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असामान्य साधारण अधिवेशन किसे कहते हैं? इसे ऐसा क्यों कहते हैं? अधिवेशन बुलाने का तरीका बताइए। what is an extra ordinary General Meeting? Why is it so called? Describe the procedure of holding meeting.

असामान्य साधारण अधिवेशन( extra ordinary General Meeting)

वार्षिक अधिवेशन के अतिरिक्त सभी अधिवेशन असामान्य अधिवेशन कहे जाएंगे। निदेशक बोर्ड जब भी चाहे ऐसे अधिवेशन बुला सकते हैं और बुलाने के लिए विवश होते हैं जब धारा के अंतर्गत अंश धारक ऐसे अधिवेशन की मांग करें। ऐसे मांग पत्र पर कंपनी की समादत्त पूंजी का 10 भाग रखने वाले अंश धारको को हस्ताक्षर होने चाहिए और उन्हें मांग पत्र के विषय पर मताधिकार भी होना चाहिए। अगर कंपनी अंश पूंजी के बगैर है तो कम से कम इतने अंश धारको के हस्ताक्षर होने चाहिए जिनके पास मत शक्ति का दसवां भाग हो।

धारा(100(2))

      मांग पत्र में उस विषय का ब्यावरा होना चाहिए जिस पर विचार करने के लिए अधिवेशन बुलाया जा रहा है। केवल उसी विषय पर विचार हो सकता है जिस पर मांग पत्र के हस्ताक्षर करता मताधिकार रखते हैं। कुछ अंश धार को ने तीन नये निदेशक  नियुक्त करने के लिए  अधिवेशन की मांग की बाद में अधीक्षक एजेंडा मे  यह भी जोड़ना चाहा कि एक निदेशक को हटाया भी जाएगा मीटिंग को इस विषय पर विचार करने से रोक दिया गया।


         मांग पत्र प्राप्त होने के बाद निदेशकों को चाहिए की 21 दिन के अंदर अधिवेशन बुलाने की कार्यवाही आरंभ कर दें और अधिवेशन 45 दिन के अंदर हो जाना चाहिए। यदि निदेशक अधिवेशन बुलाने में असफल रहते हैं तो हस्ताक्षर करता स्वयं अधिवेशन बुला सकते हैं जिनकी त्रुटि के कारण अधिवेशन नहीं बुलाया गया था। जहां निदेशकों के एक समूह को हटाने के लिए अधिवेशन बुलाने की मांग की गई थी उच्चतम न्यायालय ने प्रतिपादित किया था कि अध्यपेक्षाकर्ता के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह निदेशकों को हटाने का कारण भी बताएं। जब किसी निदेशक को पद से हटाने की बात हो तो यह आवश्यक नहीं है कि उसका कारण भी बताया जाए।

          यह आवश्यक नहीं है कि असाधारण वार्षिक अधिवेशन कंपनी के रजिस्ट्री कृत ऑफिस में ही बुलाया जाए। एक अधिवेशन जो कि कंपनी के रजिस्ट्री के ऑफिस में नहीं बुलाया गया था मे पारित प्रस्ताव समान रूप से ही न्याय उचित माना जाएगा।


         निदेशक केवल इस आधार पर अधिवेशन बुलाने से इंकार नहीं कर सकते हैं कि जो प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाना है वह कंपनी अधिनियम के विपरीत है। क्योंकि यह एक ऐसा मामला है जिसके बारे में न्यायालय बाद में जांच कर सकता है। अध्यपेक्षाकर्ता अनुच्छेदों में एक खंड जोड़ना चाहते थे कि जो व्यक्ति 6 वर्ष के लिए निदेशक रहा है चुका है अगले 3 वर्ष  में निदेशक पद का चुनाव नहीं लड़ने दिया जाएगा। न्यायालय ने कहा कि ऐसा खंड धारा 164 के अतिक्रमण में होने के कारण शून्य  होगा, क्योंकि यह ऐसी अतिरिक्त अहर्ता है जो अधिनियम में मान्य नहीं है परंतु निदेशकों को इस आधार पर अधिवेशन बुलाने से इंकार नहीं करना चाहिए था। अध्यपेक्षाकर्ता धारा 98 के अंतर्गत अधिकरण का अधिवेशन बुलाने के लिए मांग तब तक नहीं कर सकते जब तक उन्होंने स्वयं अधिवेशन बुलाने का प्रयास ना किया हो।

