कंपनी के परिसमापन में लॉ बोर्ड की शक्तियां /powers of law board in the winding up of company
(1) कंपनी के प्रबंध से संबंधित पदाधिकारियों या व्यक्तियों का खुला परीक्षण: अगर कंपनी लाॅ अधिकरण को परिसमापक से यह रिपोर्ट प्राप्त होती है कि कंपनी के प्रवर्तन अथवा निर्माण में या इसके बाद उसके किसी पदाधिकारी या व्यक्ति ने कंपनी के प्रति कपट पूर्ण अथवा कुटिलता पूर्ण व्यवहार किया है तो अधिकरण द्वारा उस पदाधिकारी या व्यक्ति का अधिकरण के समक्ष खुला परीक्षण कराया जा सकता है। इस परीक्षण में परिसमापक(liquidator) उपस्थित होकर अधिकरण का ध्यान उन तथ्यों की ओर आकर्षित करेगा जो उस केस संबंधित हों। संबंधित पदाधिकारी या व्यक्ति को अपना बयान शपथ पत्र पर देना होगा तथा उन्हें अपना पक्ष प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिया जाएगा। यह खुला परीक्षण अधिकरण स्वयं भी कर सकता है या इसके लिए किसी प्राधिकारी या व्यक्ति को भी अधिकृत कर सकता है।
(धारा 300)
(2) फरार अंशदायियों की गिरफ्तारी: यदि कंपनी लाॅ अधिकरण को यह आशंका हो की कंपनी का कोई अंशदायी अपने दायित्व या परीक्षण से बचने के तात्पर्य से फरार हो सकता है या संबंधित लेखाओं, दस्तावेजों यह संपत्ति को छुपा सकता है तो वह ऐसे अंशदायी की गिरफ्तारी या उसकी संपत्ति की जब्ती आदेश पारित कर सकता है।
(धारा 301)
(3) कंपनी का विघटन आदेशित करने की शक्ति: कंपनी के परिसमापन पूर्ण होने के बाद कंपनी लॉ अधिकरण उसके विघटन का आदेश देगा तथा इस आदेश के दिनांक से ही कंपनी को विघटित हुआ माना जाएगा। कंपनी के परिसमापन की कार्यवाही के दौरान भी वह विघटन आदेश पारित कर सकता है अगर वह अनुभव करता है कि धन या निधि के अभाव में परिसमापक परिसमापन की कार्यवाही जारी रखने में असमर्थ है। परिसमापक विघटन आदेश की तिथि से 30 दिनों के भीतर कंपनी के विघटन की सूचना विघटन आदेश की प्रतिलिपि सहित कंपनी रजिस्ट्रार को भेजेगा।
(धारा 302)
अगर कंपनी परिसमापक कंपनी के विघटन के आदेश की प्रतिलिपि निर्धारित 30 दिनों की अवधि में कंपनी रजिस्ट्रार को प्रेषित करने में व्यतिक्रम करता है तो उसे ₹5000 प्रतिदिन के हिसाब से व्यतिक्रम जारी रहने तक की अवधि तक अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है।
(4) कंपनी को पुनर्जीवित करने का आदेश देने की शक्ति: किसी कंपनी के विघटन के पश्चात 2 वर्ष की अवधि के भीतर यदि कंपनी का परिसमापक या कोई अन्य व्यक्ति जो कंपनी को पुनर्जीवित कराने में रुचि रखता है तथा जिसे यह आशा है कि कंपनी पुनः अपना कारोबार संभाल लेगी, कंपनी लॉ अधिकरण के समक्ष विघटन के आदेश को शून्य घोषित कराने का आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। यदि कंपनी लाॅ अधिकरण का यह समाधान हो जाता है कि कंपनी अपने कारोबार का संचालन पूर्ववत् कर सकती है तो विघटन(disbolution) को रद्द करते हुए कंपनी को पुनर्जीवित करने का आदेश पारित कर देगा। इस आदेश की एक प्रति आवेदक को तथा एक प्रति कंपनी रजिस्ट्रार के कार्यालय को भेजी जाएगी।
(5) अंशधारियों की अधिकारों का समायोजन: कंपनी लॉ अधिकरण परिसमापनाधीन कंपनी के विभिन्न अंशदायियों के अधिकारों को आपस में समायोजित किए जाने हेतु आदेश पारित कर सकता है तथा ऐसे समायोजन के बाद शेष राशि को उन व्यक्तियों में वितरित किए जाने का आदेश दे सकता है जो इसके हकदार हैं।
(धारा 297)
(5)परिसमापन रोकने का अधिकार: कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 289 के अनुसार, परिसमापन का आदेश देने के बाद भी कंपनी लाॅ अधिकरण सरकारी परिसमापक, ऋणदाता अथवा किसी अंशदायी की प्रार्थना पर परिसमापन संबंधी कार्यवाही रोक सकता है। इसके लिए शर्त यह है कि कंपनी लाॅ अधिकरण को प्रार्थना के आधारों से संतुष्ट होना चाहिए । ऐसी कार्यवाही निश्चित समय के लिए या हमेशा के लिए कंपनी लॉ अधिकरण की दृष्टि में उचित शर्तों के साथ रोकी जा सकती है। स्थगन आदेश की एक प्रति संबंधित कंपनी तथा कंपनी रजिस्ट्रार को भेजी जानी चाहिए।
रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज बनाम साहू मिनरल्स प्रॉपर्टीज लिमिटेड,(1990)69 कंपनी केसेस248 राज. के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा अवधारित किया गया है कि न्यायालय द्वारा कंपनी की परिसमापन कार्यवाही के स्थगन आदेश की एक प्रति संबंधित कंपनी एवं कंपनी रजिस्ट्रार को भेजी जानी चाहिए। कोर्ट अपनी इस शक्ति का प्रयोग कंपनी के स्वैच्छिक परिसमापन की दशा में भी कर सकता है।
(7) अंशदायियों की सूची तैयार करना तथा परिसंपत्ति का प्रयोग: परिसमापन का आदेश देने के बाद रजिस्टर में जहां जरूरी हो संशोधन करके अधिकरण अंशदायियों की सूची तैयार करेगा साथ ही कंपनी की सभी परिसंपत्तियों को एकत्र कर उसका उपयोग देनदारों के भुगतान में लगाने का आदेश देगा। सूची तैयार करते समय अंशदायी तथा प्रतिनिधिक अंश धारियों के बीच मतभेद किया जाएगा।
(धारा 285)
(8) परिसमापक को संपत्ति के परिदान का अधिकार: परिसमापन के आदेश के पश्चात अधिकरण कंपनी से संबंधित सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को जिनके पास कंपनी से संबंधित कोई राशि, संपत्ति लेखे अथवा अन्य परिपत्र हों, जिन्हें कंपनी प्राप्त कर सकती हो, परिसमापक को हस्तांतरित करने का आदेश दे सकता है।
(धारा 283)
(9) अंशदायियों द्वारा देय ऋण राशि भुगतान करने का आदेश देना: परिसमापन के बाद अधिकरण किसी अंशदायी को उसके स्वयं के ऋण अथवा किसी अन्य के ऋण जिसका वह प्रतिनिधि है, कंपनी को भुगतान का आदेश दे सकता है। इसका भुगतान उसकी संपत्ति में से किया जाएगा। वह इस संबंध में अंशदायी एवं कंपनी के मध्य लेन-देन के करने का आदेश दे सकता है।
(धारा 295)
(10) भुगतान के लिए अभियाचना का अधिकार: परिसमापन के आदेश के पश्चात तथा कंपनी की संपत्ति का वास्तविक स्वरूप जानने के पश्चात अधिकरण अंश धारियों से उनके दायित्व की सीमा तक मांग कर रकम जमा करने का आदेश दे सकता है।
(धारा 297)
(11) खर्च आदेशित करने की शक्ति: यदि कंपनी की आस्तियां उसके दायित्वों की पूर्ति के लिए अपर्याप्त हैं तो अधिकरण आस्तियों में से परिसमापन का खर्च इत्यादि किए जाने हेतु ऑर्डर दे सकता है तथा यह खर्चे प्राथमिकता के आधार पर प्रयुक्त किए जाएंगे।
(धारा 298)
परिसमापन के प्रमुख कार्य(main function of Liquidator)
कंपनी परिसमापक के प्रमुख कार्य इस प्रकार है:
(1) कंपनी की संपूर्ण शक्ति को अपने कब्जे अर्थात अभिरक्षा में लेना।
(2) कंपनी के ऋणों को ग्राह्य एवं अग्राह्य करना
(3) कंपनी की अवशोषित राशि का वितरण करना
(4) किसी भी कंपनी की व्यवस्था एवं वितरण पर समुचित नियंत्रण रखना
(5) लेनदारों तथा अंश धारियों की बैठक बुलाना
(6) अभिलेखों रजिस्टरों को इकट्ठा करना।
(7) परिसमापक अधिकरण से निर्देश प्राप्त करता है
(8) आय एवं व्यय के के लेखों का अंकेक्षण करना
(9)परिसमापक परामर्श दाई समिति का गठन करता है।
(10)कंपनी की रिपोर्ट प्रस्तुत करना
कंपनी परिसमापक की प्रमुख शक्तियां( main power of company liquidator)
Company परिसमापक की प्रमुख शक्तियां( धारा 290) इस प्रकार है;
इस संबंध में अधिकरण द्वारा दिए गए निर्देशों के अधीन रहते हुए, यदि कोई हो, अधिकरण द्वारा परिसमापन में कंपनी समापक को, निम्नलिखित शक्तियां होंगी:
(1) जहां तक कंपनी के फायदा प्रद परिसमापन के लिए आवश्यक हो, कंपनी के कारोबार को करना;
(2) कंपनी के नाम पर और उसकी ओर से सभी कार्य करना और सभी विलेख, रसीदें और अन्य दस्तावेज निष्पादित करना तथा उस प्रयोजन के लिए, जब कभी आवश्यक हो, कंपनी की मुद्रा का प्रयोग करना;
