कंपनी का स्वैच्छिक समापन (Voluntary winding up of a company)
जब कंपनी के सदस्य एवं लेनदार यह निर्णय लेते हैं कि कंपनी लॉ अधिकरण की शरण लिये बिना कंपनी का परिसमापन करा लिया जाए और इसके लिए विधिवत प्रस्ताव पारित करते हैं, तब ऐसे परिसमापन को" स्वैच्छिक परिसमापन कहते हैं।
कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 304 के अनुसार निम्नलिखित दशाओं में कंपनी का स्वेच्छा से परिसमापन किया जा सकता है:
(a) सामान्य प्रस्ताव द्वारा: सामान्य प्रस्ताव द्वारा कंपनी का परिसमापन उस परिस्थिति में हो सकता है, जबकि कंपनी के अंन्तर्नियमों में कोई अवधि निश्चित की गई हो और वह समाप्त हो गई हो अथवा अंतर नियमों में किसी घटना के घटित होने पर कंपनी बंद होने का प्रावधान हो और वह घटना घटित हो गई हो।
(धारा 304(1)(क))
(b) विशेष प्रस्ताव द्वारा: एक कंपनी किसी भी समय यह विशेष प्रस्ताव पारित कर सकती है कि कंपनी का स्वेच्छा पूर्वक परिसमापन कर दिया जाए।
( धारा 304(1)(ख))
परिसमापन का प्रारंभ प्रस्ताव की दिनांक से ही माना जाएगा। अभी कोई कंपनी विशेष प्रस्ताव द्वारा अपना स्वैच्छिक परिसमापन करती है तो उसे प्रस्ताव की दिनांक से 14 दिनों की अवधि में शासकीय राजपत्र में इस आशय का विज्ञापन देना होगा। इसी प्रकार इस सूचना को उस जिले के किसी प्रमुख समाचार पत्र में भी प्रकाशित कराना होगा जिसमें उस कंपनी का पंजीकृत कार्यालय स्थित है।
( धारा 307(1))
अगर कोई कंपनी इस नियम का उल्लंघन करती है तो उसके प्रत्येक दोषी अधिकारी को इस व्यतिक्रम के लिए ₹5000 प्रतिदिन के हिसाब से व्यतिक्रम जारी रहने तक दंडित किया जा सकता है।
( धारा 307(2))
स्वैच्छिक परिसमापन की प्रक्रिया(Procedure of Voluntary Winding up):
कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 304 के अनुसार कोई भी कंपनी अपनी साधारण सभा में सामान्य प्रस्ताव पारित करके अपना स्वैच्छिक परिसमापन करा सकती है अगर;
(1) कंपनी का कार्यकाल समाप्त हो गया है
(2) कंपनी का व्यापारिक उद्देश्य पूरा या समाप्त हो गया है
(3) कंपनी के अंन्तर्नियमों में ऐसी व्यवस्था है
ज्यादातर कंपनियां अपना परिसमापन अपने अंश धारियों अथवा लेनदारों द्वारा स्वेच्छा पूर्वक ही करती हैं। यदि कंपनी का परिसमापन सदस्यों द्वारा स्वेच्छा से किया जाता है तो उसके निदेशकों को कम शोध क्षमता की घोषणा करनी पड़ती है परंतु जब कंपनी के निदेशकों द्वारा कोई ऐसी घोषणा नहीं की जाती है तो कंपनी अपने लेनदारों की सभा का आयोजन करती है ।कंपनी के लेनदार कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन का प्रस्ताव पारित करते हैं ।कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन में निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है।
(1) शोधन क्षमता की घोषणा: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 305 के अनुसार अगर कोई कंपनी अपने सदस्यों के प्रस्ताव द्वारा कंपनी का परिसमापन कराना चाहती है तो उसके निदेशकों के बहुमत को निदेशक मंडल की सभा में यह घोषणा करनी होगी कि कंपनी पर किसी प्रकार का ऋण नहीं है तथा अगर जो भी ऋण है उन्हें वह परिसमापन प्रारंभ होने से 3 वर्षों की अवधि में चुकाने की क्षमता रखती है। यह घोषणा शपथ पत्र पर सत्यापित की जानी चाहिए। कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन के प्रस्ताव की स्वीकृति के दिनांक से 5 सप्ताह की अवधि में इस शोध क्षमता की घोषणा को कंपनी रजिस्ट्रार उसका पंजीकरण कर सके। इस घोषणा के साथ कंपनी के पिछले तुलन पत्र तथा लाभ हानि का लेखा जोखा के संबंध में लेखा परीक्षक की रिपोर्ट की एक प्रति उस दिनांक को कंपनी की आस्तियों तथा दायित्वों का विवरण, आस्तियों के मूल्यांकन की रिपोर्ट भी संलग्न की जानी चाहिए।
कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 305(4) के अनुसार यदि किसी कंपनी का कोई निदेशक उक्त धारा 305 के उपबंधों का उल्लंघन करता है तो इसके लिए उसके प्रत्येक दोषी निदेशक को 3 से 5 वर्ष तक के कारावास तथा अर्थदंड से जो कम से कम ₹50000 परंतु जो ₹300000 तक हो सकेगा, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
परंतु जब किसी कंपनी का स्वैच्छिक परिसमापन लेनदारों की स्वेच्छा से किया जाता है तो कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 306 के अनुसार कंपनी का निदेशक मंडल लेनदारों की सभा का आयोजन करता है जिसकी अध्यक्षता कोई अन्य निदेशक करता है। इस सभा की पूर्व सूचना साधारण सभा की सूचना के साथ ही सभी लेनदारों को रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजी जानी चाहिए तथा उसका प्रकाशन शासकीय गजट में तथा उस जिले के दो प्रमुख अखबारों में विज्ञापन द्वारा कराया जाना चाहिए जिसमें उस कंपनी का मुख्य कार्यालय स्थित है। यदि लेनदारों की इस सभा में कंपनी को निदेशक मंडल इस बात से संतुष्ट है कि वित्तीय स्थिति बेहद खराब है तथा वह 3 वर्ष की अवधि के भीतर अपनी समस्त देनदारियों का भुगतान करने में असमर्थ है तो शोध क्षमता की घोषणा नहीं की जाएगी । इस सभा में कंपनी की व्यवसायिक स्थिति का पूर्ण विवरण तथा समस्त लेनदारों की नामावली तथा उन्हें अनुमानित देय राशि का विवरण प्रस्तुत किया जाएगा। इस सभा में पारित किए गए प्रस्ताव की एक प्रति सभा के दिनांक से 10 दिन में कंपनी रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकरण हेतु भेजी जानी चाहिए।
कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 307(2) के अनुसार अगर कोई कंपनी उपयुक्त प्रावधानों का उल्लंघन करती है तो उसके व्यतिक्रम करने वाले प्रत्येक दोषी अधिकारी को ₹5000 प्रतिदिन के हिसाब से अर्थदंड से दंडित किया जाएगा जो व्यतिक्रम की अवधि तक जारी रहेगा.
(2) परिसमापक की नियुक्ति: जो कंपनी अपना स्वैच्छिक परिसमापन कराना चाहती है वह अपनी साधारण सभा में परिसमापन की कार्यवाही करने तथा कंपनी की आस्तियों का वितरण करने के लिए एक या अधिक परिसमापकों की नियुक्ति कर उनका पारिश्रमिक निर्धारित कर सकती है । कोई परिसमापक अपना कार्यभार तब तक ग्रहण नहीं करेगा जब तक कि उसके परिश्रमिक निर्धारण ना हो जाए। इस प्रकार निर्धारित किया गया पारिश्रमिक किसी भी स्थिति में बढ़ाया नहीं जाएगा। ऐसे परिसमापक की नियुक्ति केंद्रीय सरकार द्वारा इस हेतु बनाए गए एक पैनल में से की जाएगी। कंपनी द्वारा परिसमापक नियुक्त कर दिए जाने के पश्चात कंपनी के सभी कार्यवाहकों के सभी अधिकार खत्म हो जाएंगे। परंतु कंपनी अपनी साधारण सभा द्वारा या परिसमापन द्वारा कार्यवाही करने के संबंध में उनके अधिकार यथावत रखने की स्वीकृति दी जा सकती है।
( धारा 312)
