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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

कंपनी के परिसमापन से आप क्या समझते हैं? कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन की विवेचना कीजिए। what do you mean by winding up of a company? Describe its proceedure and results in detail.

कंपनी का परिसमापन(winding up of Company)

कंपनी का परिसमापन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा कंपनी का विघटन होता है एवं उसकी संपत्ति का प्रशासन ऋणदाताओं तथा सदस्यों के लाभ के लिए किया जाता है। सेनगुप्ता के शब्दों में" कंपनी के  परिसमापन से तात्पर्य कंपनी के अस्तित्व को समाप्त करने से है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत कंपनी की सभी आस्तियों को एकत्रित करके या उनकी वसूली करके ,उसके दायित्वों का उन्मोचन किया जाता है तथा इसके बाद बची पूंजी ,अगर कोई हो, को कंपनी के अंतर्नियमों के प्रावधानों के अनुसार हकदार लोगों में वितरित  कर दिया जाता है ।

             इसलिए कंपनी के परिसमापन से अर्थ एक ऐसी कार्यवाही या प्रक्रिया से है जिसके द्वारा कंपनी का व्यापार पूरी तरह बंद कर दिया जाता है, कंपनी की संपत्तियां बेच दी जाती हैं, जिस से प्राप्त होने वाले धन को एवं अन्य तरह से एकत्रित हुए धन को लेनदारों का भुगतान(Payment) करने के लिए प्रयोग किया जाता है एवं अगर विधिक तरह के लेनदारों का भुगतान करने के बाद भी कुछ रकम शेष बचती है तो उसे अंश धारियों(shareholders ) में  कंपनी के अन्तर्नियम के अनुसार वितरित कर दिया जाता है।

कंपनी का स्वैच्छिक परिसमापन(Voluntary winding up of a company )

जब कंपनी के सदस्य तथा लेनदार यह निर्णय लेते हैं की कंपनी लाॅ अधिकरण की शरण लिए बिना कंपनी का परिसमापन करा लिया जाए और इसके लिए विधिवत प्रस्ताव पारित करते हैं, तो ऐसे परिसमापन को स्वैच्छिक  परिसमापन कहा जाता है।

स्वैच्छिक परिसमापन की परिस्थितियां( Condition of Voluntary Liquidation)

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 304 के अनुसार निम्नलिखित दशाओं में कंपनी का स्वेच्छा से परिसमापन किया जा सकता है

(1) सामान्य प्रस्ताव द्वारा( by general resolution): सामान्य प्रस्ताव द्वारा कंपनी का परी समापन उस दशा में हो सकता है जबकि कंपनी के अंतर नियमों में कोई अवधि निश्चित की गई हो और वह समाप्त हो गई हो अथवा अंतर नियमों में किसी घटना के घटित होने पर कंपनी बंद होने का प्रावधान हो और वह घटना घटित हो गई हो।

( धारा 304(1)(क))

(2) विशेष प्रस्ताव द्वारा(By Special Resolution  ): एक कंपनी  किसी भी समय यह विशेष प्रस्ताव पारित कर सकती है कि कंपनी  स्वेच्छा पूर्वक  परिसमापन कर दिया समापन कर दिया जाए।

                                  (धारा  304(1)(ख))

          परिसमापन का प्रारंभ प्रस्ताव की तिथि से ही माना जाएगा। यदि कोई कंपनी विशेष प्रस्ताव द्वारा अपना स्वैच्छिक परिसमापन करती है उसे प्रस्ताव की तारीख से 14 दिनों की अवधि में शासकीय राजपत्र में इस आशय का विज्ञापन देना होगा। इसी प्रकार इस सूचना को उस जिले के किसी प्रमुख समाचार पत्र में भी प्रकाशित कराना होगा जिसमें उस कंपनी का पंजीकृत कार्यालय स्थित है।

                                   (धारा 307(1))

         यदि कोई कंपनी इस नियम का उल्लंघन करती है तो उसके प्रत्येक दोषी अधिकारी को इस व्यतिक्रम के लिए ₹5000 प्रतिदिन के हिसाब से व्यतिक्रम जारी रहने तक दंडित किया जा सकता है।

