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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

किसी कंपनी में दमन एवं कुप्रबंध को रोकने के विषय में कंपनी अधिनियम 2013 के द्वारा कंपनी लॉ बोर्ड को क्या शक्तियां दी गई हैं ? What power have been conferred on the company law Tribunal by the company act 2013 to prevent oppression and mismanagement in a company?

कुप्रबंध की रोकथाम( धारा 241)( prevention of mismanagement)

धारा 241 में कुप्रबंध के निवारण के लिए उपबंध है । इस धारा के अंतर्गत यह साबित करना होता है कि कंपनी का कार्यकलाप ऐसे ढंग से किया जा रहा है जो कंपनी या लोकहित के विपरीत है या कंपनी के प्रबंध या नियंत्रण में कोई परिवर्तन आने के कारण यह संभावना बन गई है कि कंपनी का कार्यकलाप उस ढंग से चलाया जाएगा। यह साबित होने पर कंपनी विधि बोर्ड कोई भी ऐसा आदेश दे सकता है  जो इस विषय के लिए उपयुक्त हो । जिस प्रकार का कुप्रबंध इस धारा की कल्पना में है उसका उदाहरण राजमुंद्री इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन लिमिटेड बनाम ए नागेश्वर  राव में मिलता है ।


          एक कंपनी के कुछ अंश धारको ने निदेशकों पर कुप्रबंध का आरोप लगाया था । न्यायालय ने देखा कि कंपनी का उप अधीक्षक बहुत ही गंभीर रूप से कुप्रबंध कर रहा है और उसने बहुत सा धन निजी प्रयोग में लगा लिया था  बिजली बिलों का सरकार को भुगतान नहीं किया गया था । कंपनी की मशीनरी बहुत मरम्मत मांगती थी ,निदेशकों की संख्या बहुत कम रह गई थी और मुट्ठी भर व्यक्ति कंपनी पर कब्जा किए हुए थे, और अधीक्षक के समूह को छोड़कर बाकी अंशधारक व्यर्थ हो चुके थे । निर्णीत हुआ कि यह कुप्रबंध का पर्याप्त साक्ष्य था। न्यायालय ने दो प्रशासक नियुक्त किए और 6 महीने के लिए निदेशक बोर्ड की शक्तियां उनमें निहित कर दी।

               इस प्रकार के विशेष प्रबंधनकर्ता कलकत्ता उच्च न्यायालय ने रिचर्ड्सन एंड क्रुडास लिमिटेड बनाम हरिदास मुन्ध्रा में नियुक्त किए थे।

             कुप्रबंध , विद्यमान तथा निरंतर प्रकार का होना चाहिए । भूतकाल में किया गया कुप्रबंध अगर साबित भी किया जा सके तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उससे आवेदन के समय कंपनी के लोकहित को हानि पहुंच रही है ।
              कंपनी के कार्यकलापों की छानबीन जो कुप्रबंध का तथ्य जानने के लिए की जा रही है उसमें  कंपनी की समनुषंगी  कंपनियों की जांच पड़ताल भी की जा सकती है । एक मामले में सही तरीके से नियुक्त निदेशकों को पद ग्रहण करके काम करने नहीं दिया जा रहा था, यह कुप्रबंध का एक लक्षण माना गया और इस कारण याचिका स्वीकार कर ली गई थी ।

       कुप्रबंध के विरुद्ध जो उपचार मिलता है वह कंपनी के पक्ष में होता है किसी अंश धारक के पक्ष में नहीं। दूसरे कुप्रबंध के विरुद्ध उपचार देने के लिए यह शर्त लागू नहीं होती कि कंपनी का समापन न्याय संगत हो गया हो। कंपनी या लोकहित की हानि पर्याप्त है। तीसरे , न्यायालय ऐसे बाहरी हितों को ध्यान में रख जो कंपनी के कार्यों से प्रभावित होते हैं । कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक ऐसी कंपनी के समापन का आदेश देने से इनकार कर दिया जिसका बहुत ही गंभीर रूप से कुप्रबंध चल रहा था और सुधार के लिए एक विशेष प्रबंधक नियुक्त किया, क्योंकि कंपनी ऐसे उद्योग में लगी हुई थी जो देश की पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता के लिए आवश्यक था ।



कंपनी के दमन एवं कुप्रबंध में लाॅ बोर्ड की शक्तियां( powers of company Law board to oppression  and mismanagement)


धारा 241 या 242 के अंतर्गत कंपनी विधि बोर्ड को बहुत ही विस्तृत शक्ति दी गई है । कंपनी विधि कोई भी ऐसा आदेश दे सकता है तथा ऐसी शर्ते लगा सकता है जो स्थिति के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कंपनी विधि बोर्ड के विचार में न्याय संगत तथा साम्यिक हों। केवल एक ही प्रतिबंध नजर आता है और वह इन धाराओं का उद्देश्य है और इसलिए आदेश ऐसा होना चाहिए जो उस विषय के सुधार के लिए आवश्यक हो जिसके बारे में शिकायत की गई है।

               कंपनी के हित की सुरक्षा हेतु अधिकरण कोई भी आवश्यक आदेश पारित कर सकता है। कंपनी विधि बोर्ड का प्रथम कार्य यह देखना है कि किस तरीके से अंश धारकों के हित को भी ध्यान में लेते हुए कंपनी के हित को संरक्षित किया जा सकता है । जिस कंपनी में केवल 2 निदेशक तथा अंश धारक हो और उनमें दुर्भावनायें हो तो कंपनी का चलते रहना असंभव हो सकता है और इस कारण समापन ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।