अगर कंपनी के स्वैच्छिक समापन के दौरान किसी परिसमापक की मृत्यु हो जाती है अथवा उसके पद त्याग या पद मुक्ति या किसी अन्य कारण से उसका पद रिक्त हो जाता है तो ऐसी रिक्ति को कंपनी की साधारण सभा में अंशदायियों या शेष परिसमापकों, यदि कोई हो, द्वारा भरा जा सकता है ।
( धारा 311)
लेकिन इस प्रकार की नियुक्ति से 10 दिन की अवधि में कंपनी द्वारा इस परिवर्तन की सूचना कंपनी रजिस्ट्रार को भेजी जानी चाहिए अन्यथा इसके लिए दोषी अधिकारी को अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है ।
( धारा 312(2))
इस प्रकार नियुक्त किए गए परिसमापक के लिए यह जरूरी है कि वह अपनी नियुक्ति से 30 दिन की अवधि में इस नियुक्ति की सूचना कंपनी रजिस्ट्रार को भेजें तथा इस संबंध में शासकीय राजपत्र पर विज्ञापन का प्रकाशन कराएं।
परिसमापक द्वारा स्वैच्छिक पर समापन कार्यवाही का संचालन(Canduct of Voluntary up process)
कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत किसी कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन की कार्यवाही को परिसमापक द्वारा निम्नलिखित नियमों के अनुसार संचालित किया जाता है:
(a) अगर स्वैच्छिक परिसमापन की अवधि में कंपनी अपना कारोबार या संपत्ति किसी अन्य कंपनी को बेचना चाहती है तो परिसमापक उस कंपनी के विशेष प्रस्ताव की स्वीकृति से ऐसे अंतरण के परिणाम स्वरूप प्राप्त होने वाले प्रतिफल अर्थात धनराशि को कंपनी के सदस्यों में वितरित कर सकेगा। इसके अतिरिक्त परिश्रम आपक कोई ऐसी अन्य व्यवस्था भी अपना सकता है जिसके अधीन अंतरक कंपनी के सदस्य नगदी या अंश आदि के स्थान पर या उसके साथ-साथ अंतरिति कंपनी के लाभों या अन्य हितों को भी प्राप्त कर सकें। इस विषय में परिसमापक को यह अधिकार भी प्राप्त होता है कि वह वह उक्त व्यवस्था से असहमत सदस्यों के हितों या आपसी अनुबंध या मध्यस्थम द्वारा निर्धारित मूल्य पर खरीद सकता है।
( धारा 319(3))
(b) अगर कंपनी परिसमापक असहमत सदस्यों के हितों को आपसी समझौते या मध्यस्थम द्वारा खरीदने का विकल्प चुनता है तो इससे प्राप्त धनराशि एक विशेष प्रस्ताव की स्वीकृति से इन सदस्यों को कंपनी के विघटन से पूर्व भुगतान कर दी जाएगी ।
(c) अगर किसी कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन की कार्यवाही 1 वर्ष से अधिक समय तक चलती रहती है तो तो परिसमापक को प्रत्येक वर्ष की समाप्ति के बाद 3 माह की अवधि में कंपनी की साधारण सभा का आयोजन करना होगा।
(धारा 316(1))
(d) इस प्रकार आयोजित की गई कंपनी की साधारण सभा में परिसमापक द्वारा कंपनी के संपूर्ण वर्ष का परिसमापन लेखा तथा स्वयं द्वारा किए गए कार्यों एवं सम व्यवहारों का वितरण प्रस्तुत किया जाएगा ।परिसमापक कंपनी के सदस्यों को कंपनी के परीसमापक की प्रगति के संबंध में अवगत कराएगा ।अगर कंपनी परिसमापक इस नियम का उल्लंघन करता है तो उसे ₹1000000 तक के अर्थदंड से दंडित किया जाएगा।
(धारा 316(2))
कंपनी परिसमापक को कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 348 के अधीन कंपनी से संबंधित सभी अंकेक्षित लेखे भी प्रस्तुत करने होंगे।