                                        धारा 307(2)


स्वैच्छिक परिसमापन की प्रक्रिया( proceedure of voluntary winding up)

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 304 के अनुसार कोई भी कंपनी अपनी साधारण सभा में सामान्य प्रस्ताव पारित करके अपना स्वैच्छिक परिसमापन करा सकती है, यदि(1) कंपनी का कार्य काल समाप्त  हो गया है; या(2) कंपनी का व्यापारिक उद्देश्य पूरा या समाप्त हो गया है;(3) कंपनी के अंतर्नियमों में ऐसी व्यवस्था है।

                    अधिकांश कंपनियां अपना  परिसमापन अपने अंश धारियों अथवा लेनदारों द्वारा स्वेच्छा पूर्वक ही करती हैं। यदि कंपनी का परिसमापन सदस्यों द्वारा स्वेच्छा से किया जाता है तो उसके निदेशकों को कंपनी की शोध क्षमता की घोषणा करनी पड़ती है परंतु जब कंपनी के निदेशकों द्वारा ऐसी कोई घोषणा  नहीं की जाती है तो कंपनी अपने लेनदारों की सभा का आयोजन करती है, जिसमें कंपनी के लेनदार कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन का प्रस्ताव पारित करते हैं। कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन में निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है

(a) शोध अक्षमता की घोषणा( declaration of insolvency): नियम 2013 की धारा 305 के अनुसार अगर कोई कंपनी अपने सदस्यों के प्रस्ताव द्वारा कंपनी का परिसमापन कराना चाहती है तो उसके निदेशकों के बहुमत को निदेशक मंडल की सभा में यह घोषणा करनी होगी की कंपनी पर किसी प्रकार का ऋण नहीं है तथा यदि जो भी ऋण हैं उन्हें वह परिसमापन प्रारंभ होने से 3 वर्षों की अवधि में चुकाने की क्षमता रखती है। यह घोषणा पर सत्यापित की जानी चाहिए। घोषणा को शोध क्षमता की घोषणा कहा जाता है। कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन के प्रस्ताव की स्वीकृति के दिनांक से 5 सप्ताह की अवधि में इस शोध क्षमता की घोषणा को कंपनी रजिस्ट्रार के कार्यालय में कंपनी द्वारा भेजा जाना आवश्यक है ताकि कंपनी रजिस्टर उसका पंजीकरण कर सके। इस घोषणा के साथ कंपनी के पिछले तुलन पत्र( balance sheet) तथा लाभ हानि लेखे की संबंध में लेखा परीक्षक की रिपोर्ट की एक प्रति उस दिनाॅक को कंपनी की आस्तियों तथा दायित्वों के अर्थात देनदारियों का विवरण, आस्तियों के मूल्यांकन की मूल्यांकन रिपोर्ट भी संलग्न की जानी चाहिए।


कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 305(4) के अनुसार अगर किसी कंपनी का कोई निदेशक उक्त धारा 305 के उपबंधों  का उल्लंघन करता है तो इसके लिए उसके प्रत्येक दोषी निदेशक को 3 से 5 वर्ष तक के कारावास तथा अर्थदंड से जो कम से कम ₹50000 परंतु जो ₹300000 तक हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा । परंतु जब किसी कंपनी का स्वैच्छिक परिसमापन लेनदारों  की स्वेच्छा से किया जाता है। तो कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 306 के अनुसार किसी कंपनी का निदेशक मंडल लेनदारों की सभा का आयोजन करता है जिसकी अध्यक्षता कोई अन्य निदेशक  करता है। इस सभा की पूर्व सूचना साधारण सभा की सूचना के साथ ही सभी लेनदार ओं को रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजी जानी चाहिए तथा उसका प्रशासन शासकीय गजट में तथा उस जिले के दो प्रमुख समाचार पत्रों में विज्ञापन द्वारा कराया जाना चाहिए जिसमें उस कंपनी का मुख्य कार्यालय स्थित है। यदि लेनदारों की इस सभा में कंपनी को निदेशक मंडल इस बात से संतुष्ट है कि कंपनी की वित्तीय स्थिति बेहद खराब है तथा वह 3 वर्ष की अवधि के भीतर अपनी समस्त देनदारियों का भुगतान करने में असमर्थ है तो शोध क्षमता की घोषणा नहीं की जाएगी। इस सभा में कंपनी की व्यावसायिक स्थिति का पूर्ण विवरण एवं समस्त लेनदारों की नामावली तथा उन्हें अनुमानित देय राशि का विवरण प्रस्तुत किया जाएगा। इस सभा में पारित किए गए प्रस्ताव की एक प्रति सभा के दिनांक से 10 दिन में कंपनी रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकरण हेतु भेजी जानी चाहिए। कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 307(2) के अनुसार यदि कोई कंपनी उपरोक्त प्रावधानों का उल्लंघन करती है तो उसके व्यतिक्रम करने वाले प्रत्येक दोषी अधिकारी को ₹5000 प्रतिदिन के हिसाब से अर्थदंड से दंडित किया जाएगा जो व्यतिक्रम की अवधि तक जारी रहेगा।

