से उस कंपनी की तरफ से वाद का प्रतिनिधित्व कर सकेगा।
कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 377 के अनुसार अपंजीकृत कंपनी के परिसमापन संबंधी उपयुक्त प्रावधान उन प्रावधानों के अतिरिक्त होगें जो कंपनी लाॅ अधिकरण द्वारा कंपनी की परिसमापन कार्यवाही के संबंध में लागू होते हैं; ना कि उनके अल्पीकरण में। इसलिए अपंजीकृत कंपनी के परिसमापन का आदेश होते ही उसके विरुद्ध सभी वाद एवं विधिक कार्यवाहियाँ स्थगित रहेंगी जब तक कि कंपनी लाॅ अधिकरण उन्हें जारी रखने के लिए अनुमति नहीं दे देता है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा377(2) की परन्तुक के अनुसार कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत किसी अपंजीकृत कंपनी को केवल परिसमापन के लिए ही कंपनी माना जाता है।
कंपनी के परिसमापन में भूतपूर्व सदस्यों का दायित्व( liability of EX members in Winding up of company)
किसी परिसमापन की कार्यवाही में कंपनी परिसमापक सूची क एवं सूची ख तैयार करता है। सूची ख कंपनी के भूतपूर्व सदस्यों( shareholders)से संबंधित होती है। कैसी भी परिस्थितियों में कंपनी के भूतपूर्व सदस्य भी कंपनी के परिसमापन के समय अंश धारियों के रूप में दाई होते हैं। इन परिस्थितियों का उल्लेख कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 285 में निम्नलिखित प्रकार से किया गया है:
(a) कंपनी का कोई भूतपूर्व सदस्य किसी एक कंपनी के परिसमापन के समय अंशदान करने के लिए तभी दायी होगा यदि वह परिसमापन शुरू होने के 1 वर्ष या उससे अधिक अवधि के सदस्य ना रहा हो।
(b) कंपनी का भूतपूर्व सदस्य कंपनी के ऐसे ऋणों के लिए दायी नहीं होगा जो उसके सदस्यता से हट जाने के बाद पैदा हुए हों।
(c) कंपनी का भूतपूर्व सदस्य कंपनी के परिसमापन के समय केवल कंपनी के उन्ही ऋणों (debts ) के लिए दाई होगा जो कंपनी ने उस समय लिए थे जब वह कंपनी का सदस्य था।
(d) जब तक परिसमापित होने वाली कंपनी के वर्तमान अंशदाई अंशदान करने में असमर्थ ना हों तब तक कंपनी लाॅ अधिकरण भूतपूर्व सदस्यों को अंशदान करने के लिए आदेश पारित नहीं करेगा।
(e) अगर कंपनी के किसी भूतपूर्व सदस्य के अंशों की जब्ती कंपनी के परिसमापन के दिनांक से एक वर्ष पहले की अवधि में की गई हो तो कंपनी का भूतपूर्व सदस्य अंशदान करने के लिए दाई होगा।
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