अधिकरण की अधिवेशन बुलाने की शक्ति( power of Tribunal to call meeting)( धारा 98)

कंपनी संशोधन अधिनियम 1974 द्वारा अधिवेशन बुलाने का आदेश देने की शक्ति न्यायालय से हटकर कंपनी विधि बोर्ड को दे दी गई थी और अब 2013 के अंतर्गत यह शक्ति अधिकरण को दे दी गई है। जब वार्षिक अधिवेशन के अतिरिक्त सनी का कोई अन्य अधिवेशन करना असंभव हो तो अधिकरण को ऐसा अधिवेशन बुलाने का आदेश देने के लिए आवेदन किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में अधिकरण स्वयं या किसी निदेशक या सदस्य की प्रार्थना पर अधिवेशन बुलाने का आदेश दे सकता है। असंभव शब्द का तात्पर्य यह दिया गया है कि उचित तरीके से शांतिमय तथा उपयोगी अधिवेशन करना असंभव हो चुका है।

         कंपनी विधि बोर्ड की शक्ति न्यायिक प्रकार की शक्ति है। इसलिए यह आशा की जाती है कि कंपनी विधि बोर्ड उन्हीं सिद्धांतों को मानेगा जो कि न्यायालय उन्हें प्रतिपादित किए हैं। न्यायालय स्थिति की साधारण व्यक्ति की दृष्टि से जांच करते हैं।

          एक व्यक्ति जो निदेशक होने के अर्हतादायी अंश नहीं रखता था  उसे कंपनी का अधीक्षक बना दिया गया और उसकी अहर्ता पूरी करने के लिए निदेशकों ने उसे आवश्यक अंश दे दिए। कुछ अंश धारको ने इसके विरुद्ध आपत्ति की और इसकी वैधता के बारे में वाद चल रहा था। निर्णित हुआ कि ऐसी स्थिति में न्यायालय अधिवेशन बुला सकता था क्योंकि न्यायालय द्वारा बुलाए अधिवेशन की वैधता के बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता।


           कोलकाता हाईकोर्ट ने एक फैसले में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि इस शक्ति का बहुत कम प्रयोग होना चाहिए ताकि न्यायालय कहीं अंश धारक या निदेशक की स्थिति ना ग्रहण कर ले और अंन्ततः उनके झगड़ों में ना फंस जाएं। न्यायालय को तभी हस्तक्षेप करना चाहिए था जब यह साबित हो कि प्रार्थना सदभावना पूर्वक कंपनी के भले के लिए की गई या किसी गतिरोध को समाप्त करने के लिए की गई है और या अनुच्छेदों के अनुसार बुलाए गए अधिवेशन की वैधता के बारे में गंभीर संदेह हो सकता है। कलकत्ता मामले के तथ्य इस प्रकार थे

           एक कंपनी के निदेशक तो समूहों में बँटे हुए थे और प्रदेश समूह कहता था कि दूसरा समूह विधिक रुप से निदेशक नहीं था। कोई भी समूह अधिवेशन बुलाने के लिए तैयार नहीं था। एक समूह ने न्यायालय को अधिवेशन का आदेश देने की प्रार्थना की। न्यायालय ने कहा कि पहले वे स्वयं अधिवेशन बुलाएं और दूसरे समूह का व्यवहार देखें। यदि वे अधिवेशन ना होने दे तो न्यायालय को प्रार्थना की जा सकती है।