(b) परिसमापक की नियुक्ति( appointment of liquidator):

जो कंपनिया अपना स्वैच्छिक परिसमापन कराना चाहती है साधारण सभा में परी समापन की कार्यवाही करने तथा कंपनी के हस्तियों का विवरण करने के लिए या अधिक परिश्रम आपको की नियुक्ति कर उनका पारिश्रमिक निर्धारित कर सकती है। कोई परिसमापन अपना कार्यभार जब तक ग्रहण नहीं करेगा जब तक कि उसके पारिश्रमिक का निर्धारण  ना हो जाए। इस प्रकार निर्धारित किया गया पारिश्रमिक किसी भी स्थिति में बढ़ाए नहीं जाएगा। ऐसे परिसमापन की नियुक्ति केंद्रीय सरकार द्वारा इस हेतु बनाए गए एक पेनल के द्वारा की जायेगी । कंपनी द्वारा परिसमापक नियुक्त कर दिए जाने के कंपनी के सभी कार्यवाहकों के सभी अधिकार समाप्त हो जाएंगे परंतु कंपनी अपनी साधारण सभा द्वारा या परिसमापक द्वारा कार्यवाही करने के संबंध में उनके अधिकार यथावत रखने की स्वीकृति दी जा सकती है।

                         (धारा 312)

         अगर कंपनी के स्वैच्छिक समापन के दौरान किसी परिसमापक की मृत्यु हो जाती है अथवा उसके पद त्याग या किसी अन्य कारण से उसका पद रिक्त हो जाता है तो ऐसी रिक्ति को कंपनी की साधारण सभा में अंश धारियों या शेष परिसमापकों, यदि कोई हो ,द्वारा भरा जा सकता है।

                          (धारा 311)

        लेकिन इस प्रकार की नियुक्ति से 10 दिन की अवधि में कंपनी द्वारा इस परिवर्तन की सूचना कंपनी रजिस्ट्रार को भेजी जानी चाहिए अन्यथा इसके लिए दोषी अधिकारों को दण्ड  से दंडित किया जा सकता है।

          (धारा 312(2))


              अतः नियुक्त किए गए परिसमापक के लिए भी आवश्यक है कि वह अपनी नियुक्ति से 3 दिन की अवधि में इस प्रकार नियुक्ति की सूचना कंपनी रजिस्ट्रार को भेजें तथा इस संबंध में शासकीय राजपत्र पर विज्ञापन का प्रकाशन कराएं।



परिसमापक द्वारा स्वैच्छिक परिसमापन कार्यवाही का संचालन( Conduct of Voluntary   winding up process)

         कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत किसी कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन की कार्यवाही को परिसमापक द्वारा निम्नलिखित नियमों के अनुसार संचालित किया जा सकता है

