कंपनी का सदस्य कौन बन सकता है? Who may become a member of company? Describe the qualification be membership of company.
कंपनी का सदस्य कौन बन सकता है( who may become a member of a company)
प्रत्येक व्यक्ति जो संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत संविदा करने के लिए सक्षम हो, कंपनी का सदस्य बन सकता है अर्थात ऐसा प्रत्येक व्यक्ति कंपनी का सदस्य बन सकता है जो वयस्क हो एवं स्वास्थ्य चित्त हो। वयस्क व्यक्ति के अलावा कोई कंपनी भी किसी दूसरी कंपनी की सदस्यता ग्रहण कर सकती है यदि सीमा नियम अथवा अंतर नियम द्वारा उसे इसके लिए अधिकृत किया गया हो परंतु ऐसी स्थिति में कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 49 के प्रावधानों का अनुपालन करना होगा। एक संधारी कंपनी की सहायक कंपनी अपनी सन धारी कंपनी की सदस्यता ग्रहण कर सकती है जबकि ऐसी सहायक कंपनी अपनी संधारी कंपनी के किसी मृत सदस्य की विधि प्रतिनिधि या न्यासी हो । कोई भागीदार फर्म भी किसी कंपनी की सदस्यता को ग्रहण नहीं कर सकता है क्योंकि फार्म ना तो निगमित निकाय होती है और ना उसका कोई विधिक व्यक्तित्व होता है परंतु भागीदारी फर्म के भागीदार अपने संयुक्त नाम से किसी कंपनी के अंश खरीद कर उसकी सदस्यता ग्रहण कर सकते हैं। इसी प्रकार कोई कंपनी किसी फर्म के नाम अपने अंश आवंटित कर सकती है परंतु उस स्थिति में फार्म के भागीदार उस कंपनी के संयुक्त अंश धारी माने जाएंगे। किसी कंपनी के अंशों के लिए नियुक्त किया गया कोई प्रापक उन अशों के साथ जुड़े हुए सदस्यता के अधिकार का उपयोग नहीं कर सकता अतः यदि किसी अंश धारी के अंशों के न्यायालय द्वारा किसी रिसीवर की नियुक्ति की गई हो तो वह अंश धारी अपनी सदस्यता का प्रयोग करते हुए कंपनी की सभाओं में मताधिकार का प्रयोग कर सकता है।
कंपनी की सदस्यता के लिए आवश्यक योग्यताएं( essential qualification for a membership of a company)
कंपनी की सदस्यता एक संविदा पर आधारित होती है। अतः सदस्यता की पात्रता के संबंध में भारतीय संविदा अधिनियम के उपबंध लागू होते हैं। भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 11 के अनुसार कोई व्यक्ति जो संविदा करने में सक्षम हो कंपनी का सदस्य हो सकता है।
क्षमता के अभाव में नाबालिक तथा विकृत मस्तिष्क वाला व्यक्ति कंपनी का सदस्य नहीं बनाया जा सकता। इंग्लैंड के कानून के अनुसार एक नाबालिग किसी कंपनी के सदस्य के रुप में सम्मिलित हो सकता है किंतु उसे यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह वयस्कता प्राप्ति के पश्चात एक निर्धारित अवधि के भीतर ने सदस्यता की संविदा की समाप्ति कर दे। भारतीय विधि में एक नाबालिग के नाम अंशों को आवंटित किया जा सकता है। उसका नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर पर तो रहेगा, किंतु वह अपनी अवस्यकता की अवधि में किसी भी दायित्व के लिए उत्तरदाई ना होगा।
सादिक अली बनाम जय किशोरी,30BOM. L.R.1846(P.C.) के मामले मे निर्धारित किया गया कि यदि कंपनी के निदेशक किसी अवयस्क व्यक्ति द्वारा कंपनी की सदस्यता के लिए आवेदन किए जाने पर उस व्यक्ति की अवस्यकता के बारे में जानकारी ना होने के कारण उसे सदस्य के रूप में रजिस्टर कर लेते हैं तो ऐसी स्थिति में कंपनी को उस व्यक्ति की अवस्यकता के बारे में जानकारी मिलते ही वह उस सदस्य का नाम रजिस्टर से काट सकती है किंतु कंपनी को उसका अवयस्क से ली गई समस्त धनराशि वापस लौटानी होगी।
यदि अवस्यक व्यक्ति वयस्कता प्राप्त करते ही सदस्य के रूप में कंपनी के प्रति अपने दायित्व को निराकृत कराना चाहता है तो कंपनी उसे स्वीकार करने के लिए बाध्य होगी तथा उसकी ओर से यह तर्क दिया जाना व्यर्थ होगा की अवयस्कता के दौरान उस सदस्य ने कंपनी के लाभांश प्राप्त किए हैं, अतः उसके कपट पूर्ण व्यपदेशन के कारण अपने इस कृत्य से कंपनी को सदस्यता स्वीकार करने के लिए विर्बंधित है।
नवीन चंद्र बनाम गोवर्धन दास(1967)1 Comp. L.J. 82 के मामले में तत्कालीन कंपनी न्यायाधिकरण ने अवलोकन किया कि एक बार अवयस्क का नाम सदस्यों के रजिस्टर में लिख जाने के पश्चात कंपनी अपने आप उसे काट नहीं सकती और यदि वह ऐसा करती है तो वह अवयस्क अपना नाम पुनः दर्ज करवा सकेगा।
अगर वयस्कता प्राप्त हो चुकने पर भी वह सदस्य कंपनी के लाभांश स्वीकार करता है तो यह मान लिया जाएगा कि उसने कंपनी का सदस्य बना रहना मान्य कर लिया है और इस आचरण के कारण बाद में वह यह तर्क प्रस्तुत नहीं कर सकता है उसने कंपनी की सदस्यता मान्य नहीं की थी।
सीमा नियम या अंतर नियम द्वारा अधिकृत किए जाने पर एक कंपनी किसी दूसरी कंपनी की सदस्यता ग्रहण कर सकती है। इसके लिए अधिनियम की धारा 49 के उपबंधों का पालन करना आवश्यक होता है। आपसी समझौते से भी एक कंपनी दूसरी कंपनी की सदस्यता ग्रहण कर सकती है, किंतु कोई कंपनी स्वयं के अंश नहीं खरीद सकती। कोई भी कंपनी अपनी अंश धारी कंपनी की सदस्यता नहीं ले सकती और किसी भी अंश धारी कंपनी द्वारा अपनी सहायक कंपनी को किया गया अंशों का आवंटन या हस्तांतरण अवैध होता है।
कोई भी फार्म अपने भागीदारों के संयुक्त नाम पर किसी कंपनी के अंश क्रय करके उसकी सदस्यता की अधिक कारणी हो जाती है। कंपनी द्वारा किसी फर्म के लिए अंशों का आवंटन हो सकता है इस दशा में फर्म के भागीदार उस कंपनी के संयुक्त अंश धारी( joint share holders) माने जाते हैं। सार्वजनिक कंपनी का प्रत्येक अंश धारी उसका सदस्य होता है। किसी फर्जी नाम से अपने लिए अंशों का क्रय करने वाला व्यक्ति उस कंपनी के सदस्य के रूप में उत्तरदाई होता है।
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