          एक प्राइवेट कंपनी जो 2 सदस्य दो निदेशक वाली थी और एक सदस्य ने दूसरे के विरुद्ध अन्याय पूर्ण आचरण के निवारण के लिए कार्यवाही कर रखी थी वे एक दूसरे के पास अधिवेशन में बैठ ही नहीं सकते थे इसलिए प्रबंध को जारी रखने के लिए अतिरिक्त निदेशक भी नियुक्त नहीं किए जा रहे थे। इन परिस्थितियों में एक अधिवेशन बुलाने का आदेश दिया गया ताकि अतिरिक्त निदेशक नियुक्त किया जा सके। जहां कंपनी के अंश धारक इस बात पर विवाद में थे की एक निदेशक अध्यक्ष बनने योग्य था या नहीं या यह कि कौन व्यक्ति कंपनी के विधि पूर्व निदेशक थे। निर्णय हुआ था कि सही तरीके से मीटिंग नहीं की जा सकती थी। अधिकरण यह भी आदेश दे सकता है कि केवल एक व्यक्ति की उपस्थिति स्वयं या प्रॉक्सी द्वारा मीटिंग का कोरम होगा।


अधिवेशन की प्रक्रिया( procedure of meeting):

(1) by proper authorities( उचित अधिकारी द्वारा): वैद्य अधिकारी की प्रथम शर्त यह होती है कि यह उचित अधिकारी द्वारा बुलाया जाना चाहिए। इस उद्देश्य के लिए उचित अधिकारी निदेशक बोर्ड है और उनकी त्रुटि  पर अंश धारक या कंपनी विधि बोर्ड। जिस निदेशक बोर्ड द्वारा अधिवेशन पर क्या प्रभाव होगा? ब्राउनी बनाम ला त्रिनाड में निर्णित किया गया कि निदेशकों के अधिवेशन में अनियमितता के कारण अंश धारको का अधिवेशन अवैध नहीं हो जाएगा। इसके विरुद्ध हार्बेन बनाम फिलिप्स मे निदेशक बोर्ड के एक अधिवेशन के एक अधिवेशन में कुछ निदेशकों को उपस्थित नहीं होने दिया गया। उनकी  उपस्थिति के बगैर भी कोरम उपस्थित था। निर्णय हुआ कि ऐसे बोर्ड द्वारा बुलाया गया अधिवेशन अवैध था क्योंकि कंपनी सभी निदेशकों के विचार जानने का अधिकार रखती है। एक कंपनी सचिव ने निदेशक बोर्ड से कोई प्राधिकार  लिए बिना ही मीटिंग का नोटिस जारी कर दिया था। निर्णय हुआ था कि नोटिस मीटिंग तथा इस में किया गया कार्य अवैध था।


(2) सूचना( notice)( धारा 101): वैद्य अधिवेशन की दूसरी शर्त यह है कि प्रत्येक सदस्य को पर्याप्त सूचना मिलनी चाहिए। जानबूझकर किसी सदस्य को सूचना न देने से अधिवेशन अवैध हो जाता है। यदि किसी सदस्य को घटना व सूचना नहीं दी गई है उसे प्राप्त ना हो तो इससे अधिवेशन अवैध नहीं हो जाता है। सूचना लिखित होनी चाहिए और अधिवेशन के 21 दिन पूर्व सदस्यों को मिल जानी चाहिए। 21 दिन की गिनती सदस्यों द्वारा सूचना प्राप्त होने की तिथि से की जाती है और डाक में डाल देने के लिए 48 घंटे के बाद यह माना जाता है कि सदस्यों को सूचना प्राप्त हो गई है। एनवीआर चेट्टियार बनाम मद्रास रेस क्लब एक उदाहरण है। 7 नवंबर का अधिवेशन बुलाने के लिए 16 अक्टूबर को सूचनाएं भेजी गई। निर्णय हुआ कि यह 21 दिन की सूचना नहीं थी क्योंकि 21 दिन की गिनती करने के लिए सूचना भेजने की तिथि तथा अधिवेशन की तिथि गिनती में नहीं लेनी चाहिए।

            एक अधिवेशन के नोटिस उस समय डाक में डाले गए जब डाकखाने में हड़ताल चल रही थी। इस कारण यह स्पष्ट था कि वे समय के अंदर सदस्यों को मिलेंगे नहीं न्यायालय ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में वह धारणा लागू नहीं होती की जिसके अंतर्गत यह मान लिया जाता है कि 48घंटे बाद नोटिस पहुंच गए होंगे। अंतर पूर्ण 21 दिन का होना चाहिए। मद्रास उच्च न्यायालय ने self help( p) industrial Estate(pte)Ltd Guindy, re में निर्णीत किया है कि सभी सदस्य एक मत से कम दिनों की सूचना के लिए अधिवेशन के पूर्व या पश्चात सहमत हो सकते हैं चाहे एक सदस्य का पता ना होने के कारण उसे सूचित ना किया जा सका हो। इसी प्रकार बेली, हे एण्ड कं लि. रि मे निर्णीत किया गया है कि ऐच्छिक परिसमापन आरंभ करने का प्रस्ताव पास करने के लिए बुलाया गया अधिवेशन कम दिनों की सूचना के बावजूद भी वैध हो गया था  क्योंकि सभी अंश धारक उपस्थित थे और उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की।

