Skip to main content

क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

बाल अपराध क्या होता है? बाल अपराधी की जमानत और अभिरक्षा की विवेचना क्या होती है?( define Juvenile Delinquency)

बाल अपराध की परिभाषा( definition of Juvenile Delinquencies )

भारत में बाल अधिनियम, 1960 के अंतर्गत, " वह बालक जो किसी अपराध का दोषी पाया गया है, बाल अपराध कहते हैं। " बालक से अभिप्राय 16 साल से कम आयु के लड़के तथा 18 साल से कम आयु की लड़कियों से है।

       विलियम हीले के मतानुसार," व्यवहार के सामाजिक आदर्शों से विचलित होने वाले बाल को बालक अपराधी या ऐसे अपराध को बाल अपराध कहते हैं।

        मार्टिन न्यूमेयर के शब्दों में बाल अपराध का तात्पर्य समाज विरोधी व्यवहार का कोई प्रकार है, जो वैयक्तिक तथा सामाजिक विघटन उत्पन्न करता है।"


      एम.जे.सेथना के  मतानुसार " बाल अपराध के अंतर्गत एक राज्य विशेष में कानून द्वारा निर्धारित एक निश्चित आयु से कम आयु के बच्चों या युवकों  द्वारा किया गया अनुचित कार्यों का समावेश होता है।


       न्यूमेयर ने सामाजिक दृष्टिकोण के अतिरिक्त कानूनी दृष्टिकोण से भी बाल अपराध को परिभाषित किया है इस परिभाषा की व्याख्या करने पर स्पष्ट है कि बाल अपराध का संबंध समाज विरोधी कार्यो से है। समाज विरोधी कार्य करने में व्यक्ति जिस अनुचित आचरण को अपनाता है, उससे कानून का उल्लंघन होता है। प्रत्येक राज्य में बाल अपराधी के लिए आयु की अधिकतम सीमा निर्धारित होती है। इस निर्धारित आयु से कम आयु का व्यक्ति जब कोई समाज विरोधी कार्य करके कानून का उल्लंघन करता है तो उसे बाल अपराध अर्थात ऐसे अपराधी को बाल अपराधी कहते हैं।
        विधि विरोधी किशोर की गिरफ्तारी: इस अधिनियम की धारा 10 में इस संबंध में यह उपबंधित किया गया है कि:

         विधि विरोधी कोई किशोर जैसे ही पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाए, उसे विशेष किशोर पुलिस यूनिट  अथवा अभिहित पुलिस अधिकारी के भार के अधीन रखा जाएगा और वह तत्काल उस बात की रिपोर्ट बोर्ड के सदस्य को करेगा।


      राज्य सरकार:

(a) उनके लिए व्यवस्था हेतु जिनके द्वारा( जिसमें रजिस्ट्री कृत स्वयंसेवी संगठन भी सम्मिलित हैं) विधि विरोधी कोई किशोर समक्ष पेश किया जा सकता है।

(b) उसकी व्यवस्था करने हेतु जिसमें ऐसे किशोर की किसी संप्रेषण गृह में भेजा जा सकता है।


किशोर पर  अभिरक्षण का नियंत्रण( control of custodian over juvenile):

      दंड संहिता की इस अधिनियम की धारा में इस संबंध में यह व्यवस्था दी गई है कि," ऐसा व्यक्ति जिसके भार के अधीन इस अधिनियम के अनुसरण में किसी किशोर को रख छोड़ा गया है उसी तरह किशोर पर आदेश के प्रवर्तन की अवधि तक नियंत्रण रखेगा जिस तरह वह रखता है यदि वह उसका माता-पिता होता और वह उसके भरण पोषण का जिम्मेदार होगा और किशोर उसके प्रभार के अधीन  उस अवधि तक निरंतर बना रहेगा जैसा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा कार्यरत किया गया हो चाहे भले ही उसके माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उस पर दावा किया हो।


किशोर की जमानत( bail of juvenile):