(a) अगर स्वैच्छिक परिसमापन की अवधि में कंपनी अपना कारोबार या संपत्ति किसी अन्य कंपनी को बेच देना चाहती है तो परिसमापक उस कंपनी के विशेष प्रस्ताव की स्वीकृति से ऐसे अंतरण के परिणाम स्वरूप प्राप्त होने वाले प्रतिफल अर्थात धनराशि को कंपनी के सदस्यों में वितरित कर सकेगा।  इसके अलावा परिमापक कोई ऐसी अन्य व्यवस्था भी अपना सकता है जिसके अधीन अंतरक कंपनी के सदस्य नगदी या अंश आदि के स्थान पर या उसके साथ-साथ अंतरिती कंपनी के लाभों  या अन्य हितों को भी प्राप्त कर सकें। इस संबंध में परिसमापक (liquidator) को यह अधिकार भी प्राप्त होता है कि वह उक्त व्यवस्था से असहमत सदस्यों के हितों या आपसी अनुबंध या मध्यस्थम द्वारा निर्धारित मूल्य पर खरीद सकता है।

         (धारा 319(3))

(b) अगर कंपनी परिसमापक  असहमत सदस्यों के हितों को आपसी समझौते अथवा मध्यस्थम(mediator) द्वारा खरीदने का विकल्प चुनता है तो इससे प्राप्त धनराशि है कि विशेष प्रस्ताव की स्वीकृति से इन सदस्यों को कंपनी के विघटन से पूर्व भुगतान कर दी जाएगी।


          अगर किसी कंपनी के स्वैच्छिक  परिसमापन की कार्यवाही 1 वर्ष से अधिक समय तक चलती रहती है  तो परिसमापक को प्रत्येक वर्ष की समाप्ति के बाद 3 माह की अवधि में कंपनी की साधारण सभा आयोजन करना होगा।

                  (धारा 316(1))


(C) इस तरह आयोजित की गई कंपनी की साधारण सभा में  परिसमापक द्वारा कंपनी  के संपूर्ण वर्ष का परिसमापन लेखा तथा स्वयं द्वारा किए गए कार्यों एवं संव्यवहारों का विवरण प्रस्तुत किया जाएगा। परिसमापक  कंपनी के सदस्यों को कंपनी के परिसमापक  की प्रगति के संबंध में अवगत कराएगा। यदि कंपनी परिसमापक इस नियम का उल्लंघन करती है तो उसे ₹1000000 तक के अर्थदंड से दंडित किया जाएगा।


               कंपनी परिसमापक  को कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 348 के अधीन कंपनी से संबंधित सभी आंकेक्षित लेखे भी प्रस्तुत करने होंगे।


(d) कंपनी का पूर्ण रूप से परिसमापन हो जाने के बाद कंपनी परिसमापक कंपनी की एक साधारण सभा का आयोजन करेगा जिसकी पूर्व सूचना सभा के दिनांक से कम से कम 1 माह पूर्व शासकीय राजपत्र तथा जिला के प्रमुख समाचार पत्रों में विज्ञापन द्वारा प्रसारित की जाएगी। इस सभा में वह परिसमापक की अवधि में कंपनी की संपत्ति के व्यय का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करेगा। इस सभा के दिनांक से 2 सप्ताह की अवधि में परिसमापक द्वारा परिसमापन लेखे की एक प्रति एवं सभा की विवरणी कंपनी रजिस्ट्रार तथा शासकीय परिसमापक को भेजी जाएगी। यदि उस सभा में कोरम पूरा नहीं था तो उसका उल्लेख उसे सभा को विवरणी में करना दिया ए। यदि कंपनी परिसमापक सभा की विवरणी कंपनी रजिस्ट्रार को प्रेषित करने में व्यतिक्रम करता है तो उसे ₹100000 तक के अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है।

                                    (धारा 318(8))


(e) कंपनी के परी समापन की अंतिम रिपोर्ट कंपनी रजिस्ट्रार को भेजने के अतिरिक्त कंपनी परिशा मापक सभा के प्रस्तावों की प्रतिलिपि यू सहित उक्त अंतिम रिपोर्ट में 2 सप्ताह के अंदर कंपनीला अधिकरण के समक्ष भी प्रस्तुत करेगा जिसके साथ यह आवेदन पत्र भी दिया जाएगा कि कंपनी के परिसमापन का आदेश पारित किया जाए।
                                 (धारा 318(4)ख)