         एक अंश धारक जिसने की अधिवेशन में भाग लिया था और लाभांश तथा निदेशक पद भी स्वीकार किया था को यह कहकर अधिवेशन की वैधता को प्रश्नगत नहीं करने दिया गया था कि नोटिस पूरे समय का नहीं था।

        एक केस में कंपनी विधि बोर्ड ने यह अभि निर्धारित किया कि डाक में डाले जाने के प्रमाण पत्र के अधीन बैठक की नोटिस एक अच्छी नोटिस नहीं थी। ऐसी वैद्य नहीं थी। रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा नोटिस भेजने हेतु कंपनी को निर्देश दिए गए। यह विख्यात है कि डाक में डाले जाने का प्रमाण पत्र बहुत आसानी से प्राप्त हो जाता है। जब पक्षकारों के संबंध में कटुता आ चुकी हो एवं खर्चे का संदाय किए जाने  हेतु विनिर्दिष्ट प्रार्थना की गई हो तो बोर्ड की बैठक का प्रमाण पत्र रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा भेजा जाना चाहिए डाक में डाले जाने के प्रमाण पत्र को तामील का निश्चयक प्रमाण नहीं माना जा सकता है। एक असाधारण सामान्य बैठक की नोटिस फैक्स द्वारा भेजी गई थी। इसे अच्छी सेवा अभी निर्धारित किया गया।

       कम अवधि वाले नोटिस  से भी मीटिंग बुलाई जा सकती है यदि जो शेयर धारक मत का अधिकार रखते हैं उनमें से 95% सहमत हों। वह अपनी सहमति लिखित रूप से भेज सकते हैं या इलेक्ट्रॉनिक रूप में। मीटिंग का नोटिस भी लिख दिया इलेक्ट्रॉनिक रूप से या अन्य किसी तरीके से जो विहित किया गया हो भेजा जा सकता है। नोटिस निम्नलिखित को देना होता है

(1) कंपनी के प्रत्येक सदस्य किसी मृतक सदस्य के उत्तराधिकारी को दिवालिया सदस्य प्रतिनिधि को

(2) कंपनी के संप्रेक्षक या संप्रेक्षकों को

(3) कंपनी की प्रत्येक निदेशक को


(3) सूचना की विषय वस्तु( contents of notice)( धारा 102(2)): सूचना में अधिवेशन का स्थान दिन तथा समय बता देना चाहिए और अधिवेशन वैसा ही होना चाहिए। मद्रास उच्च न्यायालय ने मिसेज रथनावेलुस्वामी चेट्टियार बनाम मिसेज मेनिकावेलू चेट्टियार में निर्णित किया है कि यदि आवश्यक समय पर कंपनी का प्रबंध निदेशक अधिवेशन भवन को बंद कर दे तो अंश धारक कहीं भी अधिवेशन कर सकते हैं और वैद्य होगा। कार्रवाई की विषय वस्तु सूचना में बता देना चाहिए। धारा 102(2) के अनुसार कार्यवाही दो प्रकार की है:


(a) साधारण कायर्वाही: वार्षिक अधिवेशन में संप्रेक्षकों तथा निदेशकों की रिपोर्ट पर विचार अंश लाभ की घोषणा निदेशकों तथा संप्रेक्षकों की नियुक्ति तथा उनके पारिश्रमिक को तय करना साधारण कार्यवाही है।