धारा 12 के अनुसार

(a) जब ऐसा व्यक्ति उपधारा(1) के अधीन बोर्ड द्वारा जमानत पर नहीं छोड़ा जाता तब वह उसे कारागार में भेजने की बजाये एक आदेश जारी करेगा और उस आदेश में विनिर्दिष्ट रीति से उससे संबंधित जांच की लंबित अवस्था में वैसी अवधि के लिए उसे किसी संप्रेषण गृह या सुरक्षा के किसी स्थान में भेजेगा।

              दंड प्रक्रिया धारा 12 के प्रावधानों से स्पष्ट है की विधि विरोधी किशोरों के प्रति उदारता दिखाते हुए उन्हें यथासंभव जमानत पर रिहा किए जाने की व्यवस्था की गई है। इस धारा के अधीन किशोर व्यक्तियों को छोड़ दिए जाने की अनुशंसा की गई है, जब तक कि इस बात की संभावना ना हो कि जमानत पर छोड़े जाने से किशोर व्यक्ति घोर अपराधी  की कुसंगति में पड़ सकता है या उसके लिए नैतिक खतरा उत्पन्न हो सकता है या न्याय का उद्देश्य विफल हो सकता है। एक केस में राजस्थान हाई कोर्ट ने निर्णय दिया कि जहां तक संभव हो किशोर व्यक्ति का जमानत का प्रार्थना पत्र स्वीकार कर लिया जाना चाहिए जब तक की आशंका ना हो की जमानत पर छोड़े जाने पर किशोर कुख्यात अपराधियों की कुसंगति में पड़ सकता है। आशय  यह है कि समान्यत: किशोर व्यक्ति को धारा 12 का लाभ देते हुए जमानत पर छोड़ा जाना चाहिए जब तक कि ऐसा करने के लिए समुचित कारण ना हो ।

(b) अगर ऐसा व्यक्ति गिरफ्तार होने के बाद पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी द्वारा उपधारा(1) के अधीन जमानत पर नहीं छोड़ा जाता, तो ऐसा अधिकारी विधि रीति से उसका तब तक केवल किसी संप्रेषण गृह में रखना कारित करेगा जब तक उसे बोर्ड के समझ नहीं लाया जा सकता है।

(c) किसी जमानतीय अपराध का अभियुक्त कोई व्यक्ति और प्रकट रूप से एक किशोर जब गिरफ्तार अथवा और अवरूद्ध  किया गया है या किसी बोर्ड के समक्ष हाजिर हुआ हो या लाया गया हो तथा तब वह व्यक्ति भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973(2) अथवा तत्समय प्रवृत्त  किसी विधि के अधीन समाविष्ट किसी बात के होते हुए भी प्रतिभू अथवा रहित जमानत पर छोड़ दिया जाएगा। परंतु उसे इस तरह नहीं छोड़ा जाएगा यदि वह विश्वास करने का कोई युक्तियुक्त आधार प्रतीत हो रहा हो कि उसका इस तरह छोडा जाना उसको किसी ज्ञात अपराधी के रूप में ला देगा अथवा उसको नैतिक ,शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक खतरे में डाल देगा अथवा उसका छोड़ा जाना न्याय के उद्देश्य को विफल कर देगा।



Comments

Popular posts from this blog

मेहर क्या होती है? यह कितने प्रकार की होती है. मेहर का भुगतान न किये जाने पर पत्नी को क्या अधिकार प्राप्त है?What is mercy? How many types are there? What are the rights of the wife if dowry is not paid?

