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अन्याय एवं कुप्रबंध क्या है ?किसी कंपनी में अन्याय एवं कुप्रबंध को दूर करने के लिए क्या व्यवस्थाएं हैं।\What is meant by oppression and mismanagement? what are the provision to prevent oppression and mismanagement of a company.

अन्याय एवं कुप्रबंध(Oppression and mismanagement)

कंपनी का कार्य व प्रबंध कंपनी के सदस्यों पर आधारित होता है और सदस्यों के विचार उनकी अधिसंख्या या बहुमत द्वारा निर्धारित किए जाते हैं या जो भी योजना एक कंपनी के अधिसंख्यक  सदस्य चाहेंगे कंपनी पर लागू कर सकते हैं, यदि वह उनके अधिकारों के बाहर ना हो । किंतु ऐसा होने पर अनेक बार अल्पसंख्यक सदस्यों को अन्याय एवं  कुप्रबंधन के कारण हानि हो सकती है। अतः कंपनी अधिनियम में यह व्यवस्था है कि यदि अल्पसंख्यक सदस्यों को कंपनी में अन्याय या कुप्रबंध प्रकट हो जिससे उन्हें या कंपनी के हितों की हानि की संभावना हो तो वे केंद्रीय सरकार या न्यायालय से इस बचाव के लिए आवेदन कर सकते हैं।

             अन्याय से आशय किसी को अनुचित रुप से दबाना या जनहित के विरुद्ध कार्य करना है या किसी को प्राप्त  न्यायिक अधिकारों से वंचित करके अनुचित रूप से उसके अधिकारों में रुकावट डालना है जबकि कुप्रबंध से आशय उपस्थिति से है। जब कंपनी प्रबंध एवं नियंत्रण में परिवर्तन उचित प्रकार से नहीं किया गया है।

                   न्यायिक निर्णयों के अनुसार किसी सदस्य के साथ घटित होने वाले निम्न प्रकार के कार्यों को अन्याय की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है :-

(1)किसी सदस्य को उसके मूल अधिकारों से वंचित करने वाले कार्य

(2) संचालक के मूलभूत सिद्धांतों की उपेक्षा करने वाले कार्य 

(3)सदस्यों के हितों पर कुठाराघात करने वाले कार्य

(4) लोक नीति एवं सामाजिक दायित्व की उपेक्षा करने वाले कार्य 

(5)अल्पमत अंश धारियों के साथ अन्याय करने वाले दायित्व तथा जोखिम में वृद्धि करने वाले कार्य

(6) संचालक मंडल द्वारा कंपनी अधिनियम पार्षद सीमा नियम तथा पार्षद अंतर नियम की ओर अनदेखी एवं उपेक्षा करने वाले कार्य

(7) किसी सदस्य के साथ क्रूरता एवं अन्याय पूर्ण व्यवहार करना

               कुप्रबंध से आशय प्रबंधकों एवं संचालकों द्वारा कंपनी के मामलों में की जाने वाली उपेक्षा उदासीनता लापरवाही एवं स्वार्थ पूर्णता से है जिसके परिणाम स्वरूप कंपनी को निरंतर क्षति होने लगती है तथा कंपनी के हितों को गंभीर हानि पहुंचती है यह लोक नीति के विरुद्ध है ।

अन्याय एवं कुप्रबंध की रोकथाम संबंधी अधिकार( right regarding prevention of oppression and mismanagement)

Company के अल्पमत सदस्यों के साथ होने वाले अन्याय एवं कुप्रबंध को रोकथाम संबंधी अधिकारों के लिए यह आवश्यक है कि अधिकार के समक्ष आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाए निम्न व्यक्ति अधिकरण को अन्याय एवं कुप्रबंध के विरुद्ध सहायता के लिए आवेदन कर सकते हैं

(A) सदस्यों द्वारा आवेदन: कंपनी के सदस्य कंपनी में हो रहे अन्याय तथा कुप्रबंध की अधिकरण को शिकायत कर सकते हैं तथा उसके निवारण के लिए आवेदन कर सकते हैं इस संबंध में प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:

(अ) अंश पूंजी वाली कंपनी की दशा में:

(1) कंपनी के कम से कम 100 सदस्य अथवा कुल सदस्यों के 1\10 भाग के बराबर सदस्य जो भी कम हो आवेदन कर सकते हैं अथवा