(3) कंपनी की स्थावर और जंगम संपत्ति और अनुयोज्य दावों को लोक नीलामी या प्राइवेट संविदा द्वारा किसी व्यक्ति या निगमित निकाय को, ऐसी संपत्ति अंतरित करने की शक्ति सहित, विक्रय करना या उन्हें हिस्सों में विक्रय करना;
(4) कंपनी के संपूर्ण उपक्रम का चालू समुत्थान के रूप में विक्रय करना;
(5) कंपनी की आस्तियों की प्रतिभूति पर अपेक्षित कोई धन उगाहना
(6) कंपनी के नाम में और उसकी ओर से, सिविल या दांडिक, कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही संस्थित करना या उसका प्रतिवाद करना;
(7) लेनदारों, कर्मचारियों या किसी अन्य दावेदार के दावे आमंत्रित करना और निपटाना तथा इस अधिनियम के अधीन स्थापित पूर्ति कर्ताओं के अनुसार विक्रय आगम वितरित करना;
(8) रजिस्ट्रार या किसी अन्य प्राधिकारी की फाइलों पर कंपनी के अभिलेखों और विवरणों का निरीक्षण करना;
(9) किसी अभिदाता के दिवालियापन में उसकी संपदा के संबंध में किसी बकाया के लिए रैंक और दावे साबित करना और उस बकाया के संबंध में दिवालिये से शोध और अन्य पृथक लेनदारों से संबंधित पृथक्करण के रूप में दिवाले में लाभांश प्राप्त करना।
(10) कंपनी के नाम में और उसकी ओर से कंपनी के दायित्व के संबंध में किन्ही परक्राम्य में लिखतों, जिनके अंतर्गत चैक, विनिमय पत्र, हुंडी या वचन पत्र भी हो, को उसी प्रभाव से तैयार करना, स्वीकार करना और बनाना तथा पृष्ठ अंकित करना, मानों ऐसी लिखतों को कंपनी द्वारा या उसकी ओर से उसके कारोबार के अनुक्रम में तैयार, स्वीकार या बनाया पृष्ठ अंकित किया गया हो इत्यादि;
कम्पनी परिसमापक के प्रमुख कर्तव्य( main duties of company liquidator):
(1) company की संपत्ति को अपनी अभिरक्षा में लेना: परिसमापक का सबसे पहला कर्तव्य कंपनी की संपत्ति को परिसमापक बनते ही अपनी अभिरक्षा( custody) में लेना।
Industrial Development consultants Limited versus Coolie,(1972)2 all india 162 के मामले में यह प्रतिपादित किया गया है कि:वह निदेशकों द्वारा अपनी प्रस्तुति का उपयोग करते हुए अर्जित किए गए अप्राधिकृत लाभों को भी वसूल कर सकता है।
(2) संपत्ति की व्यवस्था तथा वितरण पर उचित नियंत्रण रखना: परिसमापक का यह कर्तव्य है कि वह कंपनी की संपत्ति का वितरण करते समय कंपनी के लेनदारों एवं अंश धारियों की साधारण बैठक में प्रस्तावित निर्देशों को ध्यान में रखें। साथ ही निरीक्षण समिति के निर्देशों को भी ध्यान में रखना होगा।
(3) लेनदारों एवं अंश धारियों की बैठक: आवश्यक होने पर परिसमापक द्वारा कंपनी के लेनदारों या अंश धारियों की कुल संख्या के न्यूनतम 1\10 भाग की लिखित मांग अपेक्षित है।
(4) अधिकरण से निर्देश प्राप्त करना: परिसमापक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह परिसमापन के संबंध में समय-समय पर अधिकरण से आवश्यक निर्देश प्राप्त करता रहे।
(5) अभिलेखों एवं रजिस्टारों को अद्यतन करना: परिसमापक का यह कर्तव्य है कि वह परिसमापन से संबंधित कंपनी के सारे रजिस्टारों , अभिलेखों , दस्तावेजों आदि को व्यवस्थित एवं अद्यतन रखे ताकि कंपनी का कोई भी लेनदार या अंश धारक शुल्क का संदाय कर उनका परीक्षण कर सके।
(6) आय व्यय के लेखों का अंकेक्षण करना: परिसमापक का यह कर्तव्य भी है कि वह निर्धारित अंतराल में वर्ष में कम से कम 2 बार कंपनी की आय एवं व्यय का लेखा अधिकरण को प्रेषित करें। अधिकरण द्वारा ऐसे लेखों का अंकेक्षण कराया जाएगा।
(7) परामर्शदायी समिति का गठन: परिसमापन का आदेश पारित करते समय यदि अधिकरण आवश्यक एवं उचित समझें तो परिसमापक को परामर्श दाई समिति के गठन का निर्देश दे सकेगा।
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