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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

शासकीय परिसमापक को परिभाषित कीजिए।( describe official liquidator)

शासकीय परिसमापक( official liquidator)

Company Act,2013 की धारा 359 में शासकीय परिसमापक की नियुक्ति के बारे में प्रावधान किया गया है।

(1) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए जहां तक इसका संबंध अधिकरण द्वारा कंपनियों के परिसमापन से है, केंद्रीय सरकार उतने शासकीय समापकों, संयुक्त समापक, सहायक समापक की नियुक्ति कर सकेगी, जो व शासकीय समापक के कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक समझे।


(2) उपधारा(1) के अधीन युक्त समापक केंद्रीय सरकार के पूर्णकालिक अधिकारी होंगे।

(3) शासकीय समापक, संयुक्त शासकीय समापक, उप शासकीय समापक, सहायक शासकीय समापक के वेतन और अन्य भत्ते, केंद्रीय सरकार द्वारा संदत्त होंगे।

स्पष्ट है कि शासकीय परिसमापक की नियुक्ति:

(1) केंद्रीय सरकार द्वारा की जाएगी;

(2) अधिकरण द्वारा परिसमापन की दशा में की जाएगी

(3) शासकीय परिसमापक के साथ संयुक्त परिसमापक एवं सहायक परिसमापक की नियुक्ति की जाएगी।

                ऐसे परिसमापक केंद्रीय सरकार के पूर्णकालिक अधिकारी( whole time officers) होगें ।

(a) शासकीय परिसमापक

(b) संयुक्त शासकीय परिसमापक

(c) उप शासकीय परिसमापक एवं

(d) सहायक शासकीय परिसमापक

             के वेतन व भत्ते केंद्रीय सरकार द्वारा संदत्त होंगे।


शासकीय परिसमापक की शक्तियां( power of official liquidator):


अनिवार्य परिसमापन के मामले में सरकारी परिसमापक को कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 290 के अंतर्गत अनेक वैधानिक अधिकार प्रदान किए गए हैं । परिसमापक की शक्तियों को दो शीर्षकों  में बांटा जा सकता है:

(a) ऐसी शक्तियाँ  जिनका उपयोग करने के लिए उसे कंपनी लॉ अधिकरण की अनुमति लेना आवश्यक नहीं है ।

(b) ऐसी शक्तियां जिनका उपयोग कंपनी लाॅ अधिकरण की अनुमति के बिना नहीं कर सकता।


(अ) शासकीय परिसमापक की वे शक्तियाँ  जिनके लिए उसे लाॅ ट्रिब्यूनल से परमिशन लेना जरूरी नहीं है वह इस प्रकार है:

(1) कंपनी की तरफ से या कंपनी के नाम से उसकी रसीदों तथा  दस्तावेजों को निष्पादित करना तथा आवश्यकता के अनुसार कंपनी की मुहर का उपयोग करना।

(2) कंपनी के रजिस्टर्ड, रिकॉर्ड्स एवं प्रपत्रों  इत्यादि का कंपनी रजिस्ट्रार के ऑफिस में फ्री निरीक्षण करना।

(3) ऐसे कार्यों के लिए अभिकर्ता नियुक्त करना जिन्हें वह स्वयं नहीं करता है।

(4) परिसमापक की हैसियत से कंपनी के किसी दिवंगत अंशधारी की संपत्ति के विषय में अधिकार पत्र लेना एवं उसकी प्रॉपर्टी से अचूकता राशि प्राप्त करने के लिए जरूरी कार्यवाही करना।

(5) कंपनी की तरफ से परक्राम्य विलेखों, विनिमय पत्रों , बंन्धपत्रों एवं हुंडी इत्यादि को स्वीकार करना।

(6) शासकीय परिसमापक  किसी अंश धारी के दिवालियापन की दशा में उसकी प्रॉपर्टी में से कंपनी को देय राशि को प्रमाणित करना एवं उस पर लाभांश प्राप्त करना।

(ब) परिसमापक  कि वे शक्तियां जिसके लिए कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की परमिशन लेना जरूरी है इस प्रकार हैं( कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 29(1))


(1) कंपनी के नाम से या विरुद्ध कोर्ट में सिविल अथवा आपराधिक वाद संस्थित करना।

(2) कंपनी की बिजनेस को यथावत रखना जो कंपनी परिसमापन के लिए फायदेमंद हो

(3) कंपनी की चल अथवा चल( movable and unmovable) प्रॉपर्टी या दावों की सार्वजनिक नीलामी अथवा व्यक्तिगत संविदा के द्वारा बिक्री करना।

