ऋण पत्र धारी कौन होता है? ऋण पत्र धारी के उपचारों का वर्णन कीजिए. Who is debenture holders? Explain the types of shares.
ऋण पत्र का अर्थ एवं परिभाषा( meaning and definition of debenture):
ऋण पत्र से आशय ऐसे प्रमाण पत्र से लगाया जाता है जिसे ऋण स्वीकार करने के बदले में कंपनी की सार्वमुद्रा के अधीन कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जब कंपनी ऋण लेती है तो ऋण की स्वीकृति के लिए जो प्रमाण पत्र जारी करता है उस प्रमाण पत्र को ऋण पत्र कहते हैं। कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2(30) के अनुसार ऋण पत्र की परिभाषा निम्न प्रकार की गई है
" ऋण पत्र में ऋण पत्र स्टॉक बांण्ड तथा कंपनी की अन्य प्रतिभूतियां सम्मिलित होती है चाहे इनके द्वारा कंपनी की संपत्तियों पर कोई प्रभार निर्मित होता है अथवा नहीं।
यद्यपि उपयुक्त परिभाषा स्पष्ट नहीं है फिर भी उपयुक्त परिभाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है। ऋण पत्र कंपनी द्वारा जारी किया गया ऋण का प्रमाण पत्र होता है और जो प्रायः कंपनी की संपत्ति को प्रभारित करता है।
ऋण पत्रों के प्रकार( kind of debentures):
(1) जमानती ऋण पत्र: जमानती ऋण पत्र उन ऋण पत्रों को कहा जाता है जो कंपनी की संपत्ति पर प्रभार निर्मित करते हैं। यह प्रभार चल अथवा अचल हो सकता है।
(2) वाहक ऋण पत्र: वाहक ऋण पत्रों को अपंजीकृत ऋण पत्र कहा जाता है।ये ऋण पत्र वाहक को देय होते हैं। इन्हें ऋण पत्रों को केवल सुपुर्दगी द्वारा ही हस्तांतरण किया जा सकता है वे विनिमय साध्य विलेखों जैसे समझे जाते हैं।
(3) गैर जमानती ऋण पत्र: गैर जमानती ऋण पत्रों का कंपनी की संपत्ति पर कोई प्रभार नहीं होता है तथा इन ऋण पत्रों के धारक कंपनी के गैर जमानती साधारण लेनदार के समान होते हैं। इन ऋण पत्रों के धारक ऋण की वसूली के लिए कंपनी के विरुद्ध वाद चला सकते हैं।
(4) पंजीकृत ऋण पत्र: पंजीकृत ऋण पत्र केवल पंजीकृत धारकों को देय होते हैं। ऐसे ऋण पत्रों को उनमे दी गई शर्तों के अनुसार ही इनका हस्तांतरण किया जा सकता है।
(5)शाश्वत ऋणपत्र: शाश्वत ऋण पत्र उन ऋण पत्रों को कहा जाता है जो शोध्य ऋण पत्र नहीं होते हैं। ऐसे ऋण पत्र केवल इस शर्त के कारण अवैध नहीं हो जाते की वे शोध्य नहीं है अथवा वे किसी दूरवर्ती सांयोगिक घटना के घटने पर यह बहुत अधिक लंबी अवधि बीतने के बाद शोध्य होते है।
(6)शोध्य ऋण पत्र: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा१२१ के अनुसार इन ऋण पत्रों का आशय सामान्यतः उन ऋण पत्रों से लगाया जाता है जो इस शर्त पर जारी किए जाते हैं जिनका भुगतान एक निश्चित अवधि के बाद कर दिया जाएगा।
(7) परिवर्तनीय ऋण पत्र: ये ऋण पत्र ऋण पत्र धारकों को यह विकल्प देते हैं कि एक निश्चित समय के पश्चात धारक उन्हें पूर्वाधिकार अथवा साधारण अंसों में पूर्व निर्धारण दर से परिवर्तित कर सकते हैं।
कंपनियों द्वारा ऋण पत्रों की राशि भुगतान न करने पर ऋण पत्र धारियों के उपचार( remedies open to Debenture holders on default by the company in payment of the amount of debentures)
कंपनी द्वारा ऋण पत्रों की राशि भुगतान न करने पर ऋण पत्र धारियों को निम्नलिखित उपचार प्राप्त है
(1) अधिकरण में प्रार्थना पत्र: ऋण पत्र धारी ऋण पत्रों का भुगतान न किए जाने की स्थिति में अधिकरण में रिसीवर की नियुक्ति के लिए प्रार्थना पत्र दे सकता है और इस बात का भी आवेदन कर सकता है कि प्रभार में रखी हुई संपत्ति की बिक्री का आदेश निर्गमित किया जाए।
(2) ऋण पत्र द्वारा दिए हुए अधिकारों का प्रयोग: कंपनी द्वारा ऋण पत्रों की राशि का भुगतान न किए जाने पर ऋण पत्र धारी ऋण पत्र द्वारा दिए गए अधिकारों का प्रयोग कर सकता है।
(3) अधिकरण द्वारा प्रतिभूति का धन वसूल करना: ऋण पत्र धारी अधिकरण द्वारा प्रतिभूति का धन वसूल कर सकता है।
(4) स्वयं रिसीवर नियुक्त करना: यदि ऋण पत्रों में ऐसा अधिकार दिया हुआ है तो ऋण पत्र धारी स्वयं रिसीवर नियुक्त कर सकता है।
(5) कंपनी के दिवालिया होने पर दावा करना: कंपनी के दिवालिया हो जाने की स्थिति में ऋण पत्र धारी अपने उस ऋण को प्रमाणित करा सकता है जो उसे ऋण पत्रों की प्रतिभूति द्वारा वसूल नहीं हुआ है।
(6) साधारण विधान के अनुसार ऋण का दावा करना: ऋण पत्र धारी साधारण विधान के अनुसार ऋण का दावा कर सकता है।
(7) कंपनी के समापन हेतु आवेदन पत्र देना: प्रत्येक ऋण पत्र धारी ऋण पत्रों का भुगतान ना होने की स्थिति में कंपनी के समापन का आवेदन कर सकता है क्योंकि वह भी कंपनी का लेनदार होता है।
(8) ऋण पत्र न्यासी को आवेदन द्वारा: जब कंपनी ऋण पत्र की परिपक्वता की तिथि पर ऋण पत्र का मोचन नहीं कर पाते हैं तो ऋण पत्र धारा के ऋण पत्र न्यासी के माध्यम से उपचार प्राप्त करने के संबंध में आवेदन कर सकते हैं। इस स्थिति में ऋण पत्र निवासी इस संबंध में अधिकरण के सामने पिटिशन दाखिल कर सकता है और अधिकरण संबंधित पक्षों की सुनवाई करने के बाद ऋण पत्र धारकों को किए जाने वाली मूल रकम और उस पर देय ब्याज की अदायगी के संबंध में आदेश दे सकता है।
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