(2) कंपनी की निर्गमित पूंजी के 1\10 भाग पर अधिकार रखने वाले ऐसे सदस्य जिन्होंने अपने अंशों पर देय सभी राशियों का भुगतान कर दिया है, आवेदन कर सकते हैं।

(ब) यदि कंपनी में अंश पूंजी नहीं है तो कंपनी की कुल सदस्य संख्या के कम से कम 1\5 भाग के बराबर सदस्यों द्वारा कंपनी विधानमंडल को आवेदन दिया जा सकता है ।

(2) केंद्रीय सरकार द्वारा आवेदन: केंद्रीय सरकार यदि उचित समझे तो स्वयं भी किसी कंपनी में हो रहे अन्याय तथा कुप्रबंध की रोकथाम के लिए अधिकरण से आवेदन कर सकती है।

(3) केंद्रीय सरकार के अधिकृत व्यक्ति द्वारा: यदि केंद्रीय सरकार किसी व्यक्ति को किसी कंपनी में हो रहे अन्याय तथा कुप्रबंध को रोकने के लिए अधिकरण में आवेदन देने के लिए अधिकृत कर देती है तो वह व्यक्ति भी आवेदन कर सकता है ।


अधिकरण के अधिकार या शक्तियां( power of the Tribunal)

कंपनियों में हो रहे अन्याय के निवारण के संबंध में अधिकरण को बहुत ही विस्तृत अधिकार या शक्तियां प्राप्त है । अधिकरण कंपनी के संचालक के संबंध में कोई भी आदेश दे सकता है अथवा कोई भी ऐसी शर्त लगा सकता है जो मामले की परिस्थितियों को देखते हुए अधिकरण के विचार में न्याय पूर्ण एवं उचित हो। अधिकरण के अधिकारों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

(A) आदेश देने का अधिकार: अधिकरण अन्याय एवं कुप्रबंध रोकने के लिए निम्न से संबंधित आदेश दे सकता है

(1) भविष्य में कंपनी के कार्यकलापों के संचालन का नियमन करने के संबंध में ।

(2) कंपनी के किसी सदस्य के अंश या अन्य हित किन्हीं अन्य सदस्यों अथवा कंपनी द्वारा क्रय करने के संबंध में ।

(3) यदि कंपनी को किसी सदस्य के अंश खरीदने का आदेश दिया जाता है तो उस सीमा तक कंपनी को अंश पूंजी को कम करने के संबंध में ।

(4) कंपनी का प्रबंध संचालक, प्रबंधक अथवा संचालकों के साथ हुए अनुबंध को भंग करने अथवा उस अनुबंध में परिवर्तन करने के संबंध में।

(5) अन्याय कुप्रबंध के लिए प्रार्थना पत्र देने के पूर्व 3 महीनों के भीतर कंपनी द्वारा कंपनी के विरुद्ध संपत्ति का हस्तांतरण सुपुर्दगी अथवा भुगतान जिसे अधिनियम के अंतर्गत कपटमय  माना जाता है, को रद्द करने के संबंध में।

(6) किसी अन्य बात के संबंध में जिसे अधिकरण उचित एवं न्याय संगत समझे ।

(B) अंतरिम आदेश देने का अधिकार: अंतिम आदेश देने से पूर्व यदि कारवाही से संबंधित कोई व्यक्ति अधिकरण से अंतरिम आदेश के लिए प्रार्थना करता है तो अधिकरण न्याय पूर्ण एवं उचित प्रतीत होने पर मामले के संबंध में कोई भी अंतिम आदेश दे सकता है  ।

(C) संचालकों आदि का प्रतिवादी के रूप में शामिल करना: अधिकरण किसी प्रबंध संचालक या संचालक या अन्य अधिकृत व्यक्ति को प्रतिवादी के रुप में सम्मिलित होने की आज्ञा दे सकता है यदि उसे विश्वास हो जाए कि ऐसा करने के लिए पर्याप्त कारण हैं  ।

(D) संचालक मंडल में परिवर्तन को रोकने का अधिकार: यदि प्रबंध संचालक अथवा कोई भी संचालक अधिकरण को यह शिकायत करता है कि अंशों  के स्वामित्व में संचालक मंडल ने कोई परिवर्तन किया है तो वह उन्हें ऐसा करने से रोक सकता है ।

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