मेहर ( Dowry ) - ' मेहर ' वह धनराशि है जो एक मुस्लिम पत्नी अपने पति से विवाह के प्रतिफलस्वरूप पाने की अधिकारिणी है । मुस्लिम समाज में मेहर की प्रथा इस्लाम पूर्व से चली आ रही है । इस्लाम पूर्व अरब - समाज में स्त्री - पुरुष के बीच कई प्रकार के यौन सम्बन्ध प्रचलित थे । ‘ बीना ढंग ' के विवाह में पुरुष - स्त्री के घर जाया करता था किन्तु उसे अपने घर नहीं लाता था । वह स्त्री उसको ' सदीक ' अर्थात् सखी ( Girl friend ) कही जाती थी और ऐसी स्त्री को पुरुष द्वारा जो उपहार दिया जाता था वह ' सदका ' कहा जाता था किन्तु ' बाल विवाह ' में यह उपहार पत्नी के माता - पिता को कन्या के वियोग में प्रतिकार के रूप में दिया जाता था तथा इसे ' मेहर ' कहते थे । वास्तव में मुस्लिम विवाह में मेहर वह धनराशि है जो पति - पत्नी को इसलिए देता है कि उसे पत्नी के शरीर के उपभोग का एकाधिकार प्राप्त हो जाये मेहर निःसन्देह पत्नी के शरीर का पति द्वारा अकेले उपभोग का प्रतिकूल स्वरूप समझा जाता है तथापि पत्नी के प्रति सम्मान का प्रतीक मुस्लिम विधि द्वारा आरोपित पति के ऊपर यह एक दायित्व है

वाद -पत्र क्या होता है ? वाद पत्र कितने प्रकार के होते हैं ।(what do you understand by a plaint? Defines its essential elements .)

वाद -पत्र किसी दावे का बयान होता है जो वादी द्वारा लिखित रूप से संबंधित न्यायालय में पेश किया जाता है जिसमें वह अपने वाद कारण और समस्त आवश्यक बातों का विवरण देता है ।  यह वादी के दावे का ऐसा कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष(Relief ) की माँग करता है ।   प्रत्येक वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के न्यायालय में दाखिल करने से होता है तथा यह वाद सर्वप्रथम अभिवचन ( Pleading ) होता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित तीन मुख्य भाग होते हैं ,  भाग 1 -    वाद- पत्र का शीर्षक और पक्षों के नाम ( Heading and Names of th parties ) ;  भाग 2-      वाद - पत्र का शरीर ( Body of Plaint ) ;  भाग 3 –    दावा किया गया अनुतोष ( Relief Claimed ) ।  भाग 1 -  वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ( Heading and Names of the Plaint ) वाद - पत्र का सबसे मुख्य भाग उसका शीर्षक होता है जिसके अन्तर्गत उस न्यायालय का नाम दिया जाता है जिसमें वह वाद दायर किया जाता है ; जैसे- " न्यायालय सिविल जज , (जिला) । " यह पहली लाइन में ही लिखा जाता है । वाद - पत्र में न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का नाम लिखना आवश्यक

अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा राष्ट्रीय विधि क्या होती है? विवेचना कीजिए.( what is the relation between National and international law?)

अंतर्राष्ट्रीय विधि को उचित प्रकार से समझने के लिए अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा राष्ट्रीय विधि के संबंध को जानना अति आवश्यक है ।बहुधा यह कहा जाता है कि राज्य विधि राज्य के भीतर व्यक्तियों के आचरण को नियंत्रित करती है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय विधि राष्ट्र के संबंध को नियंत्रित करती है। आधुनिक युग में अंतरराष्ट्रीय विधि का यथेष्ट विकास हो जाने के कारण अब यह कहना उचित नहीं है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि केवल राज्यों के परस्पर संबंधों को नियंत्रित करती है। वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय विधि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के संबंधों को नियंत्रित करती है। यह न केवल राज्य वरन्  अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, व्यक्तियों तथा कुछ अन्य राज्य इकाइयों पर भी लागू होती है। राष्ट्रीय विधि तथा अंतर्राष्ट्रीय विधि के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। दोनों प्रणालियों के संबंध का प्रश्न आधुनिक अंतरराष्ट्रीय विधि में और भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि व्यक्तियों के मामले जो राष्ट्रीय न्यायालयों के सम्मुख आते हैं वे भी अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय हो गए हैं तथा इनका वृहत्तर  भाग प्रत्यक्षतः व्यक्तियों के क्रियाकलापों से भी संबंधित हो गया है।