परिसमापन तथा विघटन आदेश: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 318(4)(ख) के अधीन परिसमापन की अंतिम रिपोर्ट एवं आदेश पत्र प्राप्त होने पर उन पर विचार करने के पश्चात यदि कंपनी लाॅ अधिकरण का यह समाधान हो जाता है कि प्रश्नगत कम्पनी  के  परिसमापन संबंधी सभी कार्यवाहियों में औपचारिकताओं का यथावत उचित तरीके से पालन किया गया है तो वह आवेदन की प्राप्ति के दिनांक से 60 दिनों की अवधि में कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 318(5) के अंतर्गत उस कंपनी के परिसमापन का आदेश पारित कर देगा।

                    कंपनी परिसमापक को जैसे ही कंपनी लाॅ अधिकरण का परिसमापन आदेश प्राप्त होता है वह इस आदेश की एक प्रतिलिपि 3 दिनों के अंदर कंपनी रजिस्ट्रार को भेजेगा।

                            (धारा 318(6))

          इस आदेश प्रतिलिपि की प्राप्ति के पश्चात कंपनी रजिस्ट्रार शासकीय गजट में कंपनी अधिसूचना जारी करेगा कि कंपनी का विघटन हो चुका है।

                       (धारा 318(7))


कंपनी परिसमापन के परिणाम( result of company winding up)

कंपनी परिसमापन के निम्न प्रमुख परिणाम होते हैं

(1) किसी कंपनी के परिसमापन के दरमियान कंपनी के निदेशकों की शक्तियां समाप्त हो जाती हैं परंतु यदि कंपनी परिसमापक  या कंपनी के लेनदार या निरीक्षण समिति उनकी शक्तियों का अनुमोदन कर देते हैं तो वह शक्ति संपन्न बने रहते हैं।

(2) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 323 के अनुसार किसी कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन में हुआ पूरा खर्च जिसमें कंपनी परिसमापक का पारितोषक भी सम्मिलित है, प्रत्याभूत लेनदारों  से अधिकारों के अध्यधीन रहेंगे तथा इसका भुगतान कंपनी की आस्तियों में से किया जाएगा तथा उन्हें सभी दावों की तुलना में अधिमान्यता प्राप्त होगी ।कंपनी के परिसर के किराए के रूप में किया गया भुगतान परिसमापन के लिए आवश्यक होने के कारण इस धारा के अधीन उचित खर्च माना जाएगा तथा इसका भुगतान भी अधिमान्यता के आधार पर किया जाएगा।

(3) किसी कंपनी के परिसमापन के बाद कंपनी की शेष बची संपत्ति या आस्थियों को कंपनी के अंतर नियमों में उल्लेखित उपबंधों के अनुसार समरूपता के आधार पर सदस्यों में बांट दी जाती हैं, तथा यदि इसके बाद भी कंपनी की कोई ऐसी संपत्ति शेष बची हो जो अदावाकृत हो या जिस पर किसी ने अपना दावा ना किया हो तो ऐसी संपत्ति संबंधित राज्य में निहित हो जाएगी।

(4) किसी कंपनी का परिसमापन प्रारंभ हो जाने के बाद अगर कोई कंपनी अपने अंशों का अंतरण या अपने सदस्यों की प्रास्थिति में कोई परिवर्तन या फेर फार बिना कंपनी परिसमापक की अनुमति के करती है तो ऐसा अंतरण परिवर्तन या फिर फेरफार पूर्ण रूप से शून्य (void ) एवं निष्प्रभावी होगा।


(5) परिसमापित होने वाली कंपनी की आस्तियों प्रयोग उसके दायित्वों  तथा ऋणों का भुगतान हेतु किया जाएगा जिसमें प्राथमिकता प्राप्त ऋण दाता तथा प्रत्याभूति लेनदारों  के दावों का भुगतान संभव आधार पर किया जाना चाहिए।

(6) अगर किसी कंपनी का परिसमापन इस आधार पर किया जा रहा है कि वह दिवालिया हो गई है तो उसके सभी कर्मचारी स्वयमेव सेवा मुक्त हुए समझे जाएंगे परंतु यदि कंपनी शोध क्षमता संपन्न है तथा उसका परिसमापन समामेलन के कारण हो रहा है तो ऐसी दशा में उस कंपनी के कर्मचारियों को सेवा मुक्त नहीं माना जाएगा।
    

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