(b) विशेष कार्यवाही: इसके अलावा कोई अन्य कार्यवाही तथा असाधारण अधिवेशन में प्रत्येक कार्यवाही विशेष कार्यवाही कही जाती है। यदि वार्षिक अधिवेशन में कोई विशेष कार्यवाही करनी है  यह अधिवेशन की सूचना में बता दिया जाना चाहिए। विशेष कारवाही के प्रत्येक मद का पूर्ण  ब्यौरा होना चाहिए और यदि किसी निदेशक या अन्य प्रबंधक व्यक्ति का इस विषय में कोई हित है तो उसका भी ब्यावरा होना चाहिए।

         निम्नलिखित का कथन होना चाहिए(1) प्रत्येक निदेशक और प्रबंधक प्रत्येक अन्य मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक और उनके नातेदार ओं का समुत्थान या हित (2) ऐसी अन्य सूचना और तथ्य जो सदस्यों को कारोबार के   मदों के अर्थ विस्तार और विवक्षाओं को समझाने में और उन पर विनिश्चय  करने में समर्थ कर सकें। जिस विषय पर अंश धारकों को मत देने के लिए बुलाया जाता है उसका पूर्ण  तथा सत्य ब्यावरा दिया जाना चाहिए। स्पष्टीकरण कथन का प्रयोजन सदस्यों को ऐसी जानकारी देना है जिससे वे अधिवेशन में की जाने वाली कार्यवाही की प्रकृति को समझ सके। उदाहरण के लिए नारायण लाल बंसी लाल बनाम मेनेकी पेटिट मैन्यूफैक्चरिंग कं. लि. लिया जा सकता है। एक कंपनी अपने प्रबंध अभिकर्ता ओं की नियुक्ति की शर्तें बदलना चाहती थी। इस प्रयोजन के लिए जो अधिवेशन बुलाया गया उसकी सूचना में प्रस्तुत होने वाले प्रस्ताव तो दिए गए परंतु जो परिवर्तन होने थे उनका ब्यावरा नहीं दिया गया। ऐसी सूचना के आधार पर पारित प्रस्ताव अवैध निर्णित किए गए।

           जहां प्रस्ताव नियमावली नोटिस के साथ नहीं भेजी गई थी और कंपनी के सदस्यों को केवल यह कह दिया गया था कि वह चाहे तो उसे कंपनी के कार्यालय में देख सकते हैं नोटिस के बारे में न्यायालय ने कहा कि यह उचित नहीं था।

         जब विशेष कारोबार का कोई मद किसी अन्य कंपनी से संबंधित है या उस पर प्रभाव डालता हो तो कथन में यह प्रकट करना हो की  उस कंपनी के अंशों में कितना हित है कंपनी के प्रत्येक प्रवर्तक निदेशक प्रबंधक तथा अन्य सभी मुख्य प्रबंधकीय कार्मिकों का यदि उस कंपनी की सम दत्त पूंजी मे शेयरों का ऐसा हित  2% से कम नहीं है। जब कारोबार का कोई मद किसी दस्तावेज की बात करता है तो नोटिस में यह बताना होगा कि किस समय और किस स्थान पर ऐसे दस्तावेज की जांच की जा सकती है।

         यहां कंपनी की एक इकाई को देखने के लिए अंश धारको का प्रस्ताव आवश्यक हो गया था न्यायालय ने कहा कि इस संबंध में जो तात्विक तथ्य हो सकते थे वे यह थे की विक्रय के कारण क्या थे जिस कंपनी को इकाई भेजी जा रही थी उसके हित पर विक्रय का क्या प्रभाव आएगा विक्रय के लिए प्रतिफल क्या था किस माध्यम से वह किसी प्रक्रिया से प्रतिफल की रकम निकाली गई थी क्या निदेशकों का सम व्यवहार में कोई हीत था। ऐसे तात्विक  तथ्यों से अंश धारको को सही निर्णय करने में सहायता मिलती है। यह तथ्य उच्चतम न्यायालय ने कंपनी ने कंपनी की आस्तियों का विक्रय होने पर रोक लगा दी थी ऐसा तथ्य था जो अंश धारकों को बताया जाना चाहिए था। अधिवेशन के नोटिस में ऐसे तथ्य को ना बताने से पारित किया गया प्रस्ताव रद्द हो गया था। ऐसे प्रस्ताव के आधार पर विक्रय का करार परिवर्तनीय नहीं था। इसके भंग के लिए प्रतिकर प्राप्त करने का वादा नहीं लाया जा सकता था।


           प्रिवी काउंसिल ने परशुराम दाताराम समदशानी बनाम  टाटा इंडस्ट्रियल बैंक लिमिटेड में निर्णीत किया था कि जिस अंश धारक को अधिवेशन में होने वाली कार्यवाही का पहले ही से पूरा ज्ञान हो वह सूचना की अपर्याप्ता के बारे में शिकायत नहीं कर सकता।

           इसके अतिरिक्त पूंजी के विवाधक का  व्यापार होने के कारण नोटिस में वर्णन किया जाना आवश्यक था। क्योंकि ऐसा नहीं किया था अता बैठक इसकी नोटिस एवं अन्य विवाधक सभी अवैध थे।


प्रकटीकरण ना करने से होने वाला कोई लाभ( धारा 102): जब किसी आवश्यक सूचना का प्रकटीकरण ना किया गया हो या पर्याप्त प्रकटीकरण ना किया गया हो और यदि इससे किसी प्रवर्तक निदेशक प्रबंधक या अन्य मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक को कोई लाभ या फायदा मिलता है प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे ऐसा फायदा कंपनी के प्रति न्यास के रूप में रखा होगा और उस सीमा तक कंपनी के प्रति न्यास के रूप में रखना होगा और उस सीमा तक कंपनी को होने वाली हानि के लिए क्षतिपूर्ति करनी पड़ती है।


दंड( धारा 102(5)): धारा का उल्लंघन करने वाले किसी भी प्रवर्तक निदेशक, प्रबंधक या अन्य मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक को ₹50000 का जुर्माना हो सकता है या होने वाले फायदे को 5 गुना धनराशि का जुर्माना जो भी अधिक हो हो सकता है।


(4) कोरम( Quorum)( धारा 103): वैद्य अधिवेशन की एक अन्य शर्त है कि अधिवेशन में कोरम की उपस्थिति होनी चाहिए। कोरम का तात्पर्य सदस्यों की संख्या बताई गई है। यह कहते हुए कि कंपनी के अनुच्छेद इससे अधिक कोरम की अपेक्षा कर सकते हैं। धारा में जो कोरम बताया गया है वह इस प्रकार है पब्लिक कंपनी 1000 से कम सदस्य, 5 सदस्य, 5000 से कम सदस्य 15 सदस्य 5000 से अधिक सदस्य 30 सदस्य सब स्वयं हाजिर हों। प्राइवेट कंपनी के केस में 2 सदस्य जो स्वयं हाजिर हो कोरम होगा। अधिवेशन आरंभ होने के समय से यदि आधे घंटे के अंदर कोरम की उपस्थिति ना हो तो अधिवेशन यदि सदस्यों द्वारा मांग पत्र के कारण बुलाया गया है तो रद्द हो जाएगा। अन्य स्थितियों में 1 हफ्ते के लिए स्थगित हो जाएगा। यदि एक हफ्ते बाद होने वाले अधिवेशन में भी कोरम की उपस्थिति ना हो तो जितने भी सदस्य उपस्थित होंगे वही कोरम लिए जाते हैं। इस संदर्भ में सबसे कठिन समस्या यह है कि मान लीजिए है कि केवल एक ही सदस्य आता है तो क्या वैद्य अधिवेशन कर सकता है। यह प्रश्न शार्प बनाम देवास में न्यायालय के सामने आया।


         एक कंपनी में कई अंश धारक थे।अंशों का मूल्य मांगने के लिए अंश धारको का अधिवेशन बुलाया गया। केवल एक ही अंश धारक उपस्थित हुआ जिसके पास कई अन्य अंश धारकों की परोक्षी थी। उसने अपना तथा परोक्षी वाले मतों का प्रयोग करते हुए मांग का प्रस्ताव पास कर दिया। कोर्ट आफ अपील का निर्णय देते हुए लॉर्ड कोलरिज ने कहा अधिवेशन शब्द का प्रथम दृष्टया तात्पर्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों के एकत्रित होने से है। इस स्थिति में जो अधिवेशन किया गया उसे अधिनियम के अंतर्गत अधिवेशन नहीं माना जा सकता।

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