(e) कंपनी का पूर्ण रूप से परिसमापन हो जाने के बाद कंपनी परिसमापक कंपनी की एक साधारण सभा का आयोजन करेगा । जिसकी पूर्व सूचना सभा के दिनांक से कम से कम 1 माह पूर्व शासकीय राज्य पत्र तथा जिले के प्रमुख अखबारों में विज्ञापन द्वारा प्रसारित की जाएगी ।इस सभा में वह परिसमापन की अवधि में कंपनी की समाप्ति के व्यय का संपूर्ण विवरण प्रस्तुत करेगा ।इस सभा के दिनांक से 2 सप्ताह की अवधि में परिसमापन लेखे की एक प्रति एवं सभा की विवरणी कंपनी रजिस्ट्रार तथा शासकीय परिसमापक को भेजी जाएगी ।उस सभा में कोरम पूरा नहीं था तो उसका उल्लेख विशेष सभा को विवरणी में करना चाहिए ।यदि कंपनी परिसमापन सभा की विवरणी कंपनी रजिस्ट्रार को प्रेषित करने में व्यतिक्रम करता है तो उसे ₹100000 तक के अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है।
( धारा 318(8))
(f) कंपनी के परिसमापन की अंतिम रिपोर्ट कंपनी रजिस्ट्रार को भेजने के अलावा कंपनी परिसमापन सभा के प्रस्ताव की प्रतिलिपियों सहित उक्त अंतिम रिपोर्ट में 2 सप्ताह के अंदर कंपनी लॉ अधिकरण के समक्ष भी प्रस्तुत करेगा ।जिसके साथ यह आवेदन पत्र भी दिया जाएगा कि कंपनी के परिसमापन का आदेश पारित किया जाए।
(धारा 318(4)(ख))
कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन के परिणाम( results of company voluntary winding up)
किसी कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन के मुख्य परिणाम इस प्रकार हैं:
(1) किसी कंपनी के परिसमापन के दौरान कंपनी के निदेशकों की शक्तियां समाप्त हो जाती है लेकिन यदि कम्पनी परिसमापक या कंपनी के लेनदार या निरीक्षण समिति उनकी शक्तियों का अनुमोदन कर देते हैं तो वे शक्ति संपन्न बने रहते हैं।
(2) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 323 के अनुसार किसी कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन में हुआ संपूर्ण खर्च जिसमें कंपनी परिसमापक का पारितोषक भी शामिल है प्रत्याभूत लेनदारों के अधिकारों के अध्ययन रहेंगे एवं इसका पेमेंट कंपनी की आस्तियों मे से किया जाएगा तथा उन्हें सभी दावों की तुलना में अधिक मान्यता प्राप्त होगी। के परिसर किराए के रूप मेंकिया गया भुगतान परिसमापन के लिए जरूरी होने के कारण इस धारा के अधीन उचित खर्च माना जाएगा तथा इसका भुगतान भी अधिमान्यता के अधिकार पर किया जाएगा ।
(3)किसी कंपनी के परिसमापन के बाद कंपनी की शेष बची संपत्ति या आस्तियों को कंपनी के अंतर नियमों में उल्लेखित उपबंधों के अनुसार समरूपता के आधार पर सदस्यों में वितरित कर दी जाती है एवं इसके बाद भी कंपनी की कोई ऐसी संपत्ति शेष बची हो जो अदावत कृत हो अथवा जिस पर किसी ने अपना दावा ना किया हो तो ऐसी संपत्ति संबंधित राज्य में निहित हो जाएगी।
(4) किसी कंपनी का परिसमापन प्रारंभ हो जाने के बाद यदि कोई कंपनी अपने अंशों का अंतरण या अपने सदस्यों की स्थिति में कोई परिवर्तन या फेरफार बिना कंपनी परिसमापक की अनुमति के करती है तो ऐसा अंतरण परिवर्तन या फेरफार पूर्ण रूप से शून्य एवं निष्प्रभावी होगा ।
(5) परिसमाप्ति होने वाली कंपनी की आस्तियों का प्रयोग उसके दायित्व तथा ऋणों का भुगतान हेतु किया जाएगा जिसमें प्राथमिकता प्राप्त ऋण दाता तथा प्रत्याभूत लेनदारों के दावों का भुगतान संभव आधार पर किया जाना चाहिए।
(6) अगर किसी कंपनी का परिसमापन इस आधार पर किया जा रहा है कि वह दिवालिया हो गई है तो उसके सभी कर्मचारी स्वयं को स्वयं सेवा मुक्त हुए समझे जाएंगे लेकिन अगर कंपनी शोध क्षमता संपन्न है तथा उसका परि समापन समावेशन के कारण हो रहा है तो ऐसी दशा में उस कंपनी के कर्मचारी को सेवा मुक्त नहीं माना जाएगा ।
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