कंपनी की सदस्यता की कसौटी एवं सदस्यता की समाप्ति को विस्तार से समझाइए? What is meant by member of a company? Explain its test of membership and a nation of membership.
सदस्य तथा अंश धारी एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। साधारणतया यह दोनों शब्द एक दूसरे के लिए प्रयुक्त होते हैं, किंतु कानूनी दृष्टि से यह सही नहीं है। इन दोनों के मध्य सोच में अंतर है। प्रथम यह है कि अंश धारी का नाम जब तक कंपनी के सदस्यों के रजिस्ट्रार में नहीं लिख दिया जाता वह सदस्य नहीं माना जाता। दूसरी बात यह है कि गारंटी द्वारा सीमित दायित्व वाली कंपनी में कोई अंश धारी नहीं होता जो लोग कंपनी का निर्माण करते हैं तथा उनका नाम कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में अंकित होता है वह इसके सदस्य माने जाते हैं।
कंपनी का सदस्य एवं सदस्यता( member and membership of company)
कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2(55) के अनुसार कंपनी के सदस्य से तात्पर्य ऐसे व्यक्तियों से है जिन्होंने कंपनी के सीमा नियमों पर हस्ताक्षर किए हों अथवा जिसका नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर में सदस्य के रूप में प्रवेश किया गया हो। दूसरे शब्दों में प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जिसने लिखित रूप में कंपनी का सदस्य बनने के लिए सहमति दी हो तथा जिसका नाम उस कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में दर्ज कर लिया गया हो कंपनी का सदस्य कहलाता है। कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2(55) के उपखंड(b)(2) मे पदावली जिसमें लिखित रूप से सहमति दी हो इस उल्लेख में उल्लेखित की गई है ताकि व्यक्ति का नाम सदस्य रजिस्टर में दर्ज होने पर भी वह कंपनी की सदस्यता अर्जित कर सके तथा इसके ठीक विपरीत उसका नाम सदस्य रजिस्टर में दर्ज होने पर भी यदि उसने लिखित में सम्मती ना दी हो तो उसे सदस्य ना माना जा सके और उस पर सदस्य के रूप में दायित्व अधिरोपित ना किए जा सके। धारा 2(55) के उपखंड(3) के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को भी जो कंपनी के अंश धारण करता है तथा जिसका नाम निक्षेपागार के अभिलेखों में हितग्राही स्वामी के रूप में दर्ज है कंपनी का सदस्य माना जाएगा।
रामकिशन बनाम कंवर पेपर(प्रा.) लिमिटेड,(1990)69 कंपनी केसेज209( हिमाचल) के मामले में न्यायालय ने याचिकाकर्ता का नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर से हटाने का आदेश इस आधार पर दिया क्योंकि उसने कंपनी का सदस्य बनने हेतु अपनी लिखित सहमति नहीं दी थी।
सदस्य की उपयुक्त परिभाषा में प्रस्तुत लक्षणों को ही सदस्यता की कसौटी अथवा सदस्यता की परख कहा जाता है।
शासकीय परिसमापक बनाम सुलेमान भाई,A.I.R. 1995, M.B.(Madhya Bharat)166 के मामले में विद्वान न्यायाधीश ने निर्धारित किया कि पार्षद सीमा नियम के प्रदित्स के विषय में यह माना जाएगा कि वह केवल प्रदित्सु के तथ्य के आधार पर ही सदस्य हो गया और इसके लिए ना तो अशों के आवेदन पत्र और ना ही अंशों की आदिष्टि की ही आवश्यकता है।
सदस्यता की कसौटी( test of membership):
सदस्यता की कसौटी के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं
(1) वैधानिक उत्तराधिकारी को सदस्य बनाने की सहमति देने पर सदस्यता: कोई व्यक्ति किसी मृतक या दिवालिया सदस्य के अंशों उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त करके भी सदस्य बन सकता है।