      धारा 242 के अंतर्गत अधिकरण की शक्ति को परिभाषित करने का प्रयत्न किया गया है। इस धारा में कहा गया है कि अधिकरण की शक्ति विस्तृत तो रहेगी ही, परंतु कंपनी ला बोर्ड निम्नलिखित प्रकार के आदेश दे सकता है:

(1) भविष्य में कंपनी का कार्यकलाप चलाने का तरीका. रिचर्डसन  एंड क्रृडास लिमिटेड बनाम हरिदास मुन्ध्रा में न्यायालय ने एक विशेष पदाधिकारी नियुक्त किया  और एक सलाहकार समिति नियुक्त की और उन्हें प्रबंध की सभी शक्तियां दे दी । बेनेट कोलमान एंड कंपनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में बाॅम्बे उच्च न्यायालय ने कंपनी के अनुच्छेदों में यह नया खंड लगाया कि अंश धारकों द्वारा नियुक्त सभी निदेशक वार्षिक अधिवेशन में रिटायर हो जाया करेंगे, और यह एण्ड  धारा 255 के विपरीत होते हुए भी विधि मान्य होगा ।

(2) किसी सदस्य के अंश या अन्य हित का कंपनी या अन्य सदस्यों द्वारा क्रय । इस  प्रकार के आदेश मोहनलाल चंदूमल बनाम पंजाब कंपनी लिमिटेड तथा एच आर हार्मन  लिमिटेड रि. मे दिये गये थे।

(3) यदि कंपनी को किसी सदस्य के अंश खरीदने का आदेश दिया जाता है तो उस सीमा तक उसकी अंश पूंजी को घटाने के लिए आदेश ।

(4) किसी  प्रबंध निदेशक या निदेशक या प्रबंधक के साथ की गई संविदा का विखंडन या उनमें कोई परिवर्तन करने का आदेश।

(5) किसी अन्य व्यक्ति के साथ हुई संविदा का विखंडन या उनमें कोई परिवर्तन करने का आदेश बशर्ते कि उस व्यक्ति को पर्याप्त सूचना दे दी गई हो ।

(6) आवेदन के 3 महीने के पूर्व काल में किसी व्यक्ति को कपट पूर्ण अधिमान्यता देने के प्रयोजन से किए गए संव्यवहार का विखंडन

(7) किसी ऐसे अन्य विषय के बारे में आदेश जो कंपनी विधि बोर्ड न्याय संगत तथा  साम्यपूर्ण समझें ।


          आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कंपनी को आदेश दिया कि वह एक अंश धारक की मृत्यु पर उसके अंश उसकी वसीयत द्वारा प्राप्त होने वाले व्यक्ति को सदस्य मानकर उसके नाम पर अंश  रजिस्ट्रीकृत करें ।

           जब मनमुटाव इतना था कि सुलह सफाई करवाई नहीं जा सकती थी जो कंपनी विधि बोर्ड ने आदेश किया कि कंपनी के जिन गुटों ने कंपनी को यूं तोड़ा था, वे अलग-अलग मार्ग पकड़ ले क्योंकि यही एक तरीका था जिससे कंपनी के हित की सुरक्षा तथा सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं, जिनकी बड़ी मात्रा में पूंजी कंपनी में लगी हुई थी, की सुरक्षा की जा सकती थी। सी. एल चाहे तो सूचीबद्ध कंपनी की संपदा का भी बंटवारा कर सकता था और उस सीमा तक कंपनी की पूंजी को घटाने का आदेश दे सकता था.

                                                   
              अगर अधिकरण कंपनी संगम ज्ञापन या अनुच्छेदों में किसी परिवर्तन का आदेश देता है तो कंपनी ऐसे आदेश के विपरीत उन दस्तावेजों में कोई उपबंध नहीं बना सकेंगी. अगर कंपनी विधि बोर्ड के आदेश के कारण किसी व्यक्ति को किसी पद से हटाना पड़ता है तो वह कंपनी के विरुद्ध प्रतिकर का वाद नहीं ला सकेगा. जिस प्रबंधक व्यक्ति को न्यायालय के आदेश के अंतर्गत पद से हटाना पड़ता है वह 5 वर्ष के लिए अधिकरण के अनुमोदन के बगैर किसी कंपनी में प्रबंधक व्यक्ति की हैसियत से नियुक्त नहीं हो सकता.

                  यदि इस कार्यवाही के अंतर्गत यह प्रतीत हो की कोई प्रबंधक व्यक्ति  अपकृति का दोषी है तो उसके विरुद्ध अपकृति  कार्यवाही आरंभ की जा सकती है चाहे कंपनी समापन में ना हो । गुजरात उच्च न्यायालय ने कोलाबा लैंड एंड मिल्स कंपनी लिमिटेड बनाम वीजे पिलानी में इस धारा को भूतलक्षी प्रभाव दिया है और कार्यवाही ऐसे अपराधों के लिए आरंभ करने दी गई जो कंपनी अधिनियम 1956 में लागू होने के पूर्व लागू किए गए थे ।



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