(4) कंपनी की प्रॉपर्टी की प्रतिभूतियों( securities) जरूरत के अनुसार कर्ज लेना।

(5) कंपनी के परिसमापन के लिए एवं उसकी प्रॉपर्टी के विभाजन के लिए जरूरी कार्यवाही करना।

(6) दुर्बल संविदाएं 

(7) कंपनी के कारोबार का परिसंचालन इस तरह करना ताकि वह कंपनी के परिसमापन के लिए सुविधाजनक हो।

(8) कंपनी के परिसमापन के लिए उसकी आस्तियों के विवरण के लिए कंपनी परिसमापन की हैसियत से उनको कुशलतापूर्वक संपादित करने हेतु विभिन्न दस्तावेजों  ,रिकॉर्ड्स ,बंधपत्रों एवं विलेखों को पर दस्तखत करना एवं उसका निष्पादन करना।

(9) कंपनी के किसी अंश दाता की मृत्यु की दशा पर उसकी संपदा से अपने नाम पर कार्यालयीनपद  का प्रशासन पत्र निकाल कर मृतक अंश दाता द्वारा कंपनी को देय धनराशि की वसूली करना।


(10) कंपनी की तरफ से वचन पत्रों एवं परक्रम्य लिखतों को भुनाना अथवा उनका पृष्ठांकरण( endorsement) करना।

(11) अपने कर्तव्यों का निर्वाहन समुचित रूप से करने के लिए लीगल परामर्शदाता (advocate)इत्यादि की नियुक्ति करना।

(12) company  की आस्तियों की सुरक्षा के लिए धनराशि जुटाना।

(13) कंपनी के ऋणदाताओं , कर्मचारी एवं अन्य दूसरे दावेदारों के दावों का निपटारा प्राथमिकता के आधार पर करना।

(14) कंपनी के द्वारा कंपनी रजिस्ट्रार को प्रस्तुत किए गए विविध प्रपत्रों , रिकॉर्ड्स, विवरणों तथा दस्तावेजों का जरूरत के अनुसार निरीक्षण करना ।


सुलेमान ए, कल्याणिया एवं अन्य बनाम  कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड A.I.R.  2010, गुजरात 149 के मामले में कंपनी के परिसमापन की प्रक्रिया के दौरान सुरक्षित ऋणदाताओं की ऋण राशि चुकाने के लिए कंपनी परिसमापक ने कंपनी की संपत्तियों का नीलामी विक्रय आयोजित किया। बैंक द्वारा दिए गए ऋण की गारंटी देने वाले गारंटर  ने उक्त नीलामी बिक्री का इस आधार पर विरोध किया कि यदि नीलामी से कम राशि प्राप्त हुई तो गारंटर के रूप में उनका दायित्व बढ़ जाएगा। परंतु न्यायालय ने उनके इस तर्क को अमान्य करते हुए नीलामी रोकने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि गारंटरों का यह तर्क मात्र कपोल कल्पना की उपज है क्योंकि नीलामी का आयोजन करने से पूर्व विशेषज्ञ मूल्यांककों तथा प्रस्तावित नीलामी संपत्ति का मूल्यांकन किया जाता है और तत्पश्चात उसका विक्रय सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को कर दिया जाता है। नीलाम की गई संपत्ति की बिक्री तभी कार्यान्वित होती है जब इसके लिए संबंधित उच्च न्यायालय की अनुमति प्राप्त कर ली गई हो। अतः  गुजरात उच्च न्यायालय ने अपीलार्थियों की अपील खारिज करते हुए नीलामी विक्रय को रोकने से इंकार कर दिया। न्यायालय द्वारा अवधारित किया गया है कि कंपनी के परिसमापक  द्वारा लेनदारों के दावे तथा उनके प्रति कंपनी के दायित्वों  आदि के निर्धारण में चूक की गई या उनका निर्धारण ठीक से नहीं किया गया, इस कारण बैंक द्वारा आयोजित नीलामी को स्थगित नहीं किया जा सकता है। यदि कंपनी के परिसमापक को इसके लिए दोषी पाया जाता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है परंतु इसे कंपनी की संपत्ति की नीलामी या बिक्री से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।


शासकीय परिसमापक  के मुख्य कर्तव्य( main duties of official liquidators):


(1) परिसमापन की कार्यवाही करना:  परिसमापक  कंपनी की परिसमापन संबंधी सभी कार्यवाही करेगा तथा इस विषय में वह वह सब कर्तव्य पूरे करेगा जिन्हें कंपनी अधिकरण करने को कहे। परंतु वह इस पर कोई लाभ अर्जित नहीं करेगा ।

(2) कंपनी लॉ अधिकरण को रिपोर्ट प्रस्तुत करना: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 281(1) के अनुसार कंपनी के कार्यकलापों के संबंध में विवरण प्राप्त हो जाने की तिथि से 60 दिनों की अवधि में परिसमापक द्वारा कंपनी के विषय में अपनी रिपोर्ट कंपनी लॉ अधिकरण को भेज देनी चाहिए। इसमें कंपनी की वित्तीय स्थिति का विस्तार से विवरण होना चाहिए।

(3) अतिक्तरि रिपोर्ट भेजना: कंपनी अधिनियम की धारा 281(4) के अनुसार उपयुक्त रिपोर्ट के अलावा वह अधिकरण को अन्य कोई ऐसी जानकारी रिपोर्ट के रूप में भेज सकता है, जिसे अधिकरण को अवगत कराना वह आवश्यक समझता हो, लेकिन इस तरह की अतिरिक्त रिपोर्ट भेजने के लिए वह परिसमापक को बाध्य नहीं किया जा सकता है।


(4) कंपनी की संपत्ति को अपने आधिपत्य में लेना: नियम 2013 की धारा 283 के अनुसार किसी कंपनी के परिसमापन के लिए परिसमापक के रूप में नियुक्त होते ही वह परिसमापक  कंपनी के संपूर्ण संपत्ति एवं अनुयोग्य  दावों को अपने अधिकार में कर लेगा.

(5) कंपनी की संपत्ति की व्यवस्था करना: कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 292(1) के अनुसार कंपनी की संपत्ति का वितरण करते समय परिसमापक  द्वारा कंपनी के लेनदारों या अंश धारियों की साधारण सभा में प्रस्तावित निर्देशों का उचित ध्यान रखा जाएगा। इसी भाँति वह निरीक्षण समिति के निर्देशों का भी समुचित ध्यान रखेगा।

(6) लेनदारों एवं अंशदायियों की सभा बुलाना: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 292(2) के अनुसार अगर जरूरी हो तो कंपनी परिसमापक कंपनी के लेनदारों या  अंशअभिदायियों की सभा बुला सकता है। परंतु इस प्रकार की सभा के आयोजन के लिए  लेनदारों या अंशअभिदायियों कि कुल संख्या  के कम से कम 1\10 भाग द्वारा लिखित मांग की जानी चाहिए।

(7) अधिकरण से परिसमापन संबंधी निर्देश लेना: कंपनी परिसमापक का यह कर्तव्य है कि वह कंपनी के परिसमापन की अवधि में अधिकरण से परिसमापन संबंधी जरूरी निर्देश लेता रहे और कंपनी की व्यवस्था तथा वितरण स्वयं की विवेकानुसार प्रबंधित करें।

(8) रिकॉर्ड एवं रजिस्टरों आदि को अद्यतन रखना: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 293(2) के अनुसार कंपनी परिसमापक द्वारा परिसमापन संबंधी सभी रजिस्टर ,रिकॉर्ड, दस्तावेज एवं विवरण यथावत रखे जाने चाहिए ताकि कंपनी का कोई भी लेनदार या अंशदाई आवश्यक शुल्क जमा करके कंपनी लॉ अधिकरण के नियंत्रण में उनका परीक्षण कर सके लेकिन कंपनी के किसी भी लेनदार या सदस्य को लेखा पुस्तकों का परीक्षण करने का अधिकार नहीं होगा ।

(9) लेखे का परीक्षण करना : कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 294(4) के अनुसार परिसमापक का यह कर्तव्य होगा कि वह निर्धारित अंतराल में कम से कम 2 बार कंपनी के आय एवं व्यय का लेखा अधिकरण को भेजें  ।यह लेखा निर्धारित प्रपत्र पर दो प्रतियों में तैयार किया जाना चाहिए तथा सत्यापित होना जरूरी है  ।अधिकरण उपयुक्त लेखे का परीक्षण करायेगा । परीक्षण हो चुकने के पश्चात अधिकरण उसकी एक प्रति स्वयं रख लेगा तथा दूसरी अपनी रजिस्ट्रार के पास भेज देगा  ।परिसमापक  इस अंकेक्षित लेखे का संक्षिप्त विवरण मुद्रित कराएगा तथा इसकी एक मुद्रित प्रति प्रत्येक लेनदार एवं अन्य अभिदायित्वों की डाक द्वारा भेजने की व्यवस्था करेगा  । कोई  भी लेनदार अंशदाई या अन्य संबंधित व्यक्ति को इस अंकेक्षित लेखे के निरीक्षण करने का अधिकार प्राप्त है। कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 294(5) के अनुसार यदि लेखा परीक्षण किसी ऐसी सरकारी कंपनी से संबंधित है जो परिसमापन की स्थिति में है तो ऐसी स्थिति परिसमापक   द्वारा लेखा परीक्षण की एक प्रतिलिपि केंद्रीय सरकार तथा राज्य सरकार या केंद्रीय तथा राज्य सरकार इनमें से जो भी कंपनी की सदस्यता रखते हो को भेजनी जरूरी है।

(10) परामर्शदायी समिति का गठन: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 287 के अनुसार कंपनी के परिसमापन का आदेश पारित करते समय अगर कंपनी लाॅ अधिकरण जरूरी समझे तो वह परिसमापक को एक परामर्श समिति गठित करने का निर्देश दे सकता है जो  परिसमापन कार्यवाही में परिसमापक  की मदद करेगी तथा अधिकरण द्वारा मांगी गई जानकारी से उसे समय-समय पर अवगत कराती रहेगी। इस समिति में 12 से अधिक सदस्य होंगे जो कंपनी के ऋण दाता तथा अंशदाई होंगे। कंपनी लॉ अधिकरण किसी  अन्य व्यक्ति को भी इस समिति का सदस्य नियुक्त कर सकता है।  इस परामर्शदायी समिति के सदस्य के रूप में  किसे लिया जाए इसके लिए परिसमापक  कंपनी के परिसमापन आदेश के 30 दिन के अंदर कंपनी के सभी ऋणदाताओं एवं अंश धारियों की एक सभा का आयोजन करेगा। इस समिति को कंपनी के लेखा पुस्तकों तथा अन्य दस्तावेजों, अभिलेखों ,आस्तियों तथा संपत्ति आदि का निरीक्षण करने का अधिकार होगा। परामर्श दाई समिति का अध्यक्ष कंपनी का परिसमापक होगा।

(11) अधिकरण को लंबित परिसमापन से अवगत कराना: कंपनी अधिनियम  2013 की धारा 348(3) के अनुसार अगर कंपनी का परिसमापन प्रारंभ होने के बाद वह 1 वर्ष की अवधि तक समाप्त नहीं होता है  तो वर्ष की समाप्ति के दिनांक से  2 महीने की अवधि में कंपनी की वित्तीय स्थिति का अंकेक्षित विवरण प्रतिवर्ष अधिकरण को प्रस्तुत किया जाएगा। यह विवरण कंपनी के अर्हताधारी अंकेक्षण द्वारा सत्यापित होना चाहिए। इस विवरण की एक प्रति कंपनी रजिस्ट्रार के पास भी भेजी जानी चाहिए परंतु अगर परिसमापनाधीन कंपनी सरकारी कंपनी हो तो   अंकेक्षित विवरण की एक प्रति सरकार को भी भेजी जानी चाहिए  ।इस विवरण का कंपनी के ऋण दाता या अंशदाई आवश्यक शुल्क देकर निरीक्षण कर सकते हैं एवं इसकी प्रतियां भी प्राप्त कर सकेंगे । कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 348(6) के अनुसार अगर कंपनी का परिसमापक उपयुक्त प्रावधानों का उल्लंघन करता है तथा परिसमापन कार्यवाही की प्रगति के संबंध में अंकेक्षित विवरण सहित रिपोर्ट कंपनी लॉ अधिकरण को भेजने में व्यतिक्रम करता है तो ₹5000 प्रतिदिन के हिसाब से व्यतिक्रम जारी रहने तक अर्थदंड से दंडित किया जाएगा।


(12) ऋण का भुगतान चुकाने के बाद शेष बची राशि को वितरित करना: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 297 के अनुसार कंपनी का उसके ऋणदाताओं के प्रति दायित्व का पूरी तरह निर्वाह हो चुकने के बाद अर्थात सभी ऋण दाताओं को उनकी ऋण राशि का भुगतान कर दिए जाने के बाद अगर कोई राशि से शेष बचती है तो कंपनी परिसमापक कंपनी लॉ अधिकरण को आवेदन देकर यह अनुमति प्राप्त कर सकेगा कि  शेष राशि को अंशदायियों में उनके अनुपात के अनुसार  वितरित कर दिया जाए। कंपनी परिसमापक  द्वारा ऐसा वितरण बिना कंपनी लॉ अधिकरण की अनुमति के नहीं किया जाएगा।अतः शेष बची राशि को अंश धारियों में वितरित करते समय कम कंपनी परिसमापक इस विषय में कंपनी के सीमा नियमों तथा अंतर नियमों में वर्णित उपबन्धों का भी ख्याल रखेगा।

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