(2)गर्भित स्वीकृति अथवा अवरोध के सिद्धांत के द्वारा सदस्यता:- एक व्यक्ति कंपनी का सदस्य माना जाता है यदि वह अपना नाम कंपनी के रजिस्टर में रहने पर कोई आपत्ति नहीं करता है. यदि भूल से किसी का नाम कंपनी के रजिस्टर में लिख जाता है और ऐसा व्यक्ति अपनी सहमति रजिस्टर में नाम रहने के लिए देता है तो ऐसे व्यक्ति का दायित्व सदस्य की तरह हो जाता है. उपयुक्त विवरण का आशय यह है कि एक व्यक्ति को कंपनी का सदस्य गर्भित स्वीकृति द्वारा या अवरोध के सिद्धांत के अनुसार माना जाता है। इन सभी दशाओं में कोई व्यक्ति उस समय तक सदस्य नहीं बनेगा जब तक कि उसका नाम सदस्यों के रजिस्टर में अंकित नहीं कर लिया जाता।
(3) पार्षद सीमा नियम द्वारा सदस्यता: इसमें यह अंतिम खंड होता है जिसके द्वारा कुछ व्यक्ति उस पर हस्ताक्षर करते हैं एवं उसके नाम सदस्य रजिस्टर में लिखे जाते हैं।
(4) प्रार्थना पत्र द्वारा सदस्यता: ऐसा व्यक्ति जिन्होंने अहर्ता अंश क्रय करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया है तथा कंपनी और व्यक्ति के बीच अंशों के संबंध में संविदा होती है और वह व्यक्ति कंपनी का सदस्य मान लिया जाता है
(5)प्रदिष्टि अन्तरण अथवा पारेषण द्वारा सदस्यता: एक व्यक्ति किसी कंपनी में प्रदिष्ट द्वारा अंशों को प्राप्त करने के हेतु प्रतिज्ञा कर के सदस्य बन सकता है। अंश एक चल संपत्ति होती है वह उन्हें खुले बाजार में खरीद सकता है।
सदस्यता की समाप्ति( Cessation memberships):
कंपनी की सदस्यता निम्नलिखित दशाओं में समाप्त हो जाती है
(a)अंशों की जब्ती के कारण: अगर अंश धारी उसके द्वारा धारण किए गए अंशों पर अचुकता राशि की मांग किए जाने पर इसका भुगतान नहीं करता एवं कंपनी की ओर से इस विषय में चेतावनी दिए जाने के पश्चात भी कोई कार्यवाही नहीं करता है, तो कंपनी के निदेशक एक प्रस्ताव द्वारा उसके अंशों को जप्त कर सकते हैं तथा उसे सदस्यता से अलग कर सकते हैं।
(b) अंश अंतरण के कारण: यदि कोई अंश धारी अपने अंश किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित कर देता है और अंतरिति का नाम सदस्य रजिस्टर में दर्ज करा देता है, तो हन्तान्तरणकर्ता कंपनी का सदस्य नहीं रहेगा तथा की सदस्यता समाप्त मानी जाएगी।
(C) मृत्यु या दिवालिया होने के परिणाम स्वरूप: किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर अथवा दिवालिया घोषित हो जाने पर उसकी कंपनी से सदस्यता अपने आप समाप्त हो जाती है।
(d)अंशों के वैद्य समर्पण द्वारा: कभी-कभी कंपनी के वर्तमान अंश धारी जो मांग पर अपने अंशों की अचूकता राशि का भुगतान करने में असमर्थ होते हैं, अपने अंश कंपनी का वापस कर देते हैं और इस तरह कंपनी की सदस्यता से अलग हो जाते हैं। अंश समर्पण की परिस्थिति में कंपनी स्वयं को इस बात से आश्वस्त कर लेगी की वर्तमान सदस्य द्वारा अंशों का समर्पण कंपनी के प्रति दायित्व से बचने के लिए तो नहीं किया जा रहा है।
(e)शोध्य अधिमान अंशों का विमोचन करा देने से: यदि कंपनी के किसी वर्तमान सदस्य ने कंपनी के शोध अधिमानी अंश धारण किए हैं, तो इन अंशों का विमोचन करा देने पर वह कंपनी की सदस्यता से वंचित हो जाएगा।
(f) सदस्यता के अनुबंध को निरस्त करा देने से: यदि कंपनी का वर्तमान सदस्य कंपनी के विरुद्ध विवरण पत्रिका में मिथ्या कथन का आरोप न्यायालय में सिद्ध कर देता है इस आधार पर उस कंपनी की सदस्यता अस्वीकार करता है तो वह कंपनी की सदस्यता से मुक्ति पा लेगा, परंतु कंपनी के सीमा नियम पर हस्ताक्षर करने वाले सदस्य इस प्रकार अनुबंध को निरस्त करा कर कंपनी सदस्यता से छुटकारा नहीं पा सकते हैं।
(g) कंपनी के परी समापन पर: यदि किसी कंपनी का पर समापन हो जाता है तो उसके सदस्यों की कंपनी की सदस्यता से मुक्ति हो जाएगी किंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वह कंपनी के अंश धारियों के दायित्व से भी मुक्ति पा लेंगे।
(h)अंशों की बिक्री: यदि किसी सदस्य के अंश कंपनी द्वारा अन्य व्यक्ति को बेच दिए जाते हैं तो उन अंशों के क्रेता का नाम उस सदस्य के स्थान पर दर्ज कर दिया जाता है। इस प्रकार वह सदस्य कंपनी की सदस्यता से मुक्ति